ब्राह्मण से ब्राह्मणत्व तक और सनातन दृष्टि
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
ज्ञानी नहीं प्रेमी
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
वेब:
vipkavi.info , वेब चैनल: vipkavi
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ब्लाग : https://freedhyan.blogspot.com/
”
आज मैंने फेस बुक पर कुछ पोस्ट पर ब्राह्मण पर चर्चाएं देखी सुनी। अतः मुझे भी कुछ कहने का मन बन गया।
इसमें कोई दो राय नही और मैं अपने पूर्वजों का दोष स्वीकार करता हूं कि भक्तिकाल में जब कलियुग चरम पर था। सत्य सनातन और
हिंदुत्व का विनाश और पतन तथाकथित झूठे और अहंकारी ब्राह्मण वर्ग के कारण
ही हुआ। जिसमें कुछ और वर्णों ने घी डालने का काम किया। वैसे यह तो होना ही था क्योकिं यह ही कलियुग था और प्रभु की रचना।
कलियुग
का कारण ब्राम्हणत्व का डगमगाना ही है। इसकी वास्तविक परिभाषा को भूलकर
वाहीक रूप में जाने से पुण्य का क्षय होता है। तब पाप बढ़ जाता है और कलियुग
चरम पर पहुच जाता है।
चारो वर्ण यदि अपने कर्म के हिसाब से बने और कर्म करे तो समाज सुखी रहे। पर कर्म से नही जन्म से वर्ण बनते है जो गलत है।
ब्राह्मण वह जो ब्रह्मज्ञानी हो। समाज मे शिक्षा बांटे।
क्षत्रिय वह जो बलशाली हो समाज की देश की रक्षा करे।
वैश्य वह जो व्यापार में निपुण हो। कम मुनाफे में समाज मे धन का वितरण और चक्रण होने दे।
शूद्र यानि कार्मिक जो सेवा करे।
इन सबका समान आदर हो। तब ही देश आगे बढ़ सकेगा।
पर छुआछूत के कारण भारत दिन प्रतिदिन विनाशता की ओर बढ़ता गया। आज तो हिंदुत्व ही खतरे में है।
इसका फायदा ईसाई और मुस्लिम लेकर हिंदुत्व को नष्ट करने पर तुले है।
12
वी सदी में सन्त ज्ञानेश्वर के माता पिता को आडम्बर के कारण अपने प्राण
त्यागने पड़े पर उनको ब्राह्मण होने का शुद्धिपत्र न मिला। पर उन्होंने
छुआछूत से इनकार किया और भैंस के मुख से गायत्री मन्त्र निकलवा दिया तो सिर
पर बैठा लिया।
सन्त तुलसीदास के अनाथ होने पर ब्राह्मण समाज से निकाल दिया। वो तो रामनन्द थे जिन्होंने सन्त पैदा किया। रामचरितमानस को अवधी भाषा तो गवारो की भाषा है। ईश का नाम केवल ब्राह्मण ले अत इसमें आग लगा दो, चोरी करवा दो। वगैरह वैगेरह । पर जब चमत्कार हुए तो ब्राह्मण शिरोमणि। तुलसी ने छुआछूत का कितना विरोध किया।
सन्त तुलसीदास के अनाथ होने पर ब्राह्मण समाज से निकाल दिया। वो तो रामनन्द थे जिन्होंने सन्त पैदा किया। रामचरितमानस को अवधी भाषा तो गवारो की भाषा है। ईश का नाम केवल ब्राह्मण ले अत इसमें आग लगा दो, चोरी करवा दो। वगैरह वैगेरह । पर जब चमत्कार हुए तो ब्राह्मण शिरोमणि। तुलसी ने छुआछूत का कितना विरोध किया।
शायद इसी लिए ब्रह्म ने अपना कोई अवतार जन्मने ब्राह्मणकुल में न लिया।
सन्त रविदास, मीरा, गोरा कुम्भार, राखू बाई, मामा बालू धनगर, स्वामी समर्थ, नामदेव, तुकाराम, एकनाथ सहित तमाम जन्मे निम्न सन्त अवतार माने गए। आज भी झूठा अभिमान दब गया है पर मरा नही।
मैं तो महाराष्ट्र के महादलित साहित्यकार डॉ रोहिदास वाघमारे के घर पर उनके साथ उनकी पत्नी के हाथ का बना भोजन कर चुका हूँ। वह भी 1994 में। उस समय वे जे जे अस्पताल अलब्स कामा में थे। निकाल दो जाति के बाहर।
आज यदि हमें सनातन को बचाना है। हिंदुत्व की रक्षा करनी है। तो हमे वास्तविक रूप में छुआछूत से निकलकर अपने को मात्र हिन्दू बोलना होगा। वरना वह दिन भी आएगा जब जिस तरह पाकिस्तान से दलित मिट गया तो हिंदुत्व भी मिटा गया। इसी तरह देश से हिन्दू मिट जाएगा।
जो मूर्ख दलित इस मुगालते में वे बचे रहेंगे। तो यह भूल जाओ। चलती तलवार सिर्फ कुछ को जो ऊंची श्रेणी के अरबी मुस्लिम हों उनको छोड़ती है। आज विश्व में परिवर्तित मुस्लिम को अरब में इंसान समझा ही नहीं बल्कि सीरिया और अन्य मुस्लिम देशों में निम्न मुस्लिम को ही मार रहें हैं। मुगलो का अत्याचारी इतिहास इस बात का गवाह है।
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई
चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस
पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको
प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता
है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के
लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" देवीदास विपुल
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