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Tuesday, July 31, 2018

भाग – 29 इस्लाम 1: वो जो मुसलमान भी नहीं जानते



भाग – 29  इस्लाम 1 :  वो जो मुसलमान भी नहीं जानते
धर्म ग्रंथ और संतो की वैज्ञानिक कसौटी
संकलनकर्ता : सनातन पुत्र देवीदास विपुल “खोजी”


विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
 वेब:   vipkavi.info , वेब चैनल:  vipkavi
 फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"  
ब्लाग : https://freedhyan.blogspot.com/

पिछले अंको मे आपने विश्व के सबसे पुराने सनातन धर्म को पढा। जहां से हिंदुत्व, जैन, बौद्ध धर्म भारत में पैदा हुये। बौद्ध धर्म ने इसाइयत को यीशु के माध्यम से इजरायल में जन्म दिया और फिर यह पूरी दुनिया में रक्तपात और धन प्रलोभन के सहारे चमत्कारों की जादूगरी से पूरी दुनिया में फैल गया। इस अंक से दुनिया के सबसे नये धर्म के संस्थापक ह्जरत मोहम्म्द साहब पर चर्चा आरम्भ करते है। सोंचने की बात है कि आखिर क्यों  यूनेस्को ने 7 नवम्बर 2004 को वेदपाठ को मानवता के मौखिक एवं अमूर्त विरासत की श्रेष्ठ कृति घोषित किया है।

इस अंक में आप देखें कुअरान भी 6 हैं। कुरान में दया और मानवता की बात है पर बुखारी की हदीसों में हिंसा और गैर मानवीय बात क्यों हैं। हिंदुओ ने इमाम हुसैन के लिये अपने बेटों तक की कुरबानियां दी हैंं।

बहुत सारे मुसलमानों को भी न मालूम न होगा कि कुल कितनी कुरान हैं। अल्लाह ने कुरान  के बारे में  दावा किया  है,

"बेशक यह  कुरान   हम   ने ही  उतारी  है, और   हम ही  इसकी  हिफाजत करने  वाले   हैं  "
 सूरा  -अल हिज्र 15:9
"
إِنَّا نَحْنُ نَزَّلْنَا الذِّكْرَ وَإِنَّا لَهُ لَحَافِظُونَ  "15:9
"Indeed, it is We who sent down the Qur'an and indeed, We will be its guardian."15:9

मुसलमान   दावा  करते   हैं कि  कुरान  अल्लाह  द्वारा  भेजी   हुई   आसमानी  किताब  है  जिसमे रत्ती  भर भी    बदलाव    होना  असंभव   है , गुजरानवाला    निवासी  इस्लाम   के विद्वान  "मुंशी   महबूब  आलम  - 
مُنشی محبوب آلم  " ( 1863-1933   )  ने " इस्लामी इनसाइक्लोपीडिया -اَسلامی انسایکلوپیڈیا " के पेज न 559 पर  जानकारी  दी  है  कि  इस  समय दुनिया में 6 प्रकार की कुरान है सभी कुरान एक दूसरे से अलग अलग है और उनकी आयतो की संख्या भी अलग अलग है और सभी कुरान को मानने वाले एक दूसरे की कुरान को ग़लत कहते है.

इनका  विवरण  इस  प्रकार   है।

1. कूफी कुरान...आयत 6236
2. बशरी कुरान...आयात 6216
3. शयामि कुरान...आयत 6250 (Shami or Damascus Quran )
4. मक्की कुरान...आयत 6212
5. ईराकी कुरान...आयत 6214
6. साधारण कुरान (आम कुरान)...आयत 6666  (most common these days )


इस्लामी इतिहासकार  " सिफ़्फ़ीन  - صفين" के  युद्ध (Battle )   को इस्लाम   का  पहला " फ़ित्न - فتن  " कहते  हैं इसका  मतलब राजद्रोह,  नागरिक संघर्ष होता है. यह  युद्ध  सन  657  ईस्वी   में मुहम्मद  साहब   के  दामाद   और  चचेरे  भाई  अली  इब्न  अबी   तालिब  और   मुआविया   बिन  अबी  सुफ़यान  की  सेना  के बीच   हुआ  था।   

क्योंकि उन   दिनों  अरब  के  कबीलों   के  सरदार  सत्ता  में   हिस्सा  पाने के लिए  मुसलमान  बन  गए  थे,  उन  दिनों  पूरी  कुरआन   जमा नहीं   हो  सकी   थीलोग  अपने  लाभ के  लिए   कुरान का  मनमाना   अर्थ    कर  रहे थे, मुआविया भी  यही  कर रहा  था,  अली  इसका  विरोध  कर  रहे  थे, इसी  कारण  से  ईराक    की " अल रिक्का  - الرقة  "  नामकी    जगह  पर  अली   और  मुआविया  की सेना में  युद्ध   हुआ   ज़िस्मे मुआविया   के 45,000  और  अली   के  25,000 सैनिक मारे गए। यद्यपि युद्ध   से   पहले  अली   ने  मुआविया  को   पत्र  द्वारा सचेत  कर दिया  था।
अली का पत्र  इस   प्रकार   है

"तुमने  पवित्र  कुरान   का  अनर्थ  करना  शुरू   कर  दिया    है, और कुरान के गलत  अर्थ  के  आधार  पर  तुम सत्ता  और   दौलत पर  कब्जा   लिया है,   तुम लोगों  को  सता  कर  आतंकित   कर रहे   हो,  तुम्हारा सबसे बड़ा   पाप   यह है कि तुमने  मुझे  खलीफा  उस्मान  की  हत्या   का जिम्मेदार  बता दिया  है, जबकि मेरी  जुबान   और   हाथ  दौनों   इस  काम  में   निर्दोष   हैंइसलिए  अल्लाह  से डरो,  कहीं  ऐसा न हो कि  शैतान  तुम्हें  जहाँ  चाहे   वहां  खदेड़  दे "


ومن كتاب له عليه السلام

إلى معاوية

أَمَّا بَعْدُ، فَإِنَّ اللهَ سُبْحَانَهُ [قَدْ] جَعَلَ الدُّنْيَا لِمَا بَعْدَهَا، وَابْتَلَى فِيهَا أَهْلَهَا، لِيَعْلَمَ أَيُّهُمْ أَحْسَنُ عَمَلاً، وَلَسْنَا لِلدُّنْيَا خُلِقْنَا، وَلاَ بِالسَّعْيِ فِيهَا أُمِرْنَا، وَإِنَّمَا وُضِعْنَا فِيها لِنُبْتَلَى بِهَا، وَقَدِ ابْتَلاَنِي [اللهُ] بِكَ وَابْتَلاَكَ بِي: فَجَعَلَ أَحَدَنَا حُجَّةً عَلَى الاَْخَرِ، فَعَدَوْتَعَلَى طَلَبِ الدُّنْيَا بَتَأْوِيلِ الْقُرْآنِ، فَطَلَبْتَنِي بِمَا لَمْ تَجْنِ يَدِي وَلاَ لِسَانِي، وَعَصَيْتَهُ أَنْتَ وأَهْلُ الشَّامِ بِي، وَأَلَّبَعَالِمُكُمْ جَاهِلَكُمْ، وَقَائِمُكُمْقَاعِدَكُمْ.

فَاتَّقِ اللهَ فِي نَفْسِكَ، وَنَازِعِ الشَّيْطَانَ قِيَادَكَ وَاصْرِفْ إِلَى الاَْخِرَةِ وَجْهَكَ، فَهِيَ طَرِيقُنَا وَطَرِيقُكَ. وَاحْذَرْ أَنْ يُصِيبَكَ اللهُ مِنْهُ بِعَاجِلِ قَارِعَةٍتَمَسُّ الاََْصْلَ وَتَقْطَعُ الدَّابِرَذص، فَإِنِّي أُولِي لَكَ بِاللهِ أَلِيَّةًغَيْرَ فَاجِرَةٍ، لَئِنْ جَمَعَت الاََْقْدَارِ لاَ أَزَالُ بِبَاحَتِكَ.

You began by misinterpreting the Holy Qur'an and on the basis of these misinterpretations you started grasping power and wealth and began oppressing and tyrannizing the people. Your next unholy action was to call me responsible for an action (murder of Caliph Uthman) of which my tongue and hands were both innocent.Fear Allah and do let Satan drive you wherever it wants, "

अली की  हत्या  के बाद ही   मुस्लिम   शासकों   ने कुरान  में   काटछांट,  हेराफेरी   करके  अपने अनुकूल   बनाना  शुरू   कर दिया  था, किसी ने कुरान   की पूरी की सूरा (Chapters )   गायब  कर  दी,  तो  किसी   ने  कुरान  की  आयतें   कम   कर दी,  और किसी  ने  अपने मर्जी से  कुछ  आयतें  जोड़   डालीं।


अब जो लोग यह स्वभाविक प्रश्न  करते हैं कि आज की कुरान में शुरू में जो नेक नियती की बातें की गई हैं कुछ अध्यायों में उसकी उलट बातें क्यों दिखती हैं। मुझे तो यही कारण समझ में आता है। और अनपढ होने के कारण आतंकवादी पैदा कर दिये जाते हैं।



यह एक सर्वमान्य सत्य है कि इतिहास को दोहराया नहीं जा सकता है और न बदलाया जा सकता है क्योंकि इतिहास कि घटनाएँ सदा के लिए अमिट हो जाती है .लेकिन यह भी सत्य है कि विज्ञान कि तरह इतिहास भी एक शोध का विषय होता है .क्योंकि इतिहास के पन्नों में कई ऐसे तथ्य दबे रह जाते हैं ,जिनके बारे में काफी समय के बाद पता चलता है .ऐसी ही एक ऐतिहासिक घटना हजरत इमाम हुसैन के बारे में है वैसे तो सब जानते हैं कि इमाम हुसैन मुहम्मद साहिब के छोटे नवासे, हहरत अली और फातिमा के पुत्र थे .और किसी परिचय के मुहताज नहीं हैं ,उनकी शहादत के बारे में हजारों किताबें मिल जाएँगी .काफी समय से मेरे एक प्रिय मुस्लिम मित्र हजरत इमाम के बारे में कुछ लिखने का आग्रह कर रहे थे ,तभी मुझे अपने निजी पुस्तक संग्रह में एक उर्दू पुस्तक "हमारे हैं हुसैन " की याद आगई ,जो सन 1960 यानि मुहर्रम 1381 हि० को इमामिया मिशन लखनौउसे प्रकाशित हुई थी .इसकी प्रकाशन संख्या 351 और लेखक "सय्यद इब्न हुसैन नकवी " है .इसी पुस्तक के पेज 11 से 13 तक से कुछ अंश लेकर उर्दू से नकवी जी के शब्दों को ज्यों का त्यों दिया जा रहा , जिस से पता चलता है कि इमाम हुसैन ने भारत आने क़ी इच्छा प्रकट क़ी थी (फिर इसके कारण संक्षिप्त में और सबूत के लिए उपलब्ध साइटों के लिंक भी दिए जा रहे हैं .)


4-Relation of Imam Hussain with Indiaહજરત ઇમામ હુસેનના ભારત સાથેના સંબંધો http://hi.shvoong.com/humanities/religion-studies/1909198-relation-imam-hussain-india/

7-Azadaar e Husain
http://alqaim.info/?p=1417

11-JANG NAMA IMAM HUSSAIN جنگ نامہ امام حسین Auther Name : Dr.Qureshi Ahmed Hussain Ailadri First Edition : 2001-Rs.150.00 http://www.punjabiadbiboard.com/index.php?main_page=product_info&cPath=5&products_id=26

1-इमाम क़ी भारत आने क़ी इच्छा
नकवी जी ने लिखा है "हजरत इमाम हुसैन दुनियाए इंसानियत में मुहसिने आजम हैं,उन्होंने तेरह सौ साल पहले अपनी खुश्क जुबान से ,जो तिन रोज से बगैर पानी में तड़प रही थी ,अपने पुर नूर दहन से से इब्ने साद से कहा था "अगर तू मेरे दीगर शरायत को तस्लीम न करे तो , कम अज कम मुझे इस बात की इजाजत दे दे ,कि मैं ईराक छोड़कर हिंदुस्तान चला जाऊं"


नकवी आगे लिखते हैं ,"अब यह बात कहने कि जरुरत नहीं है कि ,जिस वक्त इमाम हुसैन ने हिंदुस्तान तशरीफ लाने की तमन्ना का इजहार किया था ,उस वक्त न तो हिंदुस्तान में कोई मस्जिद थी ,और न हिंदुस्तान में मुसलमान आबाद थे .गौर करने की बात यह है कि,इमाम हुसैन को हिंदुस्तान की हवाओं में मुहब्बत की कौन सी खुशबु महसूस हुई थी ,कि उन्होंने यह नहीं कहा कि मुझे चीन जाने दो ,या मुझे ईरान कि तरफ कूच करने दो ..उन्होंने खुसूसियत से सिर्फ हिंदुस्तान कोही याद किया था.


गालिबन यह माना जाता है कि हजरत इमाम हुसैन के बारे में हिन्दुस्तान में खबर देने वाला शाह तैमुर था .लेकिन तारीख से इंकार करना नामुमकिन है .इसलिए कहना ही पड़ता है कि इस से बहुत पहले ही " हुसैनी ब्राह्मण "इमाम हुसैन के मसायब बयाँ करके रोया करते थे .और आज भी हिंदुस्तान में उनकी कोई कमी नहीं है .यही नहीं जयपुर के कुतुबखाने में वह ख़त भी मौजूद है जो ,जैनुल अबिदीन कि तरफ से हिन्दुतान रवाना किया गया था.


इमाम हुसैन ने जैसा कहा था कि ,मुझे हिंदुस्तान जाने दो ,अगर वह भारत की जमीन पर तशरीफ ले आते तो ,हम कह नहीं सकते कि उस वक्त कि हिन्दू कौम उनकी क्या खिदमत करती"


2-इमाम हुसैन की भारत में रिश्तेदारी
इस्लाम से काफी पहले से ही भारत ,इरान ,और अरब में व्यापार होता रहता था .इस्लाम के आने से ठीक पहले इरान में सासानी खानदान के 29 वें और अंतिम आर्य सम्राट "यज्देगर्द (590 ई ) की हुकूमत थी .उस समय ईरान के लोग भारत की तरह अग्नि में यज्ञ करते थे .इसी लिए "यज्देगर्द" को संस्कृत में यज्ञ कर्ता भी कहते थे.


प्रसिद्ध इतिहासकार राज कुमार अस्थाना ने अपने शोधग्रंथ "Ancient India " में लिखा है कि सम्राट यज्देगर्द की तीन पुत्रियाँ थी ,जिनके नाम मेहर बानो , शेहर बानो , और किश्वर बानो थे .यज्देगर्द ने अपनी बड़ी पुत्री की शादी भारत के राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय से करावा दी थी .जिसकी राजधानी उज्जैन थी ..और राजा के सेनापति का नाम भूरिया दत्त था .जिसका एक भाई रिखब दत्त व्यापर करता था . .यह लोग कृपा चार्य के वंशज कहाए जाते हैं .चन्द्रगुप्त ने मेहर बानो का नाम चंद्रलेखा रख दिया था .क्योंकि मेहर का अर्थ चन्द्रमा होता है ..राजाके मेहर बानो से एक पुत्र समुद्रगुप्त पैदा हुआ .यह सारी घटनाएँ छटवीं शताब्दी की हैं


यज्देगर्द ने दूसरी पुत्री शेहर बानो की शादी इमाम हुसैन से करवाई थी . और उस से जो पुत्र हुआ था उसका नाम "जैनुल आबिदीन " रखा गया .इस तरह समुद्रगुप्त और जैनुल अबिदीन मौसेरे भाई थे .इस बात की पुष्टि "अब्दुल लतीफ़ बगदादी (1162 -1231 ) ने अपनी किताब "तुहफतुल अलबाब " में भी की है .और जिसका हवाला शिशिर कुमार मित्र ने अपनी किताब "Vision of India " में भी किया है .


3-अत्याचारी यजीद का राज
इमाम हुसैन के पिता हजरत अली चौथे खलीफा थे और उस समय वह इराक के शहर कूफा में रहते थे . हजरत अली सभी प्रकार के लोगों से प्रेमपूर्वक वर्ताव करते थे. उन के ल में कुछ हिन्दू भी वहां रहते थे लेकिन किसी पर भी इस्लाम कबूल करने पर दबाव नहीं डाला जाता था.  




ऐसा एक परिवार रिखब दत्त का था जो इराक के एक छोटे से गाँव में रहता थाजिसे अल हिंदिया कहा जाता है. जब सन 681 में हजरत अली का निधन हो गया तोमुआविया बिन अबू सुफ़यान खलीफा बना.   वह बहुत कम समय तक रहा.  उसके बाद उसका लड़का यजीद सन 682 में खलीफा बन गया . यजीद एक अय्याश , अत्याचारी . व्यक्ति था.  वह सारी सत्ता अपने हाथों में रखना चाहता था इसलिए उसने सूबों के सभी अधिकारीयों को पत्र भेजा और उनसे अपने समर्थन में बैयत ( oath of allegiance ) देने पर दबाव दिया.  कुछ लोगों ने डर या लालच के कारण यजीद का समर्थन कर दिया. लेकिन इमाम हुसैन ने बैयत करने से साफ मना कर दिया.  यजीद को आशंका थी कि यदि इमाम हुसैन भी बैयत नहीं करेंगे तो उसके लोग भी इमाम के पक्ष में हो जायेंगे. यजीद तो युद्ध कि तय्यारी करके बैठा था लेकिन इमाम हुसैन युद्ध को टालना चाहते थे, यह हालत देखकर शहर बानो ने अपने पुत्र जैनुल अबिदीन के नाम से एक पत्र उज्जैन के राजा चन्द्रगुप्त को भिजवा दिया था. जो आज भी जयपुर महाराजा के संग्राहलय में मौजूद है. बरसों तक यह पत्र ऐसे ही दबा रहा,फिर एक अंगरेज अफसर Sir Thomas Dreadnought ने 26 फरवरी 1809 को इसे खोज लिया और पढ़वाया और राजा को दिया, जब यह पत्र सन 1813 में प्रकाशित हुआ तो सबको पता चल गया. 


उस समय उज्जैन के राजा ने करीब 5000 सैनिकों के साथ अपने सेनापति भूरिया दत्त को मदीना कि तरफ रवाना कर दिया था. लेकिन इमाम हसन तब तक अपने परिवार के 72 लोगों के साथ कूफा कि तरफ निकल चुके थे, जैनुल अबिदीन उस समय काफी बीमार था, इसलिए उसे एक गुलाम के पास देखरेख के लिए छोड़ दिया था. भूरिया दत्त ने सपने भी नहीं सोचा होगा कि इमाम हुसैन अपने साथ ऐसे लोगों को लेकर कुफा जायेंगे जिन में औरतें, बूढ़े और दुधा पीते बच्चे भी होंग. उसने यह भी नहीं सोचा होगा कि मुसलमान जिस रसूल के नाम का कलमा पढ़ते हैं उसी के नवासे को परिवार सहित निर्दयता से क़त्ल कर देंगे.  और यजीद इतना नीच काम करेगा. वह तो युद्ध की योजना बनाकर आया था. तभी रस्ते में ही खबर मिली कि इमाम हुसैन का क़त्ल हो गया. यह घटना 10 अक्टूबर 680 यानि 10 मुहर्रम 61 हिजरी की है. यह हृदय विदारक खबर पता चलते ही वहां के सभी हिन्दू (जिनको आजकल हुसैनी ब्राहमण कहते है) मुख़्तार सकफी के साथ इमाम हुसैन के क़त्ल का बदला लेने को युद्ध में शामिल हो गए थे. इस घटना के बारे में "हकीम महमूद गिलानी" ने अपनी पुस्तक "आलिया " में विस्तार से लिखा है 


4-रिखब दत्त का महान बलिदान
कर्बला की घटना को युद्ध कहना ठीक नहीं होगा, एक तरफ तिन दिनों के प्यासे इमाम हुसैन के साथी और दूसरी तरफ हजारों की फ़ौज थी, जिसने क्रूरता और अत्याचार की सभी सीमाएं पर कर दी थीं, यहाँ तक इमाम हुसैन का छोटा बच्चा जो प्यास के मारे तड़प रहा था, जब उसको पानी पिलाने इमाम नदी के पास गए तो हुरामुला नामके सैनिक ने उस बच्चे अली असगर के गले पर ऐसा तीर मारा जो गले के पार हो गया.  इसी तरह एक एक करके इमाम के साथी शहीद होते गए.


और अंत में शिम्र नामके व्यक्ति ने इमाम हुसैन का सिर काट कर उनको शहीद कर दियाशिम्र बनू उमैय्या का कमांडर था. उसका पूरा नाम "Shimr Ibn Thil-Jawshan Ibn Rabiah Al Kalbi (also called Al Kilabi (Arabic:
شمر بن ذي الجوشن بن ربيعة الكلبي) था.


यजीद के सैनिक इमाम हुसैन के शरीर को मैदान में छोड़कर चले गए थे. तब रिखब दत्त ने इमाम के शीश को अपने पास छुपा लिया था. यूरोपी इतिहासकार रिखब दत्त के पुत्रों के नाम इस प्रकार बताते हैं, 1सहस राय, 2हर जस राय 3, शेर राय, 4 राम सिंह, 5राय पुन, 6 गभरा और 7 पुन्ना. बाद में जब यजीद को पता चला तो उसके लोग इमाम हुसैन का सर खोजने लगे कि यजीद को दिखा कर इनाम हासिल कर सकें. जब रिखब दत्त ने शीश का पता नहीं दिया तो यजीद के सैनिक एक एक करके रिखब दत्त के पुत्रों से सर काटने लगे, फिर भी रिखब दत्त ने पता नहीं दिया. सिर्फ एक लड़का बच पाया था. जब बाद में मुख़्तार ने इमाम के क़त्ल का बदला ले लिया था तब विधि पूर्वक इमाम के सर को दफनाया गया था. यह पूरी घटना पहली बार कानपुर में छपी थी.  (Annual Hussein Report, 1989) printed from Kanpur (UP) .The article ''Grandson of Prophet Mohamed (PBUH)

रिखब दत्त के इस बलिदान के कारण उसे सुल्तान की उपाधि दी गयी थी. और उसके बारे में "जंग नामा इमाम हुसैन " के पेज 122 में यह लिखा हुआ है, "वाह दत्त सुल्तान, हिन्दू का धर्म मुसलमान का इमान, आज भी रिखब दत्त के वंशज भारत के अलावा इराक और कुवैत में भी रहते हैं, और इराक में जिस जगह यह लोग रहते है उस जगह को आज भी हिंदिया कहते हैं यह विकी पीडिया से साबित है
Al-Hindiya or Hindiya (Arabic:
الهندية) is a city in Iraq on the Euphrates River. Nouri al Maliki went to school there in his younger days. Al-Hindiya is located in the Kerbala Governorate. The city used to be known as Tuwairij (Arabic: طويريج), which gives name to the "Tuwairij run" (Arabic: ركضة طويريج) that takes place here every year as part of the Mourning of Muharram on the Day of Ashura.
http://en.wikipedia.org/wiki/Hindiya

तबसे आजतक यह हुसैनी ब्राह्मण इमाम हुसैन के दुखों को याद करके मातम मनाते हैं. लोग कहते हैं कि इनके गलों में कटने का कुदरती निशान होता है. यही उनकी निशानी है.


5-सारांश और अभिप्राय
यद्यपि मैं इतिहास का विद्वान् नहीं हूँ, और इमाम हुसैन और उनकी शहादत के बारे में हजारों किताबे लिखी जा सकती हैं, चूँकि मुझे इस विषय पर लिखने का आग्रह मेरे एक दोस्त ने किया था, इसलिए उपलब्ध सामग्री से संक्षिप्त में एक लेख बना दिया था, मेरा उदेश्य उन कट्टर लोगों को समझाने का है, कि जब इमाम हुसैन कि नजर में भारत एक शांतिप्रिय देश है, तो यहाँ आतंक फैलाकर इमाम की आत्मा को कष्ट क्यों दे रहे है. भारत के लोग सदा से ही अन्याय और हिंसा के विरोधी और सत्य के समर्थक रहे हैं.  इसी लिए अजमेर की दरगाह के दरवाजे पर लिखा है,

"शाहास्त हुसैन बदशाहस्त हुसै,   ीनस्त हुसैन दीं पनाहस्त हुसैन
सर दाद नादाद दस्त दर दस्ते यजीद, हक्का कि बिनाये ला इलाहस्त हुसैन "


इतिहास गवाह है कि अत्याचार से सत्य का मुंह बंद नहीं हो सकता है, वह दोगुनी ताकत से प्रकट हो जाता है ,जैसे कि " कत्ले हुसैन असल में मर्गे यजीद है "


मुझे पूरा विश्वास है कि इतने सबूतों के देखने के बाद लोग हिंसा का रास्ता छोडके मानवता और इमाम हुसैन के प्रिय भारत देश की सेवा जरुर करेंगे 

............क्रमश:...............

(तथ्य कथन गूगल साइट्स, मुख्तय: ब्लाग भांडाफोड, वेब दुनिया इत्यादि से साभार)

"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
ब्लाग :  https://freedhyan.blogspot.com/

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