राम के दोष या दृष्टि दोष
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
वैज्ञानिक अधिकारी, भाभा परमाणु अनुसंधान
केन्द्र, मुम्बई
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
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राम के चरित में वाम पंथियो और सनातन के दुश्मनों ने तीन बातें उठाई है पहली तुलसीदास पर ” ढोल, गंवार , शूद्र ,पशु ,नारी सकल ताड़ना के अधिकारी। जिस पर मैंने ब्लाग पर पहले ही लेख लिख दिया है। दूसरी बात राम ने सीता को क्यों त्यागा और तीसरी बात लक्ष्मण ने सूर्पनखा की नाक क्यों काटी।
राम
ने सीता को लोगों के कहने पर छोड़ दिया ! ये एक अनावश्यक बात बना दी गई है,जिसका प्रसार किया जा रहा है। हर व्यक्ति की एक सोंच होती है। चीजों को
समझने का। मानस में धर्म से ज्यादा समाज
पर ध्यान केन्द्रित किया गया है। यह महसूस किया जा सकता है कि रामायण एक ऐसे समाज
की कल्पना करता है जहाँ प्रत्येक व्यक्ति नैतिक हो। नैतिकता का पाठ पढ़ाती है,रामायण।
दो
वर्ष रावण के पास रहने के कारण सीता के प्रति समाज के एक वर्ग में संदेह उत्पन्न
हो चला था। लोगों को विश्वास नहीं हुआ कि मां सीता पहले की तरह ही पवित्र और सती
है। भारतीय समाज में सीता को परम पवित्र और आदर्श नारी का दर्जा प्राप्त है। लेकिन
समाज में यह धारणा भी प्रचलित है कि माता सीता को भगवान राम ने समाज द्वारा सवाल
उठाए जाने पर अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए छोड़ दिया था। राम पर यह आरोप कहां तक
उचित है। क्या सचमुच राम ने सीता को छोड़ दिया था या नहीं।
लंका में सीता को पहचानकर उनके व्यक्तित्व की प्रशंसा करते हुए हनुमानजी ने
कहा था।
'दुष्करं कृतवान् रामो हीनो यदनया
प्रभुः धारयत्यात्मनो देहं न शोकेनावसीदति।
यदि नामः समुद्रान्तां मेदिनीं
परिवर्तयेत् अस्थाः कृते जगच्चापि युक्त मित्येव मे मतिः।।
ऐसी सीता के बिना जीवित रहकर राम ने सचमुच ही बड़ा दुष्कर कार्य किया है।
इनके लिए यदि राम समुद्रपर्यंत पृथ्वी को पलट दें तो भी मेरी समझ में उचित ही होगा, त्रैलौक्य का राज्य सीता
की एक कला के बराबर भी नहीं है।
न मालूम सीता कौन थी? धरती की पुत्री या किसी ऐसे माता-पिता की संतान जिसने अबोध बालिका को किसी
खेत में छोड़ दिया था। मिथिला प्रदेश के राजा जनक के राज्य में एक बार अकाल पड़ने लगा।
वे स्वयं हल जोतने लगे तभी हल में एक बक्सा अड़ गया। जब उस बक्से को खोला गया तो
उसमें एक नन्ही बालिका था, जो मृत्यु से लड़ रही थी। कुछ
कहते हैं कि जब राजा बीज बो रहे थे तब सीता को धूल में पड़ी पाकर उन्होंने उठा लिया।
तभी उन्होंने आकाशवाणी सुनी- 'यह तुम्हारी धर्मकन्या है।'
तब तक राजा की कोई संतान नहीं थी तो उन्होंने उसे पुत्रीवत पाला।
राजा जनक की प्रसिद्धि संपूर्ण देश में एक विदेही ज्ञानी राजा की तरह थी। सीता का पालन-पोषण राजकुमारी की ही तरह हुआ। किशोरी सीता के लिए योग्य वर प्राप्त करना कठिन हो गया, क्योंकि सीता को लोग मानव नहीं बल्कि देवकन्या मानते थे। सीता की प्रसिद्धि एक दिव्य कन्या की तरह थी। ऐसे में राजा जनक ने सीता स्वयंवर का आयोजन किया।
जनक ने कहा कि जिस धनुष को उठाने, प्रत्यंचा चढ़ाने और टंकार करने में देवता, दानव, दैत्य, राक्षस, गंधर्व और किन्नर भी समर्थ नहीं हैं, उसे मनुष्य भला कैसे उठा सकता है? अत: जो भी उसे उठाएगा वह कोई महान शक्तिशाली व्यक्ति ही होगा और जो इस धनुष को उठाएगा उसी से सीता का स्वयंवर होगा।
स्वयंवर में रावण सहित देश-विदेश के कई राजकुमारों और राजाओं ने भाग लिया। उनमें राम भी थे जिनको विश्वामित्र लेकर आए थे। जब रावण सहित सभी योद्धा हार गए, तब जनक की अनुमति से राम ने अत्यंत सहजता से वह धनुष उठाकर चढ़ाया और मध्य से तोड़ डाला। धनुष की टंकार सुनकर राम, लक्ष्मण, विश्वामित्र और जनक के अतिरिक्त शेष समस्त उपस्थितगण तत्काल बेहोश हो गए और इस तरह सीता ने राम के गले में वरमाला डाल दी। यहीं से सीता का संघर्ष शुरू होता है।
कालांतर में कैकेयी के दशरथ से वर मांग लेने पर सीता और लक्ष्मण सहित राम 14 वर्ष के वनवास के लिए
चले गए। वन में रावण ने सीता का अपहरण कर लिया। फलस्वरूप राम- रावण युद्ध हुआ। राम
के भाई लक्ष्मण ने रावण की बहन शूर्पणखा की नाक काट दी थी। पंचवटी में लक्ष्मण से
अपमानित शूर्पणखा ने अपने भाई रावण से अपनी व्यथा सुनाई और उसके कान भरते कहा,
'सीता अत्यंत सुंदर है और वह तुम्हारी पत्नी बनने के सर्वथा योग्य
है।'
रावण ने खर और दूषण के साथ दंडकारण्य में पहुंचकर पुष्पक विमान से ही सीता को गुपचुप तरीके से देखा तो वो मुग्ध हो गया। तब रावण ने अपने मामा मारीच के साथ मिलकर सीता अपहरण की योजना बनाई। मारीच का सोने के हिरण का रूप धारण करके राम व लक्ष्मण को वन में ले जाने और उनकी अनुपस्थिति में रावण द्वारा सीता का अपहरण करने की योजना थी।
इस पर जब राम स्वर्ण हिरण के पीछे वन में चले गए, तब लक्ष्मण सीता के पास थे लेकिन बहुत देर होने के बाद भी जब राम नहीं आए तो सीता माता को चिंता होने लगी, तब उन्होंने लक्ष्मण को भेजा। राम और लक्ष्मण की अनुपस्थिति में रावण सीता का अपहरण करके ले उड़ा। अपहरण के बाद आकाश मार्ग से जाते समय पक्षीराज जटायु के रोकने पर रावण ने उसके पंख काट दिए।
रावण ने
सीता को लंकानगरी के अशोक वाटिका में रखा और त्रिजटा के नेतृत्व में कुछ
राक्षसियों को उसकी देखरेख का भार सौंप दिया। सभी राक्षसनियां सीता माता को डराती
रहती थीं और रावण से विवाह करने के लिए उकसाती रहती थीं। सीता 2 वर्ष तक
रावण की अशोक वाटिका में बंधक बनकर रही लेकिन इस दौरान रावण ने सीता
को छुआ तक नहीं। इसका कारण था कि रावण को स्वर्ग की अप्सरा ने यह शाप दिया था
जब भी तुम किसी ऐसे स्त्री से प्रणय करोगे, जो तुम्हें नहीं चाहती
है तो तुम तत्काल ही मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे। अत: रावण किसी भी स्त्री की
इच्छा के बगैर उससे प्रणय नहीं
कर सकता था।
अशोक वाटिका लंका में स्थित है, जहां रावण ने सीता को हरण
करने के पश्चात बंधक बनाकर रखा था। ऐसा माना जाता है कि एलिया पर्वतीय क्षेत्र की
एक गुफा में सीता माता को रखा गया था जिसे 'सीता एलिया'
नाम से जाना जाता है। यहां सीता माता के नाम पर एक मंदिर भी है।
माना जाता है कि रणक्षेत्र में वानर-सेना
तथा राम-लक्ष्मण में भय और निराशा फैलाने के लिए रावण के पुत्र मेघनाद ने अपनी
शक्ति से एक मायावी सीता की रचना की, जो सीता की भांति ही नजर आ
रही थीं। मेघनाद ने उस मायावी सीता को अपने रथ के सामने बैठाकर रणक्षेत्र में
घूमाना प्रारंभ किया। वानरों ने उसे सीता समझकर प्रहार नहीं किया।
बाद में मेघनाद
ने मायावी सीता के बालों को पकड़कर खींचा तथा सभी के सामने उसने उसके दो टुकड़े कर
कर दिए। यह दृश्य देखकर वानर सेना में निराशा फैल गई। सभी सोचने लगे कि जिस सीता
के लिए युद्ध कर रहे हैं वह तो मारी गई अब युद्ध करने का क्या फायदा? राम ने सीता की मृत्यु का समाचार सुना तो वे भी अचेत हो
गए। चारों ओर फैला खून देखकर सब लोग शोकाकुल हो उठे। यह देखकर मेघनाद निकुंभिला
देवी के स्थान पर जाकर हवन करने लगा।
जब राम की चेतना लौटी तो लक्ष्मण और हनुमान ने उन्हें अनेक प्रकार से समझाया तथा विभीषण ने कहा कि 'रावण कभी भी सीता को मारने की आज्ञा नहीं दे सकता, अत: यह निश्चय ही मेघनाद की माया का प्रदर्शन है। आप निश्चिंत रहिए।' बाद में कुछ दिन युद्ध और चला और अंतत: रावण मारा गया।
जब राम की चेतना लौटी तो लक्ष्मण और हनुमान ने उन्हें अनेक प्रकार से समझाया तथा विभीषण ने कहा कि 'रावण कभी भी सीता को मारने की आज्ञा नहीं दे सकता, अत: यह निश्चय ही मेघनाद की माया का प्रदर्शन है। आप निश्चिंत रहिए।' बाद में कुछ दिन युद्ध और चला और अंतत: रावण मारा गया।
राम जब सीता को रावण के पास से छुड़वाकर अयोध्या ले आए तो उनके राज्याभिषेक
के कुछ समय बाद मंत्रियों और दुर्मुख नामक एक गुप्तचर के मुंह से राम ने जाना कि
प्रजाजन सीता की पवित्रता के विषय में संदिग्ध है अत: सीता और राम को लेकर अनेक
मनमानी बातें बनाई जा रही हैं। उस वक्त सीता गर्भवती थीं।
राम और अन्य से सीता से कहा कि समाज में बातें बनाई जा रही हैं। सभी कहते हैं कि अग्निपरीक्षा देगा पड़ेगी। माना जाता है कि राम और समाज द्वारा संदेह किए जाने के कारण सीता ने ग्लानि, अपमान और दु:ख से विचलित होकर चिता तैयार करने की आज्ञा दी। सीता ने यह कहा- 'यदि मन, वचन और कर्म से मैंने सदैव राम को ही स्मरण किया है तथा रावण जिस शरीर को उठाकर ले गया था, वह अवश था, तब अग्निदेव मेरी रक्षा करें।' और जलती हुई चिता में प्रवेश किया। अग्निदेव ने प्रत्यक्ष रूप धारण करके सीता को गोद में उठाकर राम के सम्मुख प्रस्तुत करते हुए कहा कि वे हर प्रकार से पवित्र हैं। अब सवाल यह उठता है कि उपरोक्त कथा कहां तक सच है। जानेंगे अगले पन्नों पर। पढ़ते रहिए।
अग्नि परीक्षा के बाद राम ने प्रसन्न
भाव से सीता को ग्रहण किया और उपस्थित समुदाय से कहा कि उन्होंने लोक निंदा के भय
से सीता को ग्रहण नहीं किया था। किंतु अब अग्नि परीक्षा से गुजरने के बाद यह सिद्ध
होता है कि सीता पवित्र है तो अब किसी को इसमें संशय नहीं होना चाहिए। लेकिन इस
अग्नि परीक्षा के बाद भी जनसमुदाय में तरह-तरह की बातें बनाई जाने लगीं, तब राम ने सीता को छोड़ने का मन बनाया। सीता जब गर्भवती थीं तब उन्होंने
एक दिन राम से एक बार तपोवन घूमने की इच्छा व्यक्त की। किंतु राम ने वंश को कलंक
से बचाने के लिए लक्ष्मण से कहा कि वे सीता को तपोवन में छोड़ आएं।
लक्ष्मण ने तपोवन में पहुंचकर अत्यंत उद्विग्न मन से सीता से कहा- 'माते, में आपको अब यहां से वापस नहीं ले जा सकता, क्योंकि यही आज्ञा है।' ऐसा कहकर लक्ष्मण ने सब कुछ कह सुनाया और लौट आए। तपोवन में सीता को वाल्मीकि ने अपने आश्रम में स्थान दिया। उसी आश्रम में सीता ने लव और कुश नामक पुत्रों को जन्म दिया। बालकों का लालन-पालन भी आश्रम में ही हुआ।
जिस सीता के लिए राम एक पल
भी रह नहीं सकते और जिसके लिए उन्होंने सबसे बड़ा युद्ध लड़ा उसे वह किसी व्यक्ति
और समाज के कहने पर क्या छोड़ सकते हैं? राम को
महान आदर्श चरित और भगवान माना जाता है। वे किसी ऐसे समाज के लिए सीता को कभी नहीं
छोड़ सकते, जो दकियानूसी सोच में जी रहा हो। इसके लिए उन्हें
फिर से राजपाट छोड़कर वन में जाना होता तो वे चले जाते।
अब सवाल यह भी उठता है कि रामायण और रामचरित मानस में तो ऐसा ही लिखा है कि राम ने सीता को कलंक से बचने के लिए छोड़ दिया था। दरअसल, शोधकर्ता मानते हैं कि रामायण का उत्तरकांड कभी वाल्मीकिजी ने लिखा ही नहीं जिसमें सीता परित्याग की बात कही गई है।
रामकथा पर सबसे प्रामाणिक शोध करने वाले फादर कामिल बुल्के का स्पष्ट मत है कि 'वाल्मीकि रामायण का 'उत्तरकांड' मूल रामायण के बहुत बाद की पूर्णत: प्रक्षिप्त रचना है।' (रामकथा उत्पत्ति विकास- हिन्दी परिषद, हिन्दी विभाग प्रयाग विश्वविद्यालय, प्रथम संस्करण 1950)
लेखक के शोधानुसार 'वाल्मीकि रामायण' ही राम पर लिखा गया पहला ग्रंथ है,
जो निश्चित रूप से बौद्ध धर्म के अभ्युदय के पूर्व लिखा गया था। अत:
यह समस्त विकृतियों से अछूता था। यह रामायण युद्धकांड के बाद समाप्त हो जाती है। इसमें
केवल 6 ही कांड थे, लेकिन बाद में मूल
रामायण के साथ बौद्ध काल में छेड़खानी की गई और कई श्लोकों के पाठों में भेद किया
गया और बाद में रामायण को नए स्वरूप में उत्तरकांड को जोड़कर प्रस्तुत किया गया।
बौद्ध और जैन धर्म के अभ्युदय काल में नए धर्मों की प्रतिष्ठा और श्रेष्ठता को प्रतिपादित करने के लिए हिन्दुओं के कई धर्मग्रंथों के साथ इसी तरह का हेरफेर किया गया। इसी के चलते रामायण में भी कई विसंगतियां जोड़ दी गईं। बाद में इन विसंगतियों का ही अनुसरण किया गया। कालिदास, भवभूति जैसे कवि सहित अनेक भाषाओं के रचनाकारों सहित 'रामचरित मानस के रचयिता ने भी भ्रमित होकर उत्तरकांड को लव-कुश कांड के नाम से लिखा। इस तरह राम की बदनामी का विस्तार हुआ।
ऊपर लिखी गई राम से
जुड़ी सारी कथाएं उत्तरकांड में उल्लेखित हैं जिसके सच होने में संदेह है,
क्योंकि ऐसे कई प्रमाण मौजूद हैं जिससे यह पता चलता है कि यह कथाएं
बौद्धकाल में जोड़ी कई हैं।
अक्सर लोगो के मन में ये सवाल उठता
रहता है के आखिर राम जी ने सीता माँ को अकेले जंगल में क्यों छोड़ दिया था, एस्ले लिए लोग राम की बुरे भी करते है, हमें कभी भी
बिना पूरा सच जाने बगैर अपनी धरनाये नहीं बनानी चाहिए इससे हमारा खुद का ही
नुक्सान होता है।
श्री राम ने सीता माँ का त्याग
नहीं किया था उन्होंने तो सीता जी को वनवास दिया था जिससे सीता जी पर दुनिया में
फिर कोई कभी भी ऐसा आरोप कोई न लगा सके! भगवान श्री राम सीता जी को जंगल नहीं
भेजते तो दुनिया आज भी सीता के चरित्र पर दाग लगा रही होती जिस तरह से लोग इस युग
में आसानी से किसी भी व्यक्ति को बदनाम कर देते है!
उस युग में ही कुछ लोग सीता जी पर
आरोप लगाने लगे थे इसलिए राम जी को सब कुछ
जानते हुए भी ऐसा करना पड़ा, जिससे के कोई भी
व्यक्ति सीता माता के चरित्र पर कभी भी भविष्य में ऊँगली न उठा सके और अगर ऐसा हो
जाता तो राम जन्म असफल हो जाता!
अयोध्या के लोगो के मन में सीता जी की
पवित्रता को लेकर जो सवाल आ रहे थे उस वक़्त उसका समाधान नहीं होने पर राम के एक
सच्चे राजा होने पर और सीता की पवित्रता का अपमान होता तथा कलयुग में लोग सीता की
पवित्रता को कलंकित कर रहे होते! और रामायण का वो अध्याय पूरी रामायण का सबसे बुरा
अध्याय बन जाता जिसमे राम के होते हुए माँ सीता का अपमान पूरी मानव जाती कर रही
होती!
जबकि सत्य ये है के श्री राम ने अगर
ऐसा नहीं किया होता तो सीता जी के चरित्र पर अब तक ना जाने कितनी उंगलिया उठ चुकी
होती और लोग अब तक तो रामायण की सत्यता को भी झुठला चुके होते! यही नहीं लोगो की
नजर से राम और सीता माँ का नाम हमेशा के लिए मिट गया होता!
सीता जो सर्व जगत की माँ है और माँ का
अपमान सृस्टि के विनाश का कारण बन सकता था, इसलिए राम ने सर्व जगत
को बचाने के लिए भी सीता को आज्ञा देकर अकेले वनवास जाने के लिए कहा और दुनिया की
नजर में सीता की पवित्रता साबित करके खुद बुरे मन गये !
सीता के जाने के बाद राम ने सीता की हूबहू मूर्ति बनवाई और और हमेशा उसी मूर्ति के पास अकेले बैठे रहते सीता को याद करते हुए।
सीता के जाने के बाद राम ने सीता की हूबहू मूर्ति बनवाई और और हमेशा उसी मूर्ति के पास अकेले बैठे रहते सीता को याद करते हुए।
माँ सीता के जाने के बाद श्री राम ने सीता
जी की हूबहू मूर्ति बनवाई और हमेशा उसी मूर्ति के पास अकेले बैठे रहते सीता को याद
करते हुएवो उनमे इतना खोये रहते थे के सारा राजकाज तक भूल गए और उनका किसी भी
कार्य में जी नहीं लगता! राम एक पल के लिए भी सीता जी को कभी भी
नहीं भुला पाए और सदा उनके मन और ह्रदय में सीता जी सूक्ष्म रूप में सदा विराजमान
रही!
राम मनुष्य रूप में थे और उन्होंने इस
जन्म में अपनी महा माया शक्ति (विष्णु माया
पति है, अर्थात जिसके अधीन सारे ब्रह्माण्ड
की माया शक्ति होती है और वो उसका स्वामी ) का इस्तेमाल नहीं किया ! क्योंकि राम
जन्म उन्होंने एक साधारण से इंसान के रूप में लिया था और उसी की तरह व्यव्हार करके
दुनिया में आदर्श स्थापित करना थे के बिना अद्भुत शक्तियों के भी विजय प्राप्त किया
जा सकता है!
राम कभी भी सीता से दूर नहीं
हुए और न ही सीता के प्रति उनके प्रेम में कमी आई। लोग ये नहीं जानते की राम ने
अपने प्राण भी सीते -सीते कहते हुए त्याग दिये थे। राम को आरोपित बनाने से पहले
लोग भूल जाते हैं कि वो सिर्फ राम नहीं थे ,वो “राजा राम” वो एक राजा थे। इसलिये उनका प्रथम धर्म
राज्य की प्रजा से जुड़ा था। एक राजा के लिये प्रजा प्रथम होती है और पत्नी,भाई परिवार बाद में होता है। ये ही एक राजा का धर्म है। आज लोग धर्म के
कुछ अलग रूप को जानते हैं,लेकिन उस समय धर्म और नैतिकता
एकरूप थे और ये लोगों के आम जीवन का हिस्सा थे।
हमारे
प्राचीन ग्रंथों में कहा गया है कि राज्य की प्रजा राजा की संतान के बराबर होती है
और राजा को अपनी संतान की तरह प्रजा का पालन पोषण करना चाहिये,उन्हें धर्म और नैतिकता का रास्ता दिखाना चाहिये।यही राजा का एक मात्र
धर्म है। जब राज्य की जनता के विचार भ्रष्ट होने लगे और अपनी कमजोरियों के लिए सीता
के उदाहरण का इस्तेमाल करने लगे। इससे लोग अनैतिक होने लगे। जनता में ये गलत संदेश
फैला जिसकी पत्नी ऐसी,वो राजा भी ऐसा ही होगा । सीता पवित्र
थी। लेकिन लोग गलत धारणाएं बनाकर अपने पापों को सही साबित करने लगे। ऐसे में एक
राजा जिसका एकमात्र धर्म अपनी प्रजा को नैतिकता का मार्ग दिखाना था, वो क्या करता? क्या वो प्रजा को भ्रष्ट या अनैतिक
होने के लिये छोड़ देता ,अगर वो ऐसा करता तो वो अधर्मी
कहलाता। क्या तब सीता जैसी प्रबुद्ध और सिद्धांतवादी नारी एक अधर्मी के साथ रहती।
नहीं बिल्कुल नहीं। उनके पास दो रास्ते थे एक धर्म का और एक अधर्म का। और चुनाव
करना आसान नहीं था। लेकिन उनका प्रथम धर्म था प्रजा को नैतिकता का मार्ग दिखाना और
उसका तात्कालिक उपाय था ,सीता से वियोग। लोग बिना रामायण पढ़े
ही सुनीं सुनाई बातों पर भरोसा करते हैं,राम ने ये गलत किया ,वो गलत किया
राम और माता सीता ने घोर कष्ट सहे ताकी
समाज को यह समझा सकें कि अग्नि परीक्षा एक क्रूर अपराध और अधर्म है !
यह एक ऐसा विषय है जिस पर कोइ भी विवाद
संभव नहीं होना चाहिये ! श्री राम ने माता सीता का त्याग अयोध्या का राज्य संभालने
के उपरांत क्यूँ करा ?
रावण वध, तथा विभीषण के राज तिलक बाद, जब, रावण द्वारा हरण करी हुई माता सीता को श्री राम के सामने लाया गया तो श्री
राम ने सीता को अग्नि परीक्षा उपरान्त स्वीकार कर लिया !
यहाँ यह जानना आवश्यक है कि अग्नि परीक्षा
उस समय कि एक उचत्तम मर्यादा थी जिसको धार्मिक मान्यता भी प्राप्त थी ! स्त्रियों
के अनेक तरह के शोषण हो रहे थे तथा धर्म ने अग्नि परीक्षा को मान्यता दे कर
स्त्रियों को भोग की वस्तु स्वीकार कर रखा था| विजई सेना के प्रमुख की हैसियत से श्री राम का उस समय की मर्यादा का पालन
सर्वथा उचित्त भी था !
तत्पश्यात अयोध्या पहुँच कर श्री राम
ने अयोध्या का राज्य संभाल लिया, तथा सीता अयोध्या की
महारानी बन गयी ! राज्य के दूत, नियमित रूप से राजा को,
राज्य की समस्त सुचना दिया करते थे! कुछ सूचनाएं सीता से सम्बंधित
थी! शुरू मैं तो उनकी अपेक्षा कर दी गयी, परन्तु जब व्यापक
शेत्र से सूचना आने लगी तो विषय गंभीर हो गया ! राजा राम के पास सीमित विकल्प थे !
उन्होंने अपनी स्वंम की अध्यक्षता मैं एक न्याय पीठ का गठन करा जिसमे सीता को अपनी
बात कहने का मौका दिया तथा प्रजा को अपनी |
मुख्य आरोप सीता के विरुद्ध जनता का यह
था, कि रावण एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण था
तथा सर्व संपन्न था ! स्वम सीता ने अपने आपको भिक्षा के रूप मैं रावण को अर्पित कर
दिया ! सीता लक्ष्मण रेखा लांघ कर स्वेच्छा से रावण के साथ गयी थी! बाद मैं राम के
पास कोइ अधिकार नहीं था कि वो इतना खून बहा कर सीता को वापस लाये, तथा महारानी बना दें!
न्याय पीढ के समक्ष सीता के पक्ष से यह
बताया गया कि किस तरह से रावण, भिक्षुक के भेष मैं,
छल करने की इच्छा से पंहुचा ! छल करने की इच्छा से ही उसने यह कहा
कि वोह जहाँ बैठ गया है वहीं भिक्षा लेगा ! ताकी ब्राह्मण का अपमान न हो, सीता लक्ष्मणरेखा लांघ कर भिक्षा देने हेतु रावण के पास पहुँची, और रावण ने बल प्रयोग कर उनका अपहरण कर लिया!
लक्ष्मण ने बताया कि किस तरह जटायू ने
सीता को जोर जबरदस्ती से ले जाते होए रावण का विरोध करा, तथा लड़ते होए अपने प्राण गवां दिये ! सुग्रीव ने बताया कि किस तरह से राम
का नाम विलापते लेते होए सीता ने गहने उनके पास विमान से डाल दिये! हनुमान जी ने
सीता की हृदयग्राही अवस्था, जो कि उन्हे सीता कि अशोक वाटिका
मैं मिली, उससे सब को अवगत कराया!
जनता पक्ष से दोहराया गया कि रावण
अत्यंत ज्ञानी ब्राह्मण थे और भिक्षुक के भेष मैं इसलिये आये कि सूर्पनखा विवाद के
उपरान्त मन मुटाव समाप्त कर सकें| राम के अत्याचारों से
परेशान सीता ने स्वंम को भिक्षा मैं अपने आप को अर्पित कर दिया ! स्वंम सीता ने भी
यह स्वीकारा है कि बिना बल प्रयोग के उन्होंने सुरक्षा रेखा, य लक्ष्मण रेखा पार करी !
जटायु के प्रश्न पर जनता पक्ष ने
स्पष्ट करा कि वोह पक्षी थे जिसकी भाषा लक्ष्मण ही समझते थे, तथा वोह अब मर भी चुके हैं, इसलिये लक्ष्मण मृतक
साक्षी की और से कुछ नहीं बोल सकते !
साक्षी सुग्रीव पर जनता पक्ष ने कहा कि
उनका बयान इस बात का समर्थन करता है कि सीता स्वेच्छा से गयी थी, चुकी वीरान कुटिया मैं गहने न छोड कर सीता ने सुग्रीव को देख कर गहने
त्याग दिये, और अब जब सीता गर्भवती हैं तो वोह अब राम के समर्थन
मैं दूसरी बात कह रही हैं
उन्होंने इसी बात को आगे बढाते होए
हनुमान के बयान का उल्लेख करा जिससे यह स्पष्ट था कि सीता लंका नहीं छोडना चाहती
थी| “क्या कोइ असहाय नारी दूत को अशोक
वाटिका से फल तोड़ कर खाने के लिये प्रेरित करेगी ताकी वोह पकड़ा जाय” ? जनता पक्ष ने पूछा !
सीता कि और से अग्नि परीक्षा का उल्लेख
करा गया! यह भी स्पष्ट करा गया कि जहाँ अन्य प्रमाण के कोइ साक्षी नहीं हैं, अग्नि परीक्षा सीता ने सब के सामने दी थी; तथा अग्नि
परीक्षा को धार्मिक मान्यता भी प्राप्त है, इसलिये वोह किसी
न्याय पीठ की स्वीकृती की मोहताज़ भी नहीं है|
जनता पक्ष ने इस बात को माना कि सीता
ने अग्नि परीक्षा सब के सामने दी थी लेकिन न्याय पीठ से निवेदन करा कि चुकी अग्नि
परीक्षा किसी तरह से भी किसी स्त्री की शुद्धता, सतित्व्, व् चरित्र का प्रमाण नहीं दे सकती, इसलिये उसे निरस्त करा जाय, और केवल भौतिक प्रमाण और
तथ्यों पर निर्णय आधारित करा जाय !
दोनों पक्ष की लंबी बहस के बाद श्री राम ने
यह निर्णय दिया
कि
सीता कोइ भी भौतिक प्रमाण नहीं दे पायी
हैं कि वोह स्वेच्छा से नहीं गयी थी|
बिना बल प्रयोग के सुरक्षा
रेखा(लक्ष्मण रेखा) स्वंम पार करना और रावण को सुरक्षा रेखा के बाहर जा कर भिक्षा
देने को स्वेच्छा से रावण के पास जाना भी माना जा सकता है | उन्होंने यह भी माना कि आज क्यूँकी वोह गर्भवती हैं तथा पूरी तरह से उनके
नियंत्रण मैं हैं उनके किसी भी बयान को स्वतंत्र नहीं माना जा सकता !
यह भी आदेश पारित करा कि अग्नि परीक्षा
किसी तरह से भी किसी स्त्री की शुद्धता, सतित्व्, व् चरित्र का प्रमाण नहीं दे सकती, इसलिये भविष्य
मैं उसके प्रयोग को अपराध माना जायेगा, तथा अग्नि परीक्षा और
उसके इस दुरूपयोग को सदा के लिये अधर्म घोषित कर दिया !
माता सीता को त्यागने के बाद श्री राम
के यह शब्द कोइ नहीं भूल सकता:
"इस बात का संतोष अवश्य है कि
अग्नि परीक्षा को एक गंभीर आपराधिक कृत्य घोषित करके, इस एक
ऐतिहासिक फैसले के बाद समाज मैं महिलाओं को कुछ राहत होई | लेंकिन
इस फैसले को लेने में व्यक्तिगत अंदरूनी संघर्ष और निर्दोष सीता को त्यागने का
कष्ट भी मेरे हिस्से आया | सीता निर्दोष है ये में व्यक्तिगत
सूचना के आधार पर कह रहा हूं।
"साक्ष्य विधि को भौतिक तथ्यों पर
निर्भर और संतुलित करना आवश्यक था | निर्णय, महत्वपूर्ण इसलिए भी है कि भविष्य मैं महिला के अपहरण से संबंधित साक्ष्य,
दूसरों से प्रभावित तो नहीं है, को सिद्धांत
मान लिया गया है |
"क्रूर धार्मिक कानून अग्नि
परीक्षा अब अधर्म और गंभीर आपराधिक कृत्य घोषित कर दिया गया है ! ढेरो महिलाओ के
अपहरण सम्बंधित मामले पर अब भौतिक तथ्यों पर ही निर्णय होगा, बिना धार्मिक हस्ताषेप के, जिससे महिलाओं को राहत
मिलेगी!
"यह सब निर्दोष महारानी सीता के
समाज हित मैं त्याग के कारण संभव हुआ है, जिसे मुझे त्यागना
पड़ा क्यूंकि वे कोइ प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाई कि उनका अपहरण हुआ था| कानून अब अँधा है, और आगे भी रहेगा |
"क्यूँ ना सिता का चित्रण
न्यायदेवी के रूप मैं हो, जिनकी आँखों मैं पट्टी बंधी हुई है
?" श्री राम ने पुछा!
हम सब पूरी निष्ठां से श्री राम और
माता सीता को इश्वर अवतार मानते हैं, और यह भी जानते हैं कि
व्यक्तिगत कष्ट उठा कर वे दोनों समाज में सुधार करने के लिये अवतरित होए थे !
श्री राम और माता सीता ने घोर कष्ट सहे
ताकी समाज को यह समझा सकें कि अग्नि परीक्षा एक क्रूर अपराध और अधर्म है !
यह
तमाम तर्क वितर्क कुतर्क नेट पर देखें जा सकते हैं। हर शोध कर्ता की अपनी सोंच के साथ
शोध होती है। यद्यपि वह तर्क देता है पर वह तर्क हरेक के गले नहीं उतरते हैं।
मेरा विचार है रामायण श्रीमद्भगवद्गीता की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या है।
जहां गीता में संकेत हैं। वहीं रामायण में सभी 33 कोटी (कोटी मतलब प्रकार, करोड नहीं जो लोग बकवास करते हैं) के लोगों को नाम और
कर्म का उदाहरण देकर समझाया है। जब राम को मर्यादा पुरूषोत्तम बोला तो कुछ देखकर बोला
गया है। राम ने सीता का त्याग, राज धर्म का पालन करते हुये किया है। जिस प्रकार जब मनुष्य
परिवार का मुखिया होता है तो उसको परिवार के दुख दर्द देखते हुये अपने कष्ट भुलाने
पडते हैं। वह परिवार का पालक और बच्चों हेतु आदर्श होता है। उसी प्रकार समाज का मुखिया
समाज के लिये और देश का राजा प्रजा के लिये। राज धर्म में अपनी नहीं प्रजा की संतुष्टि
पहले देखी जाती है। जिस प्रकार मां खुद भूखी रह कर बच्चों को निवाला देती है वो ही
काम राजा का धर्म होना चाहिये।
यही
कार्य राम ने किया अपने प्रेम और पीडा को जनता में संदेश देने हेतु सब कुछ त्याग कर
दिया।
दूसरी बात राजा जनता का आदर्श होता है। यदि राजा के चरित्र में जरा सा काल्पनिक
दाग भी होगा तो प्रजा उसको वास्तविक बता कर
मनमानी करने लगेगी। अत: राजा को उदाहरण प्रस्तुत करने पडते हैं। जो राजा राम ने किया।
ज्ञानी राजा और मनुष्य देश काल और परिस्थिति देखकर निर्णय लेते हैं। अपना हित कतई नहीं
देखते वह प्रजा और समाज का हित देखते हैं। अब देखो दधीचि ने अपनी मृत्यु स्वयम स्वीकार
की और समाज हित हेतु अपनी हड्डिया6 तक दान कर दी। राजा हरिश्चंद्र ने अपने बेटे के
दाह संस्कार हेतु अपनी पत्नी से एक मात्र धोती में से एक टुकडा शुल्क हेतु लिया। यह
भारत देश महान तपस्वियों और दान दाताओं का देश रहा है। कुच सौ वर्ष पूर्व पृथ्वी राज
चौहान ने 18 बार मोहम्मद गौरी को हराकर छोड दिया था।
(तथ्य कथन गूगल साइट्स इत्यादि से साभार)
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक
विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी
न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग
40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके
लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6
महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
ब्लाग :
https://freedhyan.blogspot.com/
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