सहनशीलता, ईश और प्राप्ति: कुछ उत्तर
सनातनपुत्र देवीदास विपुल
"खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
वेब: vipkavi.info वेब चैनल: vipkavi
फेस बुक: vipul luckhnavi
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चार्वाक ने ईश न माना पर उनको भी ऋषि का दर्जा मिला।
बुध्द ने ईश न माना उनको तो विष्णु का अवतार बताया। यह है सनातन की सहनशीलता और ज्ञान
जिसका हमे पता ही नही।
हम अंधविश्वास और पोंगा पंथी को सनातन समझते है यह
हमारी मूर्खता है।
चार्वाक ने बुध्द ने जो कहा कर के दिखाया। इस गधे की
तरह नही हिन्दुओ का मजाक बनाया और मुस्लिम के अंधविश्वास को सर झुकाया। यह सिर्फ
राजनीतिज्ञ है और धर्म का ज्ञान नही धोखे से नपुंसक होने के बाद सन्यासी का गलत
चोंगा पहन लिया।
दुखद तो यह है हमको खुद न सनातन पता न जैनिज़्म पता न
हिंदुत्व और न बुद्धत्व पता।
सिर्फ सुनी सुनाई बातो पर। बकवास की किताबो को पढ़कर
ज्ञानी हो जाते है और बन जाते है आस्तिक नास्तिक।
ऐसा करो तुम mmstm कर लो गायत्री से
फिर अपने अनुभव बताओ। वैसे तुमको समर्थ गुरू की दीक्षा की आवश्यकता है। यह अनुभव
सही है।
वह सर्व व्यापी है। हमारे भीतर और बाहर दोनो जगह।
अपने भीतर महसूस होने पर ही वह बाहर भी दिखाई देता है फिर धीरे धीरे परिपक्वता आने
पर वह हर प्राणी और वस्तु में दिखने लगता है।
सबसे सस्ता सुंदर टिकाऊ है आपको जो देव अच्छा लगे। जो
इष्ट देव हो उसका सतत निरन्तर अखण्ड मन्त्र जप करे। यदि बीज मंत्र हो तो बेहतर।
यह ही मन्त्र आपको सब कुछ प्रदान कर देगा। गुरू से
योग तक।
नही तो mmstm करो कुछ दिनों में ही
ईश अनुभूति कर लो। क्यो नय्यर जी।
इस लिंक पर mmstm or सचल मन वैज्ञानिक
ध्यान विधियां देख ले।
मित्रो आप दोनों को बुरा न माने अभी बहुत कुछ जानना
है। व्यर्थ विवाद कर रहे है। दोनो सही है दोनो गलत भी है।
तुलसीदास मीरा नानक का कौन सा चक्र जग था और वे कौन
सा प्रणायाम करते थे।
वही कबीर कुण्डलनी के ज्ञाता कैसे बन गए।
पहले आप योग का दर्शन मतलब और क्या है यह जानने का
प्रयास करे। अनुभव ले। सब समझ आ जायेगा।
आप लो कृपया लिंक के लेख देख ले। दोनो के प्रश्नों के
उत्तर मिल जायेंगे।
मैं सब प्रश्नों के संभावित उत्तर दे सकता हूँ। पर अब
पकता है।
तुलसी नानक मीरा
ईश प्राप्ति करनी है कि सिद्दियों के मार्ग प्राप्त
करने है।
ईश प्राप्ति योग है। जिसके लिए कोई नियम नही। और सारे
नियम चाहिए।
सबसे सस्ता सुंदर टिकाऊ है भक्ति योग भक्ति मार्ग जो
नाम जप ही है। समर्पण है सतत स्मरण है।
हे महाज्ञानियों आपको ज्ञान हेतु नमन। पर आप सब यह
क्यो सोचते है कि सिर्फ आपके मार्ग और अनुभव ही सही है और सबको वही होते है।
बस यही पर आप गलत है।
मुख्य उद्देश्य है ईश की प्राप्ति। अतः सबके
अनुभवसिर्फ उसके लिए सही हो सकते है। कुछ अधिक जानकर या न जानकर कौन सा तीर मार
लिया जाता है। अतः विवाद व्यर्थ है।
देखिये
आपका चिन्ह बता रहा है आप सीरियस नही है। आप कम से कम इस ग्रुप को मजाक में न ले
और न बनाये। यह न कॉमेडियन ग्रुप और न बाजरू ज्ञान का ग्रुप हर व्यक्ति अपने अपने
अनुभव लिखता है तो आपसी चर्चा करने में कोई समस्या या मतभेद न समझे।
सबका
उद्देश्य अपने अनुबव बता के दूसरो की आध्यात्मिक समस्यायों को हल करना है। प्रश्न करने का एक
ढंग होता है।
आशा
है आप भविष्य में ध्यान देंगे।
देखिये
जो मनुष्य ऋषि मुनि जिस मार्ग से अंतर्मुखी और जिस देव का अनुभव किया। साकार या
निराकार की यात्रा की। उसने यही कहा कि यह मार्ग सर्वश्रेष्ठ है। यही अंतर्मुखी
होने का एकमात्र मार्ग है। बस इसी पर चलो। बस इसी को करो।
मेरी
निगाह में जिसने यह सब कहा चाहे हो लाख सिद्दियों वाला परम् ज्ञानी हो , जगत में पूजा जाता है। पर
वह अपूर्ण ही है। क्योंकि भगवान श्री कृष्ण ने कहा और कुछ हद तक मेरे भी अनुभव है
कि जो मनुष्य जीज रूप में उसे भजता है ईश उसी रूप में प्राप्त होता है।
परंतु जिस प्रकार पी एच डी अंतिम डिग्री है उसी प्रकार ईश का अंतिम
रूप निराकार निर्गुण ही है पर अन्य रूप भी है। निराकार तो हम का अंतिम वास्तविक
रूप है। इसी में समाना मोक्ष है। पर इसका मतलब यह नही की बाकी डिग्री गलत। वो भी
सही है।
बुध्द
ने साकार मूर्ति पूजा यहाँ तक ईश को भी न माना। मेरी निगाह में वे अपूर्ण
महाज्ञानी थे।
जेसस
निराकार किंतु उनके माननेवाले जेसस के रूप में साकार । पर ये ही एक मार्ग यह गलत
है। कुछ इसी प्रकार मोहम्मद साहब। बस यही सही और मार दो यह तो पूरा अज्ञानियोवाला
ज्ञान।
जैसे
नैय्यर साहब ने रेकी की अंतिम डिग्री की है और यदि वे ऊर्जा स्तर की बात कहते है
तथा ध्यान से जोड़ते है तो वे गलत नही कहते। यह उनका अनुभव है। बाकी लोग जो नही
जानते वे तर्क कैसे कर सकते है। परमेशवर जी प्राणायाम के गायत्री के पुरोधा। तो
उनके अनुभव उस क्षेत्र के सही। परन्तु यह कहना दोनो कि ऐसा अन्य नही हो सकता यह
गलत है।
मेरा
मत है पहले अनुभव करो। सबके अनुभव अलग अलग हो सकते है पर लक्ष्य एक ही है। अतः
किसी को पूर्वाग्रहीत मत करो। दोसरे की कुर्सी पर बैठो तब जान पाओगे।
प्रणायाम का अर्थ है प्राण धन आयाम। अर्थात प्राण को
विभिन्न आयामो में ले जाना।
अब कैसे । प्राण का अर्थ है यहां पर वायु या श्वास
से। यानी प्राण प्रथम संचालित होते है श्वास से यानी प्राण वायु। हमारे मनीषयो ने
प्राण वायु कम से कम पांच तो बताई है। वैसे यह शायद दस होती है।
इन प्राणवायू को जब शरीर के विभिन्न अंगों में हिस्सो
में ठीक तरीके से प्रवाहित करते है तो शरीर पूर्णतया स्वस्थ्य हो जाता है निरोगी
हो जाता है। यह बात पूरी सही है।
किंतु प्रारब्धवश जो रोग होते है जो ह्माते भोग है वे
ठीक नही हो सकते। वह कष्ट तो हमे भोगना ही पड़ेगा।
हमारे आचार विचार कर्म के जो भौतिक शारीरिक कष्ट है
वे ठीक होंगे पर दैवीय नही।
अब सीधी बात यदी शरीर मे कष्ट है या प्राणवायु
अवरूध्द है तो प्राण के ऊपर के आत्ममय कोष में कैसे जा पाओगे। इन्ही कष्टो के कारण
हमारी ऊर्जा कम हो जाती है क्योंकि कुछ ऊर्जा इन कष्ट से लड़ने में नष्ट हो जाती
है। मतलब पेडल खराब तो साइकिल तेज कैसे चले। इसी ऊर्जा को रेकी उस्ताद नैय्यर ने
नापा और व्याख्या की।
वही परमेश्वर जी ने प्राणायाम के द्वारा स्वस्थ्य
शरीर देखा शायद रोगी शरीर नही अतः उन्होंने ने प्राणायाम के अनुभव और परिणाम लिखे।
मेरा खुद मानना है जब तक प्राणवायु सही नही चलेगी आप
शरीर के बाहर की सिद्दियों को नही प्राप्त कर सकते। अब मुझे तो इनमे पड़ना नही अतः
मुझे चिंता नही।
रहा सवाल अंशुमन का तो अंशुमन को गुरू प्रदत्त साधन
से उसके पूर्व संस्कारो की शीशी का ढक्कन खुल गया अतः उसको क्रिया रूप में नए नए
आसनों के प्राणायाम के अनुभव हो रहे है। ये सारे अनुभव धीरे धीरे समाप्त हो
जायेगे। फिर कोई दूसरे आएंगे। अतः यह कहना कि यह होता है यह बात पूरी गलत।
रही बात मेरी तो मैं एक ही बात जानता हूँ। आप को यदि
मन करे कम से कम तो एक बार mmstm कर ले। फिर
अपना मनचाहा इष्ट देव का मन्त्र जप निरन्तर अखण्ड सतत आरम्भ करे। यही मन्त्र पकने
पर आपको आपके गुरू से लेकर ईश तक , भोग से योग तक ले जाएगा।
जय श्री कृष्ण।
मैंने प्रणायाम को गलत किधर कहा। मैंने तो उसका
समर्थन किया। किंतु यह कहना कि यही एक मार्ग है यह गलत है। कृपया टिप्पणी
फिर से पढ़े।
यदि कोई बैठ न सके। या किन्ही कारणों से रोग ग्रस्त
हो तो वो कौन सा प्रणायाम कर पायेगा।
आपके दावे से मैं सहमत नही। मन को क्रिया हीन बनाना
यह हमारे हाथ मे नही। वास्तविक समझ तब आती है यबा कुण्डलनी जागृत होकर ऊपर उठती है
और फिर स्वतः क्रिया होती है। बुद्दी के ताले भी तब ही खुलते है। साथ मे आत्म गुरू
जागृत हो तो सोनो में सुहागा।
मित्र मैं आपकी बात का खंडन नही करता। आपकी बेहद
इज्जत करता हूँ। पर मेरा मत यही है। ईश तक जाने के अनिको मार्ग है। आवश्यक नही हम सब
जाने।
अतः हम दावा नही कर सकते।
नीरज जी ने देहदान किया है। उनका शरीर
अग्नि के हवाले नहीं किया जाएगा बल्कि चिकित्सा विज्ञान पढ़नेवाले
विद्यार्थियों के काम आएगा।साहित्यकारों में मुझे विष्णु प्रभाकर और आलोक
भट्टाचार्य के अलावा कोई नाम याद नहीं आता जिसने देहदान किया हो।
आप मेरी जानकारी में इजाफा कर सकते हैं !
वरुण जी आप ग्रुप की महत्ता समझ नही पा रहे है।
किताबी ज्ञान असीमित जी ग्रुप बहक जाएगा। आपके जरा सी पोस्ट जो उधार की है उस कोई
जलन नही करेगा बल्कि हंसेगा।
वरूण जी आप शब्दो का अतिक्रमण कर अपनी बात को और
पोस्ट को उचित ठहरा रहे है जो गलत है। आपको कुण्डलनी शक्ति के किंतने अनुभव है।
आपका क्रिया का अनुभव सीमित है। लाखो तरह के अनुभव हो
सकते है।
यह आपका दिव्य अनुभव था। क्या सिर के मध्य सेकुछ
टपकता हुआ प्रतीत होता था।
यदि हाँ तो यह रामरस है।
वरुण जी अनुभव लिखे। बाकी कहानी नही।
फिर यह रामरस नही कहा जा सकता कोई अन्य ग्रंथी खुली होगी।
मुझे लगता है आज्ञा चक्र के ऊपरवाली ग्रंथी हो सकती है।
सुंदर अति सुंदर। अपने अनुभव बताये। और क्या करते है
यह बताये ताकि अन्य लोगो को प्रेरणा हो।
नही यह नही होता है। इनको आणिमाई सिध्दियां कहते है
जो अचानक हाथ लग जाती है।
आपकी बात उस हालत में सही होगी जब वह कुछ अन्य अनुभव जैसे
दूर दृष्टि, अन्य मानसिक अध्ययन, पूर्व घटना अहसास न हो सिर्फ नशा हो।
आपके स्वप्न अनुभव का स्वागत है।
यह आपकी स्वप्न क्रिया है। जब मनुष्य दिन में ध्यान न
करे या कम करे तो शक्ति स्वप्न में आवेग देती है और शक्ति का अनुभव देती है। यही
आपको हुआ है।
चूंकि आप ग्रुप में उनका नाम सुन चुकी है अतः वह भी
सुप्तावस्था में सामने आया।
आप क्या करती है। मतलब पूजा पाठ में।
शायद आपको कुछ मन्त्र मैंने करने को बोला था। क्या वह
आप कर रही है।
अली भाई यह सब पोस्ट न करे। सम्भव हो तो डिलीट करे।
सबका।
अली और अकबर नाम जपते जपते सिध्द हो चुके है। यह एक
प्रकार से मन्त्र तो नही पर सिध्द नाम जप है।
आप व्यर्थ न विवाद में उलझे। आपका स्वप्न मैंने बता
दिया है।
क्या आप मेरे द्वारा बोला गया मन्त्र कर रही है।
कोई बात नही। वे सिध्द पुरूष है। अपने गुरू का मन्त्र
जप करते रहे। उनपर विश्वास कर। बहके नही। अनुभव लिखे आपको उत्तर मिल जाएगा।
आप मन्त्र जप कम कर रही है।
क्या गुरू जी उत्तर नही दे रहै है पहले आप अपने गुरू
से पूछे।
देखिये पहले अपने गुरू से बात करे। इस तरह गुरू बदले
नही जाते है।
देखिये पहले गुरू को भी वोही सममान मिलना चाहिए। जो
आप नही दे रही है। आपने अपने गुरू महाराज का नाम श्रध्दा और इज्जत से नही लिखा है।
यह गलत है
बिल्कुल आपने उनके नाम के आगे स्वामी नही लगाया वह
सन्यासी है और न पीछे महाराज लगाया क्यो।
देखिये गुरू को ईश ही समझना चाहिये
मेरे लिए एक सन्यासी पर आपके लिए भगवान।
देखो बहन सन्यासी और ब्रह्मचारी दोनो सम्मान के पात्र
होते है। भले ही वे कुछ हो पर सम्मान करना तो हमारे अधिकार है।
वे सत्य की शोध में और सनातन के प्रचार में जन कल्याण
हेतु कार्य करते है। वह बात अलग है आज ठग अधिक है तो जब तक हम न जाने वे साहूकार
ही है। जैसे आसाराम के शिष्यों हेतु वे गुरू तत्व है शरीर नही अतः पूजनीय है उनके
लिए। पर जो नही है वे अपमान करते है।
आप सही थी।
अब आप अपने गुरू पर श्रद्धा करे और उनको ही समर्पित
हो।
मेरी शुभकामनाये।
गुरू से मिलने भी जाया करे।
अली भाई आप सही है पर कुरान पर सही विवेचना आज तक नही
हुई है । आरम्भ में प्रेम प्यार मोहब्बत बाद में बिल्कुल उल्टा यह समझ मे नही आता।
मित्रो एक बात याद रखे। जिस प्रकार से एक ही दवा हर
रोग के लिए नही होती है उसी प्रकार हर व्यक्ति के लिए एक ही मन्त्र या एक ही तरीका
नही होता है।
इस ग्रुप के एक सदस्य पहले शिव जाप करते थे। फिर
गायत्री परिवार में गए गायत्री जाप किया कुछ साल। फिर आर्ट ऑफ लिविंग में गए। फिर
संगम की किसी गायत्री संस्था में गए जिन्होंने गायत्री के साथ ध्यान करवाया दो
साल।
फिर वह मेरे घर आये और अपनी कहानी बताई। मैंने उन्हें
mmstm को शिव मन्त्र के साथ करने को
कहा। पहले दिन से अनुभव चालू। कुछ तो उनके इतने भीषण अनुभव हो गए जो मैं बयान नही
कर सकता। बस इतना समझे जीवन और मृत्यु तक।
अब उनकी शक्तिपात दीक्षा दिलवाने की मैं सोंच रहा
हूँ।
मैंने गायत्री उपासना अलग से नही की किंतु मैं किसी
अन्य गायत्री उपासक से कम भक्त नही।
मैंने शिव की अलग आराधना नही की पर शिव भक्त भी हूँ।
जबकि मैं मा दुर्गा को बचपन से मानता हूँ पर वोही
कृपा कर कृष्ण के माध्यम से निराकार तक पहुँचा गई।
यह मैं अहंकार रहित होकर सिर्फ समझाने के लिए लिख रहा
हूँ।
मेरा अर्थ है जो आपके इष्ट है कुल देवता है आप उसको
ही पूजे तो बेहतर होगा। क्योंकि वह आपके लिए सिध्द सा हो जाता है।
बस एक बात याद रखे कि आप उसको सतत निरन्तर स्मरण करे
और समर्पित हो।
मेरे लिए सब समर्थ गुरू पूज्यनीय। सब मन्तर एक समान
और सब नाम एक से है।
मैं अली या अल्लह का भी जाप करूँ तो मुझे समान फल ही
मिलेगा।
ओह गाड बोलू तो भी माँ काली का निराकार रूप ही होगा।
कहने का अर्थ यह है। भटको मत। सुनो सबकी पर कुछ करो
और करते रहो। ज्ञान लेलो बहको मत।
मित्र यह चर्चा का विषय है आपकी बातों पर लम्बा लिखना
पड़ेगा। समय मिला तो अवश्य लिखूंगा। वास्तव में यह सब एक वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक
परिवर्तन है जो समय के सात विकसित होता गया।
जिस प्रकार ईश का अंतिम रूप, हमारा आपका अंतिम रूप निराकार सुप्त ऊर्जा ही है पर अभी हम अलग अलग।
उसी प्रकार यह सब पध्दतियां और मार्ग एक ही गन्तव्य
की ओर जाते है। सब उसी ब्रम्ह का विस्तारित रूप है
यही तो गीता कहती है है अर्जुन मुझे जो जिस रूप में
भजता है मैं उसको उसी रूप में प्राप्त होता हूँ।
सही है यही क्रिया योग कहलाता है। यह तरीका चूंकी
सांसो की गति के साथ होता है अतः मुझे लगता है यह भी अच्छा तरीका है। इसी के साथ यदि
विपश्यना का तड़का लगा दे और विभिन्न चको पर ध्यान का छौंक लगा ले तो यह जल्दी फलित
हो सकता है।
देखो मित्र तुम साधन कम बाते ज्यादा करते हो। साकार
निराकार सब एक ही मानो। बस निराकार से वापिसी नही साकार से वापिसी। पर इन चक्करों
में मत पड़ो। ईश अपने अपने कर्म के अनुसार हमे अनुभव कराता है अतः न कुछ सही न कुछ गलत
है। बस अपने ही मार्ग को सही ठहरा कर अपनी दुकानदारी रूपी बात करना मेरी निगाह में
मूर्खता है अज्ञानता है।
आप सवर्प्रथम लिंक पर जाए लेख पढ़ें। ताकि आपको आपके
सम्भावित प्रश्नों के उत्तर मिल जाये।
यदि ईश की अनुभूति करनी है तो mmstm कर ले अपनी पसंद का।
मैं न गुरू हूँ न बाबा। एक खोजी हूँ जो सनातन की
महत्ता को प्रत्यक्ष अनुभवित कराने हेतु प्रयासरत रहता हूँ। सनातन का प्रचार ही
मेरा उद्देश्य।
गीता ही जीवन का उद्देश्य। वेद ही वाणी है। अनुभव ही
श्रेष्ठतम ज्ञान है।
मित्रो कुछ सदस्यों को यह शिकायत है कि इस ग्रुप में मोनोपोली
चलती है। कुछ फोटो पोस्ट करने पर सीधे निकाल देते है। जबरदस्ती अपनी बात ही मनवाते
है। इत्यादि।
क्या ऐसा है। उत्तर दे।
मैं समझता हूँ कि ग्रुप चलाने हेतु कुछ उद्देश्य होना
चाहिए जिसके लिए नियम तो कड़े होने ही चाहिए। क्योकि यदि इधर उधर की पोस्ट की
अनुमति हुई तो आप किसको रोकेंगे। कट पेस्ट तो गूगल गुरू के पास भरा हुआ है। 200 सदस्य यदि केवल एक अनावश्यक पोस्ट डाले तो ग्रुप का क्या हाल होगा।
इस ग्रुप का एडमिन और प्रोमोटर होने के नाते मेरा कुछ
उद्देश्य है कि अनुभवित लोगो को मार्ग दर्शन ताकि भरम न हो। कुछ बातो के उत्तर
गूगल गुरु भी नही दे पाता उनको समझाने प्रयास करता हूँ।
सबको बराबर सममान देता हूँ। पर यदि किसी को ऐसा लगता
है तो वह छोड़ कर जा सकता है। ग्रुप में नियम तो ढीले न होंगे।
देखिये आप ॐ का जाप तुंरन्त बन्द कर दे। आप श्री
विष्णु का मन्त्र करे। आप ॐ की शक्ति को नही जानते आप उसे उठा नही पा रहे है।
दूसरे आपका खाना पीना नियंत्रित करे। यदि मांसाहार और
शराब नशा इत्यादि प्रयोग करते हो तो कुछ दिनों के लिए बन्द कर दे।
इस ग्रुप में नए सदस्यों का स्वागत है। ग्रुप में
मात्र आध्यात्मिक अनुभव से सम्बंधित पोस्ट की अनुमति है। जिग्यासाओ का स्वागत है।
कट पेस्ट गुड मॉनिग इवनिग जैसी पोस्ट या फोटो की अनुमति नही है। सिर्फ और सिर्फ
अनुभव ।
मित्रो रात के 2 बजे के बाद भी जो
पोस्ट करेगा। और सोंचेगा की सर दर्द न हो तो वह दूसरों को तो कर ही देगा। साथ ही
यह सोंचना सामने खाली है और सिर्फ उसी के लिए बैठा है। यह कितना बचकाना व्यवहार
है।
मित्रो साकार से निराकार ही आपको पूर्ण ज्ञान दे
पाएगा। यह मैंने कई बार जिक्र किया है। क्या गुरु है आपके।
मित्रो मैं एक बात सभी सदस्यों से स्पष्ट कहना चाहता हूँ।
अक्सर लोग कुछ समस्या रखते है तब मैं समाधान बताता हूँ। पर कुछ लोग उन उपचारों को
न कर अपनी मनमानी ही करते रहते है।
फिर जब तकलीफ होती है तो फिर मुझे परेशान ही करते है।
देखिये या तो आप उपचार को माने नही तो यदि किसी
प्रकार के ब्रेन हैमरेज, आघात इत्यादि, अनावश्यक
सिर दर्द इत्यादि हुआ तो इस ग्रुप को दोष न दे।
कुछ सदस्य जो अभी बाहर हैं। अपनी मनमानी करते रहे। जब
उपचार न हुआ तो ग्रुप को बदनाम करने में लग गए।
देखिये यहाँ कोई किसी से न तो कुछ पैसा ले रहा है और
न कोई भेंट। अतः इस तरह का व्यवहार उचित नहीं।
अब आगे से चेतावनी कि यदि ने फिर ऐसा किया तो उसको
शक्ति अवश्य दण्डित करेगी।
यदि आपके मन्त्र में हं शब्द की अधिकता है तो आप
शीघ्र ही हल्का महसूस कर सकते है।
गुरू नाम लेकर ही कुछ करो। अपनी तरफ से कुछ न करो। जब
समय आएगा तो सब हो जाएगा।
यह श्लोक मनुष्य की बुद्धि को सम्बोधित करते है। किसी
पद पोस्ट को नही।
यहाँ अंतर्मुखी व्यक्ति जो जान चुके है कि मैं शरीर
नही आत्म स्वरूप हूँ। उसकी आत्मा यानी ज्ञान गुरु समझाते हुए कहता है । हे बुध्दि तू हंस रूप है। क्योंकि तू ही सही गलत की पहचान करती है
जिस प्रकार हंस दूध से पानी अलग करता है। तू सूक्ष्म से सूक्ष्म दोष को भी पहिचान
लेती है। है बुद्धि यदी तू आलस्य से घिर जाएगी तो मुझको सदमार्ग कौन सा है यह कैसे
मालूम पड़ेगा।
हे गुरु महाराज।
आज गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व के उपलक्ष्य में हम
आपके प्रति हमारा आभार व्यक्त करते हुए आपको कोटि कोटि नमन करते हैं।
हमारे द्वारा वाणी से, नेत्रों से, विचारो से, शरीर
से और कार्यो से यदि किसी को भी जाने अनजाने में कोई कष्ट पहुंचा हो तो हम हृदय से
क्षमा प्रार्थी हैं और स्वयं को क्षमा करने का निवेदन करते हैं।
गुरु पूर्णिमा पर आप सब गुरुओ को, जिनके कारण सनातन की ज्योति जल रही है और आनेवाले समय में सम्पूर्ण विश्व
को बारम्बार प्रकाशित करती रहेगी। शिव रुपी परमतत्व को अनेकों कोटि कोटि नमन। आभार
आपका कि आपने मुझ पापी पर भी अनुग्रह किया माँ काली के
रूप में आप प्रथम गुरू बनी। स्वामी नित्यबोधानन्द तीर्थ जी महाराज के द्वारा
परमगुरु स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज की धारा मुझमे प्रवाहित हुई।
हे गुरु आपका यह ऋण कभी भी न चुकता हो सकता है और न
मैं चेष्टा कर सकता हूँ। क्योकि मुझमें सामर्थ्य नहीं कि मैं इसे चुकता कर सकूं।
आप गुरुओ का आशीर्वाद निरन्तर बना रहे। यही इस देवीदास
विपुल की प्रार्थना है।
आमेंन।
ब्लाग
: https://freedhyan.blogspot.com/
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की
वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस
पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको
प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता
है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के
लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास
विपुल खोजी
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