संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 1 ( यह प्रश्नोत्तरी कहीं नहीं मिलेगी) / brahm gyan kaya khand 1
संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 1
(यह प्रश्नोत्तरी शायद कहीं मिले )
सनातनपुत्र देवीदास विपुल
"खोजी"
मां शक्ति के रूपों को नमन करते हुये। गुरूदेवों के चरणों का वंदन करते हुए आज आश्विन शुक्ला दशमी (दशहरा) विक्रम संवत् २०७७ यथा सोमवार अक्टूबर २६, २०२० को अपनी आराध्य मां सरस्वती देव गणेश की अनुकम्पा, प्रथम शक्तिपात दीक्षा गुरू मां काली शरीरी गुरू ब्रह्मलीन सद्गुरू स्वामी नित्यबोधानंद तीर्थ जी महाराज व परम पूज्यनीय ब्रह्मलीन स्वामी शिवोम् तीर्थ जी महाराज जी को स्मरण करते हुये ये ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी का आरम्भ करता हूं।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप सबकी कृपा से यह कार्य निश्चित रूप से सकुशल सम्पन्न होकर जन मानस को सनातन के वास्तविक ज्ञान और स्वरूप का बोध कराने में सहायक होगा। मां कुण्डलनी अपना खेल दिखाते हुये आत्मगुरू के रूप में मार्गदर्शन करते हुये मुझे शब्द और वाक्य प्रदान करेंगी। जय गुरूदेव। जय महाकाली। मैं जगत के समर्थ गुरूओं से क्षमा मांगते हुये यह बात कह रहा हूं क्योंकि फेस बुक इत्यादि पर बडी दुकानें ही दिखती हैं। अत: विरोध आवश्यक है। भारत संतों की भूमि कभी योगियों से खाली नहीं हो सकती।
जिसे मैं अपने लेखों में लिखता हूं। सर्वस्य ब्रह्म सर्वत्र ब्रह्म।।
9. योग है क्या??
आत्मा में परमात्मा की एकात्मकता का अनुभव ही योग है??
10. क्या यह घटित होता है??
जी घटित होता था तभी बद्रायण ब्रह्म सूत्र लिख सके और आदि शंकर व्याख्या कर सके!
यह घटित होता है। आज भी तमाम लोग विभिन्न भाषा और तरह से समझाते रहते हैं!
यह घटित होता रहेगा। आप भी देर सबेर अनुभव कर सकते हो!
11. इसका फायदा क्या??
आपको दुख: संकट इत्यादि सहने की शक्ति के साथ मानसिक शांति, आनन्द की अवस्था और जीवन का उद्देश्य ज्ञात हो जायेगा! साथ ही जीवन की मूल्यता और मानव जीवन की गहनता भी ज्ञात हो जायेगी।
12. पर यह हो कैसे??
पहले अंतर्मुखी हो!
13. मतलब क्या ??
तुम्हारी वाहिक कर्मों में इंद्रियों के द्वारा वाहिक ऊर्जा प्रवाह को अपने शरीर के भीतर मोडना!
14. कृपया स्पष्ट करें??
तुम आंख कान नाक मुख और त्वचा के माध्यम से वाहिक जगत का अनुभव करते रहते हो। अत: तुम्हारी ऊर्जा बाहर की तरफ बहकर व्यर्थ हो रही है। इन्हीं इंद्रियों द्वारा अपने भीतर जाने का प्रयास करो!!
आंख के द्वारा त्राटक जो कई प्रकार से हो सकता है!
कान के द्वारा शब्द या अक्षर अथवा नाद या संगीत या कर्ण मार्ग साधना
नाक द्वारा विपश्यना, प्रेक्षा ध्यान, सुगंध साधना
मुख द्वारा मंत्र जप सबसे सरल और सहज, खेचरी इत्यादि या स्वाद मार्ग
दूसरा हठ योग व अन्य मार्ग जो कुण्डलनी जागरण और कुन्डलनी शक्ति का शरीर के विभिन्न चक्रों को भेदकर सिर के मध्य में स्थित सहस्त्रसार में मिलकर समाधि दे सकती है जो योग को घटित कर सकता है।
वह निराकार सगुण ऊर्जा जो सृष्टि का निर्माण पालन और संहार करती है!
18. फिर भगवान परमात्मा ईश इत्यादि क्या है??
यूं समझो उस निराकार ब्रह्म को अल्लाह गाड ही कहते हैं उसमें समाना ही मोक्ष है।
भगवान उसका साकार रूप और ईश उसका ज्योतिर्मय रूप।
देव साकार रूप जिनकी सबकी भी आयु निश्चित होती है। यह भी अपना कार्य समाप्त कर ब्रह्म में विलीन हो जाते हैं।
एक सगुण निराकार ब्रह्म ही अनेक रूप धारण करता है। फिर उनको नष्ट कर अपने में विलीन कर लेता है।
जैसे मकडी पहले जाला बुनती है फिर उसी को वापिस मुख में लेकर विलीन कर देती है कुछ उसी प्रकार वह ब्रह्म अपनी माया के द्वारा सृष्टि का निर्माण पालन कर अपने में समेट लेता है।
19. फिर यह तेतिस करोड देवता का क्या मामला है??
वे मूर्ख और अज्ञानी मंदबुद्धि हैं जो करोड बोलते हैं। यह कोटि शब्द है। कोटि मराठी भाषा में करोड होती है पर हिंदी संस्कृत में प्रकार या वर्ग के अर्थ रखता है!
12 सृष्टि के निर्माण हेतु यानि आदित्य जिसका अर्थ सूर्य से समझा जा सकता है जो जीवन देता है।
11 विनाश हेतु यानि रूद्र
8 वासुदेव। आठ विशेष है चाहें योग हो, शरीर हो, औषधि हो या अर्ध्य। चाहे साष्टांग दंडवत ( लिंक देखें)
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