विश्वमन और विश्वबुद्धि
सनातनपुत्र देवीदास विपुल
"खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
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फेस बुक: vipul luckhnavi
“bullet"
जिस प्रकार ईश्वरद्वारा निर्मित मनुष्य, प्राणी आदिको मन एवं बुद्धि होती है,
उसी प्रकार ईश्वरद्वारा निर्मित संपूर्ण विश्वके विश्वमन और विश्वबुद्धि
होते हैं, जिनमें विश्वके सम्बंधमें पूर्णतः विशुद्ध (सत्य)
जानकारी संग्रहित होती है । इसे ईश्वरीय मन तथा बुद्धि भी कहा जा सकता है । जैसे
ही किसीका आध्यात्मिक विकास आरंभ होने लगता है, उसके सूक्ष्म
मन एवं बुद्धि विश्वमन एवं विश्वबुद्धिमें विलीन होने लगते हैं । इसी माध्यमसे व्यक्तिको
ईश्वरकी निर्मितीका ज्ञान पता चलने लगता है ।
मित्र यह आपका स्नेहवश भरम है। मैं कोई गुरु नही हूँ।
हा सनातन का सेवक बनने का प्रयास कर रहा हूँ। यह सब प्रभु कृपा है गुरू महाराज की
दया है कि मुझे सनातन की शक्ति को प्रचारित करने का सौभाग्य मिला।
आप सबका आशीष और सहयोग मिलता रहे। बस यही कामना है।
मित्रो मैं उन सदस्यों को कुछ कहना चाहता हूँ जो दीक्षित
है। खासतौर पर उनको जिनको दीक्षा के पहले कुछ अनुभव हुए थे। वो भी जिनको नही थे और
बाद में भी शांत अनुभव हो रहे है।
आप गुरू की महत्ता नही जानते है। न समझते है। क्योंकि
जिनकी दीक्षा को मैंने देखा वो भी आज न दिखे। जबकि आज गुरू पूर्णिमा है। मित्रो
यूं तो यदि आपका गुरू आपसे भौतिक रूप में दूर है पर वह सदैव आपके साथ हैं। आप
अनुभव कर लेना कभी।
जिनके गुरू कुछ दूरी पर है और आप जा सकते है आपको
जाना चाहिए क्योंकि गुरू का भौतिक आशीष दूर के आशीष से अधिक प्रभावशाली होता है।
नही तो कम से गुरु पूर्णिमा और महा शिव रात्रि को तो जाना ही चाहिए।
आप कोई भी कर्म सनातन संगत नही करते पर आपको अनुभव और
आशीष सब चाहिए।
आप मेरी एक बात गांठ बांध लें आप कुछ भी पर बिना गुरू
श्रध्दा आप सबकुछ पाकर भी खाली हाथ है । आपको ज्ञान ध्यान थोड़ा बहुत मिल सकता है
परंतु परमपद कभी नही।
यह क्या रोना धोना। अरे आना था तो प्लान कर टिकट लेकर
आ नही सकते। पर करना कुछ नही रोना धोना।
अरे गर्मी की छुट्टी इतनी मिलती है। क्या किया। क्या
सोंचा।
कभी भी छुट्टी मिले प्रयास करो। प्लान करो।
करो कुछ नही। इधर उधर भटको यह अनुभव दो वो दो। अरे
गुरू पर श्रदा करो। उसके द्वारा प्रदत्त साधन करो। समय आने पर सब मिल जाता है।
मुझको ही देखते हो। इतने अनुभव होने के बाद भी 25 साल तक सिर्फ गुरू प्रदत्त साधन और
मन्त्र जप चुपचाप करता रहा। तुम लोग तो जरा से अनुभव से पागल होकर बहकने लगते हो।
तुर्रमखां हो जाते हो।
मेरे बारे में कोई नही जानता था जब तक मैं खुद न
बोला।
फिर बकवास। बहुत महान हो सूक्ष्म में मिलोगे। दुनिया
मे ढिढोरा पिटोगे।
जब ट्रेन गाड़ी है तो उसकी बात क्यो नही। हर जगह बकवास
और आधायतम की बखिया उधेड़ोगे।
तुमको हुआ क्या। यह सब पड़ाव है। अनुभव है । अनुभव
सिर्फ एक पड़ाव होते है। इनमे फंसना यानी गाड़ी रुक जाना।
चुपचाप साधन करते रहो। बस।
कही कुछ नही। अपने पिता जी का घर नही। सब मन की
चालबाजियों है।
क्या मुक्ति । बकवास से मोबाइल से मुक्त नही हुए।
जीवन से मुक्ति। महा बकवास है यह सोंच।
रहा सवाल मन्त्रो का। गुरू मन्त्र एक अवस्था के बाद वहां
पहुचाता है कि मन्त्र ज्ञान सब खुद प्रकट होते है। मन्त्र खुद निवेदन करते है। यह
करो यह सिद्दी मिलेगी। वह होगा। पर यह भी बन्धन है।
सिध्दियां ज्ञान और मुक्ति की सबसे बड़ी रुकावटे है।
बिना इनको किसी को दिए आप मुक्त ही नही हो सकते।
अतः सिद्दियों का चक्कर छोड़ो। यह गहन चक्कर बना देगा।
देखा नही सिध्द लोग सैकड़ो साल तक धरती पर सत्वगुणी
भटकाव करते रहते है। चाहे गोरखनाथ हो या महावतार बाबा हो चाहे तमाम सिध्द पुरुष।
आप लोग गूगल पर सर्च करके अपना भौतिक ज्ञान बढ़ाये। विभिन्न
सन्तो की फिल्में भी दी है। वह भी आप देखे। तमाम वेद गीता का किताबी ज्ञान
भी भरा है उसको देखे पढ़े अवलोकन करें।
इससे आपकी तमाम बातें और प्रश्न स्पष्ट होंगे।
हा नकली और गन्दा साहित्य भी है तो आप जरा बच कर ही
रहे।
गूगल गुरू को मेरा कोटिशः प्रणाम।
यदि नही ली है तो तुंरन्त ले। यह आपको क्रिया होती है। शक्तिपात गुरू से
दीक्षा ले। इसे नियंत्रित करना सीखें। अनियंत्रित ऊर्जा प्रायः भारी पड़ जाती है।
मनुष्य की मृत्यु भी हो सकती है। या मनुष्य पागल हो सकता है।
आप तुंरन्त मुझे व्यक्तिगत सन्देश से सम्पर्क करें।
यह प्रणायाम का रूप है। आप mmstm करे फिर बताये। आपको दीर्घ
कुम्भक लग रहा है
जय हो। बेहद सुंदर बात। श्रीराम शर्मा आचार्य तेजस्वी
महापुरुष थे। उनका जन्म गायत्री प्रचार हेतु ही हुआ था। वे गायत्री के दूसरे रूप
ही बन गए थे।
पहले यह बोलते थे कि गायत्री पर सिर्फ ब्राह्मणों का
अधिकार है।
किसी की गुरू आस्था को ठेस लगाना उचित नही।यह गलत है।
क्रोध से विवेक का नाश होता है। जिससे बुद्धी नष्ट हो
जाती है और मनुष्य मतिमूढ़ होकर
मित्रो बाल गीतों की यह पुस्तक, जिसके कुछ गीत तो बेहद अनूठे है।
जिसमे महापुरूषो सन्तो और प्रकृति की कुल 51 कविताएं दी है। आज
छपकर आ गई।
यदि आप इसको प्राप्त करना चाहते है और अपने नौनिहालों
को प्रकृति और देश प्रेम के साथ अच्छे संस्कार देना चाहते है तो इस पुस्तक की
कविताएं बच्चों को याद करवाये।
मेरा दावा है आपका बच्चा विद्यालय में पुरुस्कार तो
अवश्य जीतकर लाएगा।
फ़ॉर कलर चित्रों युक्त इस पुस्तक का मूल्य मात्र 125 रुपये है।
जी इस पुस्तक का आरम्भ आध्यात्मिक ज्ञान से ही हुआ
है। बच्चों को संस्कारी कैसे बनाये। इस पर भी चर्चा है। यह पुस्तक बच्चों में भारतीय
संस्कार, देश प्रेम
और प्रकृति से प्रेम करना सिखाएगा।
जो व्यक्ति प्रकृति से प्रेम नही करता। वह आध्यात्मिक
हो ही नही सकता।
गणेश जी की बाल वंदना देख ले।
श्रीकृष्ण की बाल वंदना।
श्री गुरुवर की बाल प्रार्थना।
माँ सरस्वती की वंदना।
विपश्यना में सांस पर ध्यान लगाते है और अप्रत्यक्ष
रूप में सो अहम का जाप ही करते है। पर लोग मन्त्र जानते नही अनजाने में अजपा जप
करते है
कुछ भी हो यह भारतीय सनातन की जीत और प्रतिष्ठा को
बढ़ाती है।
अपने को देखो। जगत को देखना बन्द करो। इसी में कल्याण
है।
जी
क्रिया आंख खोलकर बिना ध्यान के भी हो सकती है। जिसे गुरू नियंत्रित करना सिखाता
है।
यार
यह तो आप ही सोंच सकते है। मैं कैसे बताऊँ। क्या आप बिना विचार के सब देखते है तो
दृष्टा भाव है।
यह
सबसे अच्छा है। यदि आपकी बुद्धि प्लेन है। उल्टे सीधे षडयंत्रो से मुक्त है। आप
झूठ नही बोलते तो ईश कृपा जल्दी होती है।
कभी
भी बहुत चतुर स्याना व्यक्ति ईश को प्राप्त नही कर सकता। धूर्त और झूठा तो कभी
नही।
लोग
तर्क जीतने के लिए झूठ का सहारा लेते है।
हमेशा
जो ह्रदय है वो ही बाहर रखो।
मन
मे कुछ जीभ पर कुछ है तो कभी प्रभु कृपा न मिलेगी।
गधे
सी बुध्दि ही ईश्वर को प्रिय है। घोड़े या सियार की नही।
प्रयास
करो साथ न दो। मतलब सिर्फ मित्रता रखो।
मतलब
उनके लिए तुम झूठ न बोलो।
देखो
प्राण रक्षा हेतु या धर्म रक्षा हेतु झूठ माफ है
सबकी
बुद्दी सबका ज्ञान। सबका अनुभव एक सा नही होता है।
यह
सही है। कलियुग इसी का नाम है।
दरवाजे
पर भगवान बैठा है। जरा सा द्वार खोलो। पर कोई विश्वास नही करता
यह
प्रतीयमान जगत,विचार के सिवा अन्य कुछ भी नहीं
है। जब मन सभी प्रकार के विचारों से मुक्त हो जाता है, उस
समय व्यक्ति की दृष्टि से यह जगत-प्रपंच भी ओझल हो जाता है, और
मन - निजानन्द या स्वयं के आनंद का भोग करता है।
मित्र।
विज्ञान कभी सोंच को नही रोकता बल्कि संतुष्ट करता है।
मैंने
ग्रुप में पच्चीसों admin बनाये है। जो
अनुशासित हैं।
प्रश्न
पूछने का अधिकार होना ही चाहिए। यह मेरा विचार है।
जो
गलत पोस्ट करे। आप निसंकोच निकाल के बाहर कर दे।
यदि
वह माफी मांगे तो फिर जोड़ दे।
जी
मतलब वह पहले आपको पोस्ट करें। फिर इंतजार करें। यह कौन सी बात। और लोग भी प्रश्न
को जाने।
कोई
कोई प्रश्न जन कल्याण हेतु भी पूछे जाते है।
ग्रुप
में अनिल कुमार इसी लिए प्रश्न पूछता है।
जैसे
कुछ अज्ञानी ज्ञानी ईश को सिर्फ निराकार बता कर दुकान चला रहे है। यदि ताकत होगी
तो आप साकार सिद्ध कर देंगे। मतलब साकार भी निराकार भी।
एक मित्र ने वेद वाणी का उदाहरण देकर आर्य समाज की पूरी सोंच को सीमित कर
दिया।
अब
जो न माने यह उसकी झक्क है।
सनातन में कहा गया है यदि कही आध्यात्मिक विवाद हो तो
वेद वाणी ही अंतिम और मान्य होगी।
यदि आपकी वानी सत्य होगी तो वेद में दी होगी।
यही मैं कहता हूँ। पर जिसका जो अनुभव वह सत्य आप थोप नही
सकते। यह अवस्था है पहली कक्षा का विद्यार्थी उसी को सही मानेगा। आप दसवीं कैसे
समझाएँगे। यदि समझाते है तो यह आपकी मूर्खता है। आप उसको सारे क्लास पढ़ाकर 10 वी तक लाये।
यही करना लोग भूल जाते है। सीधे सीधे 10 वी बात।
बात भटक गई।
आप गलत बात पर ग्रुप से लोगो को निकालेंगे तो लोग समझ
जायेंगे और ग्रुप में बने रहेंगे। मैं किसी को ग्रुप में रुकने हेतु हाथ नही
जोड़ता। जिसका प्रारब्ध है वो ही ज्ञान लेगा। बाकी जिसको जाना हो जाये।
मैं तो ईश का काम मॉनकर कर रहा हूँ। उसकी जो इच्छा।
मेरी कोई इच्छा नही।
मैं कभी अपने महाराज जी के प्रवचनों का प्रचार नही
करता। कारण अधिकतर लोग समझ ही नही पायेगे।
उनको समझने के लिए भी उच्च कोटि का स्तर चाहिए।
एक उदाहरण दे रहा हूँ।
एक प्रश्न था। ग्रुप में देखे कौन समझ पाता है।
क्या मृत्यु भी एक क्रिया है।
समस्या यही है। उनके प्रवचन लोग समझ ही पाते। यही
आपका उत्तर है। वह जहाँ प्रवचन देते थे वह उनके आश्रम के शिष्य होते थे। जिनको
कुण्डलनी जागरण और आत्ममय अनुभव थे। तो वह समझ जाते थे। मतलब महाराज जी सभी पोस्ट
ग्रेजुएट क्षात्रों को ही प्रवचन देते थे। अब जो d.sc. होगा वह गली कूंचों में तो प्रवचन देगा तो बेकार जाएगा।
सर मेरे ब्लॉग पर मेरी स्वकथा 13 भागो में लिखी है। आप पढ़ने का कष्ट
करें। बार बार बोलना या लिखना अजीब है। यह आत्मश्लाघा होगी।
चलिए। ग्रुप की टेस्टिंग है। उत्तर है मृत्यु भी एक
क्रिया है। पर आप ज्ञानीजन बताये क्यो।
योग सिखाया या योगासन सिखाया।
योग आंतरिक होता है। अनुभव होता है। वह तो कोई समर्थ
गुरू ही सिखा सकता है।
मात्र प्रणायाम या आसन योग नही। पातञ्जलि के अष्टांग
योग के आठ अंगों में से मात्र दो अंग।
सर। यह आपकी व्याख्या है। पर क्रिया योग में बताये।
आप रेकी के सुपर मास्टर है। पर शक्तिपात दीक्षित भी
है। कुछ और सोंचे।
नही यार 100 में 35 नम्बर। वो भी partiality
में। क्योकि मैं तुम्हे विशेष प्रेम करता हूँ।
अब देखो। महाराज जी का एक वाक्य समझ से परे जा रहा
है।
मतलब महाराज जी की गहराई कौन नाप सकता है।
हाथ ऊपर।
पहले बताओ क्रिया क्यो होती है।
जोर दो क्रिया क्यो होती है। इसी में उत्तर छिपा है।
संस्कार न हो तो क्या होगा। यह क्लू है।
सही है। मतलब जीवन नही। जब जीवन नही तो मृत्यु नही।
तो मृत्यु क्या है। जब तक संस्कार है। जीवन मरण के
चक्कर लगते रहेगे।
मृत्यु रूपी अंतिम क्रिया होती रहेगी।
जब संस्कार नष्ट। पातञ्जलि के अनुसार चित्त में कोई
वृति नही। मतलब जन्म नही।
अब समझे। यह था मात्र एक वाक्य महाराज जी का सब उल्टे
हो गए।
भाई आप उम्र में छोटे पर ज्ञान में बड़े है।
आपको नमन।
चलो कोई तो है जो ध्यान से मेरी बकवास सुनता है।
मोगैम्बो खुश हुआ।
यार बस फेल हो गए। अब योग मत पढ़ाओ।
यार मस्त रहो। व्यस्त रहो।
अस्त व्यस्त मत रहो।
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"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की
वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस
पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको
प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता
है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के
लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास
विपुल खोजी
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