एक
वैज्ञानिक के विज्ञान और आध्यात्म पर अविश्वसनिय अनुभवों की स्वकथा भाग- 6
सनातनपुत्र देवीदास विपुल"खोजी"
आपने भाग 1 से
5 में पढा किस प्रकार मां काली ने दर्शन
देकर और सीने पर लात मारकर दीक्षा दे दी। जिसके बाद मैं रोज मरता रहा जीता रहा पर
पाठ और जाप बंद न किया। मुरारी बापू ने भी हाथ जोडकर मुझे संभालने से इंकार कर
दिया। बाद में एक तांत्रिक ने मुझे अपना चेला बनाने के चक्कर में कितने तंत्र किये
पर बेइज्जत होकर भागा। अब यह सिद्द हो गया था कि कोई तंत्र शक्ति मेरा अहित तो
नहीं कर सकती हैं। सब मां काली की देन थी। भटकते भटकते मैं स्वप्न और ध्यान के
माध्यम और एक संत की भभूत के सहारे अपने गुरू तक पहुंचा। दीक्षा के पूर्व किस
प्रकार ईश ने वाराणसी की अद्भुत यात्रा कराई। शिव दर्शन के साथ मस्ती में लखनऊ
लौटा। बचपन की यादों में पिता जी का पिटाई उत्सव और
कीडे मकोडे की भुनाई पर मुझे महामकडे के दर्शन। कैसे मैंनें अपना नाम देवीदास
विपुल कर दिया। दीक्षा के बाद गुरू महाराज मेरी क्रिया पर विचलित होते थे। दो माह
बाद जब बडे गुरू महाराज ने सर पर तीन बार हाथ मार कर भीषण शक्तिपात किया तो मेरी
क्रिया बन्द हो गई।
अब आगे
.......................
शोध निष्कर्ष
आगे बढने के पूर्व
मैं अपने अनुभवो से निम्न निष्कर्ष निकालता हूं।
पहला सत्य - सनातन
पूर्णतया: सत्य है। ग़ीता की वाणी को अनुभव किया जा सकता है। तुलसी की नवधा भक्ति
“मंत्र जाप मोही दृढ विस्वासा।“ सत्य है। मंत्र जप सबसे सरल और सहज मार्ग है।
नवार्ण मंत्र की महिमा और देवी पाठ की लीला अपार है जिसको प्रत्यक्ष देख सकते हैं।
मैनें सन 1984 में हवन के साथ जाप आरम्भ किया और 7 वर्षों में मां ने कृपा की।
अत: मित्रों आप भी
प्रभु प्राप्ति हेतु मंत्र जाप में जुट जाइये। हो सकता है इस ही जन्म में प्रभु
कृपा कर दें।
मेरे अनुभव से सिद्द
हो गया है कि ईश्वर है है और है। हलांकि कुछ मूर्ख और उल्टी बुद्दी के
तर्कशास्त्री बोलेगें यह मन का भ्रम है कल्पना है मनोविज्ञान है। तो उन गधों को
मैं बोलना चाहता हूं कि आज की तारीख में मैं तुमको सनातन के शक्ति के अनुभव की
चुनौती देता हूं कि ब्लाग पर दी समवैध्यावि अपने घर पर करो पर ईमानदारी से। यदि
तुमको अनुभव न हो तो मुझे जो सजा देना चाहते हो दे देना। जीवन के हर कार्य हेतु
समय तो देना ही पडता है। ईश अनुभव कोई फालतू नही कि तुमको बिना समय दिये बिना
इच्छा के हो जायेगा।
वैज्ञानिकों को
चुनौती
वैज्ञानिकों तुम
दुनिया के सबसे बडे मूर्ख हो। इंसान की बनाई वस्तु उपकरण और यंत्रों पर यकीन करते
हो पर इंसान पर नहीं। कोई प्रयोग करने हेतु वर्षों दे सकते हो पर ईश प्राप्ति के
अनुभव हेतु समय नहीं है। इस वैज्ञानिक की दुनिया के वैज्ञानिक और मूर्ख हाफकिन जो
मर गया उसके प्रयोगों को चुनौती। उसको आवाज और बोलने का जरिया इस भारत की भूमि के
एक धार्मिक सनातन साफ्ट्वेयर इंजिनियर ने दी थी। प्राय: जो अपंग़ होता है वह जानते
हुये भी ईश को नहीं मानता है।
एक घंटे में बीस
भजन
बडे महाराज
स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज का मुझे विशेष स्नेह मिलता था। वे अपने लिखे भजन खुद
गाकर सुनाते थे। मेरे कवि होने को वह काफी महत्व देते थे। एक बार सभा में मुझसे
कविता सुनाने को बोला। मैंने “ हर आदमी उदास है तेरे शहर में” सुनानी चाहे तो वे
बोले। यार यह क्या लिखते हो। सूर बनो, तुलसी या मीरा बनो”। यह वाक्य गुरू महाराज के जैसे आशीर्वाद थे। शाम को आश्रम से बस से लौटने
में करीबन 1 घंटे में 20 के लगभग भजन बन चुके थे। बाद में और भी बने। इसके बाद जिस
रस का भाव उठता था उस रस का काव्य बन जाता था। आज भी जिस भाव में डूबता हूं। बस एक
ही बार में धारा प्रवाह लेखनी बहने लगती है। भाव तो इतनी तेज आते हैं कि लिख भी
नहीं पाता हूं। यह सारे अनुभव एक ही झटके में कम्प्यूटर पर टाइप हो जाते हैं।
वाक्य कहीं फंसे तो भी मार्ग निकल आता है। सिर्फ टाइपिंग गल्तियां हो जाती हैं।
बताना चाहता हूं। यह होती मां सरस्वती, श्री गणेश और गुरू
महाराज की कृपा। व्हाट्स अप ग्रुप में भी लोग खोद खोद कर प्रश्न पूछते है जो मैंने
देखे भी न होंगे उनके उत्तर स्वत: लिख जाते हैं। मां काली की कृपा और गुरूदेव के
आशीर्वाद से यह लगता है कि मैं इसे जानता हूं। यह मैं इस लिये लिख रहा हूं ताकि आप
अपने गुरू महाराज और ईश पर और अधिक विश्वास करें।
जा पर कृपा राम
की होई। ता पर कृपा करे सब कोई॥
यह दोहा मुझे
बिल्कुल सत्य और कम से कम अपने पर चरितार्थ दिखता है। बस राम की कृपा को पा लो।
पूरी कायनात कृपा करेगी।
क्या किया था बडे
महाराज ने
खैर, हुआ यूं था मित्रों, गुरु महाराज ने अपनी शक्ति से
मेरी चढी हुई शक्ति को दबा दिया था। अनियंत्रित से नियंत्रित कर दिया था। क्योकिं
मेरा शरीर उसे सम्भाल नहीं पा रहा था। अब आप बडे महाराज की क्षमता और शक्ति देखें
कि किस प्रकार उन्होने मेरी काली मां की चढती शक्ति, जिसको
तांत्रिक और कुछ सीमा तक हमारे गुरू महाराज भी न सम्भाल पा रहे थे। वह गुरूदेव
जिन्होने नासिक के 105 साल के महंत को उस शक्ति के साथ दीक्षा दी थी। जिस शक्ति से
आम आदमी की मौत हो सकती थी। वह गुरूदेव मुझे नियंत्रित न कर सके। तब बडे महाराज जी
ने कितनी शक्तिशाली तेज से मेरे शरीर की शक्ति को नियंत्रित किया होगा। वास्तव में
बडे महाराज ने वह शक्ति नियंत्रित कर मुझे मेरे कर्मफल और प्रारब्ध भोगने के लिये
यह किया था। लगभग 24 वर्षों तक यह शक्ति नियंत्रित रही और जनवरी 2018 में पुन:
सक्रिय होकर मुझे निराकार का अनुभव दे डाला। यह सब आगे लिखूंगा। अभी तो आगे की
कथा।
तपलोक की यात्रा
एक रात मैंनें
देखा। पता नहीं स्वप्न या ध्यान। बडे महाराज जी मेरा हाथ पकडकर उड रहे हैं। नीचे
सुंदर हरियाली मोहक हरी घास का मैदान टाइप। जिस पर लगे पेड। पेडों के नीचे आसनों
पर बैठे कई संत विभिन्न आकृतियों के बैठे तप कर रहें हैं। एक पेड के नीचे एक आसन
खाली था। जिसकी तरफ इशारा करते हुये महाराज जी बोले यह तुम्हारा आसन है। त्तुमको
यहां पर बैठना है। फिर महाराज जी काफी देर उडाते रहे और फिर मेरी आंख खुल गई या
तंद्रा भंग हो गई।
हर तरफ देवालय
इसके अतिरिक्त
मुझे सपनों में मंदिर, देवालय अत्याधिक दिखते थे। एक
मंदिर तो मुझे कई बार दिख चुका है। पता नहीं कहां का है। ऐसे एक मंदिर पाकिस्तान
बार्डर के पास वहां मैं बडे भाई के साथ गया। एक और कुछ अजीब बात बताऊं। मुझे रात
को मूत्रालय जाना पडता है सुगर के कारण, तो सपने में दिखता
है कि मुझे बहुत कस के लगी है कभी एक नम्बर कभी दो नम्बर। सपने में मैं जहां कुछ
करने की इच्छा करूं वहां सामने देव मूर्ति दिख जाये तो मैं फिर समेट लू और रोक
लूं। फिर नींद खुल जाये। इस तरह के स्वप्न अभी भी आते हैं।
अपने कार्यालय में
अपने कार्यालय
में यदि कुछ नाम न लूंगा तो गलत होगा। मेरे विभागाध्यक्ष श्री एन.वेंकटरमण सत्य
साईं के भक्त थे। उनसे मेरी घनिष्ठतता थी। उनके साथ मैं अनुभव शेयर करता था।
उन्होने मुझे सफेद कपडे पहने सत्य साई की एक बडी फोटो दी थी। पर मेरे साथ कोई साईं
चमत्कार न हुआ। वर्ष 1995 में वे बोले विपुल तुम्हारा प्रोमोशन एक साल डिले कर रहा
हूं। अगले साल भेजूंगा। मैं बोला ठीक है सर सब प्रभु इच्छा क्योकिं मुझे तो बस हर
तरफ ईश इच्छा ही दिखती थी। बोले तुमको कलापक्क्म भेजता हूं प्रचालन नियंत्रक बना
कर मैं बोला सर मुम्बई में चपरासी बना दो चलेगा। दक्षिण भारत तो बिल्कुल न चलेगा।
कारण यहां गुरू आश्रम था। जब चाहो चले
जाओ।
दूसरे वरिष्ठ थे
एक गुजराती वरिष्ठ अधिकारी श्री एन.एस.भावसार। वे पता नहीं कुंडलनी जागरण हेतु
कितने शिविर किये। पर कोई गुरू न बनाया। पिछले दिनों अस्पताल में मिले। हमेशा की
भांति मैंनें पूछा सर गुरू मिले पर उनका उत्तर न में था। तीसरे एक बिदास सरदार जी
श्री जगजीत सिंह गर्चा, जैसे सरदार होते हैं वैसे तेज,
सीधी बात कहने वाले। वो एक माता जी के सत्संग में जाते थे और मेरी
परीक्षा प्रश्न पूछकर लिया करते थे। एक बार पूछा जल वायु और भूमि में माता पिता और
गुरू कौन। मेरे उत्तर देने पर बोले यही माता जी भी कह रही थी। एक दिन मुठ्ठी बह्र
रेजगारी लाये (शायद यह या भावसार, ठीक से याद नहीं) और बोले
अच्छा बताओ कितनी चेंज है। मैंनें ध्यान लगाया और बताया 21 रूपये कुछ पैसे। बाद
में वह कैंटीन गये और बोले आस पास थे।
अब तीनों 80 के
करीब पहुंच चुके होंगें। पर इनकी याद ताजा रहेगी।
वह कौन देवदूत था
हर इंसान की
तमन्ना होती है एक घर हो जाये। तो मैंने सिडको सीमा के बाहर सूखापुर गांव में वर्ष
1991 में फ्लैट बुक किया। कारण सिडको सीमा में 20 साल का डोमिसाइल मांगते थे। कई
मित्रों ने झूठा बनाकर फ्लैट ले लिये पर मैंनें बोला फलैट इतनी बडी वस्तु नहीं कि
ईशवर के नाम पर झूठ बोलकर सिडको फ्लैट लूं। हलांकि इस फ्लैट में खाटा हुआ और 2005
में मैंने सिडको सीमा के अंदर फ्लैट लिया।
इस फ्लैट को
मैंनें 1996 में किराये पर दिया था। किरायेदार जून के महीने में खाली कर जा रहा
था। मैं स्कूटर से निकला कि अचानक तेज वारिश हुई और मेरी स्कूटर सी.बी.डी. बेलापुर
के कुछ आगे ठप्प हो गई। मैं परेशान होने लगा। हे प्रभु क्या करूं। अचानक एक दूसरा
स्कूटर सवार पीछे से आया। स्कूटर रोककर पूछा स्कूटर स्टार्ट नही हो रही आप अपनी
स्कूटर मेरी स्कूटर में बांध दें। सडक पर पडी रस्सी से स्कूटर बांधा पर रस्सी टूट
गई। तब उसने अपने पैर से धक्का देकर मुझे नवीन पनवेल तक पहुंचाया और एक दुकान के
पास बोला। यहां गाडी ठीक करवा लें और फुर्र हो गया। इतनी भरी वारिश में कौन था वह
जो मेरी सहायता कर गया। मैं समय पर फ्लैट पर पहुंच गया था।
यहां पर एक बात
मैं कहना चाहूंगा। संकट में फंसे इंसान की सहायता करना हमारा स्वभाव होना चाहिये।
ईश्वर हमारी सहायता खुद करता हैं। मेरा स्वभाव है यदि किसी भी काम में अपना
नुक्सान न हो और दूसरे का फायदा हो तो कर दो। दूसरे की सफलता पर जलो मत। हर
व्यक्ति अपने कर्म के अनुसार फल पाता है। इसी कारण कुछ दिन पूर्व मैंने व्हाट्स अप
के शेयर, इंडस्ट्रियल सलाह इत्यादि ग्रुप बनाये थे जिनमें
लोगों को बिना शुल्क लाखों का फायदा हुआ। वैसे अब मैंनें सब छोड दिये सिर्फ आत्म
अवलोकन का ही सदस्य हूं। कुछेक मित्रों ने पुन: एकाध अन्य ग्रुप में जोड दिया है।
कहने का
तात्पर्य है और निष्कर्ष है “कर भला तो हो भला”।
ऐसे तमाम किस्से
हैं पर सबका वर्णन सम्भव नहीं।
बडों की चालाकी बेटी
की पिटाई
बात 1994 की
मेरी पत्नी को दुनिया में लोग एक बेटा कर लो कह कर समझाने लगे। पत्नी समझाये, मेरी मां समझाये भगवान से मांगों। डाक्टर को दिखाओ। पर मेरा एक ही उत्तर
भगवान अंधा नहीं। मैं कुछ मांगता नहीं। यदि मांगूंगा तो सिर्फ क्ल्याण और शिव।
अन्य कुछ नहीं। घर पर अक्सर झगडा होता था। पंत्नी नाराज। एक बार मुझे दुख हुआ जब
मेरे बडे भाई जो हैदराबाद में थे। उनकी बेटी मेरी बेटी से एक साल बडी है और उनका
लडका एक साल छोटा। दोनो मिलकर मेरी बेटी को पीट रहे थे। भाभी जी बस मेरी बेटी का
ही नाम लें। मत मारो। मुझे गुस्सा आ गया। मैंनें बेटी को बहुत पीटा। जिसका मुझे
आजतक दुख है। कारण जो मुझे बाद में पता चला। गलती मेरी बेटी की नहीं थी। वह दुबली पतली
अकेली दो को कैसे पीट सकती है। पर उसका नाम शैतानी में सुनकर क्रोध आया जो गलत था।
मेरी मोटी बुद्धि बडों की चालाकी भी न समझ सकी।
फोटो के आगे परदा
इन्ही सब बातों से
दुखी होकर पत्नि ने मेरे घर की बाई लक्ष्मि से कुछ कहा होगा क्योकिं वह किसी संत के
पास जाती थी जो फोटो देखकर बताते थे। पत्नि ने मेरी फोटो दी। कुछ दिन बाद पत्नि आकर
बोली ”गुरू जी कह रहे थे जब मैं इसकी फोटो देखता हूं। एक परदा आ जाता है मैं कुछ देख
ही नहीं पाता। भीमाशंकर ग्रुप पिकनिक गये। कई लोगों ने वहां पुत्र के लिये धागा बांधा
और सबको हुआ भी पर मैंने न बांधा। शिव तू मुझे मिले ये ही बोलकर चला आया। हालांकि पत्नी
नाराज हुई मुझसे कई दिन नाराज रही। पता नहीं मेरे मुख में ताला पड जाता था।
एक सन्यासी का प्रण
टूटा
मेरे कालोनी निवास
में मेरे सहकर्मी मित्र श्री वाई.डी.शुकला की पत्नि के घर एक सन्यासी, जूना अखाडा, के आते थे। उनके पास एक दुर्लभ सिद्ध माला
थी जो बांझ को भी पुत्र दे देती थी। मतलब वह कभी खाली नहीं गई। वह भी मेरी पत्नी को
दी। फिर दुबारा दी इस प्रण के साथ कि यदि यह फलित न हुई तो मैं तुम्हारे घर न आऊंगा।
एक साल पहनी। कुछ न हुआ। पत्नी की जिद्द के कारण एक सन्यासी गुरू का चेले के घर आना
भी बंद हुआ। इसका मुझे दुख है।
बजरंग बली नाम की
महिमा
एक बार कार्यालय
में सहकर्मी अधिकारी डा. सुभाष त्रिपाठी के साथ लिफ्ट में फंसा। सबने प्रयास किया।
आखिर में मैंने6 जय बजरंगबली बोलकर सहजता से खोल दिया। एक पुराने बाथरूम को खोलना था।
विभागाध्यक्ष श्री प्रीतम गांधी सहित कई लगे थे। मैं आ रहा था। बस देखा सबको हटाया
एक लात जय बजरंग बली बोला, किवाडा खुल गया। एक बार मैं बेटी
को छोडने जा र्हा था। कार स्टार्ट न हो कई धक्के मारे पर रुक जाये। अंतत: जय बजरंग
बली बोलकर हलका सा धक्का मारा। कार स्टार्ट। कहने का मतलब है कि आप किसी की भी पूजा
करें। बजरंगबली सहायक होते हैं। उनके नाम की शक्ति को मैंनें कई बार परखा। रामभक्त
हनुमान एक जीवित देव हैं। आप उनकी भकति कर के तो देखो। लखनऊ के बाबा नीम करौली हनुमान
भक्त हैं और क्या क्या कथायें प्रसिद्ध हैं।
बोलिये पवन पुत्र
हनुमान की जय।
............क्रमश:
..................
भाग 7 का लिंक
भाग 7 का लिंक
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है।
कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार,
निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि
कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10
वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल
बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" देवीदास विपुल
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