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Sunday, November 18, 2018

एकांत नहीं है अकेलापन



एकांत नहीं है अकेलापन 

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
 वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi
फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"


यदि मैं आप पाठकों को यह दुआ दूं कि प्रभु आपको एकांत दे। तो कुछ लोग शायद नाराज हो जायेगें। परन्तु एकांत का वास्तविक अर्थ जान लेने के बाद आप कहेगें इससे अच्छी तो दुआ हो ही नहीं सकती। चलिये एकांत पर कुछ चर्चा की जाये।

एकांत का अर्थ हिंदी शब्द कोष के अनुसार होता है। [सं-पु.] - निर्जन स्थान; सूना स्थान; शांत या ध्वनिरहित ऐसा स्थान जहाँ कोई न हो; उर्दू में तनहाई। [वि.] 1. जो (स्थान) निर्जन या सूना हो 2. एक को छोड़ किसी और की तरफ़ ध्यान न देने वाला; एकनिष्ठ, जैसे- एकांत समर्पण, एकांत भक्ति

वैसे एकांत का विच्छेद करे। एक + अंत। मतलब जहां और जब एक का भी अंत हो जाये उसे एकांत कहते हैं। अब आप सोंचे आपको जीवन में कभी एकांत मिला क्या??
एकांत और अकेलेपन, शब्दकोष में ऐसे कई शब्द है जिसका मतलब एक है और अर्थ अनेक है  वैसे ही है एकांत और अकेलापन। हम अक्सर भूल कर बैठते है कि हम एकांत में है या अकेलापन महसूस कर रहे है। दरअसल जब भी एकांत होता है, तो हम अकेलेपन को एकांत समझ लेते है। ऐसे में हम अपने अकेलेपन को भरने के लिए तुरंत कुछ उपाय खोजने लगते है। हम अखबार पढने लगते है, टीवी देखने लगते है, कुछ अच्छा सोचने की कोशिश करते है, कोई सपना देखने लगते है और जब कुछ नहीं सूझता तो सो जाते है।  मगर अपने अकेलेपन को किसी भी तरह भर ही लेते है। ऐसे में हम आपको बताना चाहते है कि अकेलेपन से लाख गुना अच्छा एकांत होता है।

सौ की सीधी बात ध्यान रहे!! अकेलापन आपको हमेशा उदास रखता है और एकांत जीवन में आनंद लाता है। अकेलापन भीडभाड से कम होता है पर एकांत तो भीड मे भी रह सकता  है।किसी पर्वत  पर  जब आप  अकेले हो तो  आपको  अकेलापन  लग सकता  है पर एकांत  नहीं   मिल सकता।  क्योकिं आप तो  वहां  हैं ही।

आप जब अकेले होते है तो जाहिर है कि कुछ सोचते होंगे. या किसी की याद ही आती होगी।  हम जब किसी को याद करते है तो दुःख होता है। जब दुःख होता है तो कोई काम ठीक तरह से नहीं होता। कभी कभी दुःख में हमारा नुकसान भी हो जाता है। अकेलापन हमारे शरीर को थका देता है, मन उदास कर देता है। अकेलपन में हम कमज़ोर हो जाते है और मुरझाएं हुए पत्तो की तरह दीखते है। य एक बीमारी है जिसे मनोवैज्ञानिक रोग की संज्ञा दी जाती है।

वहीं एकांत का मतलब है ईश्वर से मिलन.. मन की शांती और संतुष्टी!!
आप जब घड़ी भर भी एकांत में रहते है तो आपका रोआं रोआं आनंद से पुलकित हो उठता है। अगर आप ध्यान करते है तो आपको एकांत का ज्ञात होना ही है। आप परेशान है तो अपनी आँखे  बंद करिए और सिर्फ 5 मिनट ही ईश्वर को याद करिए लेकिन एकांत में.. यक़ीनन आपको एकांत का एहसास होगा।

एकांत एक अद्भभुत शब्द, तब और भी अद्भभुत जब गूंजे भीतर से बाहर की ओर, एकांत का मतलब अकेलापन तो कदापि नही है, परन्तु एकांत का मतलब एक का होना जरूर है! जब वह  भी  न  रहे। जब एक ही बचता है! वो खुद जो सच है, और सचमें है!  कुछ लोग अकेलापन महसूस करते है तो कुछ एकांत चाहते है कुछ भीड़ में जाना चाहते है तो कुछ भीड़ से दूरइन सबके पीछे एक ही है आपके अन्दर का द्वन्द मस्तिष्क और भीतर आत्मा में चल रहे विचारो का द्वन्द जो आपको बैचेनी देता है; फिर आप तोड़ना चाहते है, कही भाग जाना चाहते है, जहाँ मिले आपको शांति चाहे वो हो भीड़ या कोई एकांत घाटी!

पर क्या एकांत लोगो से भागना है नही वो तो झाँकना  है! खुद के भीतर और गहरे जहाँ  तुम बसते हो जहाँ शक्ति, सामर्थ और विचार बसते है जहाँ रचनात्मकता बसती है एकांत ही तो है जहां आपके अन्दर का कवि लेखक बोलता है और कई राज खोलता है एकांत में बेठना खुद से मिलन का एक अनूठा जरिया है!

अक्सर लोग एकांत को नकारत्मक लेते है पर बेथान का कहना है “एकांत अवस्था में अवचेतन मन अधिक सक्रिय होता है; अगर  देखा जाये  तो टेगोर भी एकांत प्रिय थे और गाँधी भी पिकासो भी और आइन्स्टीन भीहो  चाहे आप कोई  वैज्ञानिक या कलाकार, कवि, शायर या संगीतकार, लेखक या कोई रचनाकार सब जब एकांत में जाते हैं तब ही रचना कर पाते हैं।  

आप भी कोशिश करिए कुछ समय एकांत में जाने की, प्रकृति के बीच और खुद के अन्दर झांकने  की सभी आंतरिक बाहरी  द्वंदों को छोड़ एक विचार पर  टिकने कीफिर देखिये क्या द्भभुत आप पाते है! जब आप एकांत में जाते है।

ध्यान रहे, अकेलापन सदा उदासी लाता है, एकांत आनंद लाता है। वे उनके लक्षण हैं। अगर आप घड़ीभर एकांत में रह जाएं, तो आपका रोआं-रोआं आनंद की पुलक से भर जाएगा। और आप घड़ी भर अकेलेपन में रह जाएं, तो आपका रोआं-रोआं थका और उदास, और कुम्हलाए हुए पत्तों की तरह आप झुक जाएंगे। अकेलेपन में उदासी पकड़ती है, क्योंकि अकेलेपन में दूसरों की याद आती है। और एकांत में आनंद आ जाता है, क्योंकि एकांत में प्रभु से मिलन होता है। वही आनंद है, और कोई आनंद नहीं है।

एकांत में होना और मौन एक ही अनुभव के दो आयाम हैं, एक ही सिक्के के दो पहलू। यदि कोई मौन को अनुभव करना चाहता है तो उसे अपने एकांत में जाना होगा। वह वहां है। हम अकेले पैदा होते हैं, हम अकेले मरते हैं। इन दो वास्तविकताओं के बीच हम साथ होने के हजारों भ्रम पैदा करते हैं- सभी तरह के रिश्ते, दोस्त और दुश्मन, प्रेम और नफरत, देश, वर्ग, धर्म। एक तथ्य कि अकेलेपन को टालने के लिए हम सभी तरह की कल्पनाएं पैदा करते हैं। लेकिन जो कुछ भी हम करते हैं उससे सत्य बदल नहीं सकता। वह ऐसा ही है, और उससे भागने की जगह, श्रेष्ठ ढंग यह है कि इसका आनंद लें।

अपने एकांत का आनंद लेना ही ध्यान है। ध्यानी वह है जो अपने अकेले होने में गहरा उतरता है, यह जानते हुए कि हम अकेले पैदा होते हैं, हम अकेले मरेंगे, और गहरे में हम अकेले जी रहे हैं। तो क्यों नहीं इसे अनुभव करें कि यह एकांत है क्या? यह हमारा आत्यंतिक स्वभाव है, हमारा अपना होना।

अकेले रहने को संस्कृत में एकांत कहते हैं। जो व्यक्ति मन को अपने अंदर की ओर केंद्रित करने में सक्षम हो उस की प्रमाणिक पहचान यह होती है कि उसे एकांत अत्यंत सुखदायी लगता है। एकांत रहने की असमर्थता बेचैन मन का अचूक लक्षण है। एक शांत मन के लिए एकांत जैसा अथाह कुछ नहीं तथा एक बेचैन मन के लिए एकांत से अधिक भयानक कुछ नहीं। 

केवल दो प्रकार के व्यक्ति ही एकांत में सुखद रह सकते हैं – आलसी और योगी। 

एकांत से मेरा अर्थ यह नहीं कि आप कहीं दूरस्थ स्थान में रहें किन्तु टेलिविज़न, पुस्तकें, इंटरनेट इत्यादि का उपयोग कर रहें हों। एकांत से मेरा यह तात्पर्य है कि आप केवल स्वयं की संगत में रहें। आप एक ही व्यक्ति से बात कर सकते हैं जो आप स्वयं हैं, केवल एक ही व्यक्ति की सुन सकते हैं जो आप स्वयं हैं, चारों ओर केवल आप ही आप हैं। केवल आप का मन ही आप को व्यस्त रखने वाली वस्तु है। आप ऊब गए तो वापस अपने आपके पास जाते हैं और आप सुखी हैं तो अपने आप के साथ ही प्रसन्नता बांटते हैं। एकांत वास की अभ्यास के समय दूसरों से मिलना या उनसे बात करना तो दूर उनको आप देख भी नहीं सकते हैं। आप केवल एक ही व्यक्ति को देख सकते हैं जो आप स्वयं हैं।

आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते (भगवद गीता 2.55)। जो स्वयं के भीतर बसता है और भीतर संतुष्ट रहता है वह वास्तव में एक योगी है। जो साधक भीतर की ओर केंद्रित है वह एकांत में अत्यन्त आनंद पाता है। ऐसी स्थिति में वह भीतरी परमानंद का लगातार अनुभव कर सकता है।

यदि आप एकांत में रहें और पढ़ने या लिखने या इसी तरह की अन्य गतिविधियों में अपने मन को लगाते हैं तो वह भी एकांत ही है। परंतु यह बेहतरीन प्रकार का एकांत नहीं है। यह एक अधूरे एकांत के समान है। सर्वश्रेष्ठ एकांत वह है जिसमें आप को हर बीतते हुए क्षण का अहसास हो रहा है। आप सुस्त नहीं हैं या आप को नींद नहीं आ रही है। आप जागृत एवं सतर्क हैं। आप को बेचैनी का अहसास नहीं हो रहा है। आप को सदैव “कुछ” करने की उत्तेजना नहीं है। आप भीतर से शांति का अनुभव कर रहें हैं। यदि आप अपने मन का सामना करें और सीधे उसे ध्यानपूर्वक देखें तो आप एकांत में हैं। जिसने एकांत में रहने की कला में निपुणता प्राप्त कर ली ऐसा योगी सदैव भीड़ में भी एकांत रहेगा। उसकी शांति बाहर के शोर से अप्रभावित रहती है। उसकी भीतरी दुनिया बाहरी दुनिया से संरक्षित है।

योगी युञ्जीत सततमात्मानं रहसि स्थितः। एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रहः।। (भगवद गीता 6.10)। एक व्यक्ति जो स्वयं के परमात्मा से मिलन का इच्छुक है उसे इच्छाओं तथा बंधनों और स्वामित्व से स्वयं को मुक्त करके भीतर की ओर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और एकांत में रहकर ध्यान करना चाहिए। 

एकांत में बेचैनी और व्यामोह की प्रारंभिक अवधि के बाद हमारे भीतर परमानंद की भावना बहने लगती है। सब कुछ स्थिर हो जाता है। आप का मन, इंद्रियाँ, शरीर, पास-पड़ोस, बहती नदी, झरने – सब कुछ स्थिर हो जाते हैं। अनाहत नाद और अन्य दिलकश ध्वनियाँ स्वयं ही प्रकट होने लगती हैं। परंतु वे एक विचलन उत्पन्न कर सकती हैं। एक निपुण ध्यानी अनुशासित रूप से अपना ध्यान केंद्रित रखता है। एकांत में रहने के लिए अत्यधिक अनुशासन की आवश्यकता है। और स्वयं के अनुशासन के द्वारा आप जो भी कल्पना करें वह सब प्राप्त कर सकते हैं। एकांत में अनुशासित रहना अपने आप में ही एक तपस्या है। सबसे तीव्र गति से आत्म शुद्धीकरण करने का यही रास्ता है।

कायेन्द्रियसिध्दि: अशुध्दिक्ष्यात तपस: (पतंजलि योग सूत्र, 2.43) स्वयं का अनुशासन सभी वेदनाओं और दोषों को जला देता है।

योग एवं तंत्र के ग्रंथों ने एकांत में रहने की क्षमता और स्थिरता प्राप्त करने को अत्यन्त महत्व दिया है। महान तिब्बती योगी जेटसन मिलरेपा ने अपने गुरु के निर्देशानुसार भयंकर चोटियों पर कड़े एकांत में ध्यान करते हुए अपना पूरा जीवन व्यतीत कर दिया। एक बार उनकी महिला शिष्यों ने उन्हें प्रचार के लिए अपने गाँव आमंत्रित किया। शिष्यों का तर्क था कि मिलरेपा की उपस्थिति, आशीर्वाद एवं तपस की शक्ति से मानवता का कल्याण होगा। विशेषकर यदि मिलरेपा शहरों और गाँवों में उनके बीच रहें। किंतु मिलरेपा ध्यान के अभ्यास में घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध थे। उन्होंने उत्तर दिया – “एकांत में ध्यान अभ्यास करना ही स्वयं में मानवता का कल्याण, उनकी सेवा है। हालांकि मेरा मन अब विचलित नहीं होता है तब भी एक महान योगी का एकांत में रहना अच्छी प्रथा है।” (दी हंडरेड थौसेंड सांग्स आफ मिलरेपा, गर्मा चैंग)

मेरे पडोसियों को शिकायत रहती  है कि आप लोग छुट्टी में भी कहीं नहीं जाते।  बगल  में सिनेमा हाल है पिक्चर ही देख  लें। अब क्या जबाब दूं मुझे बिना आवश्यक कार्य के घर से बाहर निकलना अच्छा नहीं लगता। किसी मेले ठेले भीड भाड मे आनन्द नहीं  आता। अपने  मन में शांति और आनन्द मह्सूस होता रहता है अब जगत  में क्यों भागूं। बसभूख पर  नियंत्रण नहीं है।

मानसिक परिवर्तन में एकांत रहने का अभ्यास अत्यन्त महत्वपूर्ण है। एकांत अभ्यास में स्वाभाविक रूप से निस्तब्धता की साधना भी शामिल है। आप संक्षिप्त अवधियों में एकांत अभ्यास शुरू कर सकते हैं। पहले कम से कम चौबीस घंटे की अवधि से प्रारंभ कर सकते हैं। शहर  में अकेले रहने की जगह ढूंढना कठिन है। शुरू करने के लिए एक शांत कमरा खोजें और उसमें स्वयं को एक या दो दिनों के लिए बंद करलें। आप के साथ कम से कम सामग्री ले जाएं। आपके कमरे में एक संलग्न शौचालय हो तो उत्तम होगा। ध्यान रहे कि यह केवल शुरुआत है। धीरे-धीरे वीरान स्थानों में अभ्यास करने से एकांत की प्रबलता विकसित होगी। मेरा अनुभव यह कहता है कि आप जब प्रगति करोगे तब ध्यान के लिए अनुकूल जगह सहित प्रकृति सब कुछ की व्यवस्था स्वयं ही कर देगी।

कुछ आश्रमों में एकान्त के अभ्यास हेतु अलग कमरों की व्यवस्था होती है। जहां बिना किसी वाहिक साधन के कुछ दिनों के लिये बंद कर देते है। सिर्फ भोजन पानी हेतु एक खिडकी होती है। सिर्फ लिखकर बात करो। बोलना बिल्कुल वर्जित्।

एकांत के अभ्यास के समय, यदि आप किसी भी व्यक्ति से मिलें या उसे देखें तो उसका प्रभाव लाल अर्थात विशाल है और उस ही क्षण आप विफल हो जाते हैं ऐसे में आप को एकांत का अभ्यास फिर से शुरू करना होगा। इसी प्रकार यदि आप पारस्परिक कार्य टेलीवीज़न अंतर्जाल इत्यादि का उपयोग करें तो उस ही क्षण आप विफल हो जाते हैं। एकांत का अभ्यास मौन से भी दृढ़ अभ्यास है। आपके पास केवल कुछ पढ़ने की छूट है। हालांकि वो भी आप के एकांत को प्रभावित करता है, परंतु यह स्वीकार्य है। आप का लक्ष्य है मन को सभी कार्यों, बंधनों एवं व्याकुलताओं से मुक्त करना। 

मतलब जब आपको अकेले में किसी की याद आये बेचैनी हो तो अकेलापन जो नकारात्मक है। जब दिमाग में कोई बात न आये और आये तो सिर्फ तत्व दर्शन प्रभु भक्ति, प्रेमाश्रु जिसके कारण प्रेम और विरह की अनुभूति हो। वह होता है एकांत।

जय गुरूदेव। महाकाली महाकाल।  



(तथ्य कथन गूगल साइट्स इत्यादि से साभार)


"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
ब्लाग :  https://freedhyan.blogspot.com/

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