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Monday, October 15, 2018

उपासना, साधना और आराधना



उपासना, साधना और आराधना

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
 वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi
फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"



आध्यात्मिक साधना का सारा-का-सारा माहौल तीन टुकड़ों में बँटा हुआ है। ये हैं- उपासना, साधना और आराधना।

उपासना के नाम पर लोग अगरबत्ती जलाकर और नमस्कार करके उसे समाप्त कर देते हैं। परन्तु ऐसा नहीं होता। अगरबत्ती जलाकर प्रारंभ तो अवश्य किया जाता है, पर समाप्त नहीं किया जाता। त्रिवेणी में स्नान करने की बात आपने सुनी होगी कि उसके बाद कौआ कोयल बन जाता है। उस त्रिवेणी संगम में स्नान किया जाता है, जिसे उपासना, साधना और आराधना कहते हैं। वास्तव में यही अध्यात्म की असली शिक्षा है।

उपासना माने भगवान् के नजदीक बैठना। नजदीक बैठने का भी एक असर होता है। चन्दन के समीप जो पेड़-पौधे होते हैं, वह भी सुगंधित हो जाते हैं। हमारी भी स्थिति वैसी ही हुई। चन्दन का एक बड़ा-सा पेड़, जो प्रभु और गुरू रूप में उगा हुआ है, उससे हमने सम्बन्ध जोड़ लिया और खुशबूदार हो गये। आपने लकड़ी को देखा होगा, जब वह आग के संपर्क में आ जाती है, तो वह भी आग जैसी लाल हो जाती है। उसे आप नहीं छू सकते, कारण वह भी आग जैसी ही बन जाती है। यह क्या बात हुई? उपासना हुई, नजदीक बैठना हुआ। नजदीक बैठना,  यानी चिपक जाना अर्थात् समर्पण कर देना। गाँव की गँवार महिला की शादी किसी सेठ के साथ होने पर वह सेठानी, पंडित के साथ होने पर पंडितानी बन जाती है। यह सब समर्पण का चमत्कार है।

मित्रो, उपासना का मतलब समर्पण है। आपको भी अगर शक्तिशाली या महत्त्वपूर्ण व्यक्ति बनना है, बड़ा काम करना है, तो आपको भी बड़े आदमी के साथ, महान गुरु के साथ चिपकना होगा जो आपको ईश के साथ चिपका देगा। आप अगर शेर के बच्चे हैं, तो आपको भी शेर होना चाहिए। आप अगर घोड़े के बच्चे हैं, तो आपको घोड़ा होना चाहिए। आप अगर संत के बच्चे हैं, तो आपको संत होना चाहिए। यह सोंचें हम भगवान् के बच्चे हैं,  तो हमें भगवान् की तरह बनना चाहिए। बूँद जब अपनी हस्ती समुद्र में गिराती है, तो वह समुद्र बन जाती है। यह समर्पण है। अपनी हस्ती को समाप्त करना ही समर्पण है। अगर बूँद अपनी हस्ती न समाप्त करे, तो वह बूँद ही बनी रहेगी। वह समुद्र नहीं हो सकती है। अध्यात्म में यही भगवान् को समर्पण करना उपासना कहलाती है। भगवान् माने उच्च आदर्शों, उच्च सिद्धान्तों का समुच्चय। उच्च आदर्शों, उच्च सिद्धान्तों को अपने साथ मिला लेना ही उपासना कहलाती है। हमने अपने जीवन में इसी प्रकार की उपासना की है, आपको भी इसी प्रकार की उपासना करनी चाहिए।

आप लोगों को मालूम है कि ग्वाल-बाल इतने शक्तिशाली थे कि उन्होंने अपनी लाठी के सहारे गोवर्धन को उठा लिया था। इसी तरह रीछ-बन्दर इतने शक्तिशाली थे कि वे बड़े-बड़े पत्थर उठाकर लाये और समुद्र में सेतु बनाकर उसे लाँघ गये थे। क्या यह उनकी शक्ति थी? नहीं यह भगवान् श्रीकृष्ण एवं राम के प्रति उनके समर्पण की शक्ति थी, जिसके बल पर वे इतने शक्तिशाली हो गये थे।

आपको मालूम नहीं है कि विवेकानन्द ने रामकृष्ण परमहंस को देखा था, स्वामी दयानन्द ने विरजानन्द को देखा था। चाणक्य तथा चन्द्रगुप्त का नाम सुना है न आपने। उनके गुरु ने जो उनको आदेश दिये, उनका उन्होंने पालन किया। गुरुओं ने शिष्यों को,  भगवान ने भक्तों को जो आदेश दिये, वे उनका पालन करते रहे। आपने सुना नहीं है,  एक जमाने में समर्थ गुरु रामदास के आदेश पर शिवाजी लड़ने के लिए तैयार हो गये थे। उनके एक आदेश पर वे आजादी की लड़ाई के लिए तैयार हो गये। यही समर्पण का मतलब है। आपको मालूम नहीं है कि इसी समर्पण की वजह से समर्थ गुरु रामदास की शक्ति शिवाजी में चली गयी और वे उसे लेकर चले गये।

आपने नदी को देखा होगा कि वह कितनी गहरी होती है। चौड़ी एवं गहरी नदी को कोई आसानी से पार नहीं कर सकता है, किन्तु जब वह एक नाव पर बैठ जाता है, तो नाव वाले की सह जिम्मेदारी होती है कि वह नाव को भी न डूबने दे और वह व्यक्ति जो उसमें बैठा है, उसे भी न डुबाये। इस तरह नाविक उस व्यक्ति को पार उतार देता है। ठीक उसी प्रकार जब हम एक गुरु को, भगवान् को, नाविक के रूप में समर्पण कर देते हैं, तो वह हमें इस भवसागर से पार कर देता है।

साधना किसकी की जाए?  भगवान् की? अरे भगवान् को न तो किसी साधना की बात सुनने का समय है और न ही उसे साधा जा सकता है। वस्तुतः जो साधना हम करते हैं, वह केवल अपने लिए होती है और स्वयं की होती है। साधना का अर्थ होता है-साध लेना। अपने आपको सँभाल लेना, तपा लेना, गरम कर लेना, परिष्कृत कर लेना, शक्तिवान बना लेना, यह सभी अर्थ साधना के हैं। साधना के संदर्भ में हम आपको सर्कस के जानवरों का उदाहरण देते रहते हैं कि हाथी, घोड़े, शेर, चीजें जब अपने को साध लेते हैं। अगर उन्हें ऐसे ही कहा जाए कि आप इस तरह का करतब दिखाइये,  तो इसके लिए वे तैयार नहीं होंगे,  वरन उल्टे आपके ऊपर,  मास्टर के ऊपर हमला कर देंगे।

साधना में भी यही होता है। मनुष्य के, साधक के मन के ऊपर चाबुक मारने से,  हण्टर मारने से, गरम करने से,  तपाने से वह काबू में आ जाता है। इसीलिए तपस्वी तपस्या करते हैं। हिन्दी में इसे ‘साधना’ कहते हैं और संस्कृत में ‘तपस्या’ कहते हैं। यह दोनों एक ही हैं। अतः साधना का मतलब है-अपने आपको तपाना। खेत की जोताई अगर ठीक ढंग से नहीं होगी, तो उसमें बोवाई भी ठीक ढंग से नहीं की जा सकेगी। अतः अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए पहले खेत की जोताई करना आवश्यक है, ताकि उसमें से कंकड़-पत्थर आदि निकाल दिए जाएँ। उसके बाद बोवाई की जाती है। कपड़ों की धुलाई पहले करनी पड़ती है, तब उसकी रँगाई होती है। बिना धुलाये कपड़ों की रँगाई नहीं हो सकती है। काले, मैले-कुचैले कपड़े नहीं रँगे जा सकते हैं।


उसी प्रकार से राम का नाम मंत्र जाप नाम जप एक तरह से रँगाई है। राम की भक्ति के लिए साफ-सुथरे कपड़ों की आवश्यकता है। माँ अपने बच्चों को गोद में लेती है, परन्तु जब बच्चा टट्टी कर देता है, तो वह उसे गोद में नहीं उठाती है। पहले उसकी सफाई करती है, उसके बाद उसके कपड़े बदलती है, तब गोद में लेती है। भगवान् भी ठीक उसी तरह के हैं। वे मैले-कुचैले प्रवृत्ति के लोगों को पसन्द नहीं करते हैं। यहाँ साफ-सुथरा से मतलब कपड़े से नहीं है,  बल्कि भीतर से है-अंतरंग से है। इसी को स्वच्छ रखना, परिष्कृत करना पड़ता है। तपस्या एवं साधना इसी का नाम है। अपने अन्दर जो बुराइयाँ हैं, भूले हैं, कमियाँ हैं, दोष-दुर्गुण हैं, कषाय-कल्मष हैं, उसे दूर करना व उनके लिए कठिनाइयाँ उठाना ही साधना या तपस्या कहलाती है। इसी का दूसरा नाम पात्रता का विकास है। कहने का तात्पर्य यह है कि वर्षा के समय आप बाहर जो भी पात्र रखेंगे-कटोरी गिलास जो कुछ भी रखेंगे, उसी के अनुरूप उसमें जल भर जाएगा। इसी तरह आपकी पात्रता जितनी होगी, उतना ही भगवान् का प्यार, अनुकम्पा आप पर बरसती चली जाएगी।

भगवान् का भजन करने एवं नाम लेने के लिए अपना सुधार करना परम आवश्यक है। वाल्मीकि ने जब यह काम किया, तो भगवान् के परमप्रिय भक्त हो गये। उनकी वाणी में एक ताकत आ गयी। उसने डकैती छोड़ दी, उसके बाद भगवान् का नाम लिया, तो काम बन गया। कहने का मतलब यह है कि आप अपने आपको धोकर इतना निर्मल बना लें कि भगवान् आपको मजबूर होकर प्यार करने लग जाए। राम नाम के महत्त्व से ज्यादा आपकी जीभ का महत्त्व है। आप जीभ पर कंट्रोल रखिए, तब ही काम बनेगा। जीभ पर काबू रखें, आप ईमानदारी की कमाई खाएँ, बेईमानी की कमाई न खाएँ।

साधना का अर्थ केवल एकांतवास या ध्यान नहीं होता. वह साधना का एक पक्ष है, लेकिन साधना का यह भी अर्थ होता है कि हम अपने मन में संतोष और शांति के भाव को चौबीस घंटे कायम रखें. असली साधना वह है. आप ध्यान करते हो तो अधिक-से-अधिक एक घंटे के लिए करोगे. 

उसमें भी श्वास का ख्याल करोगे, मंत्र जप करोगे, इष्ट पर ध्यान लगाओगे या कुछ स्तोत्रपाठ कर लोगे. इसके अतिरिक्त और क्या कर लोगे‍? ज्यादा-से-ज्यादा किसी अच्छे भाव की अनुभूति हो सकती है. लेकिन वह क्षणिक होगी. उसके बाद फिर क्या‍? हमने ध्यान एक घंटे किया, पर ग्यारह घंटे जब हम संसार में रहते हैं, तो क्या संसार में रह कर भी हम अपने मानसिक संतोष, प्रतिभा और शांति को कायम रख सकते हैं|

अपने स्कूल के क्लासरूम में बैठ कर तो आप एक घंटा अपनी पढ़ाई कर ही लोगे, लेकिन असली मेहनत तब होती है, जब घर में आकर आपको होमवर्क करना पड़ता है. सफलता घर में की गयी मेहनत पर निर्भर करती है, स्कूल में की गयी मेहनत पर नहीं. वहां केवल सूत्र मिल जाता है कि इस विषय पर तुम मंथन करो और वह मंथन घर में करना होता है. इसलिए कभी मत सोचना कि साधना का मतलब एकांत या ध्यान या मंत्र जप ही होता है.

साधना का शाब्दिक अर्थ है, 'किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला कार्य'। किन्तु वस्तुतः यह एक आध्यात्मिक क्रिया है। धार्मिक और आध्यात्मिक अनुशासन जैसे कि पूजा , योग , ध्यान , जप , उपवास और तपस्या के करने को साधना कहते हैं। अनुरुद्ध प्रगति के लिए साधना को प्रतिदिन करना चाहिए। सनातन धर्म, बौद्ध, जैन, सिख आदि धर्मों में लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए भिन्न प्रकार की साधनाएँ की जाती हैं।

सादा जीवन के माने है-कसा हुआ जीवन। आपको अपना जीवन सादा बनाना होगा। माल-मजा उड़ाते हुए, लालची और लोभी रहते हुए आप चाहें राम नाम लें। वह सार्थक होगा पर बहुत देर से वह आपके तन को धोता धोता रहेगा जब तक आप सफेद न हो जायें। आप किसी भी महापुरुष का इतिहास उठाकर पढ़कर देखें, तो पायेंगे कि अपने को तपाने के बाद ही उन्होंने वर्चस्व प्राप्त किया और फिर जहाँ भी वे गये चमत्कार करते चले गये। तलवार से सिर काटने के लिए उसे तेज करना पड़ता है, पत्थर पर घिसना पड़ता है। आपको भी प्रगति करने के लिए अपने आपको तपाना होगा, घिसना होगा । हमने एक ही चीज सीखी है कि अपने आपको अधिक से अधिक तपाएँ, अधिक से अधिक घिसें।

शरीर, बुद्धि और भावना-ये तीन चीजें जो भगवान् ने दी हैं। यह तीन शरीर-स्थूल सूक्ष्म और कारण के प्रतीक हैं। इसमें तीन चीजें भरी रहती हैं- स्थूल में श्रम, समय। सूक्ष्म में मन, बुद्धि। कारण में भावना। इसके अलावा जो चौथी चीज है, वह है धन-सम्पदा जो मनुष्य कमाता है। इसे भगवान् नहीं देता है। भगवान् न किसी को गरीब बनाता है, न अमीर। भगवान् न किसी को धनवान बनाता है, न कंगाल बनाता है। यह तेरा बनाया हुआ है, इसे तू बोना शुरू कर। हमने कहा कि कहाँ बोया जाए? उन्होंने कहा कि भगवान् के खेत में। हमने पूछा कि भगवान् कहाँ है और उनका खेत कहाँ है? उन्होंने हमें इशारा करके बतलाया कि यह सारा विश्व ही भगवान् का खेत है। यह भगवान् विराट् है। इसे ही विराट् ब्रह्म कहते हैं। अर्जुन को भगवान् श्रीकृष्ण ने इसी विराट् ब्रह्म का दर्शन कराया था। उन्होंने दिव्यचक्षु से उनका दर्शन कराया था। यही उन्होंने कौशल्या जी को दिखाया था। 

आध्यात्मिक क्षेत्र में सिद्धि पाने के लिए अनेक लोग प्रयास करते हैं, पर उन्हें सिद्धि क्यों नहीं मिलती है?  साधना से सिद्धि पाने का क्या रहस्य है?  इस रहस्य को न जानने के कारण ही प्रायः लोग खाली हाथ रह जाते हैं। मित्रो, साधना की सिद्धि होना निश्चित है। साधना सामान्य चीज नहीं है। यह असामान्य चीज है। परन्तु साधना को साधना की तरह किया जाना परम आवश्यक है। साधना कैसी होनी चाहिए इस सम्बन्ध में हमने ब्लाग पर लेख दिये।  

भक्ति तो एक मनोभाव है समर्पण का, परम विश्वास का,  मनोरम रस-माधुर्य का, न्योछावर हो जाने का,  तन्मयता के साथ अनुरक्त रहने का। यह भाव अपने इष्ट या आराध्य के चरणों में समर्पित कर भक्त उस भाव-धारा के पुण्य जल में निरंतर अवगाहन करता हुआ मगन रहता है।

आराधना भक्ति की निरंतरता, सातत्य और अविचलता के साथ कुछ और भी है। आराधना है अपने ईश के रूप, स्वरूप, गुण, महिमा का निरंतर स्मरण, मन में दुहराव, जप, कीर्तन, मनन तथा मानसिक और भौतिक पूजन द्वारा अपने आराध्य से यह कृपा प्राप्त करने का यत्न कि उसके स्वरूप की दिव्यता के तत्व हमारे व्यक्तित्व को भरसक प्रकाशित करें, हमारे चरित्र को आलोकित करें और हमारे कार्यों व संकल्पों में झलकें। उद्देश्य यह कि हमारा संपूर्ण जीवन सांसारिक गतिविधियों में लिप्त रहता हुआ भी उस दैवी-‍दिव्यता से तृप्त रहे, आप्यायित हो।

आराधना या उपासना को एक अन्य अर्थ में ही समझा जाना चाहिए। विभिन्न दैवी शक्तियों की आराधना इसलिए भी की जाती है कि हम उनसे अपने सांसारिक उपक्रमों में इच्छित सफलता प्राप्त करने का वरदान प्राप्त करें, सफलता प्राप्ति के बीच आने वाली बाधाओं का निवारण हो और हमारा प्रयत्न, उद्यम, तपस्या, उपक्रम, सुगम हो। दैवी शक्तियों की आराधना मनोबल देती है, आत्मविश्वास बढ़ाती है,  उत्साह का संचार करती है और सफलता की संभावना बढ़ाती है। विद्या/ ज्ञान अर्जन के लिए गणेश व सरस्वती की आराधना,  शक्ति के लिए देवी और हनुमान की आराधना,  संकट निवारण के लिए शिव की आराधना इसके उदाहरण हैं। परंतु यह समझ लिया जाना चाहिए कि भौतिक चढ़ावों या धूप, दीप, भोग, दान से यह आराधना सफल नहीं होती। सफलता प्राप्त होती है अपने प्रयत्नों में कठोर परिश्रम से, एकाग्रता से, लगन से, तन्मय उद्यम से, इच्छित दिशा में किए गए सार्थक प्रयासों से।

सफलता प्राप्ति का मूल मंत्र है तपस्या। दैवी शक्तियां तो इस तपस्या की साक्षी होती हैं,  मनोबल बढ़ाने का वरदान देती हैं और एक ऐसा सुखद अहसास देती हैं कि हमारे प्रयत्नों पर किसी दिव्य शक्ति की छत्रछाया है। इन शक्तियों की आराधना का मनोभाव हमारे प्रयत्नों को अनंत ऊर्जा से श्रृंगारित कर देता है, जो सफलता को अवश्यंभावी बना देता है। आराधना हमारे प्रयत्नों की सहकारिणी है, स्‍थानापन्न नहीं।



(तथ्य, कथन गूगल से साभार) 


"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
ब्लाग :  https://freedhyan.blogspot.com/

2 comments:

  1. अति सुन्दर।भाव भक्ति जब शरीर,मन और इन्द्रियो से परे होती हैं तो ईशवर से मिलन की जो एक तड़प या विरह की भावना जागती है और भक्त के आँसू अविरल बहने लगते हैं तो जानिये यही सच्ची उपासना,साधना एवम् आराधना है।आपने इसे अवशय महसूस किया होगा। ओम हरि

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  2. धन्यवाद सर। अन्य लेख भी पढें और बेबाक टिप्प्णी दे।

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