मेरी मां गाती थी
मेरी स्वर्गीय मां के हाथों
से लिखी नरसिंह मेहता गीत, रामायन भजन इत्यादि की पुस्तिका मेरी बडी
बहन के पास सुरक्षित है। यह भजन मां ने नहीं लिखे थे पर शौक के कारण वह यह गाती थी
और लिखती थीं। उन्ही में यह भी एक भजन था। जो मुझे कभी याद करवाया था।
है प्रेम जगत में सार
और सार कुछ नहीं।
तू कर ले हरि से प्यार और कोई प्यार नहीं॥
कहा घनश्याम ने उधौ कि वृन्दावन जरा जाना,
वहाँ की गोपियों को ज्ञान का कुछ तत्व समझाना।
विरह की वेदना में वे सदा बेचैन रहती हैं,
तड़पकर आह भर कर और रोकर ये कहती है॥
है प्रेम जगत में सार और सार कुछ नहीं।
तू कर ले हरि से प्यार और कोई प्यार नहीं॥
कहा हँसकर उधौ ने अभी जाता हूँ वृन्दावन,
जरा देखूँ कि कैसा है कठिन अनुराग का बंधन।
हैं कैसी गोपियाँ जो ज्ञान बल को कम बताती हैं,
निरर्थक लोकलीला का यही गुणगान गातीं हैं॥
है प्रेम जगत में सार और सार कुछ नहीं।
तू कर ले हरि से प्यार और कोई प्यार नहीं॥
चले मथुरा से दूर कुछ वृन्दावन नज़र आया,
वहीं से प्रेम ने अपना अनोखा रंग दिखलाया।
उलझकर वस्त्र में काँटें लगे उधौ को समझाने,
तुम्हारे ज्ञान का पर्दा फाड़ देंगे ये दीवाने।।
है प्रेम जगत में सार और सार कुछ नहीं।
तू कर ले हरि से प्यार और कोई प्यार नहीं॥
विटप झुककर ये कहते थे इधर आओ इधर आओ,
पपीहा कह रहा था पी कहाँ यह भी तो बतलाओ।
नदी यमुना की धारा शब्द हरि-हरि का सुनाती थी,
भ्रमर गुंजार से भी यही मधुर आवाज़ आती थी॥
है प्रेम जगत में सार और सार कुछ नहीं।
तू कर ले हरि से प्यार और कोई प्यार नहीं॥
गरज पहुँचे वहाँ था गोपियों का जिस जगह मण्डल,
वहाँ थी शांत पृथ्वी, वायु धीमी, व्योम था निर्मल।
सहस्रों गोपियों के बीच बैठीं थी श्री राधा रानी,
सभी के मुख से रह रह कर निकलती थी यही वाणी॥
है प्रेम जगत में सार और सार कुछ नहीं।
तू कर ले हरि से प्यार और कोई प्यार नहीं॥
तू कर ले हरि से प्यार और कोई प्यार नहीं॥
कहा घनश्याम ने उधौ कि वृन्दावन जरा जाना,
वहाँ की गोपियों को ज्ञान का कुछ तत्व समझाना।
विरह की वेदना में वे सदा बेचैन रहती हैं,
तड़पकर आह भर कर और रोकर ये कहती है॥
है प्रेम जगत में सार और सार कुछ नहीं।
तू कर ले हरि से प्यार और कोई प्यार नहीं॥
कहा हँसकर उधौ ने अभी जाता हूँ वृन्दावन,
जरा देखूँ कि कैसा है कठिन अनुराग का बंधन।
हैं कैसी गोपियाँ जो ज्ञान बल को कम बताती हैं,
निरर्थक लोकलीला का यही गुणगान गातीं हैं॥
है प्रेम जगत में सार और सार कुछ नहीं।
तू कर ले हरि से प्यार और कोई प्यार नहीं॥
चले मथुरा से दूर कुछ वृन्दावन नज़र आया,
वहीं से प्रेम ने अपना अनोखा रंग दिखलाया।
उलझकर वस्त्र में काँटें लगे उधौ को समझाने,
तुम्हारे ज्ञान का पर्दा फाड़ देंगे ये दीवाने।।
है प्रेम जगत में सार और सार कुछ नहीं।
तू कर ले हरि से प्यार और कोई प्यार नहीं॥
विटप झुककर ये कहते थे इधर आओ इधर आओ,
पपीहा कह रहा था पी कहाँ यह भी तो बतलाओ।
नदी यमुना की धारा शब्द हरि-हरि का सुनाती थी,
भ्रमर गुंजार से भी यही मधुर आवाज़ आती थी॥
है प्रेम जगत में सार और सार कुछ नहीं।
तू कर ले हरि से प्यार और कोई प्यार नहीं॥
गरज पहुँचे वहाँ था गोपियों का जिस जगह मण्डल,
वहाँ थी शांत पृथ्वी, वायु धीमी, व्योम था निर्मल।
सहस्रों गोपियों के बीच बैठीं थी श्री राधा रानी,
सभी के मुख से रह रह कर निकलती थी यही वाणी॥
है प्रेम जगत में सार और सार कुछ नहीं।
तू कर ले हरि से प्यार और कोई प्यार नहीं॥
संकलन: विपुल लखनवी
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक
विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी
न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग
40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके
लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6
महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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