क्या
भगवान कल्कि जन्म ले चुके हैं???
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
यह
लेख पढने के पूर्व मैं आपको सलाह दूंगा कि आप महृषि अमर पर लिखी गई महऋषि
कृष्नानन्द द्वारा लिखी गई मात्र 125 रुपये की पुस्तक “उजाले की ओर” जरूर पढे। यह
पुस्तक मानसी फाउंडेशन बंगलोर द्वारा प्रकाशित हुई है। इस अनूठी पुस्तक में महृषि अमर द्वारा सप्तऋषियों के सम्पर्क में
रहने की कथा लिखी गई है। उनके अनुभव पढने के बाद यदि यह लेख पढा जाये तो ज्ञात हो
जायेगा कि भागवत पुराण कितना सत्य है।
उनके
अनुसार और भी कई संतों के अनुसार वर्ष 1974 से कलयुग का अंत होना आरम्भ हो चुका
है। वर्ष 2264 में महाप्रलय के बाद सृष्टि का पुनर्निर्माण होना है। यानि लगभग 300
वर्षॉ का संक्रमण काल है। उसी के साथ सतयुग का आरम्भ हो जायेगा। इस समय कल्कि किसी
और लोक में विराजमान हैं। उनका विवाह देवी पद्मावती और माता वैष्णो देवी के कन्या
रूप अवतार होगा।
कल्कि को विष्णुका भावी अवतार माना गया है।
पुराणकथाओं के अनुसार कलियुग में पाप की सीमा पार
होने पर विश्व में दुष्टों के संहार के लिये कल्कि अवतार लेकर स्वयं भगवान विष्णु
पृथ्वी पर आएंगे।
युग परिवर्तनकारी भगवान काल्कि के अवतार का प्रयोजन
विश्वकल्याण बताया गया है। भगवान का यह अवतार ‘‘निष्कलंक भगवान’’ के नाम से भी जाना जायेगा। श्रीमद्भागवतमहापुराण में विष्णु के अवतारों की कथाएं
विस्तार से वर्णित है। इसके बारहवें स्कन्ध के द्वितीय अध्याय में भगवान के कल्कि अवतार की कथा विस्तार से दी गई है जिसमें यह कहा गया है कि
"चंदौली ग्राम में शयामलाल नामक श्रेष्ठ ब्राह्मण के पुत्र के रूप में भगवान निर्देश जन्म होगा। वह देवदत्त नाम के घोड़े पर आरूढ़ होकर अपनी
कराल करवाल (तलवार) से दुष्टों का संहार करेंगे तभी सतयुग का प्रारम्भ होगा।"
चंदौली ग्रामः मुख्यस्य
ब्राह्मणस्यमहात्मनः भवनेविष्णुयशसः कल्कि प्रादुर्भाविष्यति।।
भगवान श्री कल्कि निष्कलंक अवतार हैं। उनके पिता का नाम विष्णुयश - शयामलाल और माता का नाम सुमति - सुशीला
होगा। उनके भाई जो उनसे बड़े होंगे क्रमशः सुमन्त, प्राज्ञ और कवि नाम के नाम के होंगे।
याज्ञवलक्य जी पुरोहित और भगवान परशुराम उनके गुरू होंगे। भगवान
श्री निर्देश कल्कि की दो पत्नियाँ होंगी - लक्ष्मी रूपी पद्मा -
वंदना देवी और वैष्णवी शक्ति रूपी रमा- ? उनके पुत्र होंगे - जय, विजय, मेघमाल तथा बलाहक।
भगवान
का स्वरूप (सगुण रूप) परम दिव्य एवं
ज्योतिमय होता है। उनके स्वरूप की कल्पना उनके परम अनुग्रह से ही की जा सकती
है। भगवान श्री कल्कि अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड नायक हैं। शक्ति पुरूषोत्तम
भगवान श्री कल्कि अद्वितीय हैं। भगवान श्री कल्कि दुग्ध वर्ण अर्थात्
श्वेत अश्व पर सवार हैं। अश्व का नाम देवदत्त है। भगवान का रंग गोरा है, परन्तु क्रोध में काला भी हो जाता है। भगवान पीले वस्त्र धारण किये हैं। प्रभु
के हृदय पर श्रीवत्स का चिह्न अंकित है। गले में कौस्तुभ मणि सुशोभित
है। भगवान पूर्वाभिमुख व अश्व दक्षिणामुख है। भगवान श्री कल्कि के
वामांग में लक्ष्मी (पद्मा) और दाएं भाग में वैष्णवी (रमा) विराजमान हैं।
पद्मा भगवान की स्वरूपा शक्ति और रमा भगवान की संहारिणी शक्ति हैं। भगवान के
हाथों में प्रमुख रूप से नन्दक व रत्नत्सरू नामक खड्ग (तलवार) है। शाऽग
नामक धनुष और कुमौदिकी नामक गदा है। भगवान कल्कि के हाथ में पाञ्चजन्य नाम
का शंख है। भगवान के रथ अत्यन्त सुन्दर व विशाल हैं। रथ का नाम जयत्र व
गारूड़ी है। सारथी का नाम दारूक है। भगवान सर्वदेवमय व सर्ववेदमय हैं। सब उनकी
विराट स्वरूप की परिधि में हैं। भगवान के शरीर से परम दिव्य गंध उत्पन्न
होती है जिसके प्रभाव से संसार का वातावरण पावन हो जाता है। ग्रन्थों में अवतारों की कई कोटि बतायी गई है जैसे
अंशाशावतार, अंशावतार, आवेशावतार, कलावतार, नित्यावतार, युगावतार इत्यादि।
जो भी सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त को
व्यक्त करता है वे सभी अवतार कहलाते हैं। व्यक्ति
से लेकर समाज के सर्वोच्च स्तर तक सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त को
व्यक्त करने के क्रम में ही विभिन्न कोटि के अवतार स्तरबद्ध होते है।
अन्तिम सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त को व्यक्त करने वाला ही अन्तिम अवतार के रूप
में व्यक्त होगा। अब तक हुए अवतार, पैगम्बर, ईशदूत इत्यादि को हम सभी
उनके होने के बाद, उनके जीवन काल की अवधि में या उनके शरीर त्याग के बाद
से ही जानते हैं।
परन्तु भविष्य अर्थात आने वाले कल के
लिए कल्पित एक मात्र महाविष्णु के 24 अवतारों में 24वाँ तथा प्रमुख
अवतारों में दसवाँ और अन्तिम कल्कि अवतार के विषय में
जो परिकल्पना है, वह निम्नलिखित रूप से है- नाम रूप – 'कल्कि पुराण' हिन्दुओं के विभिन्न
धार्मिक एवं पौराणिक ग्रन्थों में से एक है।
विष्णु के अन्य अवतारों की
तरह कल्कि का वर्णन भी वेदों में नहीं मिलता। लेकिन पुराणों में
कल्कि अवतार का विस्तार से वर्णन हैं। विष्णु पुराण और
भगवत पुराण दोनों में ही कल्कि अवतार का उल्लेख आया हैं। कल्कि पुराण तो पूरी
तरह से इसी अवतार पर केंद्रित हैं। लगभग सभी पुराणों के
अनुसार कल्कि का जन्म एक ब्राह्मण विष्णुयश के घर पर होगा। कल्कि भगवन
शिव के भक्त होंगे और उनके गुरु परशुराम होंगें।
कल्कि पुराण में ”कल्कि“
अवतार के जन्म व परिवार की कथा इस प्रकार कल्पित है- ”शम्भल- चंदौली नामक
ग्राम में विष्णुयश -श्यामलाल नाम के एक ब्राह्मण निवास करेंगे, जो सुमति-सुशीला
नामक स्त्री के साथ विवाह करेंगें दोनों ही धर्म-कर्म में दिन
बिताएँगे। कल्कि -निर्देश उनके घर में पुत्र होकर जन्म लेंगे और अल्पायु
में ही वेदादि शास्त्रों का पाठ करके महापण्डित हो जाएँगे। बाद में वे
जीवों के दुःख से कातर हो महादेव की उपासना करके अस्त्रविद्या
प्राप्त करेंगे जिनका विवाह बृहद्रथ की पुत्री पद्मादेवी - वंदना देवी के साथ
होगा।“
जिस प्रकार सामान्य व्यावहारिक रूप में
भविष्य में जन्म लेने वाले किसी भी व्यक्ति का
नाम निश्चित करना असम्भव है उसी प्रकार उसके माता-पिता, जन्म स्थान और पत्नी
को भी निश्चित करना असम्भव है। ध्यान देने योग्य यह है कि सभी अवतार, पैगम्बर, ईशदूत इत्यादि
राजतन्त्र व्यवस्था काल में आये थे। जब कल्कि पुराण लिखा
गया होगा तब राजतन्त्र व्यवस्था थी इसलिए भविष्य के कल्कि की कथा पूर्णतया
उसी शैली में ही है जिस शैली में अन्य अवतारों की कथा है। विश्वमन के
अंश की अनुभूति किसी भी व्यक्ति से व्यक्त हो सकती है जिसका प्रक्षेपण या
प्रस्तुतिकरण उस समय और व्यक्ति की अपनी संस्कृति के माध्यम से ही होता
है। फिर भी कल्कि कथा के भी कुछ न कुछ अर्थ तो अवश्य है।
कल्कि अवतार के कलियुग में हिन्दुस्तान
के चंदौली होने पर सभी हिन्दू सहमत हैं
परन्तु चंदौली कहाँ है इसमें अनेक मतभेद हैं। कुछ
विद्वान चंदौली को उड़ीसा, हिमालय, पंजाब, बंगाल और शंकरपुर
में मानते हैं। कुछ सम्भल को चीन के
गोभी मरूस्थल में मानते हैं जहाँ मनुष्य पहुँच ही नहीं सकता। कुछ वृन्दावन
में मानते हैं। कुछ सम्भल को मुरादाबाद (उ0प्र0) जिले में मानते हैं जहाँ
कल्कि अवतार मन्दिर भी है।
विचारणीय विषय ये है कि ”सम्भल में
कल्कि अवतार होगा या जहाँ कल्कि अवतार होगा वही
सम्भल होगा।“ सम्भल का शाब्दिक अर्थ समान रूप से भला या शान्ति करना या
शान्ति होना अर्थात जहाँ शान्ति व अमन हो या शान्ति फैलाने वाला हो, होता है। कल्कि
पुराण में सम्भल में 68 तीर्थो का वास बताया गया है। कलियुग में केवल
सम्भल ही एक मात्र ऐसा तीर्थ स्थान होगा जो कल्याण दायक और शान्ति
प्रदान करने वाला होगा। तीर्थ का अर्थ- पवित्र स्थान, दर्शन, दिल, मन, हृदय, घाट, तालाब, पानी का स्थान, अमर जीवन दाता जल, लोगों के आने जाने और जमघट
के स्थान के अर्थ में होता है।
ब्राह्मण पिता
विष्णुयश और माता सुमति- कल्कि पुराण के अनुसार कल्कि अवतार के पिता व माता का नाम विष्णुयश व सुमति होगा, जो नाम नहीं बल्कि गुणों को निर्देशित करता है। ब्राह्मण अर्थात जो वेद, पुराण और शुद्ध परम चैतन्य को जानता हो। विष्णु अर्थात परमेश्वर, सर्वव्यापक ईश जो सब स्थानों में उपस्थित है, ब्रह्माण्ड को पैदा करने वाला सृष्टा। यश अर्थात स्तुति या प्रशंसा करने वाला। इस प्रकार पिता विष्णुयश का अर्थ
हुआ, ऐसा पिता जो सर्वव्यापक परमात्मा की स्तुति एवं प्रशंसा करने वाला
व सबका भला करने वाला हितैषी है। इसी प्रकार सुमति का अर्थ होता है- सुन्दर या अच्छा मत या विचार रखना। कल्कि अवतार की पत्नी - कल्कि पुराण में ”कल्कि“ अवतार के विषय में कहा गया है कि- ”उनका विवाह
बृहद्रथ की पुत्री
पद्मादेवी या वंदना देवी साथ होगा।“ परन्तु कटरा-जम्मू (भारत) में वैष्णों देवी की कथा के सम्बन्ध में बिकने वाली
पुस्तिका, इन्टरनेट पर उपलब्ध कथा और गुलशन कुमार कृत ”माँ वैष्णों देवी“
प्रदर्शित फिल्म पर आधारित कथा के अनुसार ”त्रिकुटा ने श्रीराम से कहा- उसने उन्हें पति रूप में स्वीकार किया है। श्रीराम ने उसे बताया कि
उन्होंने इस अवतार में केवल सीता के प्रति निष्ठावान रहने का वचन लिया है लेकिन भगवान श्रीराम ने उसे आश्वासन दिया कि कलियुग में वे कल्कि के रूप में
प्रकट होगें और उससे विवाह करेगें।“
श्रीरामचरितमानस के किष्किन्धाकाण्ड में एक देवी का
वर्णन मिलता है। इन्होंने हनुमानजी तथा अन्य बानर बीरों को जल व फल दिया था तथा
उन्हें गुफा से निकालकर सागर के तट पर पहुँचाया था। ये देवी स्वयंप्रभा
हैं। यही देवी माता वैष्णव के रूप में प्रतिष्ठित हैं। कलयुग के अंतिम चरण
में भगवान का कल्कि अवतार होगा। तब ये कल्कि भगवान दुष्टों को दंडित
करेंगे और धरती पर धर्म की स्थापना करेंगे। तथा देवी स्वयंप्रभा
से श्रीरामावतार में दिए गए वचनानुसार विवाह करेंगे। अर्थात वैष्णों देवी
जो युगों से पिण्ड रूप में हैं उन्हें कल्कि अवतार एक साकार रूप प्रदान
करेंगे जो ”माँ वैष्णो देवी“ के साकार रूप ”माँ कलकी। (पूर्ण विवरण के लिए
देखें-माता वैष्णों देवी श्राइन बोर्ड पब्लिकेशन)
महर्षि व्यास रचित और ईश्वर के आठवें अवतार
श्री कृष्ण के मुख से व्यक्त श्रीमद्भगवद्गीता
में भी अवतार के होने का प्रमाण मिलता है। यदा-यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति
भारतः। अभियुत्थानम् धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
(श्रीमद्भगवद्गीता,
अ0-4, श्लोक-7) अर्थात हे भारत! जिस काल में धर्म की हानि होती
है और अधर्म की अधिकता होती है। उस काल में ही मैं अपनी आत्मा को प्रकट
करता हूँ। इस प्रकार कल्कि अवतार का शरीर मानव का ही होगा जिससे आत्मा का रूप
प्रकट होगा और कृष्ण रूप होगा। कर्म रूप – कल्कि महाअवतार सफेद घोड़े पर
सवार होकर हाथ में तलवार लेकर समस्त बुराईयों का नाश करेगें। किसी भी
धर्म शास्त्रों में विचारों के निरूपण के लिए प्रतीकों का प्रयोग किया जाता रहा
है क्योंकि विचार की कोई आकृति नहीं होती। इस प्रकार कल्कि अवतार के
अर्थ को स्पष्ट करने पर हम पाते हैं कि सफेद घोड़ा अर्थात शान्ति का प्रतीक
या अहिंसक मार्ग,
तलवार
अर्थात ज्ञान अर्थात सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त
जिससे सभी का मानसिक वध होगा। अगर हम इन प्रतीकों को उसी रूप में लें तो
क्या आज के एक से एक विज्ञान आधारित शस्त्र अर्थात औजार के युग में तलवार
से कितने लोगों का वध सम्भव है और वह व्यक्ति कितना शारीरिक शक्ति से युक्त
होगा,
यह
विचारणीय विषय है?
परिणाम सिर्फ एक है केवल मानसिक वध जो
मात्र सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त से ही सम्भव है। और
पिछले अवतारों द्वारा शारीरिक व आर्थिक कारणों का प्रयोग कर
धर्म स्थापना हो चुका है। कल्कि पुराण कथा रचनाकार तब ये सोच भी नहीं पाये
होगें कि भविष्य में दृश्य पदार्थ विज्ञान आधारित दृश्य काल और
निराकार संविधान आधारित एक नई व्यवस्था भी आ जायेगी और उस वक्त राजा और
राजतन्त्र नहीं होगा तब कल्कि अवतार किसका वध करेगें? दव्य या विश्व रूप - कल्कि
अवतार के गुणो के अनुसार कर्म करने के सत्य रूप को एक कदम बढ़ाते हुये तथा
अनेक कर्म के प्रतीक अनेक हाथो वाला दिखाया गया है। इससे यह स्पष्ट होता
है कि कल्कि अवतार द्वारा एक कर्म सम्पन्न होगा और उसके कारण अनेक
हाथों से कर्म होने लगेगें अर्थात वे यह कहने में सक्षम होगें कि ”मैं अनेक
हाथों से कर्म कर रहा हूँ और सभी मेरे ही कर्मज्ञान से कर्म को कर रहें
हैं।“
सार्वभौम सत्य ज्ञान के शास्त्र ”गीता“
के बाद सार्वभौम कर्मज्ञान की आवश्यकता है जो कल्कि अवतार के कार्यो का ही एक चरण
है।
ज्ञान रूप - अन्तिम सार्वभौम
सत्य-सिद्धान्त का ज्ञान ही अन्तिम अवतार का ज्ञान रूप होगा, जिसके निम्न कारण होगें।
1. प्रकृति के तीन गुण- सत्व, रज, तम से मुक्त होकर
ईश्वर से साक्षात्कार करने के ”ज्ञान“ का शास्त्र
”श्रीमदभगवद्गीता या गीता या गीतोपनिषद्“ उपल्ब्ध हो चुका था परन्तु साक्षात्कार
के उपरान्त कर्म करने के ज्ञान अर्थात ईश्वर के मस्तिष्क का ”कर्मज्ञान“
का शास्त्र उपलब्ध नहीं हुआ था अर्थात ईश्वर के साक्षात्कार का
शास्त्र तो उपलब्ध था परन्तु ईश्वर के कर्म करने की विधि का शास्त्र उपलब्ध नहीं
था। मानव को ईश्वर से ज्यादा उसके मस्तिष्क की आवश्यकता है।
2. प्रकृति की व्याख्या
का ज्ञान का शास्त्र ”श्रीमदभगवद्गीता या गीता या
गीतोपनिषद्“ तो उपलब्ध था परन्तु ब्रह्माण्ड की व्याख्या का तन्त्र शास्त्र
उपलब्ध नहीं था।
3. समाज में व्यष्टि
(व्यक्तिगत प्रमाणित) धर्म शास्त्र (वेद, उपनिषद्, गीता, बाइबिल, कुरान इत्यादि) तो
उपलब्ध था परन्तु समष्टि (सार्वजनिक प्रमाणित) धर्म शास्त्र उपलब्ध नहीं था जिससे मानव अपने-अपने
धर्मो में रहते और दूसरे धर्म का सम्मान करते हुए राष्ट्रधर्म को भी
समझ सके तथा उसके प्रति अपने कत्र्तव्य को जान सके।
4. शास्त्र-साहित्य से
भरे इस संसार में कोई भी एक ऐसा मानक शास्त्र उपलब्ध नहीं था जिससे पूर्ण
ज्ञान की उपलब्धि हो सके साथ ही मानव और उसके शासन प्रणाली के सत्यीकरण
के लिए अनन्त काल तक के लिए मार्गदर्शन प्राप्त हो सके।
5. ईश्वर को समझने के
अनेक भिन्न-भिन्न प्रकार के शास्त्र उपलब्ध थे परन्तु अवतार को
समझने का शास्त्र उपलब्ध नहीं था।
कल्कि पुराण के अनुसार ”भगवान परशुराम, भगवान विष्णु के
दसवें अवतार कल्कि के गुरू होगें और उन्हें युद्ध
की शिक्षा देगें। वे ही कल्कि को भगवान शिव की तपस्या
करके दिव्य शस्त्र प्राप्त करने के लिए कहेंगे।“ अदृश्य काल के
व्यक्तिगत प्रमाणित काल में व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य प्राकृतिक चेतना से
युक्त सत्य आधारित सतयुग में छठवें अवतार – परशुराम अवतार तक अनेक असुरी
राजाओं द्वारा राज्यों की स्थापना हो चुकी थी परिणामस्वरूप ऐसे
परिस्थिति में एक पुरूष की आत्मा अदृश्य प्राकृतिक चेतना द्वारा निर्मित
परिस्थितियों में प्राथमिकता से वर्तमान में कार्य करना, में स्थापित हो गयी
और उसने कई राजाओं का वध कर डाला और असुरों तथा देवों के सह-अस्तित्व से
एक नई व्यवस्था की स्थापना की। जो एक नई और अच्छी व्यवस्था थी। इसलिए
उस पुरूष को कालान्तर में उनके नाम पर परशुराम अवतार से जाना गया तथा
व्यवस्था ”परशुराम परम्परा“ के नाम से जाना गया जो साकार आधारित ”लोकतन्त्र
का जन्म“ था, इसी साकार आधारित लोकतन्त्र व्यवस्था को श्रीराम द्वारा
प्रसार हुआ था और इसी के असफल हो जाने पर द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने
महाभारत युद्ध के द्वारा समाप्त कर निराकार लोकतन्त्र व्यवस्था की नींव
डाली थी जा भगवान बुध द्वारा मजबूती पायी और वर्तमान में निराकार संविधान
आधारित लोकतन्त्र सामने है। इसी व्यवस्था की पूर्णता के लिए कल्कि अवतार
होंगे। जो मात्र शिव तन्त्र की समझ से ही हो सकता है अर्थात यही शिव का
अस्त्र है तथा लोकतन्त्र को समझने के कारण परशुराम कल्कि के गुरू होगें।
महाविष्णु के 24 अवतारों में 24वाँ तथा प्रमुख
अवतारों में दसवाँ और अन्तिम कल्कि अवतार
ही एक मात्र ऐसे अवतार हैं जिनके अवतरण से पूर्व ही सिद्धपीठों में
मूर्तिया स्थापित हो रही है। यूँ तो जहाँ-जहाँ विष्णु के अवतारों को मन्दिर में
स्थान दिया गया है वहाँ-वहाँ अन्य अवतारों के साथ कल्कि अवतार की भी
प्रक्षेपित (अनुमानित) मूर्ति प्रतिष्ठित है। परन्तु विषेश रूप से निम्न
स्थानों पर कल्कि भगवान का मन्दिर निर्मित है।
1.सम्भल (मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत) में जहाँ कल्कि
अवतार होना है,
वहाँ
पर कल्कि भगवान का मन्दिर निर्मित है। जहाँ प्रत्येक वर्ष अक्टुबर-नवम्बर माह में
”कल्कि महोत्सव“ भी धूम-धाम से मनाया जाता है।
2.गुलाबी नगरी-जयपुर
(राजस्थान, भारत) की बड़ी चैपड़ से आमेर की ओर जानेवाली सड़क हवा
महल के सामने भगवान कल्कि का प्राचीन मन्दिर अवस्थित है। जयपुर के संस्थापक
सवाई जयसिंह ने पुराणों में वर्णित कथा के आधार पर कल्कि भगवान के
मन्दिर का निर्माण सन् 1739 ई. में दक्षिणायन शिखर शैली में कराया था। संस्कृत
विद्वान आचार्य देवर्षि कलानाथ शास्त्री के अनुसार, सवाई जय सिंह संसार
के ऐसे पहले महाराजा रहें हैं जिन्होंने जिस देवता का अभी तक अवतार हुआ
नहीं, उसके बारे में कल्पना कर कल्कि भगवान की मूर्ति बनवाकर मन्दिर में
स्थापित करायी। सवाई जयसिंह के तत्काली दरबारी कवि श्रीकृष्ण भट्ट
”कलानिधि“ ने अपने ”कल्कि काव्य“ में मन्दिर के निर्माण और औचित्य का वर्णन
किया है, तद्नुसार ऐसा उल्लेख है कि सवाई जयसिंह ने अपने पौत्र ”कल्कि
प्रसाद“ (सवाई ईश्वरी सिंह के पुत्र) जिसकी असमय मृत्यु हो गई थी, उसकी स्मृति में
मन्दिर स्थापित कराया। श्वेत अश्व की प्रतिमा संगमरमर की खड़े रूप में है
जो बहुत ही सुन्दर, आकर्षक और सम्मोहित है। अश्व के चबुतरे पर लगे बोर्ड
पर अंकित है- ”अश्व श्री कल्कि महाराज-मान्यता- अश्व के बाएँ पैर में जो
गड्ढा सा घाव है, जो स्वतः भर रहा है, उसके भरने पर ही कल्कि भगवान प्रकट
होगें।“
3.मथुरा (उत्तर प्रदेश, भारत) के गोवर्धन स्थित
श्री गिरिराज मन्दिर परिसर में कल्कि भगवान
का मन्दिर स्थापित है जहाँ के बोर्ड पर कलियुग की समाप्ति की सूचना अंकित
है साथ ही श्रीकृष्ण को कल्कि का ही अवतार बताया गया है।
4.वाराणसी (उत्तर
प्रदेश, भारत) में दुर्गाकुण्ड स्थित दुर्गा मन्दिर परिसर में
हनुमान मन्दिर के साथ कल्कि भगवान का मन्दिर दिनांक 19 अक्टुबर, 2012 (शारदीय नवरात्र) को
स्थापित किया गया है।
5. अन्य स्थानों श्री कल्कि
विष्णु मन्दिर,
अजमेरी
गेट,
दिल्ली; श्री कल्कि मन्दिर, मादीपुर, पंजाबी बाग, दिल्ली; ललीता माँ मन्दिर, नैमिषारण्य तीर्थ, सीतापुर (उ0प्र0); काली मन्दिर, कालीघाट, कोलकाता; श्री योगमाया मन्दिर, महरौली, दिल्ली; श्री विष्णुपाद मन्दिर, गया धाम, गया (बिहार); श्री कालका जी
मन्दिर, निकट नेहरू प्लेस, नई दिल्ली; अमृत परिसर, बृज घाट, गढ़ गंगा; श्री गौरीशंकर
मन्दिर, चाँदनी चैक, दिल्ली; ईस्कान मन्दिर, ईस्ट आफ कैलास, नई दिल्ली; श्री हनुमान मन्दिर
करोड़ीमल कालेज परिसर (हंसराज कालेज हास्टल के सामने), दिल्ली; श्री कल्कि मन्दिर, वैष्णों देवी, बाणगंगा, कटरा, जम्मू; श्री लक्ष्मी नारायण
संस्थान,
बंसत विहार, नई दिल्ली; श्री हनुमान मन्दिर
(निकट रीगल सीनेमा) कनाट प्लेस, नई दिल्ली, श्री कल्कि मन्दिर, मरघट वाले हनुमान जी, रिंग रोड, यमुना बाजार, दिल्ली.6, श्री कल्कि विशाल
मन्दिर, दिल्ली-जयपुर हाइवे रोड, मानेसर, (गुड़गाँव, हरियाणा) इत्यादि में भी कल्कि
अवतार की मूर्ति स्थापित है।
6.श्री कल्कि मन्दिर
वसुंधरा, कल्कि चैक, धापासी गाविस. 7, काठमाण्डु और सम्भलपुरी कल्कि तीर्थ
धाम, नेपाल प्रजापति अंचल, प्यूठान सारी गाविस.1, नेपाल में भी कल्कि
भगवान की मूर्ति स्थापित हो चुकी है। कल्कि भगवान के नाम
पर नेपाल में विश्व का पहला सरकारी बैंक ”श्री कल्कि बैंक“ खुल चुका है।
7.कल्कि अवतार व कल्कि
माता से सम्बन्धित वर्तमान समय में कथा, गीत, कल्कि चालीसा, कल्कि गायत्री मन्त्र, कल्कि
मन्त्र-यन्त्र-तन्त्र, स्तुति, फिल्म इत्यादि भी बन
चुके हैं। ”कल्कि पीठ“, ”कल्कि पीठाधीश्वर“, ”कल्कि अवतार फाउण्डेशन
इण्टरनेशनल“,
”श्री
कल्कि बाल वाटिका“ इत्यादि की भी स्थापना भिन्न-भिन्न
व्यक्तियों द्वारा की जा चुकी है।
8.राजस्थान, मध्यप्रदेश और
गुजरात की त्रिवेणी संगम स्थल राजस्थान के वांगड़ अंचल
(दक्षिण में जनजाति बहुल बांसवाड़ा एवं डूंगरपुर जिले में) के डूंगरपुर जिले के
साबला गांव में हरि मंदिर है जहां कल्कि अवतार की पूजा हो रही है। हरि
मंदिर के गर्भगृह में श्याम रंग की अश्वारूढ़ निष्कलंक मूर्ति है, जो लाखों भक्तों की
श्रद्धा और विश्वास का केंद्र है। भगवान के भावी अवतार निष्कलंक
भगवान की यह अद्भुत मूर्ति घोड़े पर सवार है। इस घोड़े के तीन पैर भूमि पर
टिके हुए हैं जबकि एक पैर सतह से थोड़ा ऊँचा है। मान्यता है कि यह
पैर धीरे-धीरे भूमि की तरफ झुकने लगा है। जब यह पैर पूरी तरह जमीन पर टिक
जाएगा तब दुनिया में परिवर्तन का दौर आरंभ हो जाएगा।
संत मावजी रचित ग्रंथों एवं वाणी में
इसे स्पष्ट किया गया है। यहां बाकायदा कई मंदिर
बने हुए हैं, जिनमें विष्णु के भावी अवतार कल्कि की मूर्तियां स्थापित
हैं और इनकी रोजाना पूजा-अर्चना भी होती है। संत मावजी महाराज के अनुयायी
पिछले पौने तीन सौ वर्षों से ज्यादा समय से इस भावी अवतार की प्रतीक्षा
में जुटे हुए हैं। संत मावजी महाराज लाखों लोगों की आस्थाओं से जुडे
बेणेश्वर धाम के आद्य पीठाधीश्वर रहे हैं। भक्तों की मान्यता है कि वे
जिस देवता की पूजा कर रहे हैं वे ही कलयुग में भगवान विष्णु के कल्कि
अवतार के रूप में अवतरित होंगे और पृथ्वी का उद्धार करेंगे। इन्हीं
निष्कलंक अवतार के उपासक होने से संत मावजी के भक्त अपने उपास्य को प्रिय ऐसी
ही श्वेत वेश-भूषा धारण करते हैं। निष्कलंक सम्प्रदाय के विश्व पीठ हरि
मंदिर सहित वागड़ अंचल और देश के विभिन्न हिस्सों में स्थापित निष्कलंक
धामों में भी इसी स्वरूप की पूजा-अर्चना जारी है।
देश के विभिन्न हिस्सों में फैले लाखों
माव भक्तों द्वारा अपने उपास्य के रूप में
इन्हीं निष्कलंक भगवान का पूजन-अर्चन किया जाता रहा है। विभिन्न निष्कलंक
धाम मंदिर के स्वरूप में हैं जबकि निष्कलंक सम्प्रदाय के विश्व पीठ हरि मंदिर
पर न तो कोई गुम्बद है और न ही मंदिर की आति, बल्कि यह गुरु आश्रम के रूप
में ही अपनी प्राचीन शैली में बना हुआ है। निष्कलंक सम्प्रदाय के मंदिर
साबला, पुंजपुर, वमासा, पालोदा, शेषपुर, बांसवाड़ा, फतेहपुरा, घूघरा, पारडा, इटिवार, संतरामपुर आदि गांवों में अवस्थित हैं। इन सभी मंदिरों में शंख, चक्र, गदा, पद्म सहित श्वेत
घोड़े पर सवार भावी अवतार निष्कलंक
भगवान की चतुर्भुज मूर्तियां हैं। मावजी की पुत्रवधू जनकुंवरी ने ही
बेणेश्वर धाम पर सर्वधर्म समभाव के प्रतीक विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया।
इसके बारे में मावजी की वाणी में स्पष्ट कहा गया है- सब देवन का डेरा उठसे, निकलंक का डेरा
रहेसे, अर्थात मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर आदि सब टूट जाएंगे, लेकिन कलियुग में
अवतार लेने वाले निष्कलंक भगवान का एक मंदिर रहेगा जहां
सभी धर्मों के लोगों को आश्रय प्राप्त होगा। सभी लोग इसे प्रेम से अपना
मानेंगे।
9.मावजी महाराज का जन्म साबला गांव में विक्रम संवत् 1771 में माघ शुक्ल पंचमी को हुआ। इसके बाद लीलावतार के रूप में
मावजी का प्राकट्य संवत् 1784 में माघ शुक्ल एकादशी को हुआ। उन्हें भगवान श्रीकृष्ण का लीलावतार माना जाता है। संत मावजी की स्मृति में आज भी
बांसवाड़ा एवं डूंगरपुर जिलों के बीच माही, सोम एवं जाखम
नदियों के बीच विशाल टापू पर बेणेश्वर में हर साल माघ पूर्णिमा पर दस दिन का विशाल मेला भरता है।
इसे आदिवासियों का महाकुंभ भी कहा जाता है। स्वयं मावजी महाराज की भविष्यवाणी के अनुसार ”संतन के सुख करन को, हरन भूमि को भार, ह्वै हैं कलियुग अन्त में निष्कलंक अवतार“ अर्थात् सज्जनों को सुख प्रदान करने और पृथ्वी
के सिर से पाप का भार उतारने के लिए कलियुग के अंत में भगवान का निष्कलंक अवतार होगा। संत मावजी महाराज ने स्पष्ट लिखा है- ”श्याम चढ़ाई करी आखरी
गरुड़ ऊपर असवार, दुष्टि कालिंगो सेंधवा असुरनी करवा हाण, कलिकाल व्याप्यो घणो, कलि मचावत धूम, गौ ब्राह्मण नी
रक्षा करवा बाल स्त्री करवा प्रतिपाल…।“
मावजी की वाणी में कहा गया है कि निष्कलंक
अवतार के साथ एक चैतन्य पुरुष रहेगा जो
दैत्य-दानवों व चैदह मस्तकधारी कालिंगा का नाश कर चारों युगों के बंधनों को तोड़
कर सतयुग की स्थापना करेगा। इस पुरुष की लम्बाई 32 हाथ लिखी हुई है। यह
अवतार गौ,
ब्राह्मण
प्रतिपाल होगा तथा धर्म की स्थापना करेगा। इसके बाद
सर्वत्र शांति,
आनन्द
और समृद्धि का प्रभाव होगा। निष्कलंक अवतार के
स्वरूप में बारे में संत मावजी के चैपड़ों में अंकित है- ”धोलो वस्त्र ने धोलो
शणगार,
धोले
घोडीले घूघर माला,
राय
निकलंगजी होय असवार…बोलो देश में नारायण जी नु निष्कलंकी
नाम,
क्षेत्र
साबला,
पुरी
पाटन
ग्राम।“
इसमें
साबला
पुरी पाटन ग्राम का नाम अंकित है।
कल्कि अवतार के इस पद पर अनेक स्वघोषित
दावेदार हैं जो समय-समय पर भविष्यवाणियों के
अनुसार स्वयं को सिद्ध करने की कोशिश और कल्कि अवतार के सम्बन्ध में अनेक
भविष्यवाणी करते रहते हैं जिन्हें इन्टरनेट (google.com,
youtube.com इत्यादि) पर ”कल्कि अवतार (KALKI AVATAR) सर्च कर देखा जा
सकता है परन्तु यह जानना चाहिए कि काल और युग परिवर्तन से परिचय कराने के लिए युगानुसार आत्मतत्व
को व्यक्त करना पड़ता है। उसी सार्वभौम सत्य को युगानुसार योग कराया
जाता है केवल भीड़ इकट्ठा हो जाने से कुछ भी नहीं होता। अवतारों को
पहचानने के लिए सबसे मूल विषय यह होता है कि वह नया क्या दे रहा है जो उस समय
के समाज के बहुमत मानव के शान्ति, एकता, स्थिरता व विकास को प्रभावित
करता हो। सार्वभौम सत्य को व्यक्त करने वाला प्रत्येक मानव शरीरधारी अवतार
ही है परन्तु युग के सर्वोच्च स्तर के सार्वभौम सत्य को व्यक्त करने वाला
युगावतार कहलाता है।
कल्कि को
विष्णु का भावी और अंतिम अवतार माना गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार पृथ्वी पर पाप की सीमा पार होने
लगेगी तब दुष्टों के संहार के लिए विष्णु का यह अवतार प्रकट होगा। भागवत पुराण में (स्कंध 12, अध्याय 2) कल्कि अवतार की कथा विस्तार से है। कथा के अनुसार
सम्भल ग्राम में कल्कि का जन्म होगा।
अपने माता पिता की पांचवीं संतान कल्कि
यथासमय देवदत्त नाम के घोड़े पर आरूढ़ होकर तलवार
से दुष्टों का संहार करेंगे। तब सतयुग का प्रारंभ होगा। कल्कि अवतार
का स्वरूप और आख्यानों पर अक्सर चर्चा हुई है। सबसे पुरानी मीमांसा
साम्यवादी विचारक सत्यभक्त की है। उनके अनुसार जो भी सार्वभौम सत्य और
युगीन सिद्धान्त को व्यक्त करते है वे सभी अवतार के रूप में प्रतिष्ठित होते
हैं।
इस अभिव्यक्ति की सघनता और विरलता के अनुसार ही अवतारी शक्तियों के स्तर या कलाएं तय की जाती है। बुद्ध से
पहले कृष्ण को सोलह कलाओं का अवतार माना गया। सभी अवतारों नें अपनी तरह से
दुष्टों का और उनकी दुष्टता का दलन किया। अब जिस अवतार का इंतजार किया जा रहा
है, वह निष्कलंक होगा। कला, कांति, शौर्य और दैवी गुणों में उत्कट।
भागवत में कल्कि का संक्षिप्त विवरण ही है।
उनके चरित और जीवन का विशद वर्णन 'कल्कि पुराण' में है। अध्येताओं के अनुसार
भागवत और कल्किपुराण में अंतिम अवतार के बारे
में जो उल्लेख किए गए हैं, वे आलंकारिक हैं। उसका रूपक समझना चाहिए। कल्कि
का स्वरूप और आशय समझना चाहिए। पुराण के अनुसार कल्कि
के पिता का नाम विष्णुयश और माता का नाम सुमति होगा। पिता विष्णुयश का अर्थ
हुआ,
ऐसा
वयक्ति जो सर्वव्यापक परमात्मा की स्तुति करता लोकहितैषी है।
सुमति का अर्थ है अच्छे विचार रखने और वेद, पुराण और विद्याओं को जानने वाली
महिला।
कल्कि निष्कलंक अवतार हैं। भगवान का
स्वरूप (सगुण रूप) परम दिव्य होता है। दिव्य
अर्थात दैवीय गुणों से संपन्न। वे श्वेत अश्व पर सवार हैं। भगवान का रंग गोरा
है, परन्तु क्रोध में काला भी हो जाता है। वे पीले वस्त्र धारण किए
हैं।
प्रभु के हृदय पर श्रीवत्स का चिह्न
अंकित है। गले में कौस्तुभ मणि है। स्वयं उनका मुख
पूर्व की ओर है तथा अश्व दक्षिण में देखता प्रतीत होता है। यह चित्रण कल्कि
की सक्रियता और गति की ओर संकेत करता है। युद्ध के समय उनके हाथों में दो
तलवारें होती हैं।
मनीषियों ने कल्कि के इस स्वरूप की
विवेचना में कहा है कि कल्कि सफेद रंग के घोड़े
पर सवार हो कर आततायियों पर प्रहार करते हैं। इसका अर्थ उनके आक्रमण में
शांति (श्वेत रंग), शक्ति (अश्व) और परिष्कार (युद्ध) लगे हुए हैं। तलवार और
धनुष को हथियारों के रूप में उपयोग करने का अर्थ है कि आसपास की और दूरगामी
दोनों तरह की दुष्ट प्रवृत्तियों का निवारण।
कल्कि की यह रणनीति समाज के विचारों, मान्यताओँ और गतिविधियों
की
दिशाधारा
में बदलाव का प्रतीक ही है। इस बार अवतार असुरों या दुष्टों के संहार के बजाय उनके मन
मानस को अपने विधान से बदलने की नीति पर आमादा है। कल्कि अवतार का यही
संदेश है।
MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक
विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी
न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग
40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके
लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6
महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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