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Monday, September 14, 2020

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 12 (कर्म, अकर्म और विकर्म)

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 12 (कर्म, अकर्म और विकर्म)


Hb 87 lokesh k verma bel banglore:

*नेत्रेते एव धन्ये ये अन्धानां मार्गदर्शके ।*

*रक्षतः कण्टकाकीर्णात मार्गातान विषमात्तथा ।।*

सौभाग्यशाली हैं वे जो दृष्टिविहीन का पथसंचलन मे सहयोग करते हैं  तथा कंन्टकीय मार्ग से उन्हें सुरक्षित रखते हैं।

Blessed are those eyes that guide the way of the blind and protect them from their staying on thorn ridden path. (The moral: The "haves" must help the "have - nots".

*शुभोदयम् !लोकेश कुमार वर्मा Lokesh kumar verma*

Bhakt Lokeshanand Swami: इधर भरतजी ननिहाल में सो रहे हैं, उधर अयोध्या में कोहराम छाया है। गुरुजी ने भरतजी को बुलवाने के लिए दूत रवाना किए।

भरतजी ने स्वप्न में देखा कि मैं अयोध्या के नभमंडल में चल रहा हूँ, नीचे देखता हूँ तो धुआँ ही धुआँ है, मानो हजारों चिताएँ एक साथ जल रही हों। अचानक धुएँ को चीरकर पिताजी का सिर विहीन धड़ बाहर निकला।

पीछे से भैया राम दौड़ते आए, पर मुझे देखते ही वापिस मुड़ने लगे। मैंने पुकारा तो मेरी और पीठ कर, कहीं विलीन हो गए। "रामजी ने मुंह मोड़ लिया" बस, दुख असह्य हो गया, भरतजी की नींद टूट गई। भरतजी जाग गए॥ जाग गए॥

अब ध्यान दें!! आप कितना ही स्वप्न में खोए हों, दुख सहनशीलता से पार हो जाए तो स्वप्न टूटता ही है। वो अलग बात है कि लाख बार दुख आया, लाख स्वप्न टूटे, जो जागना चाहता ही नहीं, वह स्वप्न का अभ्यासी फिर फिर करवट बदल कर सो जाता और नया स्वप्न देखने लगता है।

योंही मोह रूपी रात्रि में सोए, जाग्रत रूपी स्वप्न में खोए, जीव को, जगाने के लिए, करूणामय भगवान के अनुग्रह से, परम सौभाग्य रूप दुखजनक परिस्थिति उत्पन्न होती है।

सावधान साधक जाग जाता है, मूढ़ पछाड़ खाकर गिरता है, दहाड़ मार मार कर रोता है, पर जागता नहीं, दस बीस दिन छाती पीटकर, पुनः नई वासना से युक्त हो, पुनः दृश्य जगत में खो जाता है।

हाय! हाय! दुख की कौन कहे? वह तो इतना जड़ बुद्धि है कि कितने ही उसकी गोद में दम तोड़ गए, वह स्वयं लाख बार मरा, अग्नि में जलाया गया, कब्रों में दबाया गया, नालियों में गलाया गया, कीड़ों से खाया गया, पर नहीं ही जागा।

मूर्ख तो दुख के पीछे ही छिप बैठा है, कहता है "यहाँ इतना दुख है, आपको जागने की पड़ी है? जब तक मैं इस दुख का उपाय न कर लूं, जागूं कैसे? यह दुख ही मुझे जागने नहीं देता। पहले मुझे सुखी कर दो, फिर जागने का प्रयास करूंगा।"

आप विचार करें, जो दुख में नहीं जाग रहा, वह सुख में जागेगा? न मालूम इस सोने से उसका मन कब भरेगा?

अब विडियो देखें- भरत जी जाग गए

https://youtu.be/Prj5W1AsMl0


Bhakt Lokeshanand Swami: मालूम नहीं यह कहानी कभी घटी थी, या काल्पनिक है, पर कीमती है। वैसे भी इस मिथ्या जगत में, जहाँ स्वप्न के सिवा कुछ है ही नहीं, झूठी कहानी से भी सत्य को पाने का रास्ता मिल जाए तो हर्ज भी क्या है?

एक राजा अपने विजय अभियान पर निकला हुआ था। कईं राज्य जीतने के बाद वह राजा अपने मंत्रियों से, एक और द्वीप पर चढ़ाई करने की योजना पर विचार विमर्श कर रहा था।

मंत्री कह रहे थे कि अब और युद्ध न किया जाए। कारण यह था कि एक तो सेना कम रह गई थी, वह बहुत थकी हुई थी और उन्हें घर की याद भी सता रही थी। दूसरे, उस द्वीप पर खूंखार आदमखोर लोग रहते थे और उनकी संख्या भी बहुत अधिक थी।

राजा का पीछे हटने का मन नहीं था। तो उसने अपने मंत्रियों को कुछ निर्देश दिए और शाम को ही आक्रमण करने का आदेश दे दिया।

राजा की आज्ञा कैसे टाली जाए? तो शाम को सेना ने नावें तैयार कीं, और कूच कर दिया। सभी मृत्यु के भय से निष्प्राण हुए, अपनी मृत्यु निश्चित जान, बेमन ही आगे बढ़े जा रहे थे।

जैसे ही सेना द्वीप के किनारे उतरी, एक मंत्री ने सभी नावों में आग लगा दी। तब तक रात हो चली थी। नावें धू धू कर जलने लगीं, चारों ओर बड़ा भयंकर धुआँ छा गया और चीख पुकार मच गई। एकबार तो सभी की रही सही उम्मीद भी दम तोड़ गई।

पर तब बड़ा विचित्र वातावरण उत्पन्न हो गया। पीछे लौटने का तो कोई उपाय बचा न था, तो दो ही रास्ते बचे, करना या मरना। सभी की रगों में जोश भर गया। और जैसे सिंह मृगशावक को फाड़ डालता है, सैनिकों ने उस द्वीप की सेना को देखते ही देखते काट डाला।

लोकेशानन्द कहता है कि हमें भी मृत्यु पर विजय प्राप्त करनी है। हमें भी बिना घबराए, बिना अटके, बिना भटके, बिना पीछे मुड़कर देखे, निरंतर आगे बढ़ते रहना है। इस कहानी में तो नाव दूसरे ने जलाई है, पर हमें अपनी नाव स्वयं जलानी होगी।

तब आप देखेंगे कि मृत्यु के सिर पर पैर रख दिया गया है।

Bhakt Parv Mittal Hariyana: प्रभु जी, जगत में यदि स्थान पर कोई मौजूद न हो तो उसका स्थान कोई अन्य ले लेता है, फिर यह तो ग्रुप है। किसी अन्य को स्थान देने के लिये तो हम स्वयं स्थान बना देते है। सुन्दरम और मैं खुद कई बार इस हेतु ग्रुप आए लेफ्ट हो जाते है कि मुमुक्षु को स्थान प्राप्त हो।

http://freedhyan.blogspot.com/2018/12/blog-post_63.html?m=0

पराजित राष्ट्र तब तक पराजित नहीं होता जब तक वह अपने सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा कर पाता है।

-आचार्य चाणक्य

+1 (913) 302-8535: जब श्रीकृष्ण महाभारत के युद्ध पश्चात् लौटे तो रोष में भरी रुक्मिणी ने उनसे पूछा..

स्वामी सब तो ठीक था किंतु आपने द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह जैसे धर्मपरायण लोगों के वध में क्यों साथ दिया?

श्री कृष्ण ने उत्तर दिया..,

ये सही है की उन दोनों ने जीवन पर्यंत धर्म का पालन किया किन्तु उनके किये एक पाप ने उनके सारे पुण्यों को हर लिया

"वो कौनसे पाप थे?"

श्री कृष्ण ने कहा :

"जब भरी सभा में द्रोपदी का चीर हरण हो रहा था तब ये दोनों भी वहां उपस्थित थे ,और बड़े होने के नाते ये दुशासन को आज्ञा भी दे सकते थे किंतु इन्होंने ऐसा नहीं किया उनका इस एक पाप से बाकी धर्मनिष्ठता छोटी पड गई।

रुक्मिणी ने पुछा,

"और कर्ण?

वो अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध था ,कोई उसके द्वार से खाली हाथ नहीं गया उसकी क्या गलती थी?"

श्री कृष्ण ने कहा, "वस्तुतः वो अपनी दानवीरता के लिए विख्यात था और उसने कभी किसी को ना नहीं कहा,

किन्तु जब अभिमन्यु सभी युद्धवीरों को धूल चटाने के बाद युद्धक्षेत्र में आहत हुआ भूमि पर पड़ा था तो उसने कर्ण से, जो उसके पास खड़ा था, पानी माँगा ,कर्ण जहाँ खड़ा था उसके पास पानी का एक गड्ढा था किंतु कर्ण ने मरते हुए अभिमन्यु को पानी नहीं दिया इसलिये उसका जीवन भर दानवीरता से कमाया हुआ पुण्य नष्ट हो गया। बाद में उसी गड्ढे में उसके रथ का पहिया फंस गया और वो मारा गया"...

अक्सर ऐसा होता है की हमारे आसपास कुछ गलत हो रहा होता है और हम कुछ नहीं करते । हम सोचते हैं की इस पाप के भागी हम नहीं हैं किंतु मदद करने की स्थिति में होते हुए भी कुछ ना करने से हम उस पाप के उतने ही हिस्सेदार हो जाते हैं।


किसी स्त्री, बुजुर्ग, निर्दोष,कमज़ोर या बच्चे पर अत्याचार होते देखना और कुछ ना करना हमें पाप का भागी बनाता है। सड़क पर दुर्घटना में घायल हुए व्यक्ति को लोग नहीं उठाते हैं क्योंकि वो समझते है की वो पुलिस के चक्कर में फंस जाएंगे|

आपके अधर्म का एक क्षण सारे जीवन के कमाये धर्म को नष्ट कर सकता है।

साभार।

+91 99834 33388: फिर तो हम रोज चाहे अनचाहे हजारों पापों के भागीदार बन रहे हैं, जिसका प्रायश्चित कई जन्मों में भी कर पाना असंभव होगा..🙏

उपनिषद ज्ञान विज्ञान हैं। हिंद का अभिमान हैं॥

सुलझी वाणी वेदों की। जीवन मूल्य गान हैं॥

सन्मुख इनके बैठे जो। अन्तस को समेटे वो॥

ईश क्या बतलाते हैं। जगत को समझाते हैं॥

तम अज्ञान नष्ट कर। ज्ञान दीप जलाते हैं॥

आत्मबोध होता क्या। सदानन्द पहिचान हैं॥


और पढ़ने के लिए लिंक पर जाएं।🙏🏻🙏🏻

https://kavidevidasvipul.blogspot.com/2020/01/blog-post_41.html

http://freedhyan.blogspot.com/2020/01/blog-post_15.html?m=1

Bhakt Komal: Ye log admi ko janwar se bhi badtar samajhte h kya😡

Haiwan h seriously

Bhakt Jagat Bhatt Bhav Nagar: अब विपुलजी क्या action लेगें🤔

+1 (913) 302-8535: The news like Vrindavan priest's news shared in the group create negative energy. However, if the news shared is not a fake news, then I can pray to God for departed soul rest in peace and provide strength to all family members and nears and dears to bear the irrepairable loss.

If I want to become Bhishm or Dronacharya or Karn and become part of this sin, I will do nothing after learning the tragedy and crime against humanity. Alternatively, I can do something within my power to become a non-participant of this sin.

1. Was I at physically present at the venue? If yes, did I have sufficient power to stop this sin from happening? If the answer is again yes then I will not be a participant of the sin even if I have to loose my life.

The fact is that I was not physically present at the venue but someone committed this crime against humanity and I learnt about it indirectly. Then what should I do to become non-participant of this sin and perform my duty or dharma as  a spiritual person? My options could be to help administration in finding the criminal(s) or put pressure on the administration to bring culprit(s) or just pray to God to help administration in finding and punishing the criminals.

Since I am sitting so far from the venue of the crime against humanity, I will silently pray to God for helping administration in finding and punishing the criminals.

It is always the "bhav" that takes precedence over "act." If "bhav" or intention is pure, then God will absolve me from being considered as a sinner. The best thing is appropriate "action" within one's powers with purest "intention."

I shared my understanding of spirituality in day to day basis when we are bombarded with negative news like these.

I am a newbie to the group. This is up to group admins to please let me and people like me understand what are the "group policies" for allowance of sharing these kind of news in this group. For sure, I will never share such news in the group because I focus on meditation and my own, very limited but pure, spiritual power to create more positive energy in the world.

Swami Vivekanand is a great example in front of me who used his spirituality to fill up the world with positive energy for generations to come.

Do you understand hindi

+1 (913) 302-8535: Yes, I do. However, my phone is not well equipped for typing in Hindi. I had replaced it before lockdown assuming that it will have Hindi feature. I was wrong. Once situation will ease out here, I have plans to replace my phone again.

Just download Google writing

+1 (913) 302-8535: I will. Thanks. I can see that you are one of the admins. Would you Please enlighten me and possibly few other group members like me regarding group policies? I greatly appreciate your time and help in advance.

Best regards

Bhakt Jagat Bhatt Bhav Nagar: दृशं विदधमि क करोम्यनुतिशमि कथं भयाकुल:। नु तिश्सि रक्ष रक्ष मामयि शम्भो शरणागतोस्मि ते ॥

भावार्थ :

हे शम्भो! मैं अब किध्र देखूँ ;दृि लगाऊँद्ध क्या करूँ, भयभीत मैं कैसे यहां रहूँ? हे प्रभो! आप कहाँ हैं? मेरी रक्षा करें। मैं ;अबद्ध आपकी हीं शरण में हूँ ।

मित्र आपकी बात सही है के नेगेटिव सोचने से निगेटिव देखने से निगेटिव शक्तियां बढ़ जाती है। लेकिन आप केवल यह कल्पना कीजिए यदि आपके किसी परिवार वाले व्यक्ति के साथ भगवान न करे ऐसा हो जैसा कि उस पुजारी के साथ हुआ है तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी।

+1 (913) 302-8535: Thank you. I hope you will start seeing my messages in Hindi from tomorrow.

To answer your question about my reaction if I am one of the family members of (late) pujari ji, I would say that (late) pujari ji was my family member. All humans are part of God's family. Pujari ji was "Brahm", so do I and so do you and so do every human who is trying to understand "who am I?". I will never react or retaliate. However, I will give a calm response. And, I have already shared what my response would be.

"More you see good in others, more you see God in you."

व्यष्टी से समष्टी की ओर मनुष्य को चलना चाहिए।

मेरा संपर्क में कई लोग अलग-अलग तरीके से अलग अलग काम करते हैं।

यह पोस्ट मात्र सूचना ही मानी जा सकती है।

हालांकि मैं इस प्रकार की पोस्ट को ग्रुप में पसंद नहीं करता। किंतु हर मनुष्य की सोच अलग-अलग है।

यह पोस्ट सनातन की रक्षा हेतु भी मानी जा सकती है।

You are always welcome for suggestion and critism। All leads to betterment of group

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