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Monday, September 14, 2020

योग क्या और योगी की पहिचान / करोना काल है वरदान

 योग क्या और योगी की पहिचान / करोना काल है वरदान 


सनातनपुत्र देवीदास विपुल “खोजी”


देखो योग क्या है।

वेदांत महावाक्यकहता है आत्मा में परमात्मा की एकात्मकता का अनुभव ही योग है।

इस अनुभव हेतु लोगों ने 6 अंगों वाला षष्टांग योग 7 अंकों वाला सप्तांग योग और पतंजलि महाराज ने अष्टांग योग बताया।

योग की कसौटी हेतु चार वेद महावाक्य निर्मित हैं।

इन महावाक्यों का अनुभव / अनुभूति ही योग कहलाता है और यही विद्या की ब्रह्म ज्ञान की और ज्ञान योग निशानी है।

पांचवा सार वाक्य है।

अहं ब्रह्मास्मि - "मैं ब्रह्म हुँ" ( बृहदारण्यक उपनिषद १/४/१० - यजुर्वेद)

तत्त्वमसि - "वह ब्रह्म तु है" ( छान्दोग्य उपनिषद ६/८/७- सामवेद )

अयम् आत्मा ब्रह्म - "यह आत्मा ब्रह्म है" ( माण्डूक्य उपनिषद १/२ - अथर्ववेद )

प्रज्ञानं ब्रह्म - "वह प्रज्ञानं ही ब्रह्म है" ( ऐतरेय उपनिषद १/२ - ऋग्वेद)

सर्वं खल्विदं ब्रह्मम् - "सर्वत्र ब्रह्म ही है" ( छान्दोग्य उपनिषद ३/१४/१- सामवेद )


अब योग की पहचान क्या है

श्रीमद भगवत गीता के अनुसार योग होने के पश्चात मनुष्य के अंदर समत्व का भाव यानी सभी प्राणी एक स्थिर बुद्धि यानी न छोटा ना बड़ा न कष्ट न सुख-दुख इत्यादि और स्थित यानी बुद्धि का प्रभु में लीन हो जाना।

यह लक्षण है और यह लक्षण भी धीरे-धीरे आते हैं किसी में कम किसी में ज्यादा।

साथ ही वह किसी भी कर्म को मन लगाकर करता है और उसकी फल की इच्छा नहीं करता है यानी निष्काम कर्म करता है।

पतंजलि महाराज के अनुसार उसके चित्त में कभी भी वृत्ति पैदा नहीं होती है यानी कोई भी कार्य  वह अपने चित्त में बिना विक्षेप के करता है। “चित्त में वृत्ति का निरोध ही योग है”। योग सूत्र 2

इसके अतिरिक्त जो यम और नियम हैं उनका पालन वह स्वत: करने लगता है।

अब वेद महावाक्य का अनुभव कुछ क्षणों से लेकर लंबे समय तक हो सकता है।

लेकिन यह अनुभव बहुत कुछ ज्ञान दे जाता है

जो मनुष्य चौबीसों घंटे स्थितप्रज्ञ हो जाता है और वेद महावाक्य की अनुभूति में रहता है वह महायोगी और ब्रह्मस्वरूप कहलाता है।

योग के अनुभव के पश्चात मनुष्य के गिरने की भी संभावना रहती है किंतु वह भौतिक रूप से गिर सकता है लेकिन ज्ञान उसके पास निरंतर रहता है।

जिसकी कसौटी हम उसके द्वारा किए गए कर्मों के हिसाब से कर सकते हैं।

जिस मनुष्य को बिना साकार के अनुभव के निराकार ब्रह्म का अनुभव होता है वह अहंकार युक्त हो सकता है। क्योंकि जब हम ब्रह्म के समान महसूस करते हैं तो निरंकुश हो सकते हैं। जबकि मैं इसको मात्र एक उच्च क्रिया ही मानता हूं।

साकार यानि द्वैत जिसमें प्रभु के साकार दर्शन होने पर हम अपने को उसका दास मानने लगते है अत: समर्पण बढ़ जाता है। इसके बाद निराकार का अनुभव हमें अहंकार में लिप्त नहीं होने देता। वैराग्य इत्यादि अपने आप ही आने लगता है। जगत के किसी पद पुरस्कार या सम्मान अथवा लोभ भी नहीं रहता है।

मनुष्य अपने में लीन हो जाता है। उअसका एक मात्र लक्ष्य सनातन की सेवा और जगत के क्ल्याण हेतु लोगों को सनातन हेतु प्रेरित करना ही रहता है। क्योंकि जगत की सत्यता सामने आ जाती है।

क्योंकी विश्व शांति एकमात्र भारतीय सनातन ज्ञान ही दे सकता है। बाकी तो जगत में अशांति अत्याचार और कुमार्ग की ही शिक्षा देते हैं। मनुष्य को स्वार्थी और पापी बनाने की शिक्षा देते हैं। पाप की शिक्षा भी समझा कर उसे सही बता कर देतें हैं।

सनातन का अर्थ बौद्ध, जैन अथवा सिख विचारधाराओं से ही है। हां पारसी भी सनातन का कुछ हद तक हिस्सा है।


इसका कारण यह है जब हम आरंभ में ही निर्गुण निराकार की आराधना आरंभ करते हैं तो हमें निराकार का ही अनुभव होता है और क्योंकि हम किसी को नहीं मानते हैं तो हमें कौन बचाएगा क्योंकि हम अद्वैत को मानने लगते हैं।

मेरे विचार से द्वैत से अद्वैत का अनुभव ही योग है।

यह सत्य है ईश्वर का अंतिम रूप निराकार है और अद्वैत ही अंतिम अनुभव है जिसकी आवश्यकता है मोक्ष की प्राप्ति हेतु।

किंतु द्वैत में भक्ति योग मिलता है जो अत्यंत आनंददायक होता है और इसके आनंद की कोई सीमा नहीं होती है इसीलिए जो व्यक्ति द्वैत से अद्वैत की ओर जाता है भक्ति योग से ज्ञानि योंग की ओर जाता है उसको दोनों अनुभव हो जाते हैं और उसे हम पूर्ण अनुभव कह सकते हैं।

इसीलिए मैं सभी को यह सलाह देता हूं कि सदैव सगुण साकार से भक्ति आरंभ करो यही तुम को पूर्ण अनुभव देगा यहां तक कि आदि गुरु शंकराचार्य आरंभ में निराकार थे अद्वैत थे किंतु बाद में उनको द्वैत की भावना में आना पड़ा और साकार की आराधना में उनको समय बिताना पड़ा।

वही माधवाचार्य ने अपनी यात्रा द्वैत से आरंभ करी और द्वैत पर ही खत्म कर दी। अतः उनको कृष्ण लोक मिला होगा।

यदि हमारे मन में मोक्ष की भावना रहेगी और कोई भी सतगुण भी रहेगा तो हमें मोक्ष नहीं मिल सकता।

हमें त्रिगुणातीत होना होगा तब हम इसकी संभावना कर सकते हैं।

इसीलिए मैं यह बात कहता हूं कलयुग में यदि तुम अष्टांग योग के नियम का पांचवा अंग यानी ईश प्राणीधान निभा सको तो तुम को सब मिल जाएगा।

मैं समझता हूं योग के विषय में लोगों की जानकारी कुछ बढ़ी होगी।

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मित्रों वर्तमान में करोना को लेकर जिस प्रकार से विश्वव्यापी भय का माहौल पैदा हुआ है यह वास्तव में आपकी परीक्षा की घड़ी है यदि आप भयभीत होते हैं तो इसका मतलब यह है कि आप ईश्वर पर भरोसा नहीं करते और आप योगी तो हो ही नहीं सकते क्योंकि जीवन और मरण सिर्फ ईश्वर के हाथ में होता है। उससे भय क्या।

और वैसे यदि आपको लगता है कि भय है तो यह तो बहुत अच्छी बात है अब आप प्रभु भक्ति में जुट जाएगी यह सोचकर यह आपके दिन नजदीक आ गए आप अपनी प्रभु सेवा को और बढ़ा दीजिए मंत्र जप और बढ़ा दीजिए।

और प्रयास कीजिए गंगा जी का तट हो मेरा सांवरा निकट हो जब प्राण तन से निकले।

इस भावना के साथ आप सभी को शुभकामनाएं और आप सभी को बधाई हो आपकी परीक्षा आरंभ हो गई है।

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करोना पर यक्ष विचार

शायद यह कुछ कहने आया है।

जो इसने समय पर नहीं पाया है।।

हम जिंदगी की आपाधापी में।

शायद कुछ भूल गए थे।।

अपने घर से भी होता है रिश्ता।

पर दुनिया में झूल गए।।

शायद यह हमें फिर से जोड़ने आया है।

हमें हमारा घर बतलाने आया है।।

प्रदूषण से कराह रही थी यह धरती।

इसलिए प्रदूषण कम करने आया है।।

बर्गर पिज्जा में घर का खाना हम भूल गए थे।

इसीलिए हमें घर में खाना खिलाने आया है।।

आभासी फिल्मी दुनिया में हम भूल गए थे अपनी दुनिया।

उस आभासी दुनिया से हमें निकालने आया है।।

खो गई थी जो प्रकृति की रंगीनियां।

उन्हें फिर से वापिस बुलाने आया है।।

वास्तव में करोना हमें मारने नहीं‌।

सुधारने आया है।।

माध्यम तो चीन है पर यह प्रभु की माया है।।

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शिवाय नम:,

या तो कर्म सिद्धान्त पर आपकी पूर्ण निष्ठा हो कि जो कर्म किये हैं उनका फल तो भोगना ही होगा। यदि प्रारब्ध कर्मफल के रूप में चाईना कोरोना वायरस से आपको संक्रमित होना होगा तो इसे ही प्रराब्ध रूप में स्वीकार करें। यदि ऐसा कोई कर्म किया ही नहीं कि ये बीमारी से आक्रान्त हो शरीर नष्ट होना हो तो वह आपको होगी ही नहीं। यह जानें एवं चिन्तामुक्त रहें।

या तो भक्ति ही कर लो। सबकुछ ईश्वर पर छोड दो। ईश्वर अपने भक्त को योगक्षेम स्वयं ही वहन करते हैं। यदि कोरोना होगा भी तो उसमें आपके लिए ईश्वर की कोई बडी लाभप्रद बात ही छिपी होगी। हम बहुत छोट समय सीमा के छुद्र लाभों को ही देख पाते हैं। ईश्वर समष्टि की दृष्टि से आपके लिए क्या श्रेष्ठ है इसका विचार आपसे उत्तम रूप से कर सकता है। इस प्रकार जो भक्त हैं वे चिन्तामुक्त हैं।

या तो वेदान्त के परमज्ञान में स्थित हो जाओ। तब तो कोई किसी भी प्रकार की चिन्ता का प्रश्न ही नहीं। आपके सद्चिदानन्दस्वरूप में तो विकार, विक्षेप सम्भव ही नहीं। शरीर जब तक चल रहा है चल रहा है नहीं चल पायेगा तो गिर जायेगा बस। मैं तो इस देह से विलक्षण सद्चिदानन्त आत्मा हूं।

जिनका जीवन आत्मचिन्तन प्रधान रहा है वे गीता के दूसरे अध्याय पपर गहन चिन्तन करें। सारी चिन्ताओं से मुक्त होने का इससे श्रेष्ठ विधान तो कोई ज्ञात नहीं। कभी चित्त को इस चिन्तन से नीचे उतरता जानो बस दो श्लोकों का चिन्तन करो एवं चित्त पुन: प्रशान्त अवस्था को प्राप्त हो जाता है।


देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा।

तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति।।२.१३।।

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय

नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।

तथा शरीराणि विहाय जीर्णा

न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।२.२२।।

चलिए यह तो हुई उनकी चर्चा जिनका अध्यात्मचिन्तन कुछ परिपक्वास्था में है। घर में आग लग जाने पर फिर तो पानी का गड्डा खोदा नहीं जा सकता।

अब चर्चा करते हैं समान्यजनों की दृष्टि से जो सबके लिए लाभप्रद हो।

भय परिस्थितियों में किसी प्रकार का सुधार नहीं लाता अपितु उन्हें और जटिल बना देता है। जो व्यक्ति सामान्यरूप से स्वस्थ हैं किसी जटिल रोग से ग्रसित नहीं हैं उनके लिए कोई विशेष समस्या नहीं है। किन्तु उन्हें भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि वे इस रोग के वाहक बनकर उन लोगों को संक्रमित न करें जिनके लिए ये प्राणघातक हो सकता है।

इस समय को चाईना कोरोना चातुर्मास के रूप में एकान्त में बितायें। भगवद्भजन एवं गीता आदि शास्त्रों के अध्ययन में इस समय का सदुपयोग करें। इसे ईश्वर प्रदत्त वरदान जानें जब आपको इस जटिल भाग दौड भरे जीवन में कुछ मास एकान्तवास एवं भगवद्भजन को प्राप्त हो रहे हैं। इस समय को आत्मचिन्तन, भगवद्भजन में बीतायें। गीता के दूसरे अध्याय का श्रवण एवं मनन करें।

यह समय एक दूसरे पर आरोप लगाने का, धार्मिक रूढीवादिता के प्रचार प्रसार का भी नहीं है। अपितु इस समय सारे भेदभाव भुला कर, इसे आपात काल जान मानवमात्र के प्रति सुहृदता का प्रदर्शन कर एकत्रित हो इस माहामारी को फैलने से रोकने के लिए प्रयास करने की आवश्यकता है। दूसरों को नीचा दीखा अपना मण्डन खण्डन बाद के विषय हैं। अपनी शुद्धता एवं देवत्व के प्रचार प्रसार का समय यह नहीं। सबके साथ मिलकर सबके हित के लिए कार्य करने का समय है। कौन पापी है कौन पुण्यात्मा एवं आपसी मतभेद बाद में सुलझाते रहेंगे।

जाने क्या है महामाई की इच्छा।

अगर यह नवरात्रों के पश्चात शान्त नहीं हुआ तो परिस्थितियां विकट हो सकती हैं। हमें जो अन्त: प्रेरणा हो रही है वह है शिव के योगेश्वर योग की। इस अनुष्ठान को अत्यन्त दुष्कर कार्य के लिए ही करने को कहा जाता है। शिव पुराण में कहा गया है कि इसका अनुष्ठान उसके फल को प्राप्ति के लिए करना चाहिए जो अन्य कार्यों से असाध्य हो।

महत्स्वपि च पातेषु महारोगभयादिषु।

दुर्भिक्षादिषु शान्त्यर्थं शान्तिं कुर्यादनेन तु।।

महोत्पात, महारोग, महाभय एवं दुर्भिक्ष आदि की शान्ति के लिए इसका अनुष्ठान करना चाहिए। यदि कुछ लोग आगे आयें तो पूरे राष्ट्रहित के लिए मिलकर यह अनुष्ठान सम्पन्न किया जा सकता है।

मित्रों कल आप दिन भर महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें अथवा घंटे के साथ ओम का जाप करें।

घंटे के नाद से पी तरंगे निकलती है जो वायुमंडल में ध्वनि संचरण में दवाब की समानांतर जगह पैदा करती है जिसके कारण बहुत सारे वायरस का प्रोटीन का ऊपरी कवच टूट सकता है। यही तरंगे शंख के द्वारा भी पैदा होती है। ध्यान रहे संगीत से यह तरंगे उतनी प्रभावशाली नहीं होंगी जितनी की घंटे की अथवा शंख की ध्वनि से होंगी।


हे मां जगदंबे जगजननी तुम्हारी जय हो जगत का कल्याण करो मां।

मैं मूर्ख सोचता था कि मैं सनातन का हिंदुत्व का प्रचार कर सकूंगा लोगों को हिंदुत्व की सही परिभाषा बता सकूंगा यह सब कैसे होगा सिर्फ तुम्हारी लीला का सहारा था, है और रहेगा किंतु तुम तो मायाधारी लीलाधारी हो एक चक्र में तुमने संपूर्ण जगत में अपना परचम फहरा दिया पूरी दुनिया में सभी लोग सनातन की ओर प्रेरित होंगे पश्चिमी सभ्यता और बिगड़ी सभ्यतायें एक बार पुनः बौनी सिद्ध हो गई। सिर्फ सनातन ही सर्वश्रेष्ठ से सिद्ध हुआ।

तुम्हारी जय हो तुम्हारी जय हो।

मांसाहार एक झटके में बंद करा दिया शव का दाह संस्कार एक झटके में आरंभ करा दिया। भारत की नमस्कार की परंपरा को स्थापित कर दिया।

पतंजलि के आसन और प्राणायाम को फिर से स्थापित किया और लोगों को ध्यान की ओर प्रेरित कर दिया।

हे मां तुम्हारी शक्ति अपरंपार है तुम्हारे प्रत्येक कार्य में जगत का कल्याण छुपा होता है। तुम दयालु हो कृपालु हो सदैव जगत का कल्याण ही करती हो। कभी-कभी यह दिखता है तुम गलत कर रही हो लेकिन ऐसा नहीं मनुष्य को अपने कर्मों का दंड भोगना ही होता है और आज इस वायरस के रूप में मनुष्य जाति ने जो दुष्कर्म किए प्रकृति के साथ खिलवाड़ किए उन सब का फल भोगने के लिए मौत के साए में खड़ा हुआ है यह सब तुम्हारी लीला है मां सब तुम्हारी लीला है मां तुम्हारी जय हो मां तुम्हारी जय हो।

या देवी सर्वभूतेषु दया रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै:   नमस्तस्यै:   नमस्तस्यै: नमो नमः।।

हे मां जगदंबे तुम्हारी जय हो तुम्हारी जय हो। मां शरणागत की रक्षा करने वाली दयालु मां तुम्हारी जय हो तुम्हारी जय हो।

अभी तक पुस्तक में पढ़ा था कि किस प्रकार तुम जगत का भार कम करती हो अब यह देख रहा हूं। इस जगत के सभी रूप तुम्हारे हैं जन्म से लेकर मृत्यु तक वाणी से लेकर सांस तक हर जगह तुम्हारा मां। मां जो कुछ पुस्तक में पढ़ा था आज प्रत्यक्ष देख रहा हूं किस प्रकार तुम इस सृष्टि की रक्षा करने के लिए अपना चक्र चलाती हो। तुम्हारी लीला अपरंपार है मां तुम्हारी जय हो तुम्हारी जय हो।

कितनों को इस महामारी ने तुम्हारी शरण ला दिया जिसकी कोई गिनती नहीं है।

कितने ही आज जीवन बचाने के लिए तुम्हारी शरण में आए होंगे। तुम सर्व सत्तामई हो जगत की पालक हो यह सिद्ध हो गया की तुम ही तुम हो तुम ही तुम हो।

जय मां जगदंबके।

दुर्गा सप्तशती में अंत में दिए हुए हैं दो मंत्र एक महामारी विनाश के लिए है ओम जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते। और दूसरा रोग नाश के लिए

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मां तेरी जय हो जय हो जय हो। 🙏🏻🙏🏻💐💐🙏🏻

तेरे चरणों में लीन रहूं गर मृत्यु मुझे जो आए मां।

तेरी सुंदर छवि सामने हो जो मृत्यु मुझे बुलाए मां।।

हर जन्म में तेरा साथ मिले तेरी अनुकंपा बनी रहे।

मेरी न कोई इच्छा हो यदि जग मुझको बिसराये मां।।


तू जो करती मां वही करे तुझको न कोई रोक सके।

पर यह विनती इस बालक की चरणों में लीन भुलाए मां।।

तूने मानव का जन्म दिया और तीर्थ शिवओम सा गुरुवर मिला।

अब न कोई इच्छा बाकी जो मैं तुझसे गुहराऊं मां।।


तेरी भक्ति का अमृत पिया मां दर्शन तूने दे डाला।

मुझ अधम पतित पापी को मां अब कोई भी भय न सताए मां।।

हर सांस पर तेरा नाम जपुं हर पल चरणों में लीन रहूं।

यही विनती कर बार बार यही गीत दुहराऊं मां।।


है दास विपुल ने देख लिया जीवन क्षणभंगुर सपना है।

तू ही बस केवल सत्य है मां बाकी सब मिथ्या सपना है।।

ज्ञान ध्यान विज्ञान जगत सब तूने ही दे डाला मां।

नतमस्तक तेरे आगे हूं अब बलिहारी मैं जाऊं मां।।


हे प्रभु राम तुम्हारी जय हो।

सब भक्तन हितकारी जय हो।।

सारे जग से न्यारी जय हो।

छवि तेरी दुलारी जय हो।।


संतन रक्षा हितकारी जय हो।

कौशल्या तो वारी जय हो।।

दशरथ नंदन तुम्हारी जय हो।

दास विपुल बलिहारी जय हो।।


अधर्म विनाशी धर्म के पालक।

पाप धरती से जल्दी क्षय हो।।

सत्य सनातन ध्वज फहराए।

श्रेष्ठ भारत की पुनः पुनः जय हो।।

 

मित्रों जिस प्रकार से आपको घर में रहने का समय मिला है ऐसा सदियों में एक बार मिलता है इस समय का सदुपयोग करना सीखें।

अधिक से अधिक इईश प्राणीधान में लिप्त हों। मतलब नवधा भक्ति में किसी को भी अपना कर निरंतर प्रभु चिंतन में व्यस्त रहें।

जो होना है वह होकर रहेगा लेकिन जो समय आपको मिला है वह बहुमूल्य है उसके लिए आप अपना आध्यात्मिक उत्थान करने का प्रयास करें।

व्हाट्सएप पर कम से कम ध्यान दें फेसबुक पर भी कम से कम ध्यान दें। टीवी तो बंद ही कर दे तो बेहतर होगा।

अपने इष्ट का निरंतर जाप करें रात को समय मिले तो मन करे तो सचल मन वैज्ञानिक ध्यान विधि के द्वारा अपनी आध्यात्मिक शक्तियों को उजागर करें।

मित्रों मैं यह देख रहा हूं कि लोग घर में रह ही नहीं पा रहे हैं रोज व्हाट्सएप के सारे ग्रुप के मैसेज डिलीट करने पड़ते हैं।

जबकि यह तो समय आपको प्राप्त हुआ है यह समय आपको कभी नहीं मिलेगा जब आप अपने स्वयं के नजदीक जा सके अपने स्वरूप को पहचान सके।

आपको आश्चर्य होगा मेरे घर में टीवी 1 साल से बंद है फेसबुक और व्हाट्सएप पर मैसेज बहुत कम लिख रहा हूं। फिर भी मैं प्रसन्न हूं और मेरा समय सकुशल बीत रहा है।

मैं बार-बार आपसे अनुरोध करता हूं जो होना है वह होकर रहेगा निश्चिंत रहिए लेकिन सावधानी बरतिए साथ में प्रभु स्मरण करते रहिए हर संभव प्रयास कीजिए कि उसमें लीन रहे कोई न कोई आध्यात्मिक कथा पढ़िए। टीवी से दूर रहिए फेसबुक व्हाट्सएप से भी दूरी रखने का प्रयास करिए।

मैं बता रहा हूं कि यह समय आपको जो मिला है यह कलियुग में कभी प्राप्त नहीं होता है जब आप प्रभु को अपने नजदीक महसूस कर सकते हैं।

बूझो तो जानी। मानू तब ज्ञानी।।

भाव भाव को देखता, न है भाव आ भाव।

भाव नहीं तो भाव क्यों, क्यों है भाव अभाव।।

तू देखे तुझको न मैं, तुझको तुझ में देख।

बूझ गया जो तुझको मैं, पड़ी समय इक रेख।।

समय चला गतिमान बन, गति गति है शून्य।

दूर गति करे चले तू, दाल धान ले चून।।

बरस बरस के बरस गए, असुअन  नयनन धार।

दिन बारिस सब सून है, कैसे बेड़ा पार।।

मांग मांग कर भर लिया, अपने घर को आज।

बने भिखारी आज सब, कौन बने सरताज।।

मद माया ममता यहां, करै न बेड़ा पार।

इनका यहां न मोल है, कैसे बेड़ा पार।।

मांग मांगे बुझे नहीं, क्षुधा अलग है राज।

दिशा क्षुधा की मोड़ कर, बन जा तू सरताज।।

यम का पासा दिख रहा, गोटी कौन पिटाय।

जो गोटी निज घर रहे, वोही तो बच पाय।।

चौसर खेले रोग यह, यम की चलती चाल।

बैठे रहो क्रास पर, यह जीवन की ढाल।।


जय गुरूदेव जय मां काली



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