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Monday, July 23, 2018

भाग – 13 बौद्ध धर्म \ धर्म ग्रंथ और संतो की वैज्ञानिक कसौटी



भाग – 13  
बौद्ध धर्म \ धर्म ग्रंथ और संतो की वैज्ञानिक कसौटी
संकलनकर्ता : सनातन पुत्र देवीदास विपुल “खोजी”


विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
 वेब:   vipkavi.info , वेब चैनल:  vipkavi



 

आपने भाग 1 से 12 में अब तक पढा कि किस प्रकार जीवन के चार सनातन सिद्दांतों अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष हेतु चार वेदों की रचना हुई। जिसे समझाने हेतु उपनिषद और उप वेदों की रचना हुई। जो मनुष्य को अपनी सोंच और भावनाओं को विकसित होने का पूर्ण अवसर देते हैं। किस प्रकार विदेशी आक्रांताओं ने वेदो को नष्ट करने का प्रयास किया। स्वामी दयानंद सरस्वती ने वेदों की वैज्ञानिकता को समाज में बताने की चेष्टा की।। यहां तक सोहलवीं सदी में एक उपनिषद और जोडकर मुस्लिम धर्म के प्रचार प्रसार हेतु ताना बाना बुना गया और अल्लोहोपनिषद बन डाला गया। लगभग सभी उपनिषद विभिन्न ऋषियों द्वारा अपने अनुभव के आधार पर ईश की परम सत्ता की व्याख्या करते हैं। आपने सारे उपनिषद को संक्षेप में पड लिया होगा। भारत के दस महान वैज्ञानिक ऋषियों ने किस प्रकार विज्ञान को योगदान दिया। अगस्त ऋषि ने तो 2500 साल पहले ही बिजली का अविष्कार कर लिया था। सात महान ऋषियों ने आंतरिक विज्ञान पर अपना योगदान देकर सप्त ऋषि बन गये। जैन धर्म भारत का प्राचीनतम धर्म कहा जा सकता है। गुरू परम्परा की पराकाष्ठा रखनेवाला यह धर्म विलक्षण है। आपने अब तक जैन धर्म के इतिहास को मुनियों को जाना। कालांतर में जैन धर्म दिगम्बर और श्वेताम्बर में बंट गये। जिसकी कल्पना भी महावीर सवामी ने न की होगी। महाराष्ट्र की भूमि में संतो को जन्म दिया।  

भारत की पवित्र भूमि में जन्म लेकर तमाम ऋषियों ने ईशवरीय ज्ञान को पूरी दुनिया में फैलाया और जिसके कारण भारत विश्व गुरू कहलाता था। आज भी अष्टांग योग के मात्र दो अंग आसन और प्रणायाम की बदौलत विश्व के सभी देशों में यह चर्चा का विषय बन चुका है। और लगता है कि दुनिया पुन: भारत को विश्व गुरू का स्थान दे चुकी है। 

आइये  सनातन की संतान एक बार इस दिशा में प्रयास कर अपना योगदान दे। 

अब आगे .......................................


पिछले दिनों थाईलैंड की एक आपदा में भारत को पुन: सम्पूर्ण विश्व प्रणाम करने लगा था। हुआ यूं 12 बच्चों वाली वाइल्ड बोर नामक फुटबॉल टीम के सदस्य  और उनके 25 साल उनके सहायक कोच इक्कापोल जनथावोंग जो कभी-कभी इन बच्चों को घुमाने ले जाते थे और वे दो साल पहले भी जिस गुफा में वो पूरी टीम के बच्चों को गुफ़ा में घुमाने लाए थे।  उस टीम में सबसे छोटा खिलाड़ी 11 साल का चैन 'टाइटन' है, जिसने सात साल की उम्र से फ़ुटबॉल खेलना शुरू कर दिया था। चियंग राय स्थित टैम लूंग नामक इस गुफा में तूफानी बारिश के कारण  पानी का स्तर बढ़ गया और यह बच्चे चार किमी गहरी गुफाओं में फंस गये थे। इक्कापोल जनथावोंग पहले बौद्ध लामा भी रह चुके थे अत: उन्होने बौद्ध ध्यान के द्वारा बच्चों को कम ऊर्जा का प्रयोग कर रहना सिखाया। 21 जून को फंसे बच्चे 9 दिन के विश्वव्यापी प्रयास के बाद बाहर निकाले जा सके।

चलिये देखे कि बौद्ध धर्म है क्या?

बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और दर्शन है। श्रमण परम्परा के जनक तो जैन ही थे। परन्तु बौद्ध धर्म के जनक महात्मा बुद्ध शाक्यमुनि (गौतम बुद्ध) थे। वे 563 ईसा पूर्व से 483 ईसा पूर्व तक रहे। ईसाईत और इस्लाम धर्म के जन्म के पहले बौद्ध धर्म की उत्पत्ति हुई थी।  दोनों धर्म के बाद यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है. इस धर्म को मानने वाले ज्यादातर चीन, जापान, कोरिया, थाईलैंड, कंबोडिया, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और भारत जैसे कई देशों में रहते हैं।

सत्य और अहिंसा के मार्ग को दिखाने वाले भगवान बुद्ध दिव्य आध्यात्मिक विभूतियों में अग्रणी माने जाते हैं। भगवान बुद्ध के बताए आठ सिद्धांत को मानने वाले भारत समेत दुनिया भर में करोड़ो लोग हैं।

भगवान बुद्ध के अनुसार धम्म जीवन की पवित्रता बनाए रखना और पूर्णता प्राप्त करना है। साथ ही निर्वाण प्राप्त करना और तृष्णा का त्याग करना है। इसके अलावा भगवान बुद्ध ने सभी संस्कार को अनित्य बताया है। भगवान बुद्ध ने मानव के कर्म को नैतिक संस्थान का आधार बताया है। यानी भगवान बुद्ध के अनुसार धम्म यानी धर्म वही है। जो सबके लिए ज्ञान के द्वार खोल दे। और उन्होने ये भी बताया कि केवल विद्वान होना ही पर्याप्त नहीं है। विद्वान वही है जो अपने की ज्ञान की रोशनी से सबको रोशन करे। धर्म को लोगों की जिंदगी से जोड़ते हुए भगवान बुद्ध ने बताया कि करूणा शील और मैत्री अनिवार्य है। इसके अलावा सामाजिक भेद भाव मिटाने के लिए भी भगवान बुद्ध ने प्रयास करते हुए बताया था कि लोगों का मूल्यांकन जन्म के आधार पर नहीं कर्म के आधार पर होना चाहिए। भगवान बुद्ध के बताए मार्ग पर दुनिया भर के करोड़ों लोग चलते है। जिससे वो सही राह पर चलकर अपने जीवन को सार्थक बनाते हैं।
ध्यान देने वाली बात है तथागत गौतम बुद्ध अपने आपको भगवान या ईश्वर नहीं बताते है। परंतु कुछ महामूर्ख जो अपने को बुद्ध का अनुयायी कहते हैं पर अपने को जापानी भाषा में भगवान यानि ओशो बोलते हैं।

बौद्ध धर्म के संस्थापक थे गौतम बुद्ध। इन्हें एशिया का ज्योति पुंज कहा जाता है।
गौतम बुद्ध का जन्म 563 ई. पूर्व के बीच शाक्य गणराज्य की तत्कालीन राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी, (वर्तमान में दक्षिण मध्य नेपाल) में हुआ था। इसी स्थान पर, तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में सम्राट अशोक ने बुद्ध की स्मृति में एक स्तम्भ बनाया था। इनके पिता शुद्धोधन शाक्य गण के मुखिया थे।

सिद्धार्थ के जन्म के सात दिन बाद ही उनकी मां मायादेवी का देहांत हो गया था। सौतेली मां प्रजापति गौतमी ने उनको पाला। सिद्धार्थ इनके बचपन का नाम था।  
सिद्धार्थ का 16 साल की उम्र में दंडपाणि शाक्य की कन्या यशोधरा के साथ विवाह हुआ और इनके पुत्र का नाम राहुल था.

एक बार सिद्धार्थ जब कपिलावस्तु की सैर के लिए निकले तो उन्होंने चार दृश्यों को देखा:
(i) बूढ़ा व्यक्ति, (ii) एक बिमार व्यक्ति, (iii) एक शव और शव यात्रा   (iv) एक सन्यासी। जिनको देखकर सिद्धार्थ सांसारिक समस्याओं से दुखी हो गये और 29 साल की आयु में घर छोड़ दिया।  जिसे बौद्ध धर्म में महाभिनिष्कमण कहा जाता है।

ध्यान दे गृह त्याग के बाद बुद्ध ने वैशाली के आलारकलाम से सांख्य दर्शन की शिक्षा ग्रहण की। मतलब गुरू शिष्य परम्परा को निभाते हुये दीक्षा ली। वहीं बिना दीक्षा के लोग अपने आप को भगवान घोषित करने की मूर्खता करते हैं। यानी आलारकलाम सिद्धार्थ के प्रथम गुरू थे।
  
परंतु मन शांत न होने के कारण और दीक्षा के अनुभव न होने के कारण आलारकलाम के बाद सिद्धार्थ ने राजगीर के रूद्रकरामपुत्त से शिक्षा ग्रहण की। कुछ समय बाद उरूवेला में सिद्धार्थ को कौण्डिन्य, वप्पा, भादिया, महानामा और अस्सागी नाम के 5 अन्य साधक भी मिले।

बिना अन्न जल ग्रहण किए बाद 35 साल की आयु में वैशाख की पूर्णिमा की रात निरंजना नदी के किनारे, पीपल के पेड़ के नीचे सिद्धार्थ 6 साल की कठिन तपस्या के बाद ज्ञान प्राप्त हुआ।

मेरे विचार से वे विपश्यना यानी श्वासोंश्वास के माध्यम से अंतर्मुखी हुये थे और उनको ज्ञान प्राप्त हुआ। मतलब आत्म साक्षात्कार हुआ। इस ज्ञान में योग शास्त्र के अनुसार अचानक सर्व ज्ञानी कुण्डलनी शक्ति जागृत होकर अहम ब्रम्हास्मि की अनुभूति के साथ निराकार शक्ति और ब्रह्म का अनुभव करा देती है। साथ ही आत्म गुरू जागृत कर मन में उठनेवाली शंकाओ का सही सही समाधान कर ह्रदय में सारा ज्ञान प्रकाशित कर देती है।

ध्यान देनेवाली बात है मात्र 6 वर्ष की कठिन तपस्या या साधना। ये समय अधिक नहीं।  

ज्ञान प्राप्ति के बाद सिद्धार्थ बुद्ध के नाम से जाने जाने लगे। जिस जगह उन्‍हें ज्ञान प्राप्‍त हुआ उसे बोधगया के नाम से जाना जाता है। बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया जिसे बौद्ध ग्रंथों में धर्मचक्र प्रवर्तन कहा जाता है। बुद्ध ने अपने उपदेश कोशल, कौशांबी और वैशाली राज्य में पाली भाषा में दिए हैं।

वैसे बुद्ध ने अपने सर्वाधिक उपदेश कौशल देश की राजधानी श्रावस्ती में दिए हैं।

इनके प्रमुख अनुयायी शासक थे: (i) बिंबसार  (ii) प्रसेनजित  (iii) उदयन

बुद्ध की मृत्यु 80 साल की उम्र में कुशीनारा में चुन्द द्वारा अर्पित भोजन करने के बाद हो गई। जिसे बौद्ध धर्म में महापरिनिर्वाण कहा गया है। मल्लों ने बेहद सम्मान पूर्वक बुद्ध का अंत्येष्टि संस्कार किया था।

एक अनुश्रुति के अनुसार मृत्यु के बाद बुद्ध के शरीर के अवशेषों को आठ भागों में बांटकर उन पर आठ स्तूपों का निर्माण कराया गया। साथ ही बुद्ध के जन्म और मृत्यु की तिथि को चीनी पंरपरा के कैंटोन अभिलेख के आधार पर निश्चित किया गया है।

बौद्ध धर्म के बारे में हमें विशद ज्ञान पाली त्रिपिटक से प्राप्त होता है। बौद्ध धर्म अनीश्वरवादी है और इसमें आत्मा की परिकल्पना भी नहीं है। बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म की मान्यता है। तृष्णा को क्षीण हो जाने की अवस्था को ही बुद्ध ने निर्वाण कहा है.

बुद्ध के अनुयायी दो भागों मे विभाजित थे:
(i)       भिक्षुक- बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जिन लोगों ने सन्यास लिया उन्हें भिक्षुक कहा जाता है।
      ii)        उपासक- गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए बौद्ध धर्म अपनाने वालों को उपासक कहते हैं।  इनकी न्यूनत्तम आयु 15 साल है।


बौद्धसंघ में प्रविष्‍ट होने को उपसंपदा कहा जाता है।
प्रविष्ठ बौद्ध धर्म के त्रिरत्न हैं: (i) बुद्ध (ii) धम्म (iii) संघ

चतुर्थ बौद्ध संगीति के बाद बौद्ध धर्म दो भागों में विभाजित हो गया है:
(i) हीनयान (ii) महायान

धार्मिक जुलूस सबसे पहले बौद्ध धर्म में ही निकाला गया था।
बौद्ध धर्म का सबसे पवित्र त्यौहार वैशाख पूर्णिमा है जिसे बुद्ध पूर्णिमा कहा जाता है।

बुद्ध ने सांसारिक दुखों के संबंध में चार आर्य सत्यों का उपदेश दिया है।
ये हैं: (i) दुख (ii) दुख समुदाय (iii) दुख निरोध (iv) दुख निरोधगामिनी प्रतिपदा

सांसारिक दुखों से मुक्ति के लिए बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग की बात कही।
ये साधन हैं.
(i) सम्यक दृष्टि (ii) सम्यक संकल्प (iii) सम्यक वाणी (iv) सम्यक कर्मांत (v) सम्यक आजीव (vi) सम्यक व्यायाम (vii) सम्यक स्मृति (viii) सम्यक समाधि

बुद्ध के अनुसार अष्टांगिक मार्गों के पालन करने के उपरांत मनुष्य की भव तृष्णा नष्ट हो जाती है और उसे निर्वाण प्राप्त होता है.

बुद्ध ने निर्वाण प्राप्ति के लिए 10 चीजों पर जोर दिया है:
(i) अहिंसा  (ii) सत्य (iii) चोरी न करना (iv) किसी भी प्रकार की संपत्ति न रखना (v) शराब का सेवन न करना (vi) असमय भोजन करना (vii) सुखद बिस्तर पर न सोना (viii) धन संचय न करना (ix) महिलाओं से दूर रहना (X) नृत्य गान आदि से दूर रहना।

आप देखें कि पातांजली ने भी लगभग यही नियम बताये कि योगी कैसे बने।
यम के अंतर्गत पांच सामाजिक नैतिकता :

(क) अहिंसा - शब्दों से, विचारों से और कर्मों से किसी को अकारण हानि नहीं पहुँचाना। (ख) सत्य - विचारों में सत्यता, परम-सत्य में स्थित रहना, जैसा विचार मन में है वैसा ही प्रामाणिक बातें वाणी से बोलना । (ग) अस्तेय - चोर-प्रवृति का न होना । (घ) ब्रह्मचर्य - दो अर्थ हैं: चेतना को ब्रह्म के ज्ञान में स्थिर करना और सभी इन्द्रिय-जनित सुखों में संयम बरतना (च) अपरिग्रह - आवश्यकता से अधिक संचय नहीं करना और दूसरों की वस्तुओं की इच्छा नहीं करना।

नियम के अंतर्गत पाँच व्यक्तिगत नैतिकता : (क) शौच - शरीर और मन की शुद्धि (ख) संतोष - संतुष्ट और प्रसन्न रहना (ग) तप - स्वयं से अनुशाषित रहना (घ) स्वाध्याय - आत्मचिंतन करना (च) ईश्वर-प्रणिधान - इश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण, पूर्ण श्रद्धा
प्रत्याहार:  इन्द्रियों को अंतर्मुखी करना यानि अंतर्मुखी होने का प्रयास (देखे अंतर्मुखी होने की विधियां ब्लाग https://freedhyan.blogspot.com)

बुद्ध ने मध्यम मार्ग का उपदेश दिया।
अनीश्वरवाद के संबंध में बौद्धधर्म और जैन धर्म में समानता है।
जातक कथाएं प्रदर्शित करती हैं कि बोधिसत्व का अवतार मनुष्य रूप में भी हो सकता है और पशुओं के रूप में भी।

बोधिसत्व के रूप में पुनर्जन्मों की दीर्घ श्रृंखला के अंतर्गत बुद्ध ने शाक् मुनि के रूप में अपना अंतिम जन्म प्राप्त किया।

सर्वाधिक बुद्ध की मूर्तियों का निर्माण गंधार शैली के अंतर्गत किया गया था। लेकिन बुद्ध की प्रथम मूर्ति मथुरा कला के अंतर्गत बनी थी।

आज बौद्ध धर्म में पाँच प्रमुख सम्प्रदाय हैं:
हीनयान/ थेरवाद, महायान, वज्रयान और भारतयान, परन्तु बौद्ध धर्म एक ही है। सभी बौद्ध सम्प्रदाय बुद्ध के सिद्धान्त ही मानते है।
बौद्ध धर्म दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। आज पूरे विश्व में लगभग ५४ करोड़ लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी है, जो दुनिया की आबादी का ७वाँ हिस्सा है। आज चीन, जापान, वियतनाम, थाईलैण्ड, म्यान्मार, भूटान, श्रीलंका, कम्बोडिया, मंगोलिया, तिब्बत, लाओस, हांगकांग, ताइवान, मकाउ, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया एवं उत्तर कोरिया समेत कुल 18 देशों में बौद्ध धर्म 'प्रमुख धर्म' धर्म है। भारत, नेपाल, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, रूस, ब्रुनेई, मलेशिया आदि देशों में भी लाखों और करोडों बौद्ध हैं।

गौतम बुद्ध का बचपन:  

एक अन्य कथा के अनुसार सिद्धार्थ के पिता शाक्यों के राजा शुद्धोदन थे। परंपरागत कथा के अनुसार, सिद्धार्थ की माता महामाया उनके जन्म के कुछ देर बाद मर गयी थी। कहा जाता है कि उनका नाम रखने के लिये 8 ऋषियो को आमन्त्रित किया गया था, सभी ने 2 सम्भावनायें बताई थी, (1) वे एक महान राजा बनेंगे (2) वे एक साधु या परिव्राजक बनेंगे। इस भविष्य वाणी को सुनकर राजा शुद्धोदन ने अपनी योग्यता की हद तक सिद्धार्थ को साधु न बनने देने की बहुत कोशिशें की। शाक्यों का अपना एक संघ था। बीस वर्ष की आयु होने पर हर शाक्य तरुण को शाक्यसंघ में दीक्षित होकर संघ का सदस्य बनना होता था। सिद्धार्थ गौतम जब बीस वर्ष के हुये तो उन्होंने भी शाक्यसंघ की सदस्यता ग्रहण की और शाक्यसंघ के नियमानुसार सिद्धार्थ को शाक्यसंघ का सदस्य बने हुये आठ वर्ष व्यतीत हो चुके थे। वे संघ के अत्यन्त समर्पित और पक्के सदस्य थे। संघ के मामलों में वे बहुत रूचि रखते थे। संघ के सदस्य के रूप में उनका आचरण एक उदाहरण था और उन्होंने स्वयं को सबका प्रिय बना लिया था। संघ की सदस्यता के आठवें वर्ष में एक ऐसी घटना घटी जो शुद्धोदन के परिवार के लिये दुखद बन गयी और सिद्धार्थ के जीवन में संकटपूर्ण स्थिति पैदा हो गयी। शाक्यों के राज्य की सीमा से सटा हुआ कोलियों का राज्य था। रोहणी नदी दोनों राज्यों की विभाजक रेखा थी। शाक्य और कोलिय दोनों ही रोहिणी नदी के पानी से अपने-अपने खेत सींचते थे। हर फसल पर उनका आपस में विवाद होता था कि कौन रोहिणी के जल का पहले और कितना उपयोग करेगा। ये विवाद कभी-कभी झगड़े और लड़ाइयों में बदल जाते थे। जब सिद्धार्थ २८ वर्ष के थे, रोहणी के पानी को लेकर शाक्य और कोलियों के नौकरों में झगड़ा हुआ जिसमें दोनों ओर के लोग घायल हुये। झगड़े का पता चलने पर शाक्यों और कोलियों ने सोचा कि क्यों न इस विवाद को युद्ध द्वारा हमेशा के लिये हल कर लिया जाये। शाक्यों के सेनापति ने कोलियों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा के प्रश्न पर विचार करने के लिये शाक्यसंघ का एक अधिवेशन बुलाया और संघ के समक्ष युद्ध का प्रस्ताव रखा। सिद्धार्थ गौतम ने इस प्रस्ताव का विरोध किया और कहा युद्ध किसी प्रश्न का समाधान नहीं होता, युद्ध से किसी उद्देश्य की पूर्ति नहीं होगी, इससे एक दूसरे युद्ध का बीजारोपण होगा। सिद्धार्थ ने कहा मेरा प्रस्ताव है कि हम अपने में से दो आदमी चुनें और कोलियों से भी दो आदमी चुनने को कहें। फिर ये चारों मिलकर एक पांचवा आदमी चुनें। ये पांचों आदमी मिलकर झगड़े का समाधान करें। सिद्धार्थ का प्रस्ताव बहुमत से अमान्य हो गया साथ ही शाक्य सेनापति का युद्ध का प्रस्ताव भारी बहुमत से पारित हो गया। शाक्यसंघ और शाक्य सेनापति से विवाद न सुलझने पर अन्ततः सिद्धार्थ के पास तीन विकल्प आये। तीन विकल्पों में से उन्हें एक विकल्प चुनना था (1) सेना में भर्ती होकर युद्ध में भाग लेना, (2) अपने परिवार के लोगों का सामाजिक बहिष्कार और उनके खेतों की जब्ती के लिए राजी होना, (3) फाँसी पर लटकना या देश निकाला स्वीकार करना।
उन्होंने तीसरा विकल्प चुना और परिव्राजक बनकर देश छोड़ने के लिए राज़ी हो गए।

परिव्राजक बनकर सर्वप्रथम सिद्धार्थ ने पाँच ब्राह्मणों के साथ अपने प्रश्नों के उत्तर ढूंढने शुरू किये। वे उचित ध्यान हासिल कर पाए, परंतु उन्हें अपने प्रश्नों के उत्तर नहीं मिले। फ़िर उन्होने तपस्या करने की कोशिश की। वे इस कार्य में भी वे अपने गुरुओं से भी ज़्यादा, निपुण निकले, परंतु उन्हे अपने प्रश्नों के उत्तर फ़िर भी नहीं मिले। फ़िर उन्होने कुछ साथी इकठ्ठे किये और चल दिये अधिक कठोर तपस्या करने। ऐसे करते करते छः वर्ष बाद, बिना अपने प्रश्नों के उत्तर पाएं, भूख के कारण मृत्यु के करीब से गुज़रे, वे फ़िर कुछ और करने के बारे में सोचने लगे। इस समय, उन्हें अपने बचपन का एक पल याद आया, जब उनके पिता खेत तैयार करना शुरू कर रहे थे। उस समय वे एक आनंद भरे ध्यान में पड़ गये थे और उन्हे ऐसा महसूस हुआ था कि समय स्थिर हो गया है।

कठोर तपस्या छोड़कर उन्होने अष्टांगिक मार्ग ढूंढ निकाला, जो बीच का मार्ग भी कहलाता जाता है क्योंकि यह मार्ग दोनो तपस्या और असंयम की पराकाष्ठाओं के बीच में है। अपने बदन में कुछ शक्ति डालने के लिये, उन्होने एक बकरी-वाले से कुछ दूध ले लिया। वे एक पीपल के पेड़ (जो अब बोधि पेड़ कहलाता है) के नीचे बैठ गये प्रतिज्ञा करके कि वे सत्य जाने बिना उठेंगे नहीं। ३५ की उम्र पर, उन्होने बोधि पाई और वे बुद्ध बन गये। उनका पहिला धर्मोपदेश वाराणसी के पास सारनाथ मे था।

अपने बाकी के ४५ वर्ष के लिये, गौतम बुद्ध ने गंगा नदी के आस-पास अपना धर्मोपदेश दिया, धनवान और कंगाल लोगों दोनो को। उन्होने दो सन्यासियों के संघ की भी स्थापना जिन्होने बुद्ध के धर्मोपदेश को फ़ैलाना जारी रखा।


............क्रमश:...............


 भाग 14
http://freedhyan.blogspot.com/2018/07/13.html

(तथ्य कथन गूगल, बौद्ध साइट्स इत्यादि से साभार)


"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
ब्लाग :  https://freedhyan.blogspot.com/
















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