सौ की सीधी बात
सनातनपुत्र देवीदास विपुल
"खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
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फेस बुक: vipul luckhnavi
“bullet"
पिया
मिलन को मैं गई। पिया मिले न खास।।
मैं तो
जोगन बन गई। पिया लिए वनवास।।
पिया
मेरे घर आ गयो। मैं भूली बिसराय।
पिया
को देखत सुध गई। पिया नजर न आय।।
चुटकी
केवल नमक की। स्वाद चटकारे खाय।।
चुटकी
बड़ी बिगड़ गया। भोजन न कर पाय।।
चुटकी
चिटक चिंतन बनी। चिंतन जग भरमाय।।
चितन
दूटा चुटकी से। ध्यान नही कर पाय।।
चुटकी
भर भर भर गये। बड़े बड़ जो खदान।।
चुटकी
भारी वजन है। ना ये लघु नादान।।
बीबी
चुटकी काट लो। जैसे फन उठ नाग।।
बचने
का एक रास्ता। भाग सके तो भाग।।
भाई सौ की सीधी बात। मेरा तो मानना है कि
ये बड़े बड़े पोथे सिर्फ ऋषियों की पी एच डी की थीसिस मात्र हैं। यह छोड़ो वह रखो। यह
करो वह करो। यह सब कहना आसान पर निभाना और करना बेहद कठिन कार्य है। बस पढ़ लो अपनी
काबिलियत दुनिया को दिखा दो। कुछ लेख और ग्रन्थ लिख दो।
अब मुझे देखो प्रभु कृपा से मॉर्च से
अब तक 161 लेख लिखवा दिए। इसमें किसको क्या
मिला। मात्र शून्य और कुछ जानकारी। मुझे थोड़ा बहुत पढ़ने और दिमागी कसरत और मशक्कत।
पर बाकी बड़ा सा ज़ीरो।
मैं समझता हूँ यह हुआ कि लिखने के पहले
और लिखने के बहाने प्रभु चिन्तन और मीमन्सा का अवसर मिला।
पर सब बेकार है। अहंकार गर्व तर्क
वितर्क कुतर्क और कचरा।
मेरा अनुभव और विचार कहता है कि कुछ मत
करो अपनी ओर से कोई प्रयास मत करो। खाते पीते रहो। कुछ भी करो पर एक नियम बना लो
अपने इष्ट को सतत निरन्तर स्मरण। यानि नाम जप मन्त्र जप। प्रभु समर्पण। एक मात्र
यही मन्त्र है सफलता का प्रभु प्राप्ति का। यह मन्त्र जप गुरू से लेकर पभु तक।
अज्ञान से ज्ञान तक पहुचा देगा। ज्ञान और ध्यान का अम्बार लगा देगा।
बस यही सत्य भी है और ज्ञान भी। एकमात्र
कुंजी भक्ति। नामजप। सतत निरन्तर। प्रभु समर्पण। भक्ति का मार्ग बेहद आनन्ददायक
मार्ग।
एक पहिचान है। क्या आपको प्रभु की कथा
प्रसंग देखकर पढ़कर प्रेमांशु आते है। विरह की अनुभूति होती है। यदि हाँ तो आप परम्
प्रेमा भक्ति से भरे है। कही और ध्यान न दे न सुने। आपको प्रभु कृपा मिल चुकी। इन
आंसुओ में डूबकर प्रभु स्मरण का आनन्द लीजिए। आपको सब तरफ अपना इष्ट दिखेगा। कलियुग
में यह सबसे सहज सस्ता सुंदर टिकाऊ मार्ग है।
हे प्रभु मुझ पापी पर कब कृपा होगी। मेरा तारन कब होगा। तू निष्ठुर क्यो
बना है।
इस विरह और प्रेम की पराकाष्ठा का आनन्द प्राप्त करने हेतु भक्तो ने ज्ञान
और मोक्ष तक त्याग दिया।
हे प्रभु क्या करूंगा इस व्यर्थ के ज्ञान का ध्यान का। नाम का। मुझे कुछ
नही चाहिए। सिर्फ तू मेरा और मैं तेरा। चलो प्रेम नगर में वास करे।
यह भावना तेरे चरणों की धूल मिल जाये तो तर जाऊं। न मैं रतन चाहू न मैं धन
चाहू।
यह अवस्था यदि आपकी आ जाए तो समझे आपको पर होने में अधिक समय नही है।
हे प्रभु तू ही दुर्गा तू काली तू राधा तू कृष्ण तू गायत्री तू राम हर रूप
तेरा। मुझे कब तारेगा।
।सिया राम मय सब जग जानी। करत प्रणाम जोर जग बानी।।
बस यही ज्ञान है बाकी का सब अपने आप होता है। वेद महावाक्य सार वाक्य का अनुभव
तुझे देना हो तो दे दो प्रभु। मुझे कुछ नही चाहिए। जो ज्ञान ध्यान देना चाहे। जूस
योग्य समझो। दे दो सब तुम्हारा प्रसाद। मुझे किसी की लालसा नही।
बस एक लालसा की विनती है तेरा पल्लू न छोडू। तेरे नाम मे तुझमे लीन रहूँ।
इसी में समा जाऊं। यह दया यदि तेरी मर्जी हो तो दिकहा देना। हर सांस पर तेरा स्मरण
बस यही लक्ष्य है। जो मेरे हाथ मे नही तेरे हाथ मे।
कभी कृष्ण बन कर प्रेम की बांसुरी बज
देना। कभी हनुमान बनकर मुझ असहाय के सहायक बन जाना। कभी काली रूप में गुरूदेव बन
प्रकट होना। कभी मनुष्य रूप में गुरूदेव बन जाना। पर मुझ पापी को मत बिसराना।
माला व्यर्थ है और यह आरंभिक जप या
अनुष्ठान हेतु ही उचित है।
प्रभु स्मरण में गिनती क्यो। हर सांस
पर उसको भजो।
एक हमारे मित्र mmstm का खंडन करते हुए कहने लगे कि मैं पिछले 35 साल से
एक हजार गायत्री रोज कर रहा हूँ। मुझे न कोई अनुभूति हुई न कोई दर्शन सब गलत है mmstm
हास्यापद है।
मैंने तर्क दिया भाई प्रयोग किया। अभी तक
शतप्रतिशत सही जा रहा है। सफल है।
तो बोले नही नही मुझे कुछ नही गायत्री के
हजारों लाखों जाप से तो औरो को कैसे होगा कि मन्त्र की पूड़ी बनाकर रखो। जोर से
चिल्लाओ। इत्यादि।
मित्रो इसका क्या जवाब है।
मैं चुप रहा अब उनको क्या बोलूं कि तुम
अभी बच्चे हो। साधना की जप की कोई सीमा नही। प्रभु कृपा से एक दिन में बिना गिने
दिनभर जप की संख्या क्या होगी मैंने तो नही गिनी। आपको 11 माला पर गर्व। हा 1001 कही होती तो कुँछ प्रभावित
होता। 10000 माला से बात आरम्भ होनी चाहिए। पाप काटने में
समय तो लगेगा ही। हरेक के कर्म और कार्य और पाप अलग अलग।
खैर मैंने तर्क नही किया। चुप रहा।
मेरा तो अपना मत है। यदि आपको मन्त्र
जप करते करते अपने इष्ट के किसी देव के दर्शन हो तो समझे आध्यात्मिक मार्ग आरम्भ
हुआ। आध्यतम का द्वार खुला। इसके पहले सिर्फ खटखटाना।
यह बात मैंने बोली नही। क्योकि कही न
कही अहंकार का पुट दिखता है।
जितना मजबूत राम है उतना ही रावण रुपी काम।
इस विषय में लोगो के अलग अलग विचार है। पर
संस्कार रुपी काम को तो मात्र विवाह से दूर किया जा सकता है।
किस प्रकार का अनुभव हुआ। कौन सा वेद वाक्य
फलित हुआ।
एक का अनुभव तो आप बहुत पहले कर चुके थे।
जो तुम फरवरी में कर चुके थे। वह अनुभव ही
था।
यह सार्वजनिक चर्चा में मत लाओ। बस चिंतन
करो। आत्म गुरू सब समझा देगा।
कोशिश करो। संस्कार क्रिया और कर्म को
समझो।
अब क्रिया यदि धर्म सम्मत हो तो ठीक वरना महापापी
ओशो के चेले।
आपने स्वप्न में मेरी फोटो को कैसे
जाना। मैं तो आपसे मिला भी नहीं।
तब यह कैसे हुआ।
क्या फोटो पर कुछ देर घूरा था। त्राटक
किया था।
कई लोगो के साथ हुआ है। अनिल को या
राजेश्वर को तो एक मोटा आदमी शिव के सामने बैठा हुआ दिखा था। बाद में उन्होंने
मेरी फोटो नेट से ढूढ़ कर निकाली थी।
यह सब प्रभु लीला है। महाकाली की कृपा
और गुरू दया है।
कुछ ने फोटो से त्राटक कर कुछ दुआएँ
मांगी। वो भी पूरी हो गई। अब मैं क्या बताऊँ। जाकी रही भावना जैसी प्रभु देखी तिन
मूरत वैसी।
कुछ मित्र है जिनको तो मेरी फोटो देखकर
क्रोध का बुखार भी आता है।
वैसे आगे आगे देखिए होता है क्या।
अब mmstm तो कर नही रहे हो। यही दुखद होता है हर आदमी खोद खोद कर पूछता है। कुछ तो
ऐसे प्रश्न जिज्ञासा करते है कि खोपड़ी आउट हो जाती है।
एक को बोला mmstm करो। उन्होंने कोई दूसरा मन्त्र कागज में लिख कर रखा। और किसी दूसरे का
जाप करने लगे।
अब क्या बोलू।
चित्र में
हाथी रूप पूर्व जन्म के कर्म है।कुऍं में साँप भविष्य के कर्म है। पेड़
की शाखा वर्तमान जीवन है।सफ़ेद चूहा, दिन और काला चूहा,
रात बनकर शाखा को काट रहे है।शाखा पर लटका शहद का छत्ता, सांसारिक मोह माया है। इस स्थिति में भगवान हाथ बढ़ाकर मनुष्य को बचाना चाह
रहे है, परंतू मनुष्य टपकते हुए शहद को चूसने में इतना मशगूल
है कि आनेवाले संकट और भगवान को भी नज़रअंदाज़ कर रहा है।
मित्रो यह चित्र बहुत कुछ कह रहा है।
अतः ग्रुप में पोस्ट किया। चित्रकार में एक ही चित्र में सब कुछ वर्णन कर दिया।
मैं समझता हूँ। इस चित्र को प्रिंट कर
अपने कक्ष में लगाना चाहिए ताकि हर समय इसे देखने की भावना हो। इस चित्र से मन मे वैराग्य
की भावना अवश्य आएगी और प्रभु के प्रति प्रीति बढ़ेगी।
किसी के जाने पर टिप्पणी मत करो। जिसको
जाना है जाए। उसका प्रारब्ध।
देखो मुझे ग्रुप के प्रति कोई मोह नही।
बस अपना कर्म कर रहा हूँ।
कृपया गीता का अध्याय दो और तेरह पढ़
लो। सब मिल जाएगा।
समत्व।
मतलब न कोई ऊंचा न नीच। न कोई दुश्मन न
दोस्त। न मान में प्रसन्न न अपमान में दुखी। सबमें स्वयं को और स्वयम में सबको या प्रभु
को देखना।
निष्काम
जब कर्म को करने में चित्त में कोई वृत्ति
भाव विचार तरंग न पैदा हो। और उस कार्य को मन लगाकर कुशलता पूर्वक किया जाए तो
निष्काम कर्म।
गीता अध्याय दो श्लोक 50, 60 से 72 यही सब समझाता है।
देखो मुझ यानि निराकार मैं जब शरीर मे
रहने लगता है तो साकार मुझ बन जाता है। मतलब जब यह चोला मिले तब मैं मुझ बनता है।
मैं निराकर आत्म स्वरूप प्रभु या
ब्रह्म का अंश।
मुझ जन्मो में योनि का बदलने वाला
चोला।
माया को स्वयं माहामाया की इच्छा के बिना
कोई पार नही पा सकता। माहामाया से कोई नही जीत सकता। अतः उत्तम मार्ग है उसको ही समर्पित
हो जाओ। वह दया कर तुम्हे अपने पार जाने देगी।
जय माहामाया। जग भरमाया।
कोई जग में माँ तेरा पार न पाया।।
यह क्रिया है। देह विस्तार की। इसमें
आदमी अपनी देह से बाहर निकल कर घूमता है। ध्यान से देखना तुम्हारी नाभि से एक महीन
धागा तुम तक बंधा होगा।
तुम्हारा मैं शरीर के बाहर आता है
सूक्ष्म शरीर के साथ।
गोल्डन या भगवा रंग।
साधन करो। क्रिया के माध्यम से संस्कार
कटते है।
आत्म साक्षात्कार होने के बाद धीरे
धीरे मृत्यु से भय समाप्त होने लगता है।
जब एक बार यह अनुभव हो गया विश्वास हो
गया कि कर्ता तो कोई और है तो मृत्यु मात्र एक घटना लगती है।
हाँ शरीर के कष्ट से कष्ट होता है। पर
प्रार्थना करने से स्वयं को शांति मिलती है।
किसी भी ज्ञान या अनुभव को जीवन मे
उतारने में 1 प्रतिशत से 100 प्रतिशत तक के उपयोग के कारण मन और बुद्धि भटकने लगते है पर वह एक सीमा तक
ही घूम पाते है। जहां तुम दृष्टा भाव से मन की चालबाजियों का अनुभव कर सकते हो।
जहाँ तक हो सके किसी गलत काम की हीन
भावना से ग्रस्त न हो। हा उसका प्रायश्चित यदि हो सके तो कर लो। पर लिप्त मत हो।
सबसे सरल मार्ग है प्रभु को समर्पण
होने का प्रयास करो।
हर अच्छा बुरा कर्म उसे ही समर्पित कर
दो। तू ही कारक करण और कर्ता। मैं कुछ नही। इस भावना के साथ जीने से संस्कार नष्ट
होंगे। निष्काम कर्म हो जाएगा। और तुम एक दिन कर्मबन्धन से भी मुक्त हो जाओगे।
यह अवस्था आने के बाद तुम जीना न
चाहोगे। सोंचोगे कि मेरे सारे कर्म बन्धन खुल गए मैं मुक्त हो गया। अब मैं धरती पर
क्यो रहूँ।
तुमको इस भावना को बल पूर्वक दबाना
होगा। गुरू और ईश से प्रार्थना करोगे तो वे राह अवश्य दिखाएंगे।
उस राह पर चल देना एक पर एक पत्थर की
तरह। न कोई मेरा न तेरा न हर्ष न विषाद। यह अवस्था स्थिर बुद्धि और स्थितप्रज्ञ
अवस्था तक ले जाएगी।
इसके बाद माहामाया और प्रभु तुम्हारी
प्रार्थना सुनने लगेंगे।
वेद महावाक्यों के अनुभव भी होने
लगेंगे। माहामाया जो कल तक रुकावट थी अब सहायक होकर ज्ञान देने लगेगी।
तब जीवन की यात्रा पूर्ण हो पाएगी।
तुमको सत्य अहिंसा त्याग तप सारी
व्याख्याएं स्वयम प्रकट हो जाएगी।
ऐसा लगेगा मैं यह कर लूं तो यह सिद्धि
मिल जाएगी पर उनमें लिप्त मत होना बिल्कुल ध्यान मत देना। अन्यथा गिर जाओगे।
सब प्रभु पर छोड़ देना। तेरी मर्जी जो
देना है दे। जो करना है कर। क्योकि भोगेगा भी तुही। मैं नही। अतः सोंचकर कार्य फल
देना प्रभु।
इस जगत में सिर्फ तू ही तू। तेरा तुझको
अर्पण।
जय गुरूदेव महाकाली।
(तथ्य कथन गूगल साइट्स इत्यादि से साभार)
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक
विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी
न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग
40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके
लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6
महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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