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Wednesday, July 3, 2019

यज्ञ या हवन: प्रकार और विधि


                    यज्ञ या हवन: प्रकार और विधि

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
  सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
  - मेल: vipkavi@gmail.com  वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi
ब्लाग: freedhyan.blogspot.com,  फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet

हवन अथवा यज्ञ भारतीय परंपरा अथवा हिंदू धर्म में शुद्धीकरण का एक कर्मकांड है हवन यानि यज्ञ वैसे तो ये हमारे घर में शांति बनाये रखने के लिए या कोई मनोकामना पूरी हो जाने पर किया जाता है।

वैसे अपने अक्सर देखा होगा हवन कुण्ड में हमेशा तीन सिद्धिया होती है इसका भी मतलब है क्योंकि इन तीनो सिद्धियो में तीन देवता निवास करते है :

हवन कुंड की पहली सीढि में विष्णु भगवान का वास होता हैं।

दूसरी सीढि में ब्रह्मा जी का वास होता हैं।

तीसरी तथा अंतिम सीढि में शिवजी का वास होता हैं| 


कुंड में अग्नि के माध्यम से देवता के निकट हवि पहुंचाने की प्रक्रिया को 'यज्ञ' कहते हैं। हवि, हव्य अथवा हविष्य वे पदार्थ हैं जिनकी अग्नि में आहुति दी जाती है (जो अग्नि में डाले जाते हैं।)


हवन कुंड का अर्थ है हवन की अग्नि का निवास स्थान। हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित करने के पश्चात इस पवित्र अग्नि में फल, शहद, घी, काष्ठ इत्यादि पदार्थों की आहुति प्रमुख होती है।


ऐसा माना जाता है कि यदि आपके आसपास किसी बुरी आत्मा इत्यादि का प्रभाव है तो हवन प्रक्रिया इससे आपको मुक्ति दिलाती है। शुभकामना, स्वास्थ्य एवं समृद्धि इत्यादि के लिए भी हवन किया जाता है।

यज्ञ दो प्रकार के होते है- श्रौत और स्मार्त।

श्रुति पति पादित यज्ञो को श्रौत यज्ञ और स्मृति प्रतिपादित यज्ञो को स्मार्त यज्ञ कहते है। श्रौत यज्ञ में केवल श्रुति प्रतिपादित मंत्रो का प्रयोग होता है

और स्मार्त यज्ञ में वैदिक पौराणिक और तांत्रिक मंन्त्रों का प्रयोग होता है।

वेदों में अनेक प्रकार के यज्ञों का वर्णन मिलता है। 



किन्तु उनमें पांच यज्ञ ही प्रधान माने गये हैं:


1. अग्नि होत्रम, 2. दर्शपूर्ण मासौ, 3. चातुर्म स्यानि, 4. पशुयांग, 5. सोमयज्ञ, ये यह श्रुति प्रतिपादित है।


वेदों में श्रौत यज्ञों की अत्यन्त महिमा वर्णित है। श्रौत यज्ञों को श्रेष्ठतम कर्म कहा है कुल श्रौत यज्ञो को १९ प्रकार से विभक्त किया जा सकता  है।

1. स्मार्त यज्ञः-

विवाह के अनन्तर विधिपूर्वक अग्नि का स्थापन करके जिस अग्नि में प्रातः सायं नित्य हनादि कृत्य किये जाते है। उसे स्मार्ताग्नि कहते है। गृहस्थ को स्मार्ताग्नि में पका भोजन प्रतिदिन करना चाहिये।


2. श्रोताधान यज्ञः-

दक्षिणाग्नि विधिपूर्वक स्थापना को श्रौताधान कहते है। पितृ संबंधी कार्य होते है।


3. दर्शभूर्णमास यज्ञः-

अमावस्या और पूर्णिमा को होने वाले यज्ञ को दर्श और पौर्णमास कहते है। इस यज्ञ का अधिकार सपत्नीक होता है। इस यज्ञ का अनुष्ठान आजीवन करना चाहिए यदि कोई जीवन भर करने में असमर्थ है तो 30 वर्ष तक तो करना चाहिए।


4. चातुर्मास्य यज्ञः-

चार-चार महीने पर किये जाने वाले यज्ञ को चातुर्मास्य यज्ञ कहते है इन चारों महीनों को मिलाकर चतुर्मास यज्ञ होता है।


5. पशु यज्ञः-

प्रति वर्ष वर्षा ऋतु में या दक्षिणायन या उतरायण में संक्रान्ति के दिन एक बार जो पशु याग किया जाता है। उसे निरूढ पशु याग कहते है।

6. आग्रजणष्टि (नवान्न यज्ञ) :-

प्रति वर्ष वसन्त और शरद ऋतुओं नवीन अन्न से यज्ञ गेहूॅं, चावल से जो यज्ञ किया जाता है उसे नवान्न कहते है।


7. सौतामणी यज्ञ (पशुयज्ञ) :-

इन्द्र के निमित्त जो यज्ञ किया जाता है सौतामणी यज्ञ इन्द्र संबन्धी पशुयज्ञ है यह यज्ञ दो प्रकार का है। एक वह पांच दिन में पुरा होता है। सौतामणी यज्ञ में गोदुग्ध के साथ सुरा (मद्य) का भी प्रयोग है। किन्तु कलियुग में वज्र्य है। दूसरा पशुयाग कहा जाता है। क्योकि इसमें पांच अथवा तीन पशुओं की बली दी जाती है।


8. सोम यज्ञः-

सोमलता द्वारा जो यज्ञ किया जाता है उसे सोम यज्ञ कहते है। यह वसन्त में होता है यह यज्ञ एक ही दिन में पूर्ण होता है। इस यज्ञ में 16 ऋत्विक ब्राह्मण होते है।


9. वाजपये यज्ञः-

इस यज्ञ के आदि और अन्त में वृहस्पति नामक सोम यग अथवा अग्निष्टोम यज्ञ होता है यह यज्ञ शरद रितु में होता है।


10. राजसूय यज्ञः-

राजसूय या करने के बाद क्षत्रिय राजा समाज चक्रवर्ती उपाधि को धारण करता है।

11. अश्वमेघ यज्ञ:-

इस यज्ञ में दिग्विजय के लिए (घोडा) छोडा जाता है। यह यज्ञ दो वर्ष से भी अधिक समय में समाप्त होता है। इस यज्ञ का अधिकार सार्वभौम चक्रवर्ती राजा को ही होता है।


12. पुरूष मेघयज्ञ:-

इस यज्ञ समाप्ति चालीस दिनों में होती है। इस यज्ञ को करने के बाद यज्ञकर्ता गृह त्यागपूर्वक वान प्रस्थाश्रम में प्रवेश कर सकता है।


13. सर्वमेघ यज्ञ:-

इस यज्ञ में सभी प्रकार के अन्नों और वनस्पतियों का हवन होता है। यह यज्ञ चैंतीस दिनों में समाप्त होता है।


14. एकाह यज्ञ:-

एक दिन में होने वाले यज्ञ को एकाह यज्ञ कहते है। इस यज्ञ में एक यज्ञवान और सौलह विद्वान होते है।

15. रूद्र यज्ञ:-

यह तीन प्रकार का होता हैं रूद्र महारूद्र और अतिरूद्र रूद्र यज्ञ 5-7-9 दिन में होता हैं महारूद्र 9-11 दिन में होता हैं। अतिरूद्र 9-11 दिन में होता है। रूद्रयाग में 16 अथवा 21 विद्वान होते है। महारूद्र में 31 अथवा 41 विद्वान होते है। अतिरूद्र याग में 61 अथवा 71 विद्वान होते है। रूद्रयाग में हवन सामग्री 11 मन, महारूद्र में 21 मन अतिरूद्र में 70 मन हवन सामग्र्री लगती है।

16. विष्णु यज्ञ:-

यह यज्ञ तीन प्रकार का होता है। विष्णु यज्ञ, महाविष्णु यज्ञ, अति विष्णु योग- विष्णु योग में 5-7-8 अथवा 9 दिन में होता है। विष्णु याग 9 दिन में अतिविष्णु 9 दिन में अथवा 11 दिन में होता हैं विष्णु याग में 16 अथवा 41 विद्वान होते है। अति विष्णु याग में 61 अथवा 71 विद्वान होते है। विष्णु याग में हवन सामग्री 11 मन महाविष्णु याग में 21 मन अतिविष्णु याग में 55 मन लगती है।


17. हरिहर यज्ञ:-

हरिहर महायज्ञ में हरि (विष्णु) और हर (शिव) इन दोनों का यज्ञ होता है। हरिहर यज्ञ में 16 अथवा 21 विद्वान होते है। हरिहर याग में हवन सामग्री 25 मन लगती हैं। यह महायज्ञ 9 दिन अथवा 11 दिन में होता है।


18. शिव शक्ति महायज्ञ:-

शिवशक्ति महायज्ञ में शिव और शक्ति (दुर्गा) इन दोनों का यज्ञ होता है। शिव यज्ञ प्रातः काल और श शक्ति (दुर्गा) इन दोनों का यज्ञ होता है। शिव यज्ञ प्रातः काल और मध्याहन में होता है। इस यज्ञ में हवन सामग्री 15 मन लगती है। 21 विद्वान होते है। यह महायज्ञ 9 दिन अथवा 11 दिन में सुसम्पन्न होता है।


19. राम यज्ञ:-

राम यज्ञ विष्णु यज्ञ की तरह होता है। रामजी की आहुति होती है। रामयज्ञ में 16 अथवा 21 विद्वान हवन सामग्री 15 मन लगती है। यह यज्ञ 8 दिन में होता है।


20. गणेश यज्ञ:-

गणेश यज्ञ में एक लाख (100000) आहुति होती है। 16 अथवा 21 विद्वान होते है। गणेशयज्ञ में हवन सामग्री 21 मन लगती है। यह यज्ञ 8 दिन में होता है।


21. ब्रह्म यज्ञ (प्रजापति यज्ञ):-

प्रजापत्ति याग में एक लाख (100000) आहुति होती हैं इसमें 16 अथवा 21 विद्वान होते है। प्रजापति यज्ञ में 12 मन सामग्री लगती है। 8 दिन में होता है।

22. सूर्य यज्ञ:-

सूर्य यज्ञ में एक करोड़ 10000000 आहुति होती है। 16 अथवा 21 विद्वान होते है। सूर्य यज्ञ 8 अथवा 21 दिन में किया जाता है। इस यज्ञ में 12 मन हवन सामग्री लगती है।

23. दूर्गा यज्ञ:-

दूर्गा यज्ञ में दूर्गासप्त शती से हवन होता है। दूर्गा यज्ञ में हवन करने वाले 4 विद्वान होते है। अथवा 16 या 21 विद्वान होते है। यह यज्ञ 9 दिन का होता है। हवन सामग्री 10 मन अथवा 15 मन लगती है।


24. लक्ष्मी यज्ञ:-

लक्ष्मी यज्ञ में श्री सुक्त से हवन होता है। लक्ष्मी यज्ञ (100000) एक लाख आहुति होती है। इस यज्ञ में 11 अथवा 16 विद्वान होते है। या 21 विद्वान 8 दिन में किया जाता है। 15 मन हवन सामग्री लगती है।

25. लक्ष्मी नारायण महायज्ञ:-

लक्ष्मी नारायण महायज्ञ में लक्ष्मी और नारायण का ज्ञन होता हैं प्रात लक्ष्मी दोपहर नारायण का यज्ञ होता है। एक लाख 8 हजार अथ्वा 1 लाख 25 हजार आहुतियां होती है। 30 मन हवन सामग्री लगती है। 31 विद्वान होते है। यह यज्ञ 8 दिन 9 दिन अथवा 11 दिन में पूरा होता है।


26. नवग्रह महायज्ञ:-

नवग्रह महायज्ञ में नव ग्रह और नव ग्रह के अधिदेवता तथा प्रत्याधि देवता के निर्मित आहुति होती हैं नव ग्रह महायज्ञ में एक करोड़ आहुति अथवा एक लाख अथवा दस हजार आहुति होती है। 31, 41 विद्वान होते है। हवन सामग्री 11 मन लगती है। कोटिमात्मक नव ग्रह महायज्ञ में हवन सामग्री अधिक लगती हैं यह यज्ञ ९ दिन में होता हैं इसमें 1,5,9 और 100 कुण्ड होते है। नवग्रह महायज्ञ में नवग्रह के आकार के 9 कुण्डों के बनाने का अधिकार है।


27. विश्वशांति महायज्ञ:-

विश्वशांति महायज्ञ में शुक्लयजुर्वेद के 36 वे अध्याय के सम्पूर्ण मंत्रों से आहुति होती है। विश्वशांति महायज्ञ में सवा लाख (123000) आहुति होती हैं इस में 21 अथवा 31 विद्वान होते है। इसमें हवन सामग्री 15 मन लगती है। यह यज्ञ 9 दिन अथवा 4 दिन में होता है।


28. पर्जन्य यज्ञ (इन्द्र यज्ञ):-

पर्जन्य यज्ञ (इन्द्र यज्ञ) वर्षा के लिए किया जाता है। इन्द्र यज्ञ में तीन लाख बीस हजार (320000) आहुति होती हैं अथवा एक लाख 60 हजार (160000) आहुति होती है। 31 मन हवन सामग्री लगती है। इस में 31 विद्वान हवन करने वाले होते है। इन्द्रयाग 11 दिन में सुसम्पन्न होता है।


29. अतिवृष्टि रोकने के लिए यज्ञ:-

अनेक गुप्त मंत्रों से जल में 108 वार आहुति देने से घोर वर्षा बन्द हो जाती है।


30. गोयज्ञ:-

वेदादि शास्त्रों में गोयज्ञ लिखे है। वैदिक काल में बडे-बडे़ गोयज्ञ हुआ करते थे। भगवान श्री कृष्ण ने भी गोवर्धन पूजन के समय गौयज्ञ कराया था। गोयज्ञ में वे वेदोक्त दोष गौ सूक्तों से गोरक्षार्थ हवन गौ पूजन वृषभ पूजन आदि कार्य किये जाते है। जिस से गौसंरक्षण गौ संवर्धन, गौवंशरक्षण, गौवंशवर्धन गौमहत्व प्रख्यापन और गौसड्गतिकरण आदि में लाभ मिलता हैं गौयज्ञ में ऋग्वेद के मंत्रों द्वारा हवन होता है। इस में सवा लाख 250000 आहुति होती हैं गौयाग में हवन करने वाले 21 विद्वान होते है। यह यज्ञ 8 अथवा 9 दिन में सुसम्पन्न होता है।


सामान्य तैयारी हेतु एक लकड़ी की चौकी, एक नारियल, चावल, आम के पत्ते, हल्दी मिश्रित अक्षत, चंदन, कुमकुम या सिंदूर, मौली, गंगाजल, पुष्प, तुलसीदल, दूर्वा, बिल्वपत्र, अगरबत्ती, दीपक (सरसों के तेल या घी से जलायें। तंत्र हेतु तेल और अर्चन हेतु घी) , रूई, माचिस, कपूर, सफ़ेद, पीला, लाल या काला कपड़ा( सामान्य यज्ञ हेतु सफेद, देवी पूजन हेतु लाल, विष्णु रूप हेतु पीला, काली पूजा या अन्य तंत्र हेतु काला), कुछ फल, प्रसाद, दोना (सामग्री डालने के लिए )।


नवरात्रि के पावन पर्व पर अष्टमी-नवमी तिथि को हवन करने का विशेष महत्व है अत: अगर आप घर पर ही सरल रीति से हवन करना चाहते है तो आपको परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। हम आपके लिए लेकर आए हैं आसान तरीके हवन करने की विधि। इस सरल हवन विधि द्वारा आप अपने पूरे परिवार के साथ यज्ञ-हवन करके नवरात्रि पूजन को पूर्णता प्रदान कर सकते हैं।


कितना बड़ा हो हवन कुंड ?


प्राचीनकाल में कुंड चौकोर खोदे जाते थे। उनकी लंबाई, चौड़ाई समान होती थी। यह

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इसलिए कि उन दिनों भरपूर समिधाएं प्रयुक्त होती थीं। घी और सामग्री भी बहुत-बहुत होमी जाती थी, फलस्वरूप अग्नि की प्रचंडता भी अधिक रहती थी। उसे नियंत्रण में रखने के लिए भूमि के भीतर अधिक जगह रहना आवश्यक था। उस‍ स्थिति में चौकोर कुंड ही उपयुक्त थे। पर आज समिधा, घी, सामग्री सभी में अत्यधिक महंगाई के कारण किफायत करती पड़ती है। में चौकोर कुंड ही उपयुक्त थे। पर आज समिधा, घी, सामग्री सभी में अत्यधिक महंगाई के कारण किफायत करती पड़ती है।


ऐसी दशा में चौकोर कुंडों में थोड़ी ही अग्नि जल पाती है और वह ऊपर अच्‍छी तरह दिखाई भी नहीं पड़ती। ऊपर तक भरकर भी वे नहीं आते तो कुरूप लगते हैं। अतएव आज की स्थिति में कुंड इस प्रकार बनने चाहिए कि बाहर से चौकोर रहें। लंबाई-चौड़ाई, गहराई समान हो।


हवन के धुएं से प्राण में संजीवनी शक्ति का संचार होता है। हवन के माध्यम से बीमारियों से छुटकारा पाने का जिक्र ऋग्वेद में भी है।


हवन के लिए आम की लकड़ी, बेल, नीम, पलाश का पौधा, कलीगंज, देवदार की जड़, गूलर की छाल और पत्ती, पीपल की छाल और तना, बेर, आम की पत्ती और तना, चंदन की लकड़ी, तिल, जामुन की कोमल पत्ती, अश्वगंधा की जड़, तमाल यानी कपूर, लौंग, चावल, ब्राम्ही, मुलैठी की जड़, बहेड़ा का फल और हर्रे तथा घी, शकर जौ, तिल, गुगल, लोभान, इलायची एवं अन्य वनस्पतियों का बूरा उपयोगी होता है।


हवन के लिए गाय के गोबर से बनी छोटी-छोटी कटोरियां या उपले घी में डुबोकर डाले जाते हैं। हवन से हर प्रकार के 94 प्रतिशत जीवाणुओं का नाश होता है, अत: घर की शुद्धि तथा सेहत के लिए प्रत्येक घर में हवन करना चाहिए। हवन के साथ कोई मंत्र का जाप करने से सकारात्मक ध्वनि तरंगित होती है, शरीर में ऊर्जा का संचार होता है अत: कोई भी मंत्र सुविधानुसार बोला जा सकता है।


हवन करने से पूर्व स्वच्छता का ख्याल रखें। सबसे पहले रोज की पूजा करने के बाद अग्नि स्थापना करें फिर आम की चौकोर लकड़ी लगाकर, कपूर रखकर जला दें। उसके बाद इन मंत्रों से हवन शुरू करें।

ॐ आग्नेय नम: स्वाहा (ॐ अग्निदेव ताम्योनम: स्वाहा), ॐ गणेशाय नम: स्वाहा, ॐ गौरियाय नम: स्वाहा, ॐ नवग्रहाय नम: स्वाहा, ॐ दुर्गाय नम: स्वाहा, ॐ महाकालिकाय नम: स्वाहा, ॐ हनुमते नम: स्वाहा, ॐ भैरवाय नम: स्वाहा, ॐ कुल देवताय नम: स्वाहा, ॐ स्थान देवताय नम: स्वाहा, ॐ ब्रह्माय नम: स्वाहा, ॐ विष्णुवे नम: स्वाहा, ॐ शिवाय नम: स्वाहा, ॐ जयंती मंगलाकाली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा, स्वधा नमस्तुति स्वाहा, ॐ ब्रह्मामुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: क्षादी: भूमि सुतो बुधश्च: गुरुश्च शक्रे शनि राहु केतो सर्वे ग्रहा शांति कर: स्वाहा, ॐ गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवा महेश्वर: गुरु साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम: स्वाहा, ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिंम् पुष्टिवर्धनम्/ उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् मृत्युन्जाय नम: स्वाहा, ॐ शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे, सर्व स्थार्ति हरे देवि नारायणी नमस्तुते।


हवन के बाद गोला में कलावा बांधकर फिर चाकू से काटकर ऊपर के भाग में सिन्दूर लगाकर घी भरकर चढ़ा दें जिसको वोलि कहते हैं। फिर पूर्ण आहूति नारियल में छेद कर घी भरकर, लाल तूल लपेटकर धागा बांधकर पान, सुपारी, लौंग, जायफल, बताशा, अन्य प्रसाद रखकर पूर्ण आहुति मंत्र बोले- 'ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदम् पुर्णात पूण्य मुदच्यते, पुणस्य पूर्णमादाय पूर्णमेल विसिस्यते स्वाहा।'


पूर्ण आहुति के बाद यथाशक्ति दक्षिणा माता के पास रख दें, फिर परिवार सहित आरती करके अपने द्वारा हुए अपराधों के लिए क्षमा-याचना करें, क्षमा मांगें। तत्पश्चात अपने ऊपर किसी से 1 रुपया उतरवाकर किसी अन्य को दें दें। इस तरह आप सरल रीति से घर पर हवन संपन्न कर सकते हैं। 


जो आर्य प्रतिदिन यज्ञ करते है, उनके लिए महर्षि ने संस्कारविधि में दैनिक अग्निहोत्र विधि इस प्रकार लिखी है

आचमन मंत्र

ओं शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शंयोरभिस्त्रवन्तु न:।।


अग्न्याधान-मन्त्र

 ओं भूर्भुव: स्वः ।।

ओं भूर्भुवः स्वर्धौरिव भूम्ना पृथिवीव वरिम्णा ।

तस्यास्ते पृथिवी देवयजनि पृष्ठेऽग्निमन्नादमन्नाधायादधे ।।


इस मंत्र में दो उपमालडकार हैं। हे मनुष्य लोगों ! तुम ईश्वर से तीन लोकों के उपकार करने वा आपनी व्याप्ति से सूर्य प्रकाश के समान, तथा उत्तम गुणों से पृथ्वी के समान अपने-अपने लोकों में निकट रहनेवाले रचे हुए अग्नि को कार्य की सिद्धि के लिए यत्न के साथ उपयोग करो ।


ओम् उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते संसृजेथामयं च ।

आस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वे देवा यजमानश्च सीदत ।।


इस मंत्र से जब अग्नि समिधाओं में प्रविष्ट होने लगे तब चन्दन की अथवा आम, पलाश आदि की तीन लकड़ी आठ-आठ अंगुल की घृत में डूबो उनमें से नीचे लिखे एक-एक मंत्र से एक-एक समिधा को अग्नि में चढ़ावें। वे मंत्र ये हैं –

आचमन-मंत्र

इस मंत्र से एक समिधा अग्नि में चढ़ाएं ।

ओम् अयं त इध्म आत्मा जातवेदस्तेनेध्यस्व वर्धस्व चेद्ध वर्धय चास्मान् प्रजया पशुभिर्ब्रह्मवर्चसेनान्नाद्येन समेधय स्वाहा ।

इदमग्नये जातवेदसे-इदन्न मम ।

इससे और अगले अर्थात् दोनों मन्त्रों से दूसरी समिधा अग्नि में चढ़ावें ।

ओं समिधाग्निं दुवस्यत घृतैर्बोधयतातिथिम् ।

आस्मिन् हव्या जुहोतन, स्वाहा ।।

पूर्वोक्त मंत्र से तथा इस मंत्र से अर्थात् दोनों मन्त्रों से दूसरी समिधा की आहुति देवें ।

ओं सुसमिद्धाय शोचिषे घृतं तीव्रं जुहोतन । अग्नये जातवेदसे स्वाहा ।। इदमग्नये जातवेदसे-इदं न मम ।।

इस मंत्र से तीसरी समिधा की आहुति देवें ।

ओं तं त्वां समिदि्भरड़ि्गरो घृतेन वर्द्धयामसि ।

बृहच्छोचा यविष्ठय स्वाहा ।। इदमग्नयेऽड़ि्रसे-इदन्न मम ।।

जलप्रोक्षण-मन्त्र

ओम् आदितेऽनुमन्यस्व । इससे पूर्व दिशा में

ओम् अनुमतेऽनुमन्यस्व । इससे पश्चिम दिशा मे

ओं सरस्त्वयनुमन्यस्व ।  इससे उत्तर दिशा मेन जल छिड़कावे ।

तत्पश्चात अंजलि में जल लेके वेदी के पूर्व दिशा आदि चारों ओर छिड़कावें । इसके मंत्र है :-

ओं देव सवित: प्रसुव यज्ञं प्रसुव यज्ञोपतिं भगाय ।

दिव्यो गन्धर्व: केतपू: केतं न: पुनातु वाचस्पतिर्वाचं न: स्वदतु ।।

आघारावाज्यभागाहुति

इस मन्त्र से वेदी के उत्तर भाग में ,

ओम् अग्नये स्वाहा ।। इदमग्नये-इदं न मम ।।

विधि: यज्ञकुंड के उत्तर भाग में एक आहुति और दक्षिण भाग में एक दूसरी आहुति देनी होती है उनको ‘आघारावाज्याहुती’ कहते है । और जो कुंड के मध्य में आहुतियां दी जाती हैं उनको ‘आज्याभागाहुती’ कहते हैं सो घृतपात्र में से स्रुवा भर, अंगूठा, मध्यमा, अनामिका से स्रुवा को पकड़ के इस मंत्र से वेदी के दक्षिण भाग में प्रज्वलित समिधा पर आहुति देवे। 

इन दो मंत्रो से वेदी के मध्य में दो आहुति देवे ।

ओं प्रजापतये स्वाहा ।। इदं प्रजापतये-इदं न मम ।।

ओं इन्द्राय स्वाहा ।। इदमिन्द्राय-इदं न मम ।।

नीचे लिखे हुए मन्त्रोन से प्रात: काल अग्निहोत्र करे-हवन की विधि


प्रात:काल होम करने के मन्त्र

ओं सूर्यो ज्योतिर्ज्योति: सूर्य: स्वाहा ।।१।।

ओं सूर्यो वर्चो ज्योतिर्वर्च: स्वाहा ।।२।।

ओं ज्योति: सूर्य: सूर्यो ज्योति: स्वाहा ।।३।।

ओं सजूदेर्वेन सवित्रा सजूरुषसेन्द्रवत्या ।

जुषाण: सूर्यो वेतु स्वाहा ।।४।।



सायंकाल होम करने के मन्त्र

ओं अग्निर्ज्योतिरग्नि: स्वाहा ।।१।।

ओं अग्निर्वर्चो ज्योतिर्वर्च: स्वाहा ।।२।।

इस मन्त्र से तिसरी आहुति मौन करके करनी चाहिये ।हवन की विधि

ओं अग्निर्ज्योतिरग्नि: स्वाहा ।।३।।

ओं सजूर्देवेन सवित्रा सजू रात्र्येन्द्रवत्या ।

जुषाणो अग्निर्वेतु स्वाहा ।।४।।

अब निम्नलिखित मन्त्रो से प्रात: सायं आहुति देनी चाहिये –

प्रात: सायं होम करने के मन्त्र

ओं भूरग्नये प्राणाय स्वाहा । इदमग्नये प्राणाय-इदं न मम ।१।

ओं भुवर्वायवेऽपानाय स्वाहा । इदं वायवेऽपानाय-इदं न मम ।२।

ओं स्वरादित्याय व्यानाय स्वाहा । इदमादित्याय व्यानाय-इदं न मम ।३।

ओं भूर्भुव: स्वरग्निवाय्वादित्येभ्य: प्राणापानव्यानेभ्य: स्वाहा ।।

इदमग्निवाय्वादित्येभ्य: प्राणापानव्यानेभ्य:- इदं न मम ।।४।।

ओं आपो ज्योति रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुव: स्वरों स्वाहा ।।५।।

ओं या मेधां देवगणा: पितरश्चोपासते ।हवन की विधि

तया मामद्य मेद्याऽग्ने मेधाविंन कुरु स्वाहा ।।६।।

ओं विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव । यद्भद्रं तन्न आ सुव स्वाहा ।।७।।

ओं अग्ने नय सुपथा राये अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान् ।

युयोध्यसंज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नम उक्तिं विधेम स्वाहा ।।८।।

इस मन्त्र से तीन पूर्णाहुति अर्थात एक-एक बार पढके एक-एक करके तीन आहुति देवे ।

पूर्णाहुति मन्त्र

ओं सर्वं वै पूर्णं स्वाहा ।

स्थालीपाक की आहुति पूर्णिमा के दिन

ओं अग्नये स्वाहा ।

ओं अग्निषोमाभ्यां  स्वाहा ।

ओं विष्णवे स्वाहा ।

अमावस्या के दिन

ओं अग्नये स्वाहा ।

ओं इन्द्राग्नीभ्यां स्वाहा ।

ओं विष्णवे स्वाहा ।

यज्ञ को बढाया जा सकता है । आप यज्ञ को बढाने के लिए गायत्री मंत्र, विश्वानि देव मंत्र, ईश्वरस्तुति  प्रार्थना, महामृत्युंजय मंत्र  आदि के मंत्रो द्वारा यज्ञ को बढ़ाया जा सकता है ।



MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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