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Thursday, June 14, 2018

भाग- 3: एक वैज्ञानिक के विज्ञान और आध्यात्म पर अविश्वसनिय अनुभवों की स्वकथा




एक वैज्ञानिक के विज्ञान और आध्यात्म पर अविश्वसनिय अनुभवों की स्वकथा भाग- 3 

सनातनपुत्र देवीदास विपुल"खोजी"


 
 
आपने भाग 1 व 2 में देखा किस प्रकार मां काली ने दर्शन देकर और सीने पर लात मारकर दीक्षा दे दी। जिसके बाद मैं रोज मरता रहा जीता रहा पर पाठ और जाप बंद न किया। मुरारी बापू ने भी हाथ जोडकर मुझे संभालने से इंकार कर दिया। बाद में एक तांत्रिक ने मुझे अपना चेला बनाने के चक्कर में कितने तंत्र किये पर बेइज्जत होकर भागा। अब यह सिद्द हो गया था कि कोई ंत्र शक्ति मेरा अहित तो नहीं कर सकती हैं। सब मां काली की देन थी। भटकते भटकते मैं स्वप्न और ध्यान के माध्यम और एक संत की भभूत के सहारे अपने गुरू तक पहुंचा।
अब आगे .......................
 
 

शोध निष्कर्ष 
 
             
आगे बढने के पूर्व मैं अपने अनुभवो से क्या निष्कर्ष निकाल सकता हूं।
पहला सत्य - सनातन पूर्णतया: सत्य है। ग़ीता की वाणी को अनुभव किया जा सकता है। तुलसी की नवधा भक्ति “मंत्र जाप मोही दृढ विस्वासा।“ सत्य है। मंत्र जप सबसे सरल और सहज मार्ग है। नवार्ण मंत्र की महिमा और देवी पाठ की लीला अपार है जिसको प्रत्यक्ष देख सकते हैं। मैनें सन 1984 में हवन के साथ जाप आरम्भ किया और 7 वर्षों में मां ने कृपा की।

अत: मित्रों आप भी प्रभु प्राप्ति हेतु मंत्र जाप में जुट जाइये। हो सकता है इस ही जन्म में प्रभु कृपा कर दें।

मेरे अनुभव से सिद्द हो गया है कि ईश्वर है है और है। हलांकि कुछ मूर्ख और उल्टी बुद्दी के तर्कशास्त्री बोलेगें यह मन का भ्रम है कल्पना है मनोविज्ञान है। तो उन गधों को मैं बोलना चाहता हूं कि आज की तारीख में मैं तुमको सनातन के शक्ति के अनुभव की चुनौती देता हूं कि ब्लाग पर दी समवैध्यावि अपने घर पर करो पर ईमानदारी से। यदि तुमको अनुभव न हो तो मुझे जो सजा देना चाहते हो दे देना। जीवन के हर कार्य हेतु समय तो देना ही पडता है। ईश अनुभव कोई फालतू नही कि तुमको बिना समय दिये बिना इच्छा के हो जायेगा।
 
 

वैज्ञानिकों को चुनौती  
 
 

वैज्ञानिकों तुम दुनिया के सबसे बडे मूर्ख हो। इंसान की बनाई वस्तु उपकरण और यंत्रों पर यकीन करते हो पर इंसान पर नहीं। कोई प्रयोग करने हेतु वर्षों दे सकते हो पर ईश प्राप्ति के अनुभव हेतु समय नहीं है। इस वैज्ञानिक की दुनिया के वैज्ञानिक और मूर्ख हाफकिन जो मर गया उसके प्रयोगों को चुनौती। उसको आवाज और बोलने का जरिया इस भारत की भूमि के एक धार्मिक सनातन साफ्ट्वेयर इंजिनियर ने दी थी। प्राय: जो अपंग़ होता है वह जानते हुये भी ईश को नहीं मानता है।

तर्कशास्त्रियों अभी आगे अनुभव देखोगे तो पागल हो जाओगे।

मां दुर्गा के बहिन को दर्शन।

इधर मेरा मन बना कि चलो लखनऊ चला जाये अत: अवकाश यात्रा भत्ता लेकर वाया दिल्ली रेलवे सर्कुलर यात्रा टिकट बनाकर दिल्ली अपनी बडी बहन होम्योपैथ डा. रंजना भटनागर के घर पहुंचा। वहां पहुंचकर मालूम पड़ा बडी बहन जी को किसी ने ॐ का जाप बताया है जो वह कर रही हैं। मेरे सामने एक बार बहिन जाप करते करते जड़वत सी हो गई तो मैंनें हंसते हुये चुटकी बजाकर उनको उठा दिया और हंसते उनके सिर पर हाथ मार दिया। बहन जी का ध्यान फिर लगा। बहिन जी ने सुबह बताया रात को उनको मां दुर्गा के साक्षात दर्शन हो गये। मुझको कुछ पता तो था नहीं ऐसे मैंनें पत्नी के सर पर हाथ मार दिया था तो उनको भी मां दुर्गा के दर्शन होने के साथ अपना आसन जमीन से ऊपर उठने की अनूभूति हुई थी। लेकिन इस बार जब बहिन के ऊपर हाथ रख कर सम्भाला था तो मुझे बहुत शक्तिहीनता हुई थी। 
 


इस घटना के बाद बड़ी बहन जी मुझे गुरू मानने लगी मैं मना करता पर भजन इत्यादि भी मेरे लिये लिखने लगी। मुझे बडा अजीब लगता मैं बड़ी बहन के पैर छूता था और वह मुझे गुरू माने बडी अजीब बात थी। वह मुझे वर्ष 1996 तक अपना गुरू मानती रहीं। मेरी विनती पर वह सदगुरू भी ढूंढती रही। बाद में वह आनंदपुर साहेव परमहंस अद्वैत मत में चली गई। मेरा पीछा छूटा। बाद में किसी ओशो परम्परा के ठग के चक्कर में पड गई और अभी तक फंसी हैं। पर एक बात रही उन पर कोई विपत्ति आई तो हमेशा छोटा भाई ही याद आता रहा और वो ही विपत्ति से निकालता रहा। 
 
 

ओशो की फोटो गिरी।
 
 

ओशो जैसे कितने माता जी अपने खीसे में लिये घूमती हैं।  अभी तक सारे संत अंतरमुखी की एक परम्परा को लेकर निष्कर्ष निकाल कर सगुण निर्गुण साकार निराकार द्वैत अद्वैत गाते हैं। पर आज की तारीख में माता रानी ने मुझ जैसे तुच्छ को यह सारे अनुभव कराकर कहीं आगे लाकर दुनिया को समझाने के लिये खड़ा कर दिया। जहां से मुझे तमाम संतो की अपूर्णता साफ दिखती है। अंतर्मुखी होने के सारे मार्ग मुझे सिखा दिये। जहां से मेरा यह शरीर सबको तर्क सहित तौल सकता है। मेरी बहन नासमझ है जो पापी ओशो के चक्कर में पड़ी है। उसकी परम्परा के एक ओशो सन्यासी मेरे व्हाट्स अप ग्रुप में आये थे जो 16 साल से लोगो के गुरू बने बैठे हैं पर बोले मुझे अनुभव कुछ नहीं। पर शर्म से ग्रुप छोडकर भाग गये। अरे जिसको खुद शक्ति का अनुभव नहीं, अंतरमुखी का अनुभव नहीं वो दूसरो को ज्ञान देता है। वह भी जापानी भाषा में भगवान ओशो लगाकर। मेरे साथ तर्क करते समय बहन जी के रूम में लगी ओशो की फोटो जमीन पर गिर गई पर बहन जी न समझी। अरे जो ओशो खुद प्रेत योनि में कमरे में बंद चक्कर काट रहा है वह किसी को किस सीमा तक ले जा पायेगा।  
 
 

खैर छोड़ो जो अपने को खुद भगवान बोलकर और बनकर पूजा करवाता मैं उसको पापी ही बोलता हूं। तुम कह सकते हो फिर गुरू पूजन। तो महाशय कोई गुरू अपने मुख से अपने को भगवान नहीं बोलता सब अपने गुरू महाराज को क्रेडिट देते हैं पर बिना गुरू का ओशो तो खुद पौड्रिक कृष्ण की तरह भगवान बन बैठा। सनातन का सत्यानाशी बन बैठा। 
 
 

गरदन का हिलना बंद 
 
 

चलो दिल्ली में तीन दिन रहा फिर मेरी गरदन बुढ्ढों की तरह एक रोगी की तरह अपने आप हिलने लगी जैसे सर पर बोझ रखो तो हिलती है। यह कुछ दिन चला तो एक दिन पत्नि ने जोर से मुझे बोला यह क्या बुढ्ढो की तरह गरदन हिलती है। उस समय से गर्दन हिलना बंद। यह घटना दिल्ली रेलवे स्टेशन पर घटी। 
 
 

ट्रेन हुई लेट 
 
 

लखनऊ पहुंचे हर समय आनंदमय नशे के साथ ध्यान साधना के साथ। मन हुआ चलो बनारस चला जाये। टिकट कटा वेटिंग लिस्ट का पर माता रानी पर यकीन। सोंचा माता जी को भी बनारस ले लूं अपने पुण्य मे भागीदार बना लूं। सुबह साढ़े सात बजे निकले गाड़ी का समय सात पचास था। रिक्शे में बैठकर टिकट देखा तो समय छह पचास था जो मैंने सात पचास देखा था। बस क्या माता जी भड़क गईं। तब मैं बोला आज गाड़ी सात पचास पर ही जायेगी। स्टेशन पहुंचे गाडी एक घंटा लेट। दिल्ली से ट्रेन आई पूरी भरी। मैं माता जी से बोला मुझे लगता है एस 7 खाली होगा वहां चलें। तिथि तो याद नहीं पर इतना याद हैं कि उस दिन सूरज कुंड में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन था। 
 
 

टिकट चेकर ने किया प्रणाम 
 
 

डिब्बे में चढ गये एक नीचे की बर्थ पर लेट गये सामने मां जी और पत्नी बच्ची के साथ। टिकट चेकर आया मैंनें टिकट बढ़ाया तो बिना देखे बोला हां आप लेटे  हैं ठीक ठीक। बिना कुछ कहे और लोगों का टिकट चेक कर चला गया।



बिन मौसम प्रार्थना से बरसात 
 
 

दोपहर का समय गर्मी लगने लगी। मैंनें माता जी से प्रार्थना की मां शिव दर्शन हेतु जा रहा हूं कुछ तो दया करो। और ध्यान में बैठ गया। यह क्या कुछ ही देर में बिन मौसम बरसात कहां घनी धूप और अब इतनी तेज हवा और वारिश। सुहाने मौसम में वाराणसी पहुंचे। रिक्शा किया एक होटल में कुछ भीगते हुये पहुंचे। माजी का बड़बड़ाना चालू क्या सिड़ी पागल है बिना तैयारी के कहीं भी चल देता हैं। 
 
 

शिव दर्शन 
 
 

सुबह होटल छोड़ा काशी विश्वनाथ मंदिर की गली में गये। मुख्य गुम्बद की पीतल की बुर्जी के ऊपर ऐसा लगा लम्बे चौडे त्रिशूल लिये शिव खड़े है और कह रहे है तो आ गये। इधर पत्नि बोली अब मैं न जा पाऊंगी मैं खराब हो गई। मैं बोला सब वाहिक है तुम अंदर चलो। पता नहीं उस समय कोई भीड़ न थी। आसानी से अंदर गया। सर नशे में भारी। इसी आवेग में शिव के ऊपर चढ़नेवाले जल को हाथ लगा कर रोका और अपने ऊपर डाल लिया। इसी के साथ पुजारी ने तीव्र गति से बैंगनी रंग के फूलों की माला मुझपर फेकीं जो आकर मेरे गले में पड़ गई। जिसके  साथ जैसे सर में झन्न के साथ और नशा व शक्ति प्रवेश कर गई। मैं वहीं बैठ गया ध्यान में। 
 
 

किसी ने माला न बेची
 
 

बाहर आया सोंचा रुद्राक्ष माला लूं। एक दुकान पर गया जिसपर दाढ़ीवाले आकर्षक बाबा नुमा बैठे थे। उनसे बोला बाबा माला दिखाओ। वह हाथ जोड़कर कहने लगे आपके लिये यहां कोई माला नहीं है। सब नकली हैं। मुझे क्षमा करें। बडा अजीब लगा जब कुछ और ने यही बोला। बिना माला के गली के बाहर निकला। रिक्शा किया हिंदू विश्वविद्यालय चलने को बोला। अचानक एक गली पड़ी। मुझे कुछ लगा। मैंने रिक्शेवाले से कहा रोको गली में लो मां गंग़ा का घाट है इधर। रिक्शा रोककर गली के अंदर गया कुछ चौकोर घुमावदार गली के बाद शांत गंगाघाट हरे पानी और करीबन 50 सीढ़ीयोंवाला एक दम शांत घाट। नीचे उतरे। मांजी के घुटने में दर्द की शिकायत थी पर मेरे कहने पर उतर गई। पर नीचे जाकर कहने लगी इतनी सीढ़ी चढूं  कैसे। मैंने अभी देखो। उनके घुटने पर पीछे से हाथ लगाया और माता जी लगभग दौड़ते हुये ऊपर आ गई। पीछे मुड़कर देखा बोली ऐ मै कैसे चढ़ी इतनी सीढ़ी बिना दर्द के इतनी जल्दी।  
 
 
 

रामभक्त के दर्शन 
 
 

सीढ़ी के ऊपर कुछ नजदीक आने पर मुझे लगा कहीं कोई दिव्य पुरूष आस पास है। मैने पास के घर के बाहर बैठे हुये व्यक्ति से पूछा क्या इधर कोई संत हैं। वह बोला हां एक संत है अंदर ही हैं पर वह दिन में मौन व्रत पर हैं। आप मिल नहीं सकते। मैंने कुछ स्टाइल में बोला “ जरा उनसे कहिये बाम्बे से कोई मिलने आया है” अनिच्छा से मना करने के बाद वह व्यक्ति अंदर गया और बाहर आया आश्चर्य से बोला आपको बुला रहे हैं। अंदर गया एक छोटी सी पक्की सी कोठरी में कोई 100 साल से ऊपर के महापुरूष जो राम भक्त लग रहे थे। मुझे अपने पास बैठाकर बात करने लगे। फिर अचानक साधिकार भाषा में बोले “ बेटा क्या चाहिये। जो मांगोगे दे दूंगा”। मैं बोला महाराज जी बस आपकी दया बनी रहे। वो दें जिसमें कल्याण हो। और कुछ नहीं। फिर प्रसाद लेकर प्रणाम कर निकल आया। बाहर आकर माता जी बोली अरे गधे बेटा मांग लेता। तरक्की मांग लेता। मैं मुस्कुरा कर चलता रहा। 
 
 

मंदिर खोलकर दर्शन 
 
 

कई मंदिर पड़े सबमें प्रणाम किया। कुछ मंदिर की प्रतिमाओं से ज्योति से निकलती दिखती थी। देखने पर और नशा मिलता सब नेत्रों पीता एक देवी मंदिर के पास पहुंचा। जहां मुझे देखकर ताला बंद कर रहे पुजारी ने मंदिर खोल दिया। आसपास तमाम लंगूर थे पर मुझे भय न लगा उनको जाकर प्यार किया और मूंग़फली खाने को दी। ऐसे ही दोपहर को विश्वविद्यालय के मंदिर पहुंचा जो बंद हो चुका था। पर एक पुजारी ने मेरी विनती पर अन्दर से चाभी लाकर द्वार खोल कर मुझे दर्शन करवा दिये। 
 
 

चालू टिकट चला सुपरफास्ट में 
 
 

शाम साढे पांच बजे स्टेशन पहुंचा चालू टिकट लखनऊ का लिया। ट्रेन आई दिल्ली जाने वाली सुपर फास्ट मतलब न्यूनतम मुरादाबाद का टिकट। जाना तो है। अचानक मुझे लगा काम बन गया मैं कुछ आगे बढ़ा तो मेरी मौसेरी बहिन के जेष्ठ जो टी टी ई थे और एक बार मैं मिला भी था। वो ट्रेन में चल रहे थे। बस फिर क्या। लखनऊ तक स्लीपर में प्रेम से यात्रा हो गई। और उन्होने स्टेशन के बाहर तक निकलवा भी दिया। 
 
 

इस यात्रा को क्या कहा जायेगा??? सब जगह तो संयोग नहीं हो सकता?? भाई मेरी निगाह में मां काली की कृपा थी।

................... क्रमश: ...................



भाग 4 का लिंक



 
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल 
 

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