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Monday, April 1, 2019

दोहे ज्ञान के



           दोहे ज्ञान के
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि 
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
मो.  09969680093
  - मेल: vipkavi@gmail.com  वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi
ब्लाग: freedhyan.blogspot.com,   
फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet


कही किसी को पुष्प दो, कंटक ही मिल जाय। 
यही जगत की रीति है, कौन किसे समुझाय।।


राह कठिन सेवा बहुत,मिलते कष्ट अपार।
दुष्ट सदा करता रहे,सज्जन को अपकार।।


राम कभी ना हारता,रावण न टिक पाए।
ज्ञानी सन्त यही कहे,सत को कौन हराय।।


पाप पुण्य का भोग है,भोगन जीवन पाय।
नरक स्वरग है यहाँ। ज्ञानी गुण समझाय।।


संग गुलाब कांटे उगे।यह माया को खेल।
ले गुलाब काँटा लगा,सब करमन को झेल।।


दुनिया मूरख ही रही,द्वारे तेरे घन श्याम।
मनवा ढूढ़े गली गली।भोर भई कित शाम।।


करता करण कछु नही,सब तेरे है काम।
मूरख सोंचे मैं करू,माया है श्री राम।।


जाको पाती लिख रहूँ, ताकी बुध्दी समाय।
पाती लिख पूरन भयो, अपनो कर्म सुहाय।।


करता कारण काज सब, है विधना के हाथ।
उसके द्वारे सब मिले, चल तू उसके साथ।।


गरव करे देही मिली, कर्म भयो जब कुरूप।
ते पापी बच पाये न, चाहे भयो सुर भूप।।


राम नाम महिमा घटे, घट जीवन की पीर।
करम फले न देखता, मौला सन्त फ़कीट।।


राम नाम जो मिल गयो, जीवन ही तर जाय।
स्वरग नरक छोटो भयो, रामहि दरशन पाय।।


मूरख ढूढ़े स्वर्ग नरक, ज्ञानी ढूढ़े राम।
राम मिलै तो सब मिलै, मिलै ब्रह्म का ज्ञान।।


निराकार जो रूप है, गुणन साकार समाय।
धीरे धीरे छल गयो, मॉनव प्रभु बन जाय।।


जे नर बोले ब्रह्म वो, मैं बोलू भरमाय।
मूरख माया ठग गई, ज्ञानी समझ न पाय।।


माया नीचे ईश के, वे भगवान कहाय।
मॉनव नीचे ही रहे, माया ही ठग जाय।।


जगतगुरु माता भयो, नाम देख भरमाय।
ऐसो मूरख जगत है, जे नर ब्रह्म कहाय।।


जगतगुरु तो शिव भयो, कहो कृष्ण या राम।
भरमाये ये कौन हैं, गुरु जगत को नाम।।


प्रभु संग होली खेल ली, जगत होली न सुहाय।
जगत रंग तो धुल गयो, प्रभु को कौन छुड़ाय।।


रे मन होली खेल तू, रंग लगा श्री राम।
भीतर होली जल गई, तुझको नही गुमान।।


गुरु देव का रंग ले, लगा रहे श्री राम।
गोपी तेरे मन रहे, छेड़त है घन श्याम।।


वंशी बजे घन श्याम की, छेड़े ऐसी तान।
बेसुध मनवा हो गया, देख मोहक मुस्कान।।


मैं कान्हा की बावरी, मेरे पिय घन श्याम।
मुझ पापिन को छोड़ कर, लौटे अपने धाम।।


पीछा न छोडू तेरा, माता हाथ छुड़ाय।
किधर चलेगी तू भला, मुझको यह समझाय।।


नही मैं माँगू ज्ञान वो, निराकार है रूप।
सगुण साकार रस भरा, भक्ति भाव स्वरूप।।


ज्ञान योग नीरस भया, मरु की भूमि समान।
भक्ति योग रस पान है, ज्यो अमृत की खान।।


मोक्ष ज्ञान कछु काम न, जीवन को भरमाय।
तेरो भक्ति जो मिले, जीव सफल हो जाय।।


ऐसो ज्ञान कछु काम न, न हो तेरो रूप।
तेरो छवि ममता तेरी, सगुण साकार स्वरूप।।


नही चाहिए मोक्ष कुछ, न माँगू निर्वान।
मेरो मालिक तू भला, मैं हूँ तेरो श्वान।।


काहे धकेले तू मोहे, मैं न जाऊं कही और।
नही चढू सीढ़ी कोई, तू मेरा चितचोर।।


मेरी मुंडी काट तू, रख तू अपने पास।
नैनन मिले दरस तेरा, जिससे बुझती प्यास।।


मैं पापी इस जगत में, राम बहुत समझाय।
शठ बुध्दी मेरी भयो, कछु समझ न पाय।।


MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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