कैसी हो सफल हवन
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
मित्र अक्सर लोग शिकायत करते रहते हैं कि इतना सब करने के बाद इतना सारा घी खर्च करने के बाद कपूर के बाद में भी हवन में ज्वाला नहीं पैदा होती है। और हवन सफल नहीं है ऐसा लगता है जिसके कारण मन में शंका और आशंका दोनों पैदा होते हैं।
जैसा कि हम सभी जानते हैं अग्नि के द्वारा ही देवताओं को अर्ध्य या हविष्य दिया जाता है और हवन द्वारा ही उनकी पुष्टि भी होती है!
अत: हवन का सही होना बहुत आवश्यक है।
इसके लिए कुछ बातों पर आप विचार करेंगे ध्यान देंगे तो बहुत ही सुंदर तरीके से यज्ञ संपन्न हो पाएगा।
पहले कुछ भौतिक बातें याद रखिए:
सबसे पहले आप जिस पात्र में हवन करना चाहते हैं वो थोड़ा चौड़ा हो जिससे कि हवा आसानी से जा सके और धुआं निकल सके।
यदि कुछ नहीं है तो लोहे की कढ़ाई में या लोहे की थाली में इसको किया जा सकता है।
उसमें जो आप समिधा डालते हैं उसको सबसे पहले आप कपड़े से साफ कर लें। और थोड़ा बहुत घी उसमें लगा दें।
हवन की सामग्री इस प्रकार डालें कि वह मुख्य ज्वाला को बाधित न करें।
अग्नि प्रज्वलन हेतु आप रुई का दीपक बनाकर उसको केंद्र में रखें क्योंकि दीपक अधिक समय तक चलता है और आपके हवन के दौरान डाले गए घी से उसकी अग्नि प्रज्वलित रहती है।
यदि आप की ज्वाला सही है तो आप पानीवाला भी नारियल डाल कर उस को भस्म कर सकते हैं।
कुछ आध्यात्मिक बातों पर भी ध्यान देने से ज्वाला सही निकलती है।
जिस पात्र में आप हवन कर रहे हैं सबसे पहले उसमें उस पात्र का पूजन करें मतलब बीच में स्वास्तिक बनाएं और उस पर रोली और अक्षत लगाकर हाथ जोड़कर प्रणाम करें।
रूई की बाती को हवन कुंड में रखते समय आप अग्नि का बीज मंत्र पढ़ते रहे।
इसके पश्चात आप पहले 👉 अग्नि का बीज मंत्र 👈 पढ़ते नमन करें प्रार्थना करें और घी की सात आहुती लकड़ी पर डालें।
फिर गणेश जी के नाम पर और गुरु के नाम पर क्रमशः सात आहुति दे।
फिर अपने इष्ट मंत्र का जाप करते हुए भी इतनी ही आहुती दें।
इसके पश्चात आप हवन सामग्री की आहुति इन सभी को समर्पित करें।
इसके बाद आपको जिस मंत्र का हवन करना हो वह कर सकते हैं।
जब कभी आप बीच में लगे अग्नि शांत होने जा रही है तो कपूर का एक छोटा सा टुकड़ा अग्नि बीज मन्त्र के साथ आहुति दे दे।
आप देखेंगे मुश्किल से आपका तीन-चार चम्मच घी लगेगा और आप की ज्वाला है 1 से लेकर के 2 फीट ऊंची तक उठने लगेगी।
आपकी प्रार्थना बहुत काम करती है इसलिए अपने इष्ट को निरंतर माफी मांगते हुए क्षमा मांगते हुए अपनी साधारण बोलचाल में प्रार्थना करते रहे जैसे कि किसी से बात कर रहे हो।
जय गुरुदेव जय महाकाली
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