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Monday, September 28, 2020

मां दुर्गा का छठा रूप कात्यायनी


मां दुर्गा का छठा रूप कात्यायनी

  व्याख्याकार: सनातनपुत्र देवीदास विपुल “खोजी”

 मां का सातवां रूप कालरात्रि का लिंक 

नवदुर्गा हिन्दू धर्म में माता दुर्गा अथवा पार्वती के नौ रूपों को एक साथ कहा जाता है। इन नवों दुर्गा को पापों के विनाशिनी कहा जाता है, हर देवी के अलग अलग वाहन हैं, अस्त्र शस्त्र हैं परंतु यह सब एक हैं।


दुर्गा सप्तशती ग्रन्थ के अंतर्गत देवी कवच स्तोत्र में निम्नांकित श्लोक में नवदुर्गा के नाम क्रमश: दिये गए हैं


    प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

    तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।

    पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

    सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।

    नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।

    उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।

 

 

माता कात्यायनी : आज्ञा चक्र में ध्यान कर इनकी आराधना की जाती है। भय, रोग, शोक-संतापों से मुक्ति तथा मोक्ष की दात्री हैं।
आज्ञा चक्र स्पष्टता और बुद्धि का केन्द्र है। यह मानव और दैवी चेतना के मध्य सीमा निर्धारित करता है। यह ३ प्रमुख नाडिय़ों, इडा (चंद्र नाड़ी) पिंगला (सूर्य नाड़ी) और सुषुम्ना (केन्द्रीय, मध्य नाड़ी) के मिलने का स्थान है। ... आज्ञा चक्र का रंग सफेद है।

 
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कात्यायनायै नम:।'


माँ दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है। उस दिन साधक का मन 'आज्ञा' चक्र में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।

मां कात्यायनी देवी दुर्गा का रौद्र रूप हैं। शेर पर सवार रहने वाली मां कात्यायनी अपनी दो भुजाओं में पुष्प और तलवार धारण करती हैं, जबकि अन्य दो भुजाएं अभय मुद्रा और वरद मुद्रा में रहती हैं। मां कात्यायनी योद्धाओं की परम प्रिय देवी हैं। जब संसार में असुरों का अत्याचार बढ़ गया था तब मां पार्वती अपने ज्वलंत स्वरूप में कात्यायन ऋषि के घर कन्या स्वरूप में प्रकट हुईं। कात्यायन ऋषि ने उनको अपनी पुत्री माना, इसलिए वे कात्यायनी हुईं।

आज्ञा चक्र भौहों के बीच मौजूद होता है। इस चक्र पर महारत हासिल करने से शान्ति हासिल हो जाती है और इंसान बुद्धि के स्तर पर सिद्ध पुरुष बन जाता है।


आज्ञा का मतलब, ज्ञान का स्रोत है। यह विवेक का चरम बिंदु है। जैसा कि आप जानते हैं कि प्रकाश अपने में सात रंग संजोए होता है। अगर रोशनी का कोई खास रंग हो, जैसे बैंगनी, लाल या कोई और रंग, तो इसका मतलब है कि यह सिर्फ एक ही मकसद के लिए काम आ सकती है। यह हर मकसद के लिए काम नहीं करेगी। लेकिन आज्ञा रंगहीन प्रकाश है, हम लोग इसे सफेद प्रकाश कह रहे हैं, लेकिन वास्तव में यह रंगहीन प्रकाश है, क्योंकि आप इसे देख नहीं सकते। अगर आप प्रकाश के स्रोत को देखें तो आप प्रकाश को देख पाते हैं, अगर आप उस वस्तु को देखें, जिसपर यह पड़ रहा है तो आप इसे देख पाते हैं, लेकिन अगर आप इन दोनों बिंदुओं के बीच इसे देखने की कोशिश करें तो आप इसे नहीं देख सकते।


आप केवल प्रकाश को तभी देख पाते हैं, जब कोई चीज उसे रोकती है, इसलिए प्रकाश रंगहीन है।

तो जिस तरह से रंगहीन प्रकाश को तोड़ने पर यह सात रंगों में बंट जाता है, इसी तरह, ये सात चक्र सात रंगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेकिन आज्ञा रंगविहीन है। इसलिए आज्ञा का संबंध वैराग्य से है, जिसका मतलब है रंगविहीन या रंगों से परे की अवस्था। क्योंकि प्रकाश रंगविहीन होता है, इसलिए आप हर चीज को उसी तरह देख पाते हैं, जैसे कि वह है। मान लीजिए कि अगर एक कमरे में लाल रोशनी जला दी जाए तो सब लोग कुछ अलग ही नजर आएंगे। इसी तरह से अगर हम नीली रोशनी जला दें तो भी आप सब अलग नजर आएंगे।

अगर आपकी ऊर्जा आज्ञा में काफी प्रबल है या आपने आज्ञा पर महारत हासिल कर ली है तो बौद्धिक रूप से आप एक सिद्ध पुरुष हो चुके हैं। बौद्धिक सिद्धि आपको शांति देती है। भले ही अनुभव के लिहाज से आपको सिद्धि न मिली हो, लेकिन बौद्धिक सिद्धि आपको मिल चुकी है। यह चीज आपके भीतर एक खास तरह की शांति व स्थिरता की स्थिति लाती है, फिर भले ही बाहरी तौर पर आपके साथ जो भी हो रहा हो। जब बाहरी परिस्थितियां आपके भीतर घट रही चीजों पर असर नहीं डालतीं, तो इससे जिस तरह की आजादी मिलती है, वह अपने आप में जबरदस्त होती है। ऐसे में आपके लिए जो चीजें मायने रखती हैं, उसमें लगाने के लिए आपके पास जितनी मात्रा में ऊर्जा रहती है, वह अद्भुत होती है। इसकी वजह है कि बाहरी चीजें आपके लिए मायने नहीं रखतीं, क्योंकि उन चीजों को आपने जस का तस देखा है।

 

इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं।



कात्य गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की उपासना की। कठिन तपस्या की। उनकी इच्छा थी कि उन्हें पुत्री प्राप्त हो। मां भगवती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसलिए यह देवी कात्यायनी कहलाईं। इनका गुण शोधकार्य है। इसीलिए इस वैज्ञानिक युग में कात्यायनी का महत्व सर्वाधिक हो जाता है। इनकी कृपा से ही सारे कार्य पूरे जो जाते हैं। यह वैद्यनाथ नामक स्थान पर प्रकट होकर पूजी गईं।



मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा की थी। यह पूजा कालिंदी यमुना के तट पर की गई थी।



इसीलिए यह ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इनका स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है। यह स्वर्ण के समान चमकीली हैं और भास्वर हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। दायीं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में। मां के बाँयी तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है व नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। इनका वाहन भी सिंह है।



इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इसलिए कहा जाता है कि इस देवी की उपासना करने से परम पद की प्राप्ति होती है।

मंत्र:


    चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
    कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥


मां कात्यायनी की पूजा विधि

चैत्र नवरात्रि के छठे दिन आप सुबह स्नान आदि से निवृत्त हो जाए। उसके पश्चात मां कात्यायनी का स्मरण करें और उनकी विधिपूर्वक पूजा करें। माता कात्यायनी को शहद, धूप, गंध, अक्षत्, सिंदूर आदि अर्पित करें। संभव हो तो मां कात्यायनी को लाल गुलाब अर्पित करें, नहीं तो लाल पुष्प चढ़ा दें। माता को शहद का भोग प्रिय है। फिर उनके मंत्रों का उच्चारण करें और मां कात्यायनी की आरती करें।

 

प्रार्थना

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥

स्तुति

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

मां कात्यायनी बीज मंत्र

क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम

मंत्र

1. एत्तते वदनम साओमयम् लोचन त्रय भूषितम।

पातु नः सर्वभितिभ्य, कात्यायनी नमोस्तुते।।

2. ओम देवी कात्यायन्यै नमः॥

 

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ऊँ कात्यायनी च विद्महे सर्वदेवाय  धीमहि, तन्नो कात्यायनी प्रचोदयात्।  

देवी कात्यायनी को आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका व अम्बिका। इसके अलावा इन्हें मोइया भी कहते हैं। यह औषधि कफ, पित्त व गले के रोगों का नाश करती है। 

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नव - आरती : मां महिषासुरमर्दिनी 



 🙏🙏  दसवीं विद्या: कमला   🙏🙏      

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जय मां कात्यायनी

 


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