तंत्र, अनिद्रा, बीज मंत्र और चक्र जागरण
सनातनपुत्र देवीदास विपुल
"खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
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“bullet"
तन्त्र बुरा नही है। बुरे लोग है। तन्त्र को मत कोसो।
भाई ये तो दूसरों पर तंत्र मंत्र करनेवालो से पूछो।
पर कुछ कारण है। जो मैं समझता हूँ।
1, जिज्ञासावश
2, अपने को दुनिया मे अलग दिखाने की चाह
3, शक्ति प्राप्ति और शोहरत की चाह
4 सच्चाई परखना
5 सबसे कम लोग, आध्यात्मिक उत्थान हेतु
6 गुरु बनने हेतु दुकान खोल हेतु
मित्रो यदि नींद नही आती है तो समय का सदुपयोग
करे। हाथ पैर धोकर अपने बिस्तर पर ही आसन लगाकर मन्त्र जप साधन साधना जो भी मन करे। आरम्भ कर दे।
कुछ समय बाद स्वतः नीद आ जायेगी।
पर याद रहे मोबाइल न देखे। यह नींद को ध्यान को बहुत
भटकाती है।
यार अपना तो कोई समय ही नही। जब मूड बना तो समय बना।
देखो रात्रि भोजन 7.30 तक खा लो। 9 बजे सोने के पहले ध्यान में बैठ जाओ।
जब नींद आ जाये। ध्यान करते करते ही सो जाओ। रात को यदि नींद खुल जाए तो फिर
बैठ जाओ।
ये ही बात मैं समझाने का प्रयास करता हूँ। निराकार ही वास्तविक रूप। इसका अनुभव होने के बाद
साकार निराकार का भेद स्पष्ट होता है।
सारे जीव सब कुछ मात्र क्षणिक ही प्रतीत होते है। वास्तव में यह ही ब्रह्म
ज्ञान का अंतिम ज्ञान है। जगत मिथ्या ब्रह्म सत्य।
परन्तु इस स्थिति के लोग किंतने। लगभग शून्य।
बीच की स्थिति के कुछ अधिक तो वे निराकार का ढोल पीटते है।
दूसरो सुख से सुख नही मिलता उसी बात दूसरो के ज्ञान से तुमको मुक्ति कैसे
मिलेगी।
नही दुनिया मे किंतने लोग बिना अनुभव के निराकार चिल्लाते है चूंकि कही
पढा गुरु जी ने बोला। अब पूछो तो गुरु जी को उनके गुरु ने बोला। यही साकार
का।
परन्तु साकार जीवन जीने में रस देता है। निराकार नीरस।
अब देखो अनीश्वरवादी निराकार उपासक बुध्द ने चूंकि ईश्वर नही यह माना
और उस अवस्था मे अपनी प्रारंभिक शिक्षा यानि दुःख को याद किया। उनको दुःख का
एहसास हुआ। तो लिखा दुःख है। और उनकी शिक्षा का आरम्भ जीवन दुःखों से भरा
है। इससे कैसे निजासत पाए। यहाँ से आरम्भ हुई।
अब उनके चेले भी यही माला जपते है।
परन्तु सनातन साकार से यहाँ पहुंचनेवाले आनन्दमय हो
जाते है सुख दुख से ऊपर आनन्दमय कोष की बात करते है।
तो वे समझाते है यहाँ तक कैसे पहुँचो।
तो कुछ यह माला जपते है।
लक्ष्य एक पर धारणाएं अलग एक दाएं हाथ चलो । दूसरा
बाएं हाथ चलो।
पर अंत एक।
यही फर्क हो जाता है। ज्ञानियों के व्याख्यानों में।
वसिष्ठ के उपदेश की बात एक है। पर हर बुद्धि वाला
उसको अपने तरीके बताएगा और समझेगा।
और यदि रामपाल होगा तो अंत मे कबीर डाल कर व्याख्या
कर देगा।
ओशो उस आनन्द को सेक्स से जोड़ देगा।
मुझको
मालूम है तुमने कॉपी पेस्ट किया है। तुमको बोला भी नही। तुम इतना गूढ़ लिख भी नही
सकते।
पर
बोलना इस लिए आवश्यक हो गया। क्योकि सदस्य अपनी अपनी सोंच को लेकर लिखना चालू करेगे। तो व्यर्थ का विवाद खड़ा हो सकता है।
अतः
भाई सब सही। क्योकि सबका स्तर और सोंच अलग अलग।
यह
पोस्ट उस समय की लगती है जब शक्तिपात के बाद राम जी ध्यान समाधि में ब्रह्मांड की उतपति देखी तो वसिष्ठ से प्रश किये। तब वसिष्ठ ने उत्तर दिए।
यह
मैं समझता हूँ। बाकी मैंने पढ़ी नही है।
पर प्रश्न से मुझे प्रसन्नता हुई कि यही प्रश्न है जो मैने अनुभव कर ब्रह्मांड उत्तपत्ति में लिखा। तो फिर क्या मेरा अनुभव सही था। क्योकि राम जी भी यही जिज्ञासा कर रहे है।
भूताकाश यह दृश्य जगत।
चिदाकाश जहाँ हमारी आत्मा मन बुद्धि अहंकार सोंच
इत्यादि की दुनिया है। यह सब ऊर्जा के ही विभिन्न आयाम और रूप है।
मित्र गुरु है कहाँ अधिकतर दुकानदार। बिना परम्परा के गुरु। बाकी अधकचरे।
सृष्टि उत्तपत्ति के बाद जब मानव की उत्तपत्ति हुई तब मानव ज्ञान हेतु रुद्र
ने ही निराकार दुर्गा की इच्छा से शिव का रूप लिया और स्वयं पहली शिष्या के
रूप में पार्वती का रूप धारण किया यह सब साकार ही थे।
फिर शिव ने अन्य ऋषियों को ज्ञान देकर गुरु नियुक्त किया।
कुछ हद तक कह सकते है। देखो ऊर्जा क्या hn. h प्लैंक कॉन्स्टेनट। nआवृति।
जब
हम
कर्म करते है तो हमारे चित्त में तरंग के रूप में एक अलग ऊर्जा के रूप में आत्मिक ऊर्जा जो
शुद्ध है और जीवित है। ईश का अंश है। उस ऊर्जा के साथ चित्त रूपी अन्य तरंगिक
ऊर्जा मिल जाती है। जब तक यह मिश्रित ऊर्जा ईश की शुद्ध ऊर्जा की आवृत्ति
के बराबर नही होती। मुक्ति नही मिलती। मोक्ष नही मिलता।
नही कर्ता आत्मा ही है। इसी को जानना और अनुभव करना
ज्ञान है।
तब ही ही तो परमात्मा को कर्ता कहते है।
सूक्ष्म बुद्धि से समझो तो।
कर्ता
भर्ता
हर्ता
सब परमात्मा ही।
क्यो
क्योकि यह शरीर पदार्थ है और आइंस्टाइन के
अनुसार पदार्थ भी ऊर्जा से बनता है।
सर मैं आपको गलत नही कह रहा हूँ। बस अपना अनुभव लिखा।
पढा बहुत कम।
मतलब
निराकार कृष्ण सुप्त ऊर्जा
महामाया का पर्दा
इसका कम्पन
जागृत ऊर्जा बनी निराकार दुर्गा
ब्रह्म बने
रुद्र बने
विष्णु बने
शिव बने
गायत्री निर्माण
वेद ज्ञान
मन्त्र बने आराधना बनी
विभिन शक्तियां अलग अलग दिखी
देव बने
साकार हुए ये सब
मानव की कहानी आरम्भ।
यार चढ़ा दो पुदीने के झाड़ पर।
कुर्बान कर दो मदीने की मार पर।।
मरने के लिए मरना जरूरी नही।
बस अहंकार ला दो दिमागी वार पर।।
भाई पिछले को क्या जानू। बस अगला जन्म कैसा है। राम
जाने। यह जन्म तो आधा तार दिया पार किया प्रभु ने।
यह जन्म तो आधा तार दिया
पार किया प्रभु ने।
जीवन की डोर थम सी गई जो
मित्रो एक बात पूछना चाहता हूँ। जो मुझे कल साधन में अनुभूति हुई। मैं
पंढरपुर गया। वहाँ विठ्ठल नही थे। बोले मैं अब पंढरपुर में नही। मैं स्वम्भू आस
या आसार गांव ऐसा कुछ नाम वहाँ पर बलराम के साथ प्रकट हो रहा हूँ। तब
मैं भटकता हुआ वहाँ पहुचा तो बाल श्याम बलराम की मूर्तियां थी। मैं उनसे
लिपट गया तो वह हंस कर एक बुजुर्ग के वेश में स्थापित हो गई।
मराठी मित्र बता पायेगे। क्या सत्य है। कारण मेरी
पंढरपुर जाने की बहुत मंशा है। और मै इसी माह अंत मे जाना चाहता हूँ। तो मुझे
अजीब अनुभव कराया गया। मैं बिठ्ठला बिठ्ठला करते दौड़ कर जब वहां पहुंच तो
खुद बिठ्ठला ने कहा मैं अब यहाँ नही।
ज्ञानियों इसका क्या मतलब है।
परमपिता परमेश्वर की कृपा से
इस संसार में हर जीव की उत्पत्ति बीज के द्वारा ही होती है चाहे वह
पेड़-पौधे हो, कीडे – मकोडे, जानवर या फिर मनुष्य योनी। चित्त में भी कर्मफल
बीज के रूप संचित होते हैं। यानी बीज को जीवन की उत्पत्ति का कारक
माना गया है।बीज मंत्र भी कुछ इस तरह ही कार्य करते है। हिन्दू धरम में सभी
देवी-देवताओं के सम्पूर्ण मन्त्रों के प्रतिनिधित्व करने वाले शब्द को
बीज मंत्र कहा गया है।
वस्तुतः बीजमंत्रों के अक्षर उनकी गूढ़ शक्तियों के संकेत होते हैं। इनमें से प्रत्येक की स्वतंत्र
एवं दिव्य शक्ति होती है। और यह समग्र शक्ति मिलकर समवेत रूप में किसी एक
देवता के स्वरूप का संकेत देती है। जैसे बरगद के बीज को बोने और सींचने के
बाद वह वट वृक्ष के रूप में प्रकट हो जाता है, उसी प्रकार बीजमंत्र भी जप
एवं अनुष्ठान के बाद अपने देवता का साक्षात्कार करा देता है।
अब
आप कुछ समझे
होंगे। वास्तव में ध्यान चाहे वह कोई भी
विधि हो। त्राटक, विपश्यना, शब्द, नाद, स्पर्श योग या मन्त्र जप या और कुछ। इनके द्वारा हमारी ऊर्जा बढ़ती है। आप जानते है शक्ति मतलब ऊर्जा। अब होता यह है यदि हमारे शरीर को इस प्रकार की ऊर्जा सहने की आदत नही होती तो
हमको रोग या शारीरिक कष्ट हो सकते है।
आप
जानते है ऊर्जा
मतलब hn h is plank constant n is frequency. इस कारण विभिन्न विधियों और मन्त्रो के अलग अलग ऊर्जा के आयाम अलग आवृत्तियों के कारण हो जाते है।
उदाहरण आपने किसी विशेष चक्र पर उसके बीज
मंत्र से ध्यान किया। उस ऊर्जायित आयाम के कारण चक्र के बीज
मंत्र उद्देलित हो गए। अब चक्र की एक विशिष्ट ऊर्जा निकली। उस चक्र के
ऊपर नीचे का चक्र तो जागृत नही तो यह ऊर्जा कहा से निकलेगी। रास्ता न
मिलने पर यह रोग पैदा कर सकता है जो असाध्य भी हो सकता है।
यदि आपके चक्र कुण्डलनी जागरण के पश्चात मूलाधार को भेदकर
धीरे धीरे ऊपर के चक्रो में आते है तो यह ऊर्जा नीचे के चक्रो से निकल जाती
है और शरीर मे रोग नही होता।
अब यदि बिना कुण्डलनी जगे चक्रो के बीज मंत्र उर्जित हो गए तो भगवान मालिक।
वही समर्थ गुरु अपनी ऊर्जा से शिष्य की अधिक ऊर्जा को
नियंत्रित कर सकता है।
अब मान लीजिए आपने त्राटक किया वह भी
बिंदु या रंग और जो निराकार है। तो आपके आज्ञा चक्र की ऊर्जा
बढ़ी। यदि वह बाहर नही निकल पाई तो वह आपके मस्तिष्क के न्यूरॉन्स को
प्रभावित कर सकती है। ये न्यूरॉन्स बहुत कोमल और याददाश्त को गुत्थियों में
संग्रहित करते है। इस कारण आपका मस्तिष्क संतुलन बिगड़ सकता है। आप जिद्दी
या कुछ हद तक पागल भी हो सकते है।
इस सबका एक ही उपचार है कि प्रणायाम के द्वारा अपनी
अतिरिक्त ऊर्जा को श्वास से बाहर निकाले और आसनों द्वारा शरीर मजबूत करे।
यदि यह नही कर सकते हो किसी साकार मन्त्र
का जप करे। यह जाप सुनार के हथौड़े की चोट कर आपके शरीर और
चक्रो को कम्पन देकर उन्हें ऊर्जा सहने लायक बनाता है।
समस्या वहाँ अधिक आती है जो निराकार विधियों से ध्यान करता है।
क्योंकि निराकार आकार रहित होता है तो आपकी ऊर्जा जो ब्रह्म शक्ति का रुप
है वह आपको किस रूप में किस प्रकार सहायता करेगी।
वही साकार मन्त्र जप और विधियाँ उस ब्रह्म
शक्ति को उस मन्त्र के सगुण रूप में आने को विवश हो जाती है। सहायता करने
के अतिरिक्त वह उस साकार और मन्त्र संकल्पना का रूप धारण कर दर्शन देकर
अतिरिक्त ऊर्जा को शारीरिक ऊर्जा में समाहित कर देती है।
आप देखे माउंट आबू में मस्तिष्क रोगी अधिकतर पाए है।
जो नही वह किसी हद तक झक्की हो जाते है। कारण वहाँ जो है वह कुण्डलनी
शक्ति मानते नहीं। गुरु मानते नही। लाल प्रकाश जो मूलाधार का रंग है उस प्रकाश
पर निराकार त्राटक करवाते है। पति पत्नी के बीच सम्बन्ध से जो ऊर्जा
निकलती है उसे रोककर दोनो को भाई बहन बना देते है। तो ऊर्जा किधर जाए।
लिखने को हर विधि पर हैं पर संक्षेप में आप कोई भी विधि यदि साकार सगुण करते है तो खतरा कम। दूसरे सबसे सरल
सहज आसान है मन्त्र जप। नाम जप। आपको जो इष्ट अच्छा लगे उसका मन्त्र
जप करे। सघन सतत निरन्तर। यह साकार मन्त्र आपको आपके गुरू से लेकर निराकार तक
की यात्राओं के अतिरिक्त ब्रह्म ज्ञान भी दे जाएगा। बस अपने इष्ट को
समर्पित होने का प्रयास करो।
जय गुरूदेव महाकाली।
(तथ्य कथन गूगल साइट्स इत्यादि से साभार)
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक
विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी
न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग
40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके
लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6
महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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