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Monday, October 8, 2018

कबीरदास से साक्षात्कार



कबीरदास से साक्षात्कार
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"




बात फरवरी 2018 की है जो मेरे फेस बुक पर 17 फरवरी को पोस्ट भी है। गोरखपुर जाना हुआ तो मगहर भी गया। 
 
 
मित्रो कबीर को जानने की इच्छा ही रही थी। पहले मजार पर गया। मत्था टेका कुछ ध्यान लगाया। एक लंबे कुछ गोरे चेहरे लंबी ढाढी सिर पर घुमावदार पीला मकुट किसी गद्दी पर बैठे महात्मा दिखे। ऊपर मसिजद नुमा हरे गुम्बद। पीछे मक्का की मस्जिद जैसा चित्र। अंदर से बोला गया कि पीरू खान ने यह मजार बनाई है।
 
 

समाधि पर मत्था टेका तो वोही आकृति सफेद कपड़ो में आसन पर दिखाई दी। समाधि पर विष्णु के नारियल लोटेनुमा कलश और दूर एक चक्र भी दिखाई दिया। अंदर से आवाज आई इस समाधि का निर्माण भगवान सिंह नामक शिष्य ने किया।
 
 

मजे की बात फूल दोनो में कही नही मिले थे। उन मजार और समाधि के वीच में समभुज त्रिकोण की मध्य कोने पर कबीर दिखे। जहाँ उनके अंतर्ध्यान होने के बाद फूल मिले थे। ऐसा प्रतीत हुआ।
वोही सज्जन जो दोनो जगह दिखे। पर यह सफेद टोपी पहने थे जैसी उनके चित्रों में है।



इनके मतलब कबीरदास वैष्णव थे। साकार से निराकार सगु से निर्गुण की ओर गए। वैसे उन्होने राम की बात जगह जगह की है।
 
 
 
कुल मिलाकर आज जो पढ़ा रहे है कुछ कि कबीरपंथी के नाम पर कि वे निरकार थे तो यह गलत है। वे अपुन लोगो की तरह साकार पूजन से निराकार का अनुभव और योग को जान पाए थे।



कुछ ऐसे ही फेसबुक पर पिछले दिनों मैं एक मॉनसिक रोगी अधर्म की दुकान चलानेवाले रामपाल की पोस्ट की दुनिया मे गया। वहाँ देखा कि व्यक्ति किस तरह झूठ बोलकर भी भारत मे अपनी दुकान चला सकता है।

के चेले क्या बकवास लिखते है। 
 
 

1 राम कृष्ण इत्यादि सब झूठे। सब चोर पतित है।
 
 
2 वेद पुराण सिर्फ कबीर के गुण गाते है। हंसी आती है वेदों के क्या अनर्थ लगाए हैं। कही भी यदि क शब्द आ भी गया तो वह सीधे कबीर बन गया। ऐसी काल्पनिक बकवास।
 
 
3 गीता गलत है। रामायण गलत। साथ में तमाम बकवास

5 कबीर के नाम पर गलत दोहो का निर्माण। मैंने पाया है कबीर के साहित्य में मात्रिक दोष न के बराबर है।
 
 

यह पाखंडी ने खुद दोहे कबीर के नाम लिख मारे। जिनमे इतने अधिक मात्रिक दोष है। जो कबीर के हो ही नही सकते।
 
 
 
मुझे लगता है बचपन मे इसको किसी गलत बात पर गांव में शायद दण्डित किया गया होगा। अतः यह सनातन से बदला निकाल रहा है।
 
 
 
हिन्दू धर्म इतना सहिष्णु है कि कोई भी कुछ बकवास कर अपनी दुकान इस पाखंडी रासपाल की तरह चला सकता है।

है प्रभु। क्या कलियुग है।


रामपाल की उल्टी वाणी सुनकर अच्छा नही लगा कि वह राम कृष्ण के प्रति बकवास करता है। बेवकूफी भरी व्याख्याएं करता फिरता है। बे सिर पैर की गाता है। रात्रि में कबीरदास का ध्यान करने पर उनकी जैसे फिर आकृति आई और कुछ बात की।

ये कबीरदास

1, मैं स्वयं प्रकट हुआ मैं स्वयं अदृश्य हुआ। मुझे भी अवतार मान सकते हो कृष्ण की तरह।
 
 
2, मैं राम कृष्ण विरोधी नही। मैं भारत मे हिन्दू मुस्लिम को भविष्य में होनेवाले झगड़ो के प्रति समझाने हेतु आया। मैं यह सिद्ध करना चाहता था कि मुस्लिम संग भी सनातन जीवित रह सकता है।
 
 
3, मैंने कुरीतियों पर प्रहार किया।
 
 
4, मैं सत्य सनातन का ही पक्षधर था क्योकि मेरी रीति सनातन थी।
 
 
5, मैं विलुप्त कुण्डलनी विज्ञान को समझाने आया था। जिसे लोग भूलने लगे थे।
 
 
6, मैं साकार से निराकार तक की यात्रा का पक्षधर रहा और बताया।
 
 
7, मैंने बिना पढ़े लिखे साहित्य लिखा जो बताता है कवि मनुष्य सिर्फ आंतरिक प्रेरणा से बनता है।
 
 
8, मैं कबीरपंथी लोगो से सन्तुष्ट हूँ पर जो सनातन का विरोधी मतलब राम कृष्ण विरोधी वह चाहे मेरा भक्त क्यो न हो मुझे प्यारा नही।
 
 
9, रामपाल मुझे समझा नही है वह भयंकर रोग से पीड़ित होकर मरेगा।
 
 
10, मुझे माननेवाले किसी की आस्था को ठेस न पहुचाये। रामपाल के अलावा अन्य संगठन ठीक काम कर रहे है।
 
 
11, मेरे पीछे भक्ति की धार बहेगी मैं उनका रास्ता प्रशस्त करने आया।
 
 
12, सुर तुलसी ईश के प्रस्तुत अवतार है। जो ईश भक्ति और सनातन की सच्चाई को प्रचारित करते है वे प्रस्तुत अवतार होते है। बस अंश कम अधिक हो सकते है। मेरे बाद पूरे भारत वर्ष में भक्ति फैली।


साथ ही मैं गुरु महत्ता को स्थापित करने आया था कि समर्थ गुरु के मुख से निकला वाक्य ही समर्थ है। मन्त्र यन्त्र सब गौण हो जाते है। अर्थात गुरु मुख वाक्य ब्रह्म वाक्य।

मित्रो मुझे यहां प्रस्तुत अवतार एक नया शब्द मिला। मैंने अंशावतार कला अवतार और पूर्ण अवतार ही सुने थे।

जय गुरुदेव। जय महाकाली। जय महाकाल



2 comments:

  1. Gret बिल्कुल सही कहा आपने

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  2. धन्यवाद सर्। और पढें और उत्साहित करें। ताकि लोगो को सनातन के विषय में मालूम पडे।

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