सबरीमलाई छेडछाड लायेगा और तबाही: वैज्ञानिक
दृष्टिकोण
नोट:
यह विचार मेरे द्वारा संकलित हैं। मेरे नहीं हैं पर मैं पूर्णतया सहमत हूं। यह मात्र सनातन को बचाने
हेतु किया गया है। आपसे अनुरोध है बिना मेरे नाम के अधिक से अधिक शेयर
करें। धन्यवाद
केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किमी की दूरी पर पंपा है और वहाँ से चार-पांच किमी की दूरी पर पश्चिम घाट
से सह्यपर्वत श्रृंखलाओं के घने वनों के बीच, समुद्रतल से
लगभग 1km की ऊंचाई पर सबरीमला मंदिर स्थित है। मक्का-मदीना
के बाद यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ माना जाता है, जहाँ
हर साल करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं, और हिन्दू
धर्म का एक प्रतीक चिन्ह है ये मंदिर, इसलिए विधर्मियों की
नज़र भी हमेश सा इस पर रही।
मंदिर में अयप्पन के अलावा
मालिकापुरत्त अम्मा, गणेश और नागराजा जैसे उप देवताओं की
भी मूर्तियाँ हैं। मंदिर में रजस्वला स्त्री का प्रवेश वर्जित था इसके पीछे कारण
था इस समय महिलाओं की ऑरा नेगेटिव एनर्जी होना, आप हर प्रवेश
करने वाली महिला से ये तो पूछ नहीं सकते कि आप रजस्वला हो या नहीं, इसलिए मंदिर में 10 से नीचे और 50 से ऊपर महिलाओं के प्रवेश की अनुमति थी वो भी उनके ही भले के लिए क्योंकि
ऐसा न होने पर मंदिर सिर्फ एक दर्शन स्थल ही रह जाएगा और उसका प्रभाव कम हो जाएगा,
लेकिन फेमिनिस्ट जमात को सिर्फ हिन्दू धार्मिक स्थलों पर ही असमानता
दिखती है। आशा करता हूँ मस्जिद में महिलाओं के नमाज पढ़ने के लिए जल्द ही ये जमात
आंदोलन करेगी।
विशेष-
ये मंदिर श्रद्धालुओं के लिए साल में
सिर्फ नवंबर से जनवरी तक खुलता है। बाकी महीने इसे बंद रखा जाता है। भक्तजन पंपा
त्रिवेणी में स्नान करते हैं और दीपक जलाकर नदी में प्रवाहित करते हैं। इसके बाद
ही शबरीमलै यानी सबरीमला मंदिर जाना होता है।
पंपा त्रिवेणी पर गणपति जी की पूजा
करते हैं। उसके बाद ही चढ़ाई शुरू करते हैं। पहला पड़ाव शबरी पीठम नाम की जगह है।
कहा जाता है कि यहाँ पर रामायण काल में शबरी नामक भीलनी ने तपस्या की थी। श्री
अय्यप्पा के अवतार के बाद ही शबरी को मुक्ति मिली थी।
इसके आगे शरणमकुट्टी नाम की जगह आती
है। पहली बार आने वाले भक्त यहाँ पर शर (बाण) गाड़ते हैं।
इसके बाद मंदिर में जाने के लिए दो मार्ग
हैं। एक सामान्य रास्ता और दूसरा अट्ठारह पवित्र सीढ़ियों से होकर। जो लोग मंदिर
आने के पहले 41 दिनों तक कठिन व्रत करते हैं वो ही
इन पवित्र सीढ़ियों से होकर मंदिर में जा सकते हैं। दरअसल पहले नियम था कि इस
मंदिर में 41 दिन के व्रत के बाद ही लोग प्रवेश करते थे इससे
उनको ऊर्जा, व्रत के कारण आत्मिक शारीरिक शुद्धि मिलती थी
जिससे यहाँ से जाने पर वे जीवन में अधिक ऊर्जा से आगे बढ़ते। लेकिन अब सीधे ऊर्जा
के केन्द्र को ही दूषित कर देने का कुत्सित प्रयास हो रहा है ताकि हिन्दुओं का
धर्मांतरण, उनके हनन में आसानी हो।
मंदिर का नियम और मानव शरीर-
सबरीमला मंदिर प्रवेश के लिए 41 दिन के व्रत के लिए जो निर्देश है उनसे क्या लाभ है इसका
विश्लेषण भी कर देता हूँ –
1- इकतालीस दिन तक समस्त लौकिक बंधनों
से मुक्त होकर ब्रह्मचर्य का पालन करना ज़रूरी है।
ब्रम्हचर्य के लाभ की आज वैज्ञानिक
पुष्टि है कि इससे शरीर मे ऊर्जा बढ़ती है, मेडीकली देखे तो
स्पर्म काउंट, डेन्सिटी और यौन क्षमता को बढ़ाया जाता है ब्रम्हचर्य
से।
2- इन दिनों में उन्हें नीले या काले
कपड़े ही पहनने पड़ते हैं।
प्रकाश के सबसे अच्छे अवशोषक है ये रंग, चर्म रोग या व्यधि कैलसिफिकेशन आदि रोगी जब 41 दिन
तक इन कपड़ो में दैनिक कार्य सूर्य उपासना पूजा कर्म आदि करते हैं तो उसमें लाभ
होता है यहाँ तक कि स्किन कैंसर जैसी समस्या के लिए भी एक प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती
है।
3- गले में तुलसी की माला रखनी होती है
और पूरे दिन में केवल एक बार ही साधारण भोजन करना होता है। तुलसी माला एक मदिबन्ध
पर दवाब डालती है तो रक्तचाप नियंत्रण में रहता है साधारण और 1 समय के भोजन से लिवर और पेट से समस्या खत्म हो जाती है।
4- शाम को पूजा करनी होती है और ज़मीन
पर ही सोना पड़ता है।
मानसिक शांति के साथ, ज़मीन पर सोने से सर्वाइकल पेन और शरीर के मांसपेशियों को लाभ के साथ धरती
की चुम्बकीय तरंगों से तन मन को रिलैक्स मिलता है।
कभी कभी मुझे लगता है कि जब आदमी ज्यादा पढ़
लिख लेता है तो चिराग तले अंधेरे जैसी कहावत को चरितार्थ करता है, मतलब हर समस्या को वो अपने लेवल पर लाकर उसका हल करने की कोशिश करता है
लेकिन उसकी जड़ को नहीं देखता है, एक ऐसा ही वाकया मेरे साथ
हुआ और वाकई एक ग्रामीण महिला के सामने खुद को अनपढ़ जैसा महसूस कर रहा हूँ।
वाकया कुछ यूँ है –
एक सुबह कुछ लोगों के साथ सबरीमाला
मुद्दे पर चर्चा हो रही थी, चर्चा करने वालो में
सभी उच्च शिक्षित ही थे और सब एक से एक तर्क रख रहे थे, मैं
भी अपना फ़ेसबुकिया तर्क रख रहा था (अब तक की सभी पढ़ी गयी पोस्ट जितनी भी पढ़ी थी सब
चिपका दिया)।
मतलब आंइस्टीन से लेकर सेलुलर वाइब्रेशन
इफ़ेक्ट तक सब पर चर्चा की गई, हम सबने एक बार गौर नहीं
किया कि हमारे यहाँ के काम करने वाले बड़े ध्यान से इसे सुन रहे थे, जब हम सब थोड़े साम्य स्थिति में पहुँचे तो ये निष्कर्ष तो मिला कि ये
मंदिर हिन्दुओं की आस्था का प्रतीक है और सैकड़ों सालों से ये ईसाइयों और अन्य
विधर्मियों के निशाने पर रहा है.
इस पर ये दूसरा हमला है, पहला हमला जबरन घुसने का विफल रहा तो इस बार संविधान की आड़ से घुसने की
कोशिश की गई है। लेकिन महिलाओं का प्रवेश क्यों नहीं है इसपे कोई खास एकमत नहीं थे,
सबके अपने अपने तर्क और पक्ष थे।
चाय खत्म होने पर जब चलने का उपक्रम हुआ तो, एक महिला जिसे सब गुड़िया की माँ कहते हैं (खैर नाम मुझे भी नहीं पता)
उन्होंने टोका, चूँकि वो काफी बुजुर्ग हैं और उनकी बात हर कोई
सुनता है तो हम सब रुक गए, उन्होंने कहा कि इतनी देर से हम
लोग सुन रहे हैं आप लोग जो आपस में बात कर रहे थे वो हम लोगों की समझ में ज्यादा
तो नहीं आया लेकिन इस पर आप लोग मेरी बात को गलत सिद्ध कीजिये, हम सब सीरियस थे लेकिन अंदर से सब हँस रहे थे कारण था उनका अनपढ़ होना और
हम सबको इस बार का गुरुर कि हम सब पढ़े लिखे हैं और तकनीकी रूप से उनसे कहीं
जागरूक।
उन्होंने कहा कि – महिलाओं को समझने के
लिए सबसे पहली शर्त है महिला होना, महिलाओं का पीरियड
अनिश्चितता से भरा होता है, निश्चित समय होते हुए भी वो आगे आयेगा
या पीछे आएगा समय से ये निश्चित नहीं होता है, सिर्फ कल्पना
कीजिये कि जहाँ हजारों की भीड़ है वहाँ सांस लेने तक में उलझन होती है, वहीं किसी महिला को अचानक पीरियड शुरू हो जाये लाइन में लगे हुए ही उसका
रक्तस्राव शुरू हो जाये, कभी कभी ऐसा होता है कि पीरियड आ
जाता है और पता भी नहीं लगता, यदि ऐसा हो जाये तो पूरा मंदिर
उस रक्तस्राव से फर्श का क्या हाल होगा, लाखों की भीड़ में
सिर्फ 50 की हालत ऐसी हो जाये तो क्या हाल होगा?
अबतक के दिये उनके तर्क से हम सबकी
हँसी अब गायब थी और वो पढ़े लिखे होने का गुरुर कही गुम से हो गया है और लग रहा है
कि वाकई हम अनपढ़ हैं।
कोई आपसे पूछे कि ब्रह्मांड में कितनी तरह
की चीज़े हैं तो आप क्या जवाब देंगे? जवाब है सिर्फ दो – पहली
चीज़ है ऊर्जा यानी एनर्जी (E), दूसरी द्रव्यमान, मैटर या मास (M)। इनके बीच के सिद्धांत को ऊर्जा
द्रव्यमान का समीकरण कहते है जिसे E = MC*2 से प्रदर्शित
करते है और इस समीकरण के अनुसार ऊर्जा न पैदा होती है न खत्म की जा सकती है,
बस अपना रूप बदलती है।
अब ज़रा इसे पढ़िए –
नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति
पावक:। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥
(गीता: द्वितीय अध्याय, श्लोक 23)
आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न
हवा उसे सुखा सकती है। मतलब उसे नष्ट नहीं किया जा सकता।
दोनो में समानता मिली ऊपर का नियम
ऊर्जा द्रव्यमान का नियम है जो अल्बर्ट आइंस्टीन द्वारा दिया गया नीचे भगवत गीता
में आत्मा के उसी रूप यानी आत्मा के एक ऊर्जा ही होने की पुष्टि की जा रही है, कि आत्मा भी ऊर्जा का एक रूप है जिससे मानव शरीर कार्य करता है।
भारत में बहुत सारे मंदिर हैं। मंदिर कभी भी केवल प्रार्थना के स्थान नहीं
रहे,
वे हमेशा से ऊर्जा के केंद्र रहे हैं। जहां आप कई स्तरों पर ऊर्जा
प्राप्त कर सकते हैं। चूंकि आप खुद कई तरह की ऊर्जाओं का एक जटिल संगम हैं इसलिए हर
तरह के लोगों को ध्यान में रखते हुए कई तरह के मंदिरों का एक जटिल समूह बनाया गया।
एक व्यक्ति की कई तरह की ज़रूरतें होती
हैं जिसे देखते हुए तरह-तरह के मंदिर बनाए जिनका आधार रहा आगम शास्त्र दरअसल आगम
शास्त्र कुछ खास तरह के स्थानों के निर्माण का विज्ञान है। बुनियादी रूप में यह
अपवित्र को पवित्र में बदलने का विज्ञान है। समय के साथ इसमें काफी-कुछ निरर्थक
जोड़ दिया गया लेकिन इसकी विषय वस्तु यही है कि पत्थर को ईश्वर कैसे बनाया जाये।
यह एक अत्यंत गूढ़ विज्ञान है, सही ढंग से किये जाने पर यह एक ऐसी टेक्नालॉजी है जिसके
जरिये आप पत्थर जैसी स्थूल वस्तु को एक सूक्ष्म ऊर्जा में रूपांतरित कर सकते हैं,
जिसको हम ईश्वर कहते हैं दूसरे शब्दों में विज्ञान की व्याख्यानुसार
ऊर्जा का केंद्र जिससे हमें ऊर्जा मिलती है।
आगम शास्त्र, बहुत लम्बे समय से हिन्दू धर्म के पूजा-पाठ, मंदिर
निर्माण, आध्यात्मिक और अनुष्ठानिक रीति-रिवाज के नियम और
मानदंडों के लिए बने विचारों का एक सम्पूर्ण संकलन है। यह संस्कृत, तमिल और ग्रंथ शास्त्रों का एक संग्रह है जिसमें मुख्य रूप से मंदिर
निर्माण के तरीके, मूर्ति निर्माण के तरीके, दार्शनिक सिद्धांतों और ध्यान मुद्राओं का सम्पूर्ण संग्रह है।
बाद के वर्षों में यह विभिन्न प्रकार
के श्रोतों और विचारों को आत्मसात हुआ और सम्पूर्ण अस्तित्व में आया (कुछ
कुरीतियाँ भी सम्मिलित हुईं)। एक संग्रह के रूप में सम्पूर्ण अगम शस्त्र को
दिनांकित नहीं किया जा सकता है, इसके कुछ भाग वैदिक
काल के पहले के प्रतीत होते हैं और कुछ भाग वैदिक काल के बाद के।
मंदिर निर्माण और पूजा में आगम शास्त्र की
भूमिका एक पूर्ण उपदेशक और मार्गदर्शक के रूप में, आगम शास्त्र अभिषेक और पवित्र स्थानों के निर्माण में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका
निभाता है। ज्यादातर हिन्दू पूजास्थल आगम शास्त्र के सिद्धांतों का पालन करते हैं।
आगम शास्त्र के चार पद – जैसे कि आगम
संख्या में बहुत सारे हैं लेकिन उनमें से प्रत्येक के चार भाग होते हैं
क्रिया पद
चर्या पद
योग पद
जनन पद
क्रिया पद मंदिर निर्माण, मूर्तिकला के अधिक साकार नियमों की व्याख्या करता है जबकि जनन पद मंदिर
में पूजा की विधि, दर्शन और आध्यामिकता के नियमों की गर्वित
व्याख्या करता है, आगम शस्त्र के अनुसार मंदिर और पूजास्थल
कभी भी ऐसे ही स्वेच्छा से और स्थानीय धारणाओं के आधार पर मनमाने ढंग से नहीं बनाए
जा सकते हैं। उदाहरण के लिए किसी भी हिन्दू तीर्थस्थान के लिए तीन अनिवार्य सारभूत
या मौलिक आवश्यकताएँ हैं –
स्थल – मंदिर की जगह को दर्शाता है
तीर्थ – मंदिर के जलाशय या सरोवर को दर्शाता है
मूर्ति – पूजित प्रतिमा को दर्शाती है
आगम शास्त्र में तीर्थस्थल/मंदिर के
प्रत्येक छोटे-छोटे से पहलू, आकृति, दृष्टिकोण और भाव के लिए विस्तार पूर्वक नियमों और तरीकों का विवरण है
जैसे कि मंदिर का निर्माण किस सामग्री से किया जाना चाहिए, पवित्र
प्रतिमा का उचित स्थान कहाँ होना चाहिए और पवित्र प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा कैसे
करनी चाहिए आदि आदि।
आसान शब्दो में ऊर्जा स्थानांतरण के
लिए किन नियमों का पालन किया जाए कि हममें स्थित ऊर्जा उस ऊर्जा के केंद्र से
ऊर्जा लेकर और अधिक ऊर्जावान बन सके ये हमें अगम शास्त्र का जनन पद बताता है, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आप ऐसे समझिए कि यदि किसी ट्रांसफार्मर से हम
ऊर्जा यानी विद्युत आपूर्ति करते हैं तो वायर यदि सही न लगाकर गलत लगा दिया जाए तो
न सिर्फ उपभोक्ता को नुकसान होगा अपितु उस ट्रांसफार्मर को भी क्षति पहुँचेगी और
यही होता है जब कोई अपात्र व्यक्ति मंदिर में प्रवेश करता है तो न सिर्फ उसे
नुकसान होता है बल्कि उन ऊर्जा केंद्रों का भी।
यह सब देखते हुये भी सुप्रीम कोर्ट का उलटा
फैसला सनातन और हिंदुत्व को मात्र आघात पहुंचाने हेतु ही किया गया दिखता है। दोषी कौन
है आरोपी, बचाव पक्ष या सरकार या कोर्ट यह तो ईश
जाने। पर यह सत्य है कि ऊर्जा से छेडचाद महंगी पडी थी केरल की बाढ के रूप में। अब यदि
शुद्धता का ध्यान न दिया गया तो केरल की तबाही को कोई नहीं बचा सकता।
नोट:
यह विचार मेरे द्वारा संकलित हैं। मेरे नहीं हैं पर मैं पूर्णतया सहमत हूं। यह मात्र सनातन को बचाने
हेतु किया गया है। आपसे अनुरोध है बिना मेरे नाम के अधिक से अधिक शेयर
करें। धन्यवाद
जय गुरूदेव महाकाली।
(तथ्य कथन गूगल साइट्स इत्यादि से साभार)
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक
विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी
न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग
40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके
लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6
महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
ब्लाग :
https://freedhyan.blogspot.com/
No comments:
Post a Comment