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स्तुतिकार मां चरण वंदनकार: सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
जय महिषासुरमर्दिनी, जय महिषासुरमर्दिनी॥
सकल विश्व रूप मनोहर, कालरूप भक्षिणी॥
जय महिषासुरमर्दिनी॥
सगुण रूप सब हैं तेरे, निर्गुण रूप धरे।
द्वैताद्वैत विकारहीन, सृष्टि और यक्षिणी॥
जय महिषासुरमर्दिनी॥
सब सृष्टि का तेज तुम्ही, अन्य न तेज धरे।
जन्मा अजन्मा सभी तेरा, मनवांक्षित करणी।
जय महिषासुरमर्दिनी॥
तुम ही शिव काली बनकर, दुष्ट विनाश करे।
मां शारदे ज्ञानदायिनी, बुद्धि शुद्धि करणी।
जय महिषासुरमर्दिनी॥
दैत्य अनेकों मारे तुमने, देवन लाज धरे।
भक्तों की रक्षा हेतु रूपधर, नाम भक्तरक्षणी।
जय महिषासुरमर्दिनी॥
आदि सृष्टि और अंत तू ही, शून्य अनंत तू ही।
नंत अनंत संत प्रनंत, कल मल सब हरिणी॥
जय महिषासुरमर्दिनी॥
तुम राजों को देती रहती, दु:ख दरिद्र करे।
दश विद्या सब तुझ से, पाप नाश करिणी॥
जय महिषासुरमर्दिनी॥
अरि मर्दन को आतुर क्रोध का भाव भरे।
पर भक्तों की रक्षा करती, कृपा दृष्टि वरणी॥
जय महिषासुरमर्दिनी॥
तेरा उपासक निर्भय होकर सिंह समान चरे।
तेरा आश्रय महा निराला, सर्व अनिष्ट हरणी॥
जय महिषासुरमर्दिनी॥
शिव विष्णु ब्रह्मा से पूजित, देवन मुकुट घिसे।
तुम ही सर्व वंदित हो माता, वंदन वृंद करणी॥
जय महिषासुरमर्दिनी॥
तेरी महिमा कोई न जाने, तू जाने सबको।
विश्व सुंदरी तू जगमाता, रूप सकल धरिणी॥
जय महिषासुरमर्दिनी॥
मातृ रूप बनकर माता, जग को तू जनमें।
भार्या पत्नि रूप को धारा, सेवा सभी करणी॥
जय महिषासुरमर्दिनी॥
पुत्री रूप जग में लेती, तब ही सृष्टि चले।
कर संहार क्षुधा तू बनकर, मोहित जग करिणी॥
जय महिषासुरमर्दिनी॥
ऋषि मार्कंडेय लीला जानी, स्तुति तब कीन्ही।
आदि शंकर न तुझे माने, शक्तिहीन करिणी॥
जय महिषासुरमर्दिनी॥
सकल जगत चरणों में तेरे, शीश झुकाय खड़ा ।
अब करो रक्षा भक्तिभाव जो, द्वार पड़े शरणी॥
जय महिषासुरमर्दिनी॥
महिषासुरमर्दिनी आरती जो जन भी गावै।
दास विपुल ये लिखता, पूर्ण मनोरथ करिणी॥
जय महिषासुरमर्दिनी॥
जय गुरूदेव जय महाकाली।
🙇🙏🙏🙇
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