महर्षि महेश योगी
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
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महर्षि
महेश योगी भारत की उन आध्यात्मिक विभूतियों में से एक थे,
जिन्होंने भावातीत ज्ञान योग की
स्थापना की तथा इसके द्वारा मानवीय सेवा का
जो कार्य उन्होंने किया,
वह बहुत ही अमूल्य है । भारत देश में
ही नहीं, अपितु विश्व-भर में उन्होंने इस ध्यान योग के साथ-साथ
शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना भी की ।
इन शैक्षणिक संस्थाओं में भारतीय
संस्कृति के धर्म, आध्यात्म के साथ-साथ जीवन के व्यावहारिक मूल्यों की
शिक्षा भी दी जाती है।
कोई
जबलपुर तो कोई जन्म 12
जनवरी 1918
को छत्तीसगढ़ के राजिम शहर पांडुका
गांव को जन्म स्थान बताता है। कोई उनका नाम महेश श्रीवास्तव तो कोई महेश प्रसाद वर्मा लिखता है। कुछ भी हो वो
थे एक भारतीय महायोगी जिनको महऋषि की उपाधि दी गई। नाम तो वर्मा और श्रीवास्तव एक ही
हैं क्योकि दोनों कायस्थ उपजाति के सर नेम हैं। महर्षि योगी के गुरु स्वामी
ब्रह्मानन्द सरस्वती शंकराचार्य थे । उनके
देहान्त के उपरान्त महेश श्रीवास्तव
महर्षि महेश योगी कहलाये । गुरु की आज्ञानुसार उन्होंने समस्त विश्व में वैदिक संस्कृति
का प्रचार-प्रसार करने का बीड़ा उठाया ।
हिमालय
के बद्रीकाश्रम तथा ज्योर्तिमठों में रहकर ध्यान,
योग की साधना
की । दक्षिण भारत में विशेषत: उन्होंने
आध्यात्मिक विकास केन्द्र की स्थापना की । दिसम्बर 1957
को आध्यात्मिक पुनरुत्थान कार्यक्रम
शुरू किया । 1960 में पश्चिमी देशों की यात्रा पर निकल पड़े ।
वहां रहकर उन्होंने अमेरिका में भावातीत
के रूप में मानवीय चेतना के विस्तार का कार्य किया । पश्चिम देशों में जाकर उन्होंने रासायनिक द्रव्यों के
कुप्रभाव के साथ-साथ पदार्थवादी सभ्यता से बचने हेतु सन्देश दिया । ध्यान
पद्धति के द्वारा मादक द्रव्यों के सेवन के बिना किस तरह तनाव पर विजय
प्राप्त की जा सकती है, इसका व्यावहारिक रूप उन्होंने प्रस्तुत किया ।
इस भावातीत ध्यान से आकर्षित होकर हालीबुड
की प्रसिद्ध फिल्म स्टार मिया फारो ने महर्षि को अपना गुरु बना लिया । विदेशों में तो उनके पास रातो-रात प्रसिद्धि
के साथ-साथ काफी धनराशि का ढेर-सा लग गया । उन्होंने पश्चिम के वैज्ञानिकों
को भी यह प्रमाणित करके बताया कि भावातीत ध्यान से किस तरह मनुष्य
को शान्ति प्राप्त होती है ।
इसके द्वारा बुद्धि, ज्ञान तथा योग्यता की
क्षमताओं में वृद्धि होती है । आत्मा को शक्ति और आनन्द का
सागर बताते हुए उन्होंने ध्यान को ही प्रमुख माना है । विश्वशान्ति, विश्वबन्धुत्व, पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति, वैदिक शिक्षा का प्रचार, भावातीत ध्यान के महत्त्व को
संसार में फैलाना उनका प्रमुख उद्देश्य था ।
वैदिक
शिक्षा के माध्यम से आदर्श व्यक्ति, समस्याहीन, रोगहीन, दु:खविहीन, संघर्षविहीन, आदर्श समाज, आदर्श भारत का निर्माण करते हुए भारत
सहित समस्त विश्व में दिव्य जागरण लाना
उनका ध्येय था । अपने 30 से भी अधिक
वर्षो की भ्रमण यात्रा के दौरान
उन्होंने 1975 में स्वीटजरलैण्ड में मेरू
महर्षि यूरोपियन रिसर्च यूनिवर्सिटी
स्थापित की ।
उन्होंने
तीन अन्तर्राष्ट्रीय भावातीत राजधानियों में स्वीटजरलैण्ड में
सीलिसबर्ग,
न्यूयार्क में साउथ फाल्सबर्ग और
ऋषिकेश में शंकराचार्य नगर की स्थापना की । इन सब स्थानों पर विशाल भव्य भवनों की
स्थापना हेतु अपार धन-सम्पदा अर्जित की ।
नयी दिल्ली के पास नोएडा में महर्षि नगर तथा आयुर्वेद
विश्वविद्यालय और वैदिक विज्ञान महाविद्यालय की
भी संकल्पना की । समस्त विश्व के 150 स्थानों में 4 हजार केन्द्र उनके द्वारा
संचालित हो रहे हैं ।
महर्षि
महेश योगी की भावातीत ध्यान साधना एवं वैदिक शिक्षा की महत्त्वपूर्ण विशेषता प्राचीन भारतीय शिक्षा के
साथ-साथ पाश्चात्य शिक्षा का इसमें अनूठा समन्वय करना है । मनुष्य अपनी समस्त
शक्तियों को भावातीत ज्ञान के माध्यम से एकीकृत चेतना में समाहित कर पूर्ण
शान्ति और विकास को प्राप्त हो सकता है।
विश्व-भर में भारतीय वैदिक शिक्षा का
प्रचार-प्रसार करने में महर्षि महेश योगी का नाम हमेशा अमर रहेगा।
आज के समय में तो लोग रामदेव और दूसरे योग गुरुओं के
दीवाने हैं, लेकिन एक समय था जब पश्चिम में हिप्पी संस्कृति तेजी से फैल
रही थी और लोग महर्षि महेश योगी के अनुयायी बन रहे
थे. आपको बता दें कि महर्षि महेश योगी ने ही दुनिया के कई देशों में योग को पहुंचाया.
बता
दें कि 5 फ़रवरी, साल 2008 के ही दिन महर्षि महेश योगी का निधन हुआ था.
नीदरलैंड्स स्थित उनके घर में 91 साल की उम्र में उनका देहांत हुआ.
उन्होंने
'ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन'
(अनुभवातीत ध्यान) के जरिए दुनिया भर
में अपने लाखों अनुयायी बनाए थे. आपको बता दें कि 60
के दशक में मशहूर रॉक बैंड
बीटल्स के सदस्य भी उनके ही अनुयायी थे,
इसके साथ ही वो कई बड़ी हस्तियों
के आध्यात्मिक गुरू हुए.
उन्होंने इलाहाबाद से दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री
हासिल की थी. इसके बाद वो 40 और 50 के दशक में हिमालय में अपने
गुरू के पास चले गए और वहां पर ध्यान और योग की शिक्षा लेते
रहे.
एक बार की बात है जब महेश योगी
ऋषिकेश में बनाए गए अपने अत्याधुनिक आश्रम में थे तो बीटल्स के सदस्य हेलिकॉप्टर से वहां पहुंचे थे.
हालांकि बीटल्स म्यूजिक ग्रुप का महर्षि योगी
से जल्दी ही मोह भंग हो गया लेकिन तब तक उनका साम्राज्य दिल्ली से अमरीका तक फैल चुका था.
जब वो
दुनिया भर में प्रसिद्ध हो चुके थे तो उनसे लोग पूछा करते थे कि आखिर उनको
संत क्यों कहा जाता है ? इस पर उनका जवाब ये होता था कि 'मैं लोगों को ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन सिखाता हूँ जो लोगों को जीवन के भीतर झांकने का अवसर
देता है. इससे लोग शांति और ख़ुशी के हर क्षण का आनंद लेने लगते हैं. चूंकि
पहले सभी संतों का यही संदेश रहा है इसलिए लोग मुझे भी संत कहते हैं.'
एक पत्रकार
ने उनसे एक इंटरव्यू में पूछा था कि वे और उनका ध्यान-योग पश्चिमी देशों
में बहुत लोकप्रिय है लेकिन भारत में ऐसा नहीं है, भारत
में उन्हें ज्यादा लोग नहीं मानते हैं, ऐसा क्यों है ?
इस सवाल पर उनका कहना था कि
'इसकी वजह यह है कि यदि पश्चिमी देशों में लोग किसी चीज के पीछ वैज्ञानिक
कारण देखते हैं तो उसे तुरंत अपना लेते हैं और मेरा ट्रांसेंडेंटल
मेडिटेशन योग के सिद्धांतों पर कायम रहते हुए पूरी तरह वैज्ञानिक
है.'
बीटल्स
रॉक बैंड ने महर्षि महेश योगी के 18 एकड़ में फैले इस आश्रम में तीन महीने रहने की योजना बनाई थी, लेकिन उनकी ये योजना सफल नहीं हो सकी. लेकिन आज ये आश्रम उन दिनों की भुतहा निशानी
बन कर रह गया है. आपको बता दें कि ये आश्रम नेशनल पार्क में बना हुआ है, जहां 1,700 हाथी और चीता एवं तेंदुआ जैसे जानवर रहते हैं.
लेकिन
अब यहां की दीवारों पर जंगल के झाड़ और पेड़ उग आए हैं. कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार
यह आश्रम अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस बहुत सुंदर ढंग से बनाया गया था.
यहां मेहमान हैलीकॉप्टर से आते जाते थे और यूरोपीय मॉडल के किचन में तीन वक्त
का शाकाहारी भोजन दिया जाता था.
आपको
जानकर हैरानी होगी कि महर्षि महेश योगी
ने 'राम' नाम की एक मुद्रा भी जारी
की थी. इस मुद्रा को नीदरलैंड्स ने साल
2003 में कानूनी मान्यता भी दी थी.
राम नाम की इस मुद्रा में एक,
पांच और दस के नोट थे. इस मुद्रा को
महर्षि की संस्था 'ग्लोबल कंट्री ऑफ़ वर्ल्ड पीस'
ने साल 2002
के अक्टूबर में जारी
किया गया था.
नीदरलैंड्स
के कुछ गाँवों और शहरों की सौ से अधिक दुकानों में ये नोट चलने लगे थे. इन दुकानों में कुछ
तो बड़े डिपार्टमेंट स्टोर श्रृंखला का हिस्सा थे. अमरीकी राज्य आइवा के
महर्षि वैदिक सिटी में भी 'राम' मुद्रा का प्रचलन था. वैसे 35
अमरीकी राज्यों में 'राम' पर आधारित बॉन्डस शुरू किए गए थे.
(तथ्य कथन गूगल साइट्स इत्यादि से साभार)
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक
विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी
न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग
40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके
लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6
महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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