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Monday, June 25, 2018

भाग- 11 एक वैज्ञानिक के विज्ञान और आध्यात्म पर अविश्वसनिय अनुभवों की स्वकथा




एक वैज्ञानिक के विज्ञान और आध्यात्म पर अविश्वसनिय अनुभवों की स्वकथा भाग- 11   

सनातनपुत्र देवीदास विपुल"खोजी"




आपने भाग 1 से 10 में पढा किस प्रकार मां काली ने दर्शन देकर और सीने पर लात मारकर दीक्षा दे दी। जिसके बाद मैं रोज मरता रहा जीता रहा पर पाठ और जाप बंद न किया। मुरारी बापू ने भी हाथ जोडकर मुझे संभालने से इंकार कर दिया। बाद में एक तांत्रिक ने मुझे अपना चेला बनाने के चक्कर में कितने तंत्र किये पर बेइज्जत होकर भागा। अब यह सिद्द हो गया था कि कोई तंत्र शक्ति मेरा अहित तो नहीं कर सकती हैं। सब मां काली की देन थी। भटकते भटकते मैं स्वप्न और ध्यान के माध्यम और एक संत की भभूत के सहारे अपने गुरू तक पहुंचा। दीक्षा के पूर्व किस प्रकार ईश ने वाराणसी की अद्भुत यात्रा कराई। शिव दर्शन के साथ मस्ती में लखनऊ लौटा। बचपन की यादों में पिता जी का पिटाई उत्सव और कीडे मकोडे की भुनाई पर मुझे महामकडे के दर्शन। कैसे मैंनें अपना नाम देवीदास विपुल कर दिया। दीक्षा के बाद गुरू महाराज मेरी क्रिया पर विचलित होते थे। दो माह बाद जब बडे गुरू महाराज ने सर पर तीन बार हाथ मार कर भीषण शक्तिपात किया तो मेरी क्रिया बन्द हो गई। पर उनका आशीर्वाद भजान के रूप में दिखता रहा। एक सन्यासी का भी पुत्र प्राप्ति का प्रण टूट गया। बचपन में घर से भागा। भगवान को मिलने के लिये। बेटी को सरकारी नौकरी किस प्रकार मिली। सास ससुर के प्रति लोगों की भावनायें सुनकर मन आहत हुआ किंतु पुत्री का विवाह वहीं क्या जहां धन सम्पत्ति नही सदगुण मिले। किस प्रकार मां दुर्गा की पूजा करते करते कृष्ण मिल गये। बडे महाराज जी मुझे प्रचार हेतु फटकारा। प्रचार प्रसार के सख्त खिलाफ बडे महाराज के स्तर का यह भजन शायद किसी ने लिखा हो। किस प्रकार लोग धर्म के नाम पर ठगी करते हैं। वहीं चमत्कारिक संत आज भी हैं। अब आगे .......................



शोध निष्कर्ष 

आगे बढने के पूर्व मैं अभिमान रहित होकर अपने अनुभवो से निम्न निष्कर्ष निकालता हूं। 


पहला सत्य - सनातन पूर्णतया: सत्य है। ग़ीता की वाणी को अनुभव किया जा सकता है। तुलसी की नवधा भक्ति “मंत्र जाप मोही दृढ विस्वासा।“ सत्य है। मंत्र जप सबसे सरल और सहज मार्ग है। नवार्ण मंत्र की महिमा और देवी पाठ की लीला अपार है जिसको प्रत्यक्ष देख सकते हैं। मैनें सन 1984 में हवन के साथ जाप आरम्भ किया और 7 वर्षों में मां ने कृपा की। बजरंग बली किसी की भी पूजा करो हमेशा सहायक होते हैं। बस उनको पुकारो तो।


अत: मित्रों आप भी प्रभु प्राप्ति हेतु मंत्र जाप में जुट जाइये। हो सकता है इस ही जन्म में प्रभु कृपा कर दें।


मेरे अनुभव से सिद्द हो गया है कि ईश्वर है है और है। हलांकि कुछ मूर्ख और उल्टी बुद्दी के तर्कशास्त्री बोलेगें यह मन का भ्रम है कल्पना है मनोविज्ञान है। तो उन गधों को मैं बोलना चाहता हूं कि आज की तारीख में मैं तुमको सनातन के शक्ति के अनुभव की चुनौती देता हूं कि ब्लाग पर दी समवैध्यावि अपने घर पर करो पर ईमानदारी से। यदि तुमको अनुभव न हो तो मुझे जो सजा देना चाहते हो दे देना। जीवन के हर कार्य हेतु समय तो देना ही पडता है। ईश अनुभव कोई फालतू नही कि तुमको बिना समय दिये बिना इच्छा के हो जायेगा।



वैज्ञानिकों को चुनौती  


वैज्ञानिकों तुम दुनिया के सबसे बडे मूर्ख हो। इंसान की बनाई वस्तु उपकरण और यंत्रों पर यकीन करते हो पर इंसान पर नहीं। कोई प्रयोग करने हेतु वर्षों दे सकते हो पर ईश प्राप्ति के अनुभव हेतु समय नहीं है। इस वैज्ञानिक की दुनिया के वैज्ञानिक और मूर्ख हाफकिन जो मर गया उसके प्रयोगों को चुनौती। उसको आवाज और बोलने का जरिया इस भारत की भूमि के एक धार्मिक सनातन साफ्ट्वेयर इंजिनियर ने दी थी। प्राय: जो अपंग़ होता है वह जानते हुये भी ईश को नहीं मानता है।


गुरू आज्ञा शिरोधार्य 

 

 

वर्ष 1998, मुम्ब्रा आश्रम से हमारे गुरू महाराज स्वामी नित्य बोधानंद तीर्थ जी महाराज को बडे महाराज का  आदेश मिला कि अब आपको अमलनेर आश्रम सम्भालना पडेगा। आदेश मिलते ही गुरू जी ने अमलनेर जाने की तैयारी शुरू कर दी। शिष्यों का बार बार न जाने का आग्रह पर गुरू आज्ञा सर्वोपरि। 



धन नहीं श्रद्धा 


खैर गुरू महाराज अमलनेर पहुंचे। वहां रहने इत्यादि की सुविधा के नाम पर एक साधना रूम जिसकी नींव बडे महाराज यानि स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज ने कभी रखी थी। यह देखकर अग्रवाल नाम के एक शिष्य ने कुछ लाख रूपये गुरू महाराज जी को देने चाहे। गुरू महाराज की कृपा से अग्रवाल साहब जो फालिज के कारण कार्य करने,  चलने फिरने में असमर्थ हो गये थे। डाक्टर ने मना कर दिया पर गुरू महाराज जी की कृपा से काफी ठीक हो गये थे। आज महाराज जी के सामने एक लाख रखकर प्रार्थना कर रहे थे। महाराज जी कह रहे थे। भाई  आपकी बेटी के लिये रखो। इतना क्यों दे रहे हो। पर अग्रवाल जी बोले सब कुछ रख लिया है बस आप यह रख लें। बाद में महाराज जी ने आश्रम निर्माण हेतु कुछ धन ले लिया और बाकी वापिस कर दिया। यह एक उदाहरण था अपरिग्रह का। जो यदा कदा ही दिखता है



मेरा पहला काव्य संग्रह “मां दुर्गा” 


अब मेरा मूड करने लगा कि मैं श्रीमददुर्गासप्तशती को दोहे चौपाई में लिखूं। मानस की तर्ज पर। वह लिख भी गई। और श्री दुर्गादास घनश्यामदास सराफ के सौजन्य से वर्ष 2001 में छ्प भी गई। गुरू महाराज ने आशीष वचन दिया। मैंनें 2000 कापियां छपाई थी। कुछ पैसा मेरा भी लगा था। पर मैंनें यह निशुल्क बांट दी। बाद में सराफ जी के सौजन्य से भजन संग्रह भज मन भाव मन के” 2002 में, नव आरती संग्रह “आर्त भाव” 2003, “अंत: भाव” कविता संग्रह 2004, मेरे भाव, भजन संग्रह, 2005, यह सब श्री दुर्गादास घनश्यामदास सराफ के सौजन्य से छपी थीं। 


वैसे मैं नव आरती संग्रह “आर्त भाव” और “मां दुर्गा” का पुनर्मुद्रण करवाने का मन बना रहा हूं।  क्योकिं यह अधिक जनोपयोगी हैं।

यदि किसी को यह पुस्तक  निशुल्क वितरण हेतु छपा कर वितरित करने का मन हो तो स्वागत है।


स्वान्त: सुखाय सर्वोपरि 


फिलहाल आज मैं वह लिखता हूं जो मुझे अच्छा लगता है। वो नहीं जो जनता को अच्छा लगे। हिंदुत्व पर देश पर और आध्यात्म पर। मेरे मन से कवि सम्मेलनों के मंच की भावना मर सी गई है। फूहड और अश्लील हास्य ने इस इच्छा को और बल दिया। यद्यपि लुछ आलोचक कह सकते हैं कि मिलते नहीं तो उनकी यह आलोचना भी सिर आंखों पर हमारी शुभकामनायें उनके साथ। 



कविता टानिक हास्य संग्रह 2006 में छप गई। बाद में वर्ष 2015 में शुद्ध गेय काव्य संग्रह “अकिंचन” । बाल गीत सहित कई पुस्तकें छपने के इंतजार में हैं।  यानि 9 वर्ष का अंतराल मेरा भटकाव समय था। रूटीन मंत्र जप के अलावा साधन कुछ अधिक अनियमित हो गया। इस अंतराल में कवि सम्मेलनों के पीछे भागता रहा। पर आज मन बिल्कुल उचट गया। कविता पढने के बाद पैसा लो भिखारी वाली फीलिंग आती है। सम्मान और प्रेम अधिक बडा दिखाई देता है। कुछ ऐसा लगता जैसे कि मां की कृपा और आशीर्वाद को मैं बेच रहा हूं। क्योंकि मां की कृपा की कोई कीमत नहीं। आप यह भी कह सकते हैं कि पेट भरा है। कुछ हद तक यह सत्य है। जीवन के सारे दायित्वों और बंधनों से मुक्त हो चुका हूं। इच्छायें भी लगभग समाप्त हो चुकी हैं। हां भूखे पेट तो नहीं रह सकता। जरूरत भर का है अपने पास। हां कभी कभी यह लगता है कि यदि प्रभु धन देता तो देश भर के सारे मंदिरों को जो जीर्ण शीर्ण हो चुके है। उनको ठीक करा पाता। सभी सद्गुरूओ और वास्तविक संतों की धन से सेवा कर पाता। हां सबका इंटर व्यूह लेकर। क्योंकि आज नकली माल बहुत है। धर्म एक व्यापार बन चुका है। अपने को तो बस जितना है संतोष है। 



जब मां ने झाडू से की पिटाई 


बचपन की होली का हुडदंग तो बडा अजीब था। 15 दिन पहले से कटिया लगाकर होली का चंदा वसूल करना। जो न दे उसकी साइकिल की हवा निकालना। नौबस्ते मोहल्ले में विजय शंकर अवस्थी दादा थे जो लीड करते थे। पानी की चरई में रंग घोलकर लोगों को उसमें पटकना प्रमुख शौक था। अपन लोग तो छोटे छोटे उनके चमचे ही थे। वैसे अभी महसूस करता हूं। होली बेहद बेहूदा और भद्दे तरीके से खेली जाती थी। 



आज मैं जो भी हूं उसमें जननी मां और देवी मां का बहुत बडा योगदान है। याद पडता है वर्ष 1986 मेरी शादी हो चुकी थी और पहली होली पडी थी। मुझे होली में कुछ मित्रों ने भांग खिला दी। मैंनें ठंडाई जम कर पी थी। जिसमें भांग मिली थी। घर आये और लेट गये। सर रह रह कर झन झन करे। और ऐसा लगे कि मुझे हिमांगू बुखार है। बीबी और मां ने जम कर खटाई और नीबू दिया पर नशा न उतरे। फिर नहाने के लिये बोला तो मैंने खरे दिखाये। बस फिर क्या मां ने उठाई झाडू और चालू कर दी पिटाई और साथ में बडबडाती जायें। तमाम अलंकार उस दिन दिये गये। साथ में कान पकडा कभी होली में कुछ न खायेगें। आज का दिन है मैं होली पर यदाकदा निकलता हूं। वैसे पिछले दस सालों से तो घर के बाहर ही नहीं निकलता हूं।



ज्योतिषी को गलत किया 


गर्मी की छुट्टियों में हम भाई बहन मां के साथ नानी के घर जाते थे। जो पीलीभीत के 82 मस्जिद पठानी में निशात या लक्ष्मी टाकीज के पास था। एक बार हम लोग जब गये तो मैं नवीं में था। एक पंडित जी आये। सबका हाथ देखा और मेरा हाथ देख कर बोले यह तो दसवीं में फेल हो जायेगा। बस लगी बात दिल में और मैं दसवीं में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ। पता नहीं उन्होने क्यों कहा था पर जो भी था उसमें मेरा ही फायदा हुआ।


बचपन से ध्यान किया


एक बार मेरे ताऊ जी स्व. नरेंद्र सेन आये थे तो उन्होने ध्यान पर चर्चा करते हुये बताया था कि आंख बंद कर सफेद प्रकाश देखो। वे मां आनंदमयी को मानते थे और पांडिचेरी आश्रम जाया करते थे। अब प्राय: मैं सोते समय पहले आंख बंद कर सफेद प्रकाश देख्ने की कोशिश करता जो बाद में दिखने लगा। यानी मैं लगभग 14 साल की आयु से ही जाने अंजाने में ध्यान लगाने लगा था। पर कुछ पता न था नींद अच्छी आती थी। धीरे धीरे जिस रंग की इच्छा हो वह रंग दिखने लगा। अब होने यह लगा कि मैं सोता था तो कुछ नींद आने के बाद एक बार बहुत जोर चौंकता जरूर था। फिर नींद अच्छी आती थी। यह चौंकना मां के दर्शन के बाद बंद हो गया। इसके अलावा ऐसा लगता था कि मैं नींद से जग गया हूं कोई आकृति दिख रही है पर चाह कर भी न बोल पा रहा हूं न उठ पा रहा हूं। चिल्लाने की कोशिश करूं पर गले से कोई आवाज न निकले यह अवस्था बडी अजीब होती थी। यह अवस्था भी मां के दर्शन के बाद बंद हो गई। मजे की बात यह मैं अपने को लेटे हुये सोते हुये देखता था पर कुछ कर नहीं सकता था। 



लालतेल से लालटेन 


हम किराये के मकान में रहते थे। दूसरे हिस्से में एक श्रीवास्तव साहब रहते थे। जो रात को नींद न आने की वजह से बाहर बैठ कर बीडी पीते रहते थे। उनके कई बच्चे थे। प्रेम प्रकाश, अज्जू, पप्पू, मुन्ना और लडकी आशा (शायद यही नाम था)। मैं तो तीन चार साल का था तो प्रेम प्रकाश 20  22  साल के। प्रेम प्रकाश और उनके मित्र कौशल किशोर सक्सेना उर्फ बच्चू ददा, मुझे एक सलाख सामांतर सलाख पर लटका देते थे। मैं रोता था क्योकिं नीचे तीन चार फिट कूदना सम्भव न था। तो वे गाली के शब्द जैसे साला इत्यादि बोलते थे और कहते थे पहले मुझको गाली दो तब उतारेंगे। कारण यह था मैं बहुत गोरा और मोटा था। लोग मुझे मरफी मुन्ना या लाल तेल का बबुआ होने के कारण लाल तेल चिढाते थे। बाद में जब 10 साल की उमर में चश्मा लग गया तो लोग चरर्खियां या लालटेन बोलने लगे। 


बीडी पीने पर कुटाई 


एक बार श्रीवास्तव जी के दूसरे बेटे अज्जू और तीसरे पप्पू हम दोनों भाइयों को तब मैं लगभग चार साल का भाई आठ साल के थे। हम दोनों को घर के पिछवाडे ले गये और अपने पिता के बचे हुये बीडी के टोंटे भाई को पिलाने  लगे। वो लोग खुद तो पहले से ही पीते थे शायद। भाई ने एक दो कश लगाये होंगे कि खांसी चालू। घर आये तो बीडी की महक। मेरी मां की नाक बहुत तेज थी बोलीं अतुल मुंह लाओ। भाई ने मुंह खोला, बीडी की स्मेल। बस मां ने पूछा बीडी पी। भाई ने हां की। मां ने उठाई चप्पल और भाई को मारते मारते बेदम कर दिया। शायद यह भाई कि दूसरे रैंक की पिटाई थी। पहली का रिकार्ड तो पिता जी ने पहले बना कर स्थापित कर दिया था। 


राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ


मेरे भाई काफी कमजोर थे। मां बाप को बडी चिंता थी। अतं जब मैं 9 साल का हुआ तो मैं चौथे में था और भाई आठवीं में। तब मां ने अपने मोहल्ले में कैलाश जी जो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखा पार्क में लगाते थे। उनके साथ सुबह पांच बजे जगाकर हम दोनों भाईयों को भेज देती थीं। जहां हमको देश भक्ति की बातों के साथ कई व्यायाम कराये जाते थे। यह क्रम वर्ष 1975 तक रहा पर जब देश में आपाकाल लगा तो सब बंद हो गया। तब कैलाश जी, बाल मुकुंद जी समेत कई लोग जेल में बंद गये। यहा तक की संघ नाम लिखने पर जेल जाने का खतरा हो गया था। मुझे शतरंज का खेल प्रिय था और मैं क्ल्ब “नव युवक क्रीडा संघ” जाता था। जिसके बोर्ड से संघ शब्द खुरच कर मिटा दिया गया था। याद आता है आखिरी बार मैं लालबाग गया था जहां रज्जू भैया ने सम्बोधित किया था। 


राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और बालक का चरित्र निर्माण 


भाई मेरा तो विचार है यदि आप अपने बेटे को भारतीय संस्कारों के साथ देश भक्ति और आदर करने के साथ अनुशासन सिखाना चाह्ते हैं तो संघ की शाखा में जरूर भेजें। लोग व्यर्थ में संघ की आलोचना करते हैं। वे न तो संघ को जानते हैं और न जानना चाहते हैं। मैं पूछता हूं कि शिवा जी या महाराणा प्रताप जैसे महापुरूषो को पढाना गुनाह है या देश के लिये स्वाभिमान गौरव के लिये प्राण तक दे दो। घर परिवार भी त्याग दो। यह सिखाना गुनाह है। स्वार्थी और भारत और भारतीय संस्कार विरोधी ही संघ का विरोध करते हैं। 

 

कुछ लोग संघ पर जातिवादी आरोप लगाते हैं कि यह सिर्फ ब्राह्मणों का संघ है तो भाई यहां जितनी समानता और अनुशासनिक न्याय है। उतना कहीं नहीं। दूसरी बात देश में ब्राह्मणों की जनसंख्या अधिक है और संघ की सदस्यता भी अधिक तो जो जितना समर्पित और कुशल होगा उसको ही काम देंगे। और कार्यकारी समिति में लेंगे। आप आईये कार्य कर के दिखाइये। प्रचार प्रसार कीजिये।  फिर एक दिन प्रधान मंत्री तक बन जाईये। कौन मना किया है। मात्र मुंह पीटने और राजनीति करना है तो आप मत आईये। 


एक चरित्रवान और स्वस्थ्य बच्चे और शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण सिर्फ संघ की शाखाओं से ही सम्भव है। ........... खोजी देवीदास विपुल  





...................... क्रमश: ..........................


"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल 
 
 
 
 
 

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