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Wednesday, October 28, 2020
संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 3 / brahm gyan kaya khand 3
शक्तिपात कुण्डलनी जागरण कर अपने संस्कारों को क्षीण कर स्वचलित मार्ग वहीं क्रिया योग सत्वगुणी कर्म कर सत्वगुणी संस्कार संचित कर सिद्धियों हेतु प्रेरण मार्ग। शक्तिपात में सिद्धि मिले न मिले कोई लालसा नहीं।
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प्रश्न 24: फिर अष्टांग योग क्या है???
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Monday, October 26, 2020
संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! ! खंड 2 / brahm gyan kaya khand 2
संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!! खंड 2
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
👉👉संक्षेप में ब्रह्मज्ञान क्या है?? भाग 1 👈👈
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20. कोटि देवता के बारे में और बतायें??
मतलब प्रकार ??
जी यह विभिन्न रूप में शक्तियां के प्रकार है जो सृष्टि को चलाते हैं!
इनके नामों का क्रम विभिन्न पुराणों में अलग भी हो सकता है और कहीं कहीं नाम भी।
12 आदित्य यानि वह जो निर्माण करतीं हैं। आदित्य यानि इस नक्षत्र मंडल का सूर्य जो जीवन दाता है अत: आदित्य कहते हैं पर यह वाला सूर्य मात्र एक उदाहरण है और जो मात्र इस नक्षत्र नंडल से ही सम्बंधित है। मनुष्य को समझाने के लिये मात्र शब्द जो यह बताये कि वह शक्तियां जो इस सृष्टि का निर्माण करें।
इन्द्र: यह प्रथम रूप आदित्य है। यह देवाधिपति इन्द्र को दर्शाता है। देवों के राज के रूप में आदित्य स्वरूप हैं। इनकी शक्ति असीम हैं इन्द्रियों पर इनका अधिकार है। विकार रूपी शत्रुओं का दमन और सत्वगुणों की रक्षा का भार इन्हीं पर है। वहीं रजो और तमोगुण द्वारा मनुष्य की बुद्धि हर लेना।
धाता : दूसरे आदित्य हैं जिन्हें श्री विग्रह के रूप में जाना जाता है। यह प्रजापति के रूप में जाने जाते हैं जन समुदाय की सृष्टि में इन्हीं का योगदान है, सामाजिक नियमों का पालन ध्यान इनका कर्तव्य रहता है। इन्हें सृष्टि कर्ता भी कहा जाता है। इनका काम सृष्टि का शासन और निर्माण है।
पर्जन्य: तीसरे आदित्य का नाम पर्जन्य है। यह मेघ शक्ति जो ह्मारे बाहर और भीतर होती है। वर्षा के होने तथा किरणों के प्रभाव से मेघों का जल बाहर बरसता है। उसी भांति हमारे भीतर अश्रु।
त्वष्टा: आदित्यों में चौथा नाम श्री त्वष्टा का आता है। इनका निवास स्थान वनस्पति में हैं पेड़ पोधों में यही व्याप्त हैं औषधियों में निवास करने वाले हैं। अपने तेज से प्रकृति की वनस्पति में तेज व्याप्त है जिसके द्वारा जीवन को आधार प्राप्त होता है। मतलब सृष्टि की वनस्पतियों का निर्माण।
पूषा: पांचवें आदित्य पूषा हैं जिनका निवास अन्न में होता है। समस्त प्रकार के धान्यों में यह विराजमान हैं। इन्हीं के द्वारा अन्न में पौष्टिकता एवं उर्जा आती है। अनाज में जो भी स्वाद और रस मौजूद होता है वह इन्हीं के तेज से आता है। यानि हमारे अन्नमय होष में भोजन पचकर जो रस निकलता है जो हमें ऊर्जा देता है और संग्रहित करता है। वह रस की शक्ति।
अर्यमा: आदित्य का छठा रूप अर्यमा नाम से जाना जाता है। यह वायु रूप में प्राणशक्ति का संचार करती हैं। चराचर जगत की जीवन शक्ति हैं। यानि प्रकृति की आत्मा रूप में निवास करते हैं।
भग: सातवें आदित्य हैं भग, प्राणियों की देह में अंग रूप में विध्यमान हैं। यह शरीर में चेतना, उर्जा शक्ति, काम शक्ति तथा जीवंतता की अभिव्यक्ति करनेवाली शक्ति है।
विवस्वान: आठवें आदित्य हैं विवस्वान हैं। यह अग्नि देव हैं यानि सृष्टि को चलाने हेतु ऊर्जा। कृषि और फलों का पाचन, प्राणियों द्वारा खाए गए भोजन का पाचन इसी के द्वारा होता है।
विष्णु: नवें आदित्य हैं विष्णु, दुर्गुणों का संहार करते हैं मानव शरीर में वहीं पृकति में बुरी शक्तियों का विनाश कर बचाते हैं। देवताओं के शत्रुओं का संहार करने वाले देव विष्णु हैं। संसार के समस्त कष्टों से मुक्ति कराने वाले हैं।
अंशुमान: वायु रूप में जो प्राण तत्व बनकर देह में विराजमान है वहीं दसवें आदित्य अंशुमान हैं। इन्हीं से जीवन सजग और तेज पूर्ण रहता है। जल का महत्व तो आप जानते हैं हमारे अंदर और बाहर।
वरूण: जल तत्व का प्रतीक हैं वरूण देव। जल का महत्व तो आप जानते हैं।
मित्र: बारहवें आदित्य हैं मित्र. विश्व के कल्याण हेतु तत्पर।
11 रुद्र यानि रौद्र यानि विनाश हेतु शक्तियां। बिना विनाश सृष्टि नहीं चल सकती पर यह निर्माण से एक कम हैं। क्योकिं विनाश का काम निर्माण से कुछ कम होगा तब ही सृष्टि चल पायेगी।
यद्यपि वेदों में रुद्र को मात्र एक ही बताया है और शिव रूप बताया है पर यहां वैज्ञानिक रूप में समझाने हेतु विनाशक शक्तियों का पुंज जो कल्याणकारी ही होता है। इसको आप इको साइकिल से समझ सकते हैं। यहां आप यह समझे एक चक्र को इंद्र शक्ति निर्मित कर रही है। और रुद्र नष्ट।
एकादश रुद्र का विवरण सर्वप्रथम महाभारत में मिलता है। तत्पश्चात् अनेक पुराणों में एकादश रुद्र के नाम मिलते हैं, परन्तु सर्वत्र एकरूपता नहीं है। अनेक नामों में भिन्नता मिलती है। बहुस्वीकृत नाम इस प्रकार हैं।
1. हर-रुद्र : वह जो किसी सृष्टि को विनाश कर सकता है।
2. बहुरूप: वह कोई भी रूप धरकर प्रकट होकर विनाश करता है।
3. महामृत्युंजय मंत्र जो यजुर्वेद में है वहां यह शब्द है जिसका अर्थ तीन नेत्रवाले यानि साकार से चला जाता है। निराकार अर्थ तीनो काल मतलब जन्म पोषण और मृत्यु के आयामों का दृष्टा जो देखता है और विनाश करता है।
4. अपराजित-रुद्र् : विनाश को कोई नहीं रोक सकता यह शाश्वत है।
5. वृषाकपि : जो वृष के समान कल्याणकारी कपि के समान बलशाली। ब्रह्म पुराण के अनुसार भगवान शिव और श्री हरि विष्णु दोनों ने एक ही शरीर में अंशावतार लिया था, जिसका नाम वृषाकपि था और उस दिव्यपुरुष ने पाताललोक मे जाकर दैत्यराज महाशनि का वध किया जो वृषाकपि के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मतलब यह शक्ति निर्माण और विनाश दोनों करती है।
6. शम्भु : ‘शम्भू’, यह शब्द अपभ्रंश है। इसका मूल शब्द है ‘स्वयंभू’। स्वयंभू शब्द का अर्थ है ‘जो स्वयं उत्पन्न हुआ हो’। अर्थात् जो स्वयं उत्पन्न हुआ या प्रकट हुआ हो। तं संप्रश्नं भुवना यन्त्यन्या । ऋग्वेद १०/८२/३। नम: शम्भवाय च मयोभवाय च नम: शंकराय च मयस्कराय च नम: शिवाय च शिवतराय च । यजुर्वेद १६/४१ । सभी संज्ञा-विशेषणों का अर्थ कल्याणकर है । यही शिव शम्भु का स्वरूप है । ‘शम्भु’ शम्भव का ही तद्भव रूप मानना योग्य प्रतीत होता है । आमतौर पर यह शब्द भगवान् शिव के लिए प्रयुक्त होता है।
7. कपर्दी: सामान्य भाषा में कपर्दी उसे कहा जाता है जिसके सिर पर बालों की जटाएं हों। कपर्दी का अर्थ इस प्रकार किया जा सकता है कि जो कपः, कम्पन दे। जब हम कोई स्वादिष्ट भोजन करते हैं तो हमारी देह के कोशों में कहीं कम्पन उत्पन्न होता है । आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार इससे हमारे शरीर में बहुत से हारमोन स्रवित होते हैं। भोजन से प्राप्त स्वाद से उत्पन्न होने वाला कम्पन क्षणिक होता है। ऋग्वेद की ६ ऋचाओं में कपर्दी अथवा कपर्द शब्द प्रकट हुआ है।
8. रैवत: पृथ्वी पर के जल से निकली हुई वह भाप जो घनी होकर आकाश में फैल जाती है और जिससे पानी बरसता है। यह भी विनाश करता है यदा कदा। यानि बाढ।
9. मृगव्याध : वेशभूषा का नाम और अर्जुन के साथ युद्ध में यह रूप धारण किया।
10. शर्व: शर्व नाम का मतलब देवी दुर्गा, देवी पार्वती होता है। मतलब वह शक्ति जो मनुष्य / सृष्टि को स्वयं का विनाश करने को प्रेरित करती है। कहीं कहीं शर्भ लिखा है। यह वह अवतार विनाश शक्ति जो नृसिंह अवतार को शांत करने हेतु प्रकट हुई थी। इसने नृसिंह को हराकर उनका क्रोध शांत किया था।
11. कपाली: शमशान विहारिणी शक्ति
मतलब आप आज के समय में यह समझे विनाशक शक्ति कोरोना का अवतार या रूप बनाकर आपको मारने का प्रयास कर रही है। ऐसे तमाम नाम से विभिन्न रोगाणु आपका विनाश करने को तैयार रहते हैं। विज्ञान के अनुसार इस समय सृष्टि संतुलन हेतु आवश्यक 24 चक्रों में मात्र 10 ही शुद्ध है 14 प्रदूषित होकर खंडित हो चुके हैं।
आठ वासुदेव: अष्टांग का शाब्दिक अर्थ है - अष्ट अंग या आठ अंग। भारतीय संस्कृति में यह कई सन्दर्भों में आता है-
योग की क्रिया के आठ भेद — यम, नियम, आसन प्राणायम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि।
आयुर्वेद के आठ विभाग - शल्य, शालाक्य, कायचिकित्सा, भूतविद्या, कौमारभृत्य, अगदतंत्र, रसायनतंत्र और वाजीकरण।शरीर के आठ अंग — जानु, पद, हाथ, उर, शिर, वचन, दृष्टि, बुद्धि, जिनसे प्रणाम करने का विधान है। आठ अंगों का उपयोग करते हुए प्रणाम करने को साष्टांग दण्डवत कहते हैं।
अर्घविशेष जो सूर्य को दिया जाता है। इसमें जल, क्षीर, कुशाग्र, घी, मधु, दही, रक्त चंदन और करवीर होते हैं।
आत्म उद्धार अथवा आत्मसमर्पण की रीतियों के अन्दर "अष्टांग प्रणिपात" भी एक है; जिसका अर्थ है - (१) आठों अंगों से पेट के बल गुरु या देवता के प्रसन्नार्थ सामने लेट जाना (अष्टंग दण्डवत), (२) इसी रूप में पुन: लेटते हुये एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना। इसके अनुसार किसी पवित्र वस्तु की परिक्रमा करना या दण्डवत प्रणाम करना भी माना जाता है। अष्टांग परिक्रमा बहुत पुण्यदायिनी मानी जाती है। साधारण जन इसको दंडौती देना कहते है। इसका विवरण इस प्रकार से है:-"उरसा शिरसा दृष्टया मनसा वचसा तथा, पदभ्यां कराभ्यां जानुभ्यां प्रणामोऽष्टांग उच्च्यते" (छाती मस्तक नेत्र मन वचन पैर जंघा और हाथ इन आठ अंगो के झुकाने से अष्टांग प्रणाम कियी जाता है।
वहीं कृष्ण के पिता वासुदेव: मतलब देखें। कृष्ण के जीवन में आठ अंक का अजब संयोग है। उनका जन्म आठवें मनु के काल में अष्टमी के दिन वासुदेव के आठवें पुत्र के रूप में जन्म हुआ था। उनकी आठ सखियां, आठ पत्नियां, आठ मित्र और आठ शत्रु थे। इस तरह उनके जीवन में आठ अंक का बहुत संयोग है।
वहीं आपके आठ अंगों की शक्तियां यहां कही जा सकतीं है आठ वासुदेव।
दो अश्वनी कुमार: अश्विनी देव से उत्पन्न होने के कारण इनका नाम अश्विनी कुमार रखा गया। इन्हें सूर्य का औरस पुत्र भी कहा जाता है। ये मूल रूप से चिकित्सक थे। ये कुल दो हैं। एक का नाम 'नासत्य' और दूसरे का नाम 'द्स्त्र' है।
इनका संबंध रात्रि और दिवस के संधिकाल से ऋग्वेद ने किया है। उनकी स्तुति ऋग्वेद की अनेक ऋचाओं में की गई है। वे कुमारियों को पति, वृद्धों को तारुण्य, अंधों को नेत्र देने वाले कहे गए हैं।
उषा के पहले ये रथारूढ़ होकर आकाश में भ्रमण करते हैं और इसी कारण उनको सूर्य पुत्र मान लिया गया। निरुक्तकार इन्हें 'स्वर्ग और पृथ्वी' और 'दिन और रात' के प्रतीक कहते हैं। चिकित्सक होने के कारण इन्हें देवताओं का यज्ञ भाग प्राप्त न था। च्यवन ने इन्द्र से इनके लिए संस्तुति कर इन्हें यज्ञ भाग दिलाया था।
दोनों कुमारों ने राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या के पतिव्रत से प्रसन्न होकर महर्षि च्यवन का इन्होंने वृद्धावस्था में ही कायाकल्प कर उन्हें चिर-यौवन प्रदान किया था। इन्होंने ही दधीचि ऋषि के सिर को फिर से जोड़ दिया था। कहते हैं कि दधीचि से मधु-विद्या सीखने के लिए इन्होंने उनका सिर काटकर अलग रख दिया था और उनके धड़ पर घोड़े का सिर रख दिया था और तब उनसे मधुविद्या सीखी थी।
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जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥
मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य की पूरी जानकारी हेतु नीचें दिये लिंक पर जाकर सब कुछ एक बार पढ ले।
मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या)
जय गुरुदेव जय महाकाली।
जय गुरूदेव। जय मां काली॥
संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 1 ( यह प्रश्नोत्तरी कहीं नहीं मिलेगी) / brahm gyan kaya khand 1
संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 1
(यह प्रश्नोत्तरी शायद कहीं मिले )
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
मां शक्ति के रूपों को नमन करते हुये। गुरूदेवों के चरणों का वंदन करते हुए आज आश्विन शुक्ला दशमी (दशहरा) विक्रम संवत् २०७७ यथा सोमवार अक्टूबर २६, २०२० को अपनी आराध्य मां सरस्वती देव गणेश की अनुकम्पा, प्रथम शक्तिपात दीक्षा गुरू मां काली शरीरी गुरू ब्रह्मलीन सद्गुरू स्वामी नित्यबोधानंद तीर्थ जी महाराज व परम पूज्यनीय ब्रह्मलीन स्वामी शिवोम् तीर्थ जी महाराज जी को स्मरण करते हुये ये ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी का आरम्भ करता हूं।
👉👉👉 कैसे हुई मेरी मां काली से दीक्षा । कैसे पहुंचा स्वप्नन और ध्यान के माध्यय से अपनी पूर्व जन्म की गुुुरू परम्परा में 👈👈👈
मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप सबकी कृपा से यह कार्य निश्चित रूप से सकुशल सम्पन्न होकर जन मानस को सनातन के वास्तविक ज्ञान और स्वरूप का बोध कराने में सहायक होगा। मां कुण्डलनी अपना खेल दिखाते हुये आत्मगुरू के रूप में मार्गदर्शन करते हुये मुझे शब्द और वाक्य प्रदान करेंगी। जय गुरूदेव। जय महाकाली।
मैं जगत के समर्थ गुरूओं से क्षमा मांगते हुये यह बात कह रहा हूं क्योंकि फेस बुक इत्यादि पर बडी दुकानें ही दिखती हैं। अत: विरोध आवश्यक है। भारत संतों की भूमि कभी योगियों से खाली नहीं हो सकती।
लेख लिंक 👉👉गुरु की क्या पहचान है?👈👈
मित्रों आप नेट पर वीडियो ढूंढकर देखो अथवा किसी प्रसिद्ध गुरू की दुकान में पूछो! सब इधर उधर घुमायेंगें! पर सीधा उत्तर न देंगें ??
वैसे आप चाहें तो और प्रश्न पूछ्कर इस प्रश्नावली को और अधिक सार्थक बनानें में योगदान कर सकते हैं।
लेख लिंक 👉👉गुरू का महत्व और पहिचान👈👈
👉👉ब्रह्मांड की उत्पत्ति👈👈
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1. संक्षेप में ब्रह्मज्ञान क्या है?? लेख लिंक 👉👉आत्म ज्ञान👈👈
योग घटित होना। यह चाहें कुछ समय का हो पर अनंत ज्ञान दे जाता है!
👉👉योग व योगी के स्तर और अनुभव👈👈
2. मतलब
वेद महावाक्यों का अनुभव होना!
3. क्या मिलेगा ??
द्वैत की परिपक्वता के पश्चात अद्वैत का अनुभव, जो वेद महावाक्य हैं।
👉👉 ईश्वर चर्चा से नहीं साधना से मिलता है👈👈
4. परिपक्वता क्या ??
अपने इष्ट का साक्षात्कार !
5. मतलब ??
देव दर्शन!
6. वेद महावाक्य क्या??
चार यह और एक सार वाक्य !
7. चार महावाक्य क्या।
अहं ब्रह्मास्मि - "मैं ब्रह्म हूँ" ( बृहदारण्यक उपनिषद १/४/१० - यजुर्वेद)
👉👉क्या होता है अह्म ब्रह्मास्मि और आत्म ज्ञान तत्व👈👈
तत्त्वमसि - "वह ब्रह्म तू है" ( छान्दोग्य उपनिषद ६/८/७- सामवेद )
अयम् आत्मा ब्रह्म - "यह आत्मा ब्रह्म है" ( माण्डूक्य उपनिषद १/२ - अथर्ववेद )
प्रज्ञानं ब्रह्म - "वह प्रज्ञानं ही ब्रह्म है" ( ऐतरेय उपनिषद १/२ - ऋग्वेद)
जिसे मैं अपने लेखों में लिखता हूं। सर्वस्य ब्रह्म सर्वत्र ब्रह्म।।
8. सार वाक्य ??
सर्वं खल्विदं ब्रह्मम् - "सर्वत्र ब्रह्म ही है" ( छान्दोग्य उपनिषद ३/१४/१- सामवेद )
जिसे मैं अपने लेखों में लिखता हूं। सर्वस्य ब्रह्म सर्वत्र ब्रह्म।।
9. योग है क्या??
आत्मा में परमात्मा की एकात्मकता का अनुभव ही योग है??
10. क्या यह घटित होता है??
जी घटित होता था तभी बद्रायण ब्रह्म सूत्र लिख सके और आदि शंकर व्याख्या कर सके!
यह घटित होता है। आज भी तमाम लोग विभिन्न भाषा और तरह से समझाते रहते हैं!
यह घटित होता रहेगा। आप भी देर सबेर अनुभव कर सकते हो!
11. इसका फायदा क्या??
आपको दुख: संकट इत्यादि सहने की शक्ति के साथ मानसिक शांति, आनन्द की अवस्था और जीवन का उद्देश्य ज्ञात हो जायेगा! साथ ही जीवन की मूल्यता और मानव जीवन की गहनता भी ज्ञात हो जायेगी।
12. पर यह हो कैसे??
पहले अंतर्मुखी हो!
13. मतलब क्या ??
तुम्हारी वाहिक कर्मों में इंद्रियों के द्वारा वाहिक ऊर्जा प्रवाह को अपने शरीर के भीतर मोडना!
14. कृपया स्पष्ट करें??
तुम आंख कान नाक मुख और त्वचा के माध्यम से वाहिक जगत का अनुभव करते रहते हो। अत: तुम्हारी ऊर्जा बाहर की तरफ बहकर व्यर्थ हो रही है। इन्हीं इंद्रियों द्वारा अपने भीतर जाने का प्रयास करो!!
आंख के द्वारा त्राटक जो कई प्रकार से हो सकता है!
कान के द्वारा शब्द या अक्षर अथवा नाद या संगीत या कर्ण मार्ग साधना
नाक द्वारा विपश्यना, प्रेक्षा ध्यान, सुगंध साधना
मुख द्वारा मंत्र जप सबसे सरल और सहज, खेचरी इत्यादि या स्वाद मार्ग
👉👉बीज मंत्र: क्या, जाप और उपचार👈👈
👉👉मंत्र विज्ञान परिचय और बजरंग मंत्र 👈👈
👉👉मातृ शक्ति इच्छापूर्ती बीज मंत्र 👈👈
त्वचा द्वारा स्पर्श साधना
अथवा इन सबका मिश्रण
इन सबके द्वारा धारणा प्रबल होकर ध्यान का मार्ग प्रशस्त करती है।
जो आगे जाकर हमें योग की अनुभूति करवा देता है।
15. फिर साधना क्या??
लेख लिंक 👉👉क्या अंतर है ध्यान और समाधि में👈👈
लेख लिंक 👉👉 निद्रा, योग निद्रा, ध्यान निद्रा और समाधि 👈👈
👉👉साधन साधना में अंतर: योग और कुछ उत्तर 👈👈
साधना मतलब वह पद्वति मार्ग जिसके द्वारा अंतर्मुखी होने का प्रयास होता है!
16. मार्ग मतलब ??
योग की ओर जाने हेतु दो मार्ग हैं।
पहला उपासना मार्ग जिसमें नवधा भक्ति आती है जो साकार द्वारा होती है।
👉👉नवधा भक्ति : नौ तरीके, मार्ग या द्वार👈👈
👉👉सत्संग और हम👈👈
👉👉श्रेष्ठ भक्ति कौन सी??👈👈
👉👉गीता में स्थित प्रज्ञ और स्थिर बुद्धि 👈👈
👉👉प्रकृति, प्रवृति स्थितप्रज्ञ या स्थितअज्ञ? 👈👈
👉👉गीता सार और कुछ उत्तर 👈👈
दूसरा हठ योग व अन्य मार्ग जो कुण्डलनी जागरण और कुन्डलनी शक्ति का शरीर के विभिन्न चक्रों को भेदकर सिर के मध्य में स्थित सहस्त्रसार में मिलकर समाधि दे सकती है जो योग को घटित कर सकता है।
👉👉समाधि का सम्पूर्ण विवरण 👈👈
👉👉सहस्त्रसार चक्र क्या है 👈👈
ये सभी पद्द्तियां साकार या निराकार ब्रह्म की अनुभूति कराती हैं।
वैसे सनातन में आराधन पद्दति के पांच मार्ग हैं।
वैष्णव : विष्णु रूप पूजक
शैव : शिव रूप पूजक
शाक्त : शक्ति उपासक
स्मार्त : सभी को मानने वाले, यह भारत में सबसे अधिक हैं।
वैदिक : निराकार ब्रह्म के उपासक
ऊपर के चारो साकार उपासक होते हैं। पांचवा निराकार उपासक!
17. ब्रह्म क्या है? लेख लिंक 👉👉ब्रह्म क्या है???👈👈
वह निराकार सगुण ऊर्जा जो सृष्टि का निर्माण पालन और संहार करती है!
18. फिर भगवान परमात्मा ईश इत्यादि क्या है??
यूं समझो उस निराकार ब्रह्म को अल्लाह गाड ही कहते हैं उसमें समाना ही मोक्ष है।
भगवान उसका साकार रूप और ईश उसका ज्योतिर्मय रूप।
देव साकार रूप जिनकी सबकी भी आयु निश्चित होती है। यह भी अपना कार्य समाप्त कर ब्रह्म में विलीन हो जाते हैं।
एक सगुण निराकार ब्रह्म ही अनेक रूप धारण करता है। फिर उनको नष्ट कर अपने में विलीन कर लेता है।
जैसे मकडी पहले जाला बुनती है फिर उसी को वापिस मुख में लेकर विलीन कर देती है कुछ उसी प्रकार वह ब्रह्म अपनी माया के द्वारा सृष्टि का निर्माण पालन कर अपने में समेट लेता है।
19. फिर यह तेतिस करोड देवता का क्या मामला है??
वे मूर्ख और अज्ञानी मंदबुद्धि हैं जो करोड बोलते हैं। यह कोटि शब्द है। कोटि मराठी भाषा में करोड होती है पर हिंदी संस्कृत में प्रकार या वर्ग के अर्थ रखता है!
12 सृष्टि के निर्माण हेतु यानि आदित्य जिसका अर्थ सूर्य से समझा जा सकता है जो जीवन देता है।
11 विनाश हेतु यानि रूद्र
8 वासुदेव। आठ विशेष है चाहें योग हो, शरीर हो, औषधि हो या अर्ध्य। चाहे साष्टांग दंडवत ( लिंक देखें)
2 अश्वनि कुमार जो स्वास्थ देखते हैं।
यह सब मिलकर सृष्टि चलाते हैं।
20. और बतायें??
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मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या)
जय गुरुदेव जय महाकाली।
Friday, October 23, 2020
कैसी हो सफल हवन
कैसी हो सफल हवन
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
मित्र अक्सर लोग शिकायत करते रहते हैं कि इतना सब करने के बाद इतना सारा घी खर्च करने के बाद कपूर के बाद में भी हवन में ज्वाला नहीं पैदा होती है। और हवन सफल नहीं है ऐसा लगता है जिसके कारण मन में शंका और आशंका दोनों पैदा होते हैं।
जैसा कि हम सभी जानते हैं अग्नि के द्वारा ही देवताओं को अर्ध्य या हविष्य दिया जाता है और हवन द्वारा ही उनकी पुष्टि भी होती है!
अत: हवन का सही होना बहुत आवश्यक है।
इसके लिए कुछ बातों पर आप विचार करेंगे ध्यान देंगे तो बहुत ही सुंदर तरीके से यज्ञ संपन्न हो पाएगा।
पहले कुछ भौतिक बातें याद रखिए:
सबसे पहले आप जिस पात्र में हवन करना चाहते हैं वो थोड़ा चौड़ा हो जिससे कि हवा आसानी से जा सके और धुआं निकल सके।
यदि कुछ नहीं है तो लोहे की कढ़ाई में या लोहे की थाली में इसको किया जा सकता है।
उसमें जो आप समिधा डालते हैं उसको सबसे पहले आप कपड़े से साफ कर लें। और थोड़ा बहुत घी उसमें लगा दें।
हवन की सामग्री इस प्रकार डालें कि वह मुख्य ज्वाला को बाधित न करें।
अग्नि प्रज्वलन हेतु आप रुई का दीपक बनाकर उसको केंद्र में रखें क्योंकि दीपक अधिक समय तक चलता है और आपके हवन के दौरान डाले गए घी से उसकी अग्नि प्रज्वलित रहती है।
यदि आप की ज्वाला सही है तो आप पानीवाला भी नारियल डाल कर उस को भस्म कर सकते हैं।
कुछ आध्यात्मिक बातों पर भी ध्यान देने से ज्वाला सही निकलती है।
जिस पात्र में आप हवन कर रहे हैं सबसे पहले उसमें उस पात्र का पूजन करें मतलब बीच में स्वास्तिक बनाएं और उस पर रोली और अक्षत लगाकर हाथ जोड़कर प्रणाम करें।
रूई की बाती को हवन कुंड में रखते समय आप अग्नि का बीज मंत्र पढ़ते रहे।
इसके पश्चात आप पहले 👉 अग्नि का बीज मंत्र 👈 पढ़ते नमन करें प्रार्थना करें और घी की सात आहुती लकड़ी पर डालें।
फिर गणेश जी के नाम पर और गुरु के नाम पर क्रमशः सात आहुति दे।
फिर अपने इष्ट मंत्र का जाप करते हुए भी इतनी ही आहुती दें।
इसके पश्चात आप हवन सामग्री की आहुति इन सभी को समर्पित करें।
इसके बाद आपको जिस मंत्र का हवन करना हो वह कर सकते हैं।
जब कभी आप बीच में लगे अग्नि शांत होने जा रही है तो कपूर का एक छोटा सा टुकड़ा अग्नि बीज मन्त्र के साथ आहुति दे दे।
आप देखेंगे मुश्किल से आपका तीन-चार चम्मच घी लगेगा और आप की ज्वाला है 1 से लेकर के 2 फीट ऊंची तक उठने लगेगी।
आपकी प्रार्थना बहुत काम करती है इसलिए अपने इष्ट को निरंतर माफी मांगते हुए क्षमा मांगते हुए अपनी साधारण बोलचाल में प्रार्थना करते रहे जैसे कि किसी से बात कर रहे हो।
जय गुरुदेव जय महाकाली
Thursday, October 22, 2020
मां सिद्धिदात्री की आरती
मां सिद्धिदात्री की आरती
चरण वंदनकार: सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
आरती सिद्धिदात्री माता की, सृष्टि की पालक सिद्धि दाता की।।
नव नौ रूपों मां दुर्गा बनाया, मानव को जीना सिखलाया।
धरम-करम सभी तुम ही बखानी, कर्म करता कर्मफल दाता की।।
आरती सिद्धिदात्री माता की, सृष्टि की पालक सिद्धि दाता की।।
हमको माता अज्ञान ने घेरा। बोझा बन फिरें धरा पर डेरा।।
मूढ़मति हम अभिमानी जगत में, कर विनती ज्ञान मान दाता की।
आरती सिद्धिदात्री माता की, सृष्टि की पालक सिद्धि दाता की।।
माता चराचर को हो बनाती, रंक को राजा पद पे सजाती।।
हर कण कण में है वास तुम्हारा, भाग्यहीन सौभाग्यदाता की।।
आरती सिद्धिदात्री माता की, सृष्टि की पालक सिद्धि दाता की।।
तुम सृष्टि को स्वयमेव बनाती। मरुधर में तूफान को चलाती।।
नाना शस्त्र धारण तुम करतीं। दुष्ट संहारिणी आतुर माता की।।
आरती सिद्धिदात्री माता की, सृष्टि की पालक सिद्धि दाता की।।
तेरे द्वारे पे भीड़ बहुत है। भक्तों को माता पीर बहुत है।।
कष्ट हरो तुम्हे धरती पुकारे। असुरहंत कालरूपी माता की।
आरती सिद्धिदात्री माता की, सृष्टि की पालक सिद्धि दाता की।।
नौ रूपों में सदा तुम रहतीं। सृष्टि का पालन नाशन भीं करतीं।।
मेरा पूजन स्वीकार हो माता, नवरूपों में अंतिम माता की।।
आरती सिद्धिदात्री माता की, सृष्टि की पालक सिद्धि दाता की।।
माता सर्वरूप तुम जगदंबे। तुम महाकाली तारा हो अम्बे।।
भक्तों की रक्षा परकट हो खम्बे। हर कण निवास जीवन दाता की।।
आरती सिद्धिदात्री माता की, सृष्टि की पालक सिद्धि दाता की।।
जो जन भजे आरती जो गाता। भक्तिभाव समरपण है लाता।।
तुम सब कुछ माता देनेवाली। शब्द हैं तेरे विपुल दाता की।।
अब माते आराधन स्वीकारो। समस्त जग दैत्य राक्षस संहारो।।
सत्य सनातन फिर से जग लाओ। दास विपुल आरती गाता की।।
आरती सिद्धिदात्री माता की, सृष्टि की पालक सिद्धि दाता की।।
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