Search This Blog

Saturday, October 31, 2020

अब तक प्रकाशित प्रश्न। संक्षिप्त ब्रह्म ज्ञान।खंड 1 से खंड 5 / ab tak prakashit brahm gyan ke prashan

संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 1 से  खंड 5 

(यह प्रश्नोत्तरी शायद कहीं मिले )  


सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 

 

 अब तक प्रकाशित प्रश्न। संक्षिप्त ब्रह्म ज्ञान।खंड 1 

 

👉👉👉 कैसे हुई मेरी मां काली से दीक्षा । कैसे पहुंचा स्वप्नन और ध्यान के माध्यय से अपनी पूर्व जन्म की गुुुरू परम्परा में 👈👈👈



लेख लिंक 👉👉गुरु की क्या पहचान है?👈👈

मित्रों आप नेट पर वीडियो ढूंढकर देखो अथवा किसी प्रसिद्ध गुरू की दुकान में पूछो! सब इधर उधर घुमायेंगें! पर सीधा उत्तर न देंगें ??

वैसे आप चाहें तो और प्रश्न पूछ्कर इस प्रश्नावली को और अधिक सार्थक बनानें में योगदान कर सकते हैं।



लेख लिंक 👉👉गुरू का महत्व और पहिचान👈👈 

 👉👉ब्रह्मांड की उत्पत्ति👈👈

👉👉लेख में सुधार और लिंक जुडते रहेगें👈👈


1. संक्षेप में ब्रह्मज्ञान क्या है??     लेख लिंक 👉👉आत्म ज्ञान👈👈


 👉👉योग व योगी के स्तर और अनुभव👈👈

2. मतलब


3. क्या मिलेगा ??


 

👉👉 ईश्वर चर्चा से नहीं साधना से मिलता है👈👈

4. परिपक्वता क्या ??


5. मतलब ??

 

 

6. वेद महावाक्य क्या??


7. चार महावाक्य क्या।

   

👉👉क्या होता है अह्म ब्रह्मास्मि और आत्म ज्ञान तत्व👈👈

   

8. सार वाक्य ??


 

9. योग है क्या??


 

10. क्या यह घटित होता है??


 

11. इसका फायदा क्या??


 

12. पर यह हो कैसे??


 

 

13. मतलब क्या ??


 

 

14. कृपया स्पष्ट करें??

 

👉👉बीज मंत्र: क्या, जाप और उपचार👈👈  

 👉👉मंत्र विज्ञान परिचय और बजरंग मंत्र 👈👈

👉👉मातृ शक्ति इच्छापूर्ती बीज मंत्र  👈👈


 

15. फिर साधना क्या??  

लेख लिंक 👉👉क्या अंतर है ध्यान और समाधि में👈👈  

लेख लिंक 👉👉   निद्रा, योग निद्रा, ध्यान निद्रा और समाधि 👈👈

👉👉साधन साधना में अंतर: योग और कुछ उत्तर  👈👈


 

 

16. मार्ग मतलब ??


👉👉नवधा भक्ति : नौ तरीके, मार्ग या द्वार👈👈

👉👉सत्संग और हम👈👈  

👉👉श्रेष्ठ भक्ति कौन सी??👈👈  

👉👉गीता में स्थित प्रज्ञ और स्थिर बुद्धि  👈👈

👉👉प्रकृति, प्रवृति स्थितप्रज्ञ या स्थितअज्ञ? 👈👈

👉👉गीता सार और कुछ उत्तर 👈👈

👉👉समाधि का सम्पूर्ण विवरण  👈👈

👉👉सहस्त्रसार चक्र क्या है 👈👈


 

 

 

17. ब्रह्म क्या है?     लेख लिंक  👉👉ब्रह्म क्या है???👈👈

 

 

18. फिर भगवान परमात्मा ईश इत्यादि क्या है??

 

 

19. फिर यह तेतिस करोड देवता का क्या मामला है??


 

20. और बतायें?? 




संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 2 


👉👉संक्षेप में ब्रह्मज्ञान क्या है?? भाग 1  👈👈

 👉👉लेख में सुधार और लिंक जुडते रहेगें👈👈

 

20. कोटि देवता के बारे में और बतायें??


संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 3

 

प्रश्न 21. जब योग का एक वाक्य अर्थ तो इतने योग क्यों???

कहीं नाद तो कहीं सहज तो कहीं शब्द कहीं भक्ति कहीं ज्ञान कहीं कर्म??? 

👉👉लेख लिंकअंतर्मुखी बनाम योग 👈👈

👉👉लेख लिंक: अंतर्मुखी होने की विधियां 👈👈

👉👉लेख लिंक: योग की वास्तविकता और विभिन्न गलत धारणायें 👈

 

👉👉लेख लिंक  अंतर्मुखी होने की विधियां👈👈


 👉👉कबीर से साक्षात्कार👈👈

 

 👉👉आखिर क्या होती है शक्तिपात योग दीक्षा👈👈

 👉👉क्या होता है शक्तिपात👈👈   

👉👉क्या है क्रिया योग 👈👈

 👉👉क्रिया योग बनाम शक्तिपात👈👈

👉👉 शक्तिपात या दैवीय शक्ति संक्रमण👈👈

👉👉क्रिया व योग या क्रिया योग  👈👈

👉👉शक्तिपात में क्रिया क्या होती है  👈👈

 

👉👉 मन्त्र जप की अवस्थायें👈👈

👉👉शाबर मंत्र और महत्व  👈👈

 

प्रश्न 22: ओशो पर क्या विचार ???  

 


👉👉 क्यों मानता हूं ओशो को पापी👈👈 

 


प्रश्न 22: क्या हर मनुष्य का एक ही मार्ग या मन्त्र नहीं हो सकता??? 

 

प्रश्न 23: फिर गीता में सिर्फ भक्ति कर्म ज्ञान और राजयोग के साथ सांख्य योग की बात की है। 

 

प्रश्न 24: फिर अष्टांग योग क्या है???

अगले अंक की प्रतीक्षा !!


संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 4

  

24. फिर अष्टांग योग क्या है???



 👉👉अष्टांग (अष्ट + अंग) योग क्या है ?👈👈

 👉👉बिना स्वार्थी बने योग नही हो सकता👈👈

मेरी व्याख्या शायद आप कहीं और न पायें। 

 


 

👉👉क्या है षट-अंग, सप्तांग और अष्टांग योग  👈👈


 👉👉पातांजलि के पंच यम क्या हैं?👈👈

 👉👉पातांजलि के पंच नियम क्या हैं?👈👈


 👉👉क्या अंतर है ज्ञान और बुद्धि में👈👈

👉👉विवेक की व्याख्या  👈👈


👉👉क्या है ईश्वर- प्रणिधान अष्टांग योग में  👈👈

👉👉मन, बुद्धि और आत्मा  👈👈



 👉👉क्या हैं “त्याग” के अर्थ यानि प्रत्याहार का रूप👈👈

 


25. तो फिर सनातन में वेद क्या है???


👉👉ब्रह्मचर्य के वास्तविक अर्थ👈👈 

 👉👉वेद, उपनिषद और गीता की जन्म कथा👈👈

👉👉मानव योनि सर्वश्रेष्ठ क्यों??  👈👈

👉👉धर्म क्या??  👈👈

👉👉सत्य की विवेचना 👈👈

 

👉👉क्या है षट्दर्शन और भारत का ज्ञान  👈👈



 

प्रश्न 26: योगी की पहचान क्या है???

आपको योग हो गया यह कैसे मालूम पड़ेगा आपको और दूसरों को???

अगले अंक की प्रतीक्षा !!




संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 5


26. योगी की पहचान क्या है???



27. आपको योग हो गया यह कैसे मालूम पड़ेगा आपको और दूसरों को???


संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 6

 

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 2👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 3👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!! खंड 4👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 5👈👈



 




 

आप चाहें तो ब्लाग को सबक्राइब / फालो कर दें। जिससे आपको जब कभी लेख डालूं तो सूचना मिलती रहे।


जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥

 
मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य की पूरी जानकारी हेतु नीचें दिये लिंक पर जाकर सब कुछ एक बार पढ ले।
 
मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या) 
जय गुरुदेव जय महाकाली।



👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 2👈👈


👉👉 संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 1 👈👈
👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 3👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!! खंड 4👈👈






संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 5 / brahm gyan kaya khand 5

 संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 5

 सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"



26. योगी की पहचान क्या है???



किसी को देखकर आप मालूम कर सकते हैं। यदि योगी के अंदर समत्व की भावना यानी सबको एक समझता है न कोई छोटा न कोई बड़ा मानव जाति एक।
तो यह उसके व्यवहार से मालूम पड़ जाता है अक्सर गुरु लोग यह करते हैं जिसने बढ़िया चढ़ावा दिया उसको नारियल के साथ मिठाई का डिब्बा और जिसने सिर्फ प्रणाम किया उसको शक्कर के चार  योगीदाने। यह व्यवहार  योगी का नहीं है। वह सबके साथ समान व्यवहार करेगा दूसरी चीज वह कभी अपने को किसी भी प्रकार की क्रेडिट नहीं देगा वह यही कहेगा कि यह उसके गुरु की इच्छा हुई या उसके इष्ट की इच्छा है इसके अतिरिक्त वह किसी भी प्रश्न का उत्तर तुरंत देगा।



आइंस्टाइन ने कहा है जब तक मैं आपकी किसी भी विषय पर गहराई से पकड़ नहीं होगी अनुभव नहीं होगा तब तक आप सही व्याख्यान नहीं दे सकते।  आप एक प्रश्न पूछ लीजिए भले ही नेट से पूछ लीजिए यदि उसने सही सही उत्तर दे दिया और वह भी तुरंत उसको योग हो सकता है यह भगवान श्री कृष्ण की गीता के अनुसार कर्मेषु कौशलम् अपने कार्य को कुशलता से निपटा लेने वाला व्यक्ति योगी हो सकता है। 



27. आपको योग हो गया यह कैसे मालूम पड़ेगा आपको और दूसरों को???



प्रश्न यह है कि आप कैसे जाने आपको योग हो गया तो इसका निर्णय तो आपको स्वयं करना है सबसे पहली बात यह है क्या आपके अंदर समानता की भावना आ गई क्या आपने सब कुछ ईश्वर ही करता है गुरु ही करता है आप कुछ नहीं करते हैं यह भावना आ गई। 



बसे बड़ी बात जो पतंजलि महाराज ने कहा है दूसरा श्लोक चित्त में वृद्धि का निरोध मतलब आपको किसी भी कार्य के होने के बाद उस कार्य के प्रति लगाव उस फल के प्रति दुराव या मलाल तो नहीं होता अपने कर्तव्य को पूरा करने के बाद किसी प्रकार का अपेक्षा तो नहीं रहती।

 

आपके लिए और यदि योग की सफलता की बात है तो क्या आप सदैव अपने इष्ट का स्मरण करते रहते हैं यह सब यदि आपके अंदर है तो आपको योग घटित हो गया।



 वेद महावाक्य  के अनुभव अलग-अलग होते हैं वह यदि आपको अहम् ब्रह्मास्मि का अनुभव हुआ तो आपके अंदर अहंकार की सर्वोच्च अवस्था जाएगी मतलब आप अपने को ब्रह्म के समान ही समझने लगेंगे और शरीर के अंदर मौजूद मन बुद्धि अहंकार सोच सभी कुछ यही कहने लगेगी कि मैं ही ब्रह्म हूं अब बात आती है अयम आत्मा ब्रह्म।  इसमें आपको अनुभूति इस तरह की होगी कि अचानक जैसे कि कोई आपके अंदर प्रकट होकर आपको समझा रहा है अरे मैं तुमसे अलग नहीं हूं क्या तुम मुझको अलग करना चाहते हो क्या तुम मुझको अलग देखना चाहते हो इस तरह की शब्दावली की बातचीत हो जाती है।



तीसरा तत्वमसि आपको यदि किसी भी प्रकार की छाया आकृति डरावनी या अंदर कुछ भी अगर दिखती है तो आप भयभीत नहीं होते हैं आपको भय नहीं पैदा होता आपके मन से आवाज आती है अरे यह सब तो ब्रह्म ही है फिर आता है ।प्रज्ञानं ब्रह्म। मतलब आपके अंदर कुछ भी जो उत्तर पैदा होता है या एक अचानक से प्रकट होता है भावों का जो आपने पहले कभी सोचा नहीं था फिर आप सोचने लगते अरे यह कौन था जो हमको भी समझा गया और यदि आध्यात्मिक होते हैं तो ध्यान के भाव में आकर आप यही कहते हैं कि जो कुछ भी मेरे अंदर से भाव आए वह हो ब्रह्म ने इन्हीं सब वेद महावाक्यों के द्वारा चिंतन मनन के द्वारा आपके अंदर यह भावना प्रकार हो जाती है सर्वत्र ब्रहृम सर्वस्य ब्रह्म। अर्थात जगत में सब कुछ ब्रह्म।


संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 6



आप चाहें तो ब्लाग को सबक्राइब / फालो कर दें। जिससे आपको जब कभी लेख डालूं तो सूचना मिलती रहे।


जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥

 
मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य की पूरी जानकारी हेतु नीचें दिये लिंक पर जाकर सब कुछ एक बार पढ ले।
 
मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या) 
जय गुरुदेव जय महाकाली।

Friday, October 30, 2020

हे हुलसी के लाल तुलसी/ hulsi ke lala tulsi


 हे हुलसी के लाल तुलसी

सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी


हे हुलसी के लाल तुलसी,  करूं मैं कैसे वंदन तेरा।
तुम हो श्रेष्ठ श्रेष्ठतम कविवर,‌ भक्ति प्रेम रस ज्ञान बिखेरा।।



रामचरित को तुमने गाकर, दिया जगत अनूठा उपहार।
सकल भक्ति का रूप मनोहर,रच डाला है बारंबार।।



गान तुम्हारा बड़ा निराला,  जनमानस में भक्ति जगाए।
कर्म योग प्रभु मार्ग पर चलकर, गुरूभक्ति क्या यह समझाए।।



"विनय पत्रिका" अनुपम माला, लिए समेटे भजन अनेक।
"दोहावली" दोहे की गली, भाव अनेकों लिए समेट।।



"कवितावली" में राम कविता, सभी का मन मोहनेवाली।
"गीतावली" के गीत विलक्षण,  सीता मैया मंगल वाली।।



तुम महाकवि हो सकल जग के, अवधी भाषा के सूर्य बने।
राम नाम की महिमा गाकर, कितने भव सागर पार करें।।



नाम तुम्हारा अमर रहेगा, जब तक चमके चांद सितारे।
विपुल ज्ञान तुम देने वाले, नश्वर जग के हो उजियारे।।



हे तुलसी के राम रमैया, यह पापी अधम बुलाता है।
दे दो भक्ति का अमृत कुछ, कर जोरी विपुल गुहराता है।।



सद्गुरू कृपा तुलसी कीन्ही, भक्ति मार्ग की दे दी धारा।
कृपा अमोलक गुरुवर कर दो, तुलसी सम हो हृदय हमारा।।

Wednesday, October 28, 2020

संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 4 / brahm gyan kaya khand 4

संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 4

 सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 

24. फिर अष्टांग योग क्या है???


पातांजलि महाराज ने षट् दर्शन के अंतर्गत “योग सूत्र” लिखे जिन्हे अष्ट अंग योग यानि अष्टांग कहा गया। यह हठ योग का मार्ग है। 

 👉👉अष्टांग (अष्ट + अंग) योग क्या है ?👈👈

 👉👉बिना स्वार्थी बने योग नही हो सकता👈👈

मेरी व्याख्या शायद आप कहीं और न पायें। 

 

पातंजलि महाराज के पहले ऋषियों ने षष्ट अंग व सप्त अंग योग मार्ग की व्याख्या की है किंतु वह अधिक प्रचलित न हो सकें। इन विधि मार्गों में मुद्रा ध्यान भी एक अंग बताया। जिसको महात्मा बुद्ध ने भलीं भांति प्रयोग कर बताईं। वर्तमान में यह विधियां बुद्ध लामाओं के पास तिब्बत में सुरक्षित हैं। सनातन का कुछ ज्ञान तिब्बती भाषा में ही सुरक्षित रह सका। आक्राताओं ने संस्कृत साहित्य व पाली साहित्य को आसानी से नष्ट कर दिया क्योकि यहां की जलवायु उनके अनुकूल थी। किंतु वे तिब्बत न जा सके। अत: वह साहित्य सुरक्षित रहा।  

 

👉👉क्या है षट-अंग, सप्तांग और अष्टांग योग  👈👈

पातांजलि महाराज एक बडे विज्ञानी थे। उन्होने मानव के आठ अंगों के अनुकूल अष्ट वासुदेव की तरह इन अंगों को जोडकर एक योग का मार्ग बना दिया। 

 

योग की क्रिया के आठ भेद — यम, नियम, आसन, प्राणायम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। यम व नियम के पांच उप अंग। 

 👉👉पातांजलि के पंच यम क्या हैं?👈👈

 👉👉पातांजलि के पंच नियम क्या हैं?👈👈

आयुर्वेद के आठ विभाग - शल्य, शालाक्य, कायचिकित्सा, भूतविद्या, कौमारभृत्य, अगदतंत्र, रसायनतंत्र और वाजीकरण।   

 

शरीर के आठ अंग — जानु, पद, हाथ, उर, शिर, वचन, दृष्टि, बुद्धि, जिनसे प्रणाम करने का विधान है। आठ अंगों का उपयोग करते हुए प्रणाम करने को साष्टांग दण्डवत कहते हैं।

 👉👉क्या अंतर है ज्ञान और बुद्धि में👈👈

👉👉विवेक की व्याख्या  👈👈

आपको बता दें कि जानू का मतलब आत्मा, जीवन शक्ति, जन्मस्थान होता है।

जानू शीर्षासन भी होता है।


अब यहां देखें आप हाथों के द्वारा जगत में व्यवहार करते हैं तो यह यम का अर्थ आपकी दाहिना हाथ हो गया और इसमें पांच उंगलियों के रूप में पांच उपांग है फिर नियम यानी आप अपने प्रति क्या व्यवहार करते हैं इसमें फिर पांच उप अंग है जो आपके हाथ की उंगलियों की भांति है यह बायां हाथ हो गया।

दोनों को जोडने से हो गया नमस्कार मुद्रा।

इसी भांति दोनों हाथों को आप अपने शरीर से खींचकर लगाते हैं।

यानी जकड़ते हैं तो इसका अर्थ हो गया जो बद्रायण पहला ब्रह्म अथातो ब्रह्म जिज्ञासा। यानि आपके अंदर ब्रह्म को जान्ने की जिज्ञासा। 

👉👉क्या है ईश्वर- प्रणिधान अष्टांग योग में  👈👈

👉👉मन, बुद्धि और आत्मा  👈👈


तीसरा सूत्र तीसरा अंग है वह है प्रत्याहार जिसका शाब्दिक अर्थ है ( पुल्लिंग)  पीछे खींचना, हटाना अथवा आशा, वचन आदि वापस लेना। जगत में जो कुछ भी वस्तुएं आप संग्रह करने की प्रवृत्ति करते हैं उनके त्याग के विषय में और आवश्यक से अधिक संचय का त्याग करना यह आप यह प्रत्याहार के द्वारा करते हैं।  यानी दोनों हाथों से जगत का व्यवहार करते हैं तो प्रत्याहार का तात्पर्य हो गया आपकी बुद्धि से।

 

अब देखें पहले यम यानि जगत के प्रति व्यहार यानि जगत जो दायां हाथ। आप दाहिने हाथ से अधिक काम करते हैं। फिर नियम यानि आपका स्वयम आपके प्रति व्यहार। मतलब आपकी आत्मा के स्वरूप जो आपका शरीर है उसके प्रति व्यवहार। यानि बायां हाथ। आपका ह्र्दय भी बायीं तरफ है। 

 

इन दोनों हाथों के द्वारा आप ग्रहण करते हैं। स्थूल जगत को और सूक्ष्म रूप में। उसके प्रति उदासीनता ही प्रत्याहार हो गई। 

 👉👉क्या हैं “त्याग” के अर्थ यानि प्रत्याहार का रूप👈👈

 

चौथा हो गया आसन यानि जिसके द्वारा आप जमीन पर बैठते उठते हैं और प्रत्येक पशु का अलग आसन भी होता हैं।

वह अवस्था जिसमें आप सहजतापूर्वक बैठ सकें व अपने शरीर को स्वास्थ्य प्रदान कर सकें। 

 

पांचवां होता है प्राणायाम। यानी आप का मुख और नासिका द्वारा प्राणों की वायु का आयाम। पंच वायु  जिसके द्वारा आप इस जगत में जीवित रहते हैं।

हम जब श्वास लेते हैं तो भीतर जा रही हवा या वायु पांच भागों में विभक्त हो जाती है या कहें कि वह शरीर के भीतर पांच जगह स्थिर और स्थित हो जाता हैं। लेकिन वह स्थिर और स्थितर रहकर भी गतिशिल रहती है।

ये पंचक निम्न हैं- (1) व्यान, (2) समान, (3) अपान, (4) उदान और (5) प्राण।


वायु के इस पांच तरह से रूप बदलने के कारण ही व्यक्ति की चेतना में जागरण रहता है, स्मृतियां सुरक्षित रहती है, पाचन क्रिया सही चलती रहती है और हृदय में रक्त प्रवाह होता रहता है। इनके कारण ही मन के विचार बदलते रहते या स्थिर रहते हैं।

 

1.व्यान : व्यान का अर्थ जो चरबी तथा मांस का कार्य करती है।

2.समान : समान नामक संतुलन बनाए रखने वाली वायु का कार्य हड्डी में होता है। हड्डियों से ही संतुलन बनता भी है।

3.अपान : अपान का अर्थ नीचे जाने वाली वायु। यह शरीर के रस में होती है।

4.उदान : उदान का अर्थ उपर ले जाने वाली वायु। यह हमारे स्नायुतंत्र में होती है।

5.प्राण : प्राण वायु हमारे शरीर का हालचाल बताती है। यह वायु मूलत: खून में होती है।

 

 

प्राणायाम करते या श्वास लेते समय हम तीन क्रियाएं करते हैं- 1.पूरक 2.कुम्भक 3.रेचक।

उक्त तीन तरह की क्रियाओं को ही हठयोगी अभ्यांतर वृत्ति, स्तम्भ वृत्ति और बाह्य वृत्ति कहते हैं। अर्थात श्वास को लेना, रोकना और छोड़ना। अंतर रोकने को आंतरिक कुम्भक और बाहर रोकने को बाह्म कुम्भक कहते हैं।


अब देखें छठा होता है जो कि आती है उसे बोलते  हैं धारणा।

जिसमें कि आप की आंतरिक दृष्टि का इस्तेमाल होता है तो वह आपके शरीर काम हो गया दृष्टि और यहां पर हो गया धारणा।


इसके पश्चात होता है ध्यान और समाधि।


इन सब को एक साथ लेकर चलने से आपको योग घटित हो सकता है यानी आप एक पूर्ण मानव बन सकते हैं।


पांजजलि महाराज ने बहुत ही सुंदर तरीके से हमारे शरीर के अंगों को योग के अंगों के माध्यम से समझा कर उनके कार्य को समझा कर अष्टांग योग की स्थापना की।


25. तो फिर सनातन में वेद क्या है???


जब मनुष्य की उत्पत्ति हुई थी तब वह एक शुद्ध आत्मा था और ईश्वर के बिल्कुल निकट था आपने नर और नारायण की कथाएं पढ़ी होंगी लेकिन जब नर ने नारायण से पूछा कि भाई मेरा कर्म क्या है मेरी उत्पत्ति क्यों हुई है और उस मनुष्य को मार्गदर्शन करने के लिए आदि शक्ति काली ने मां गायत्री रूप धारण किया और तीन वेदों की रचना की। बाद में मनुष्यों ने ऋषियों ने अन्य मार्ग खोजें और उनको साथ लेकर अर्थव वेद बना। 

👉👉ब्रह्मचर्य के वास्तविक अर्थ👈👈 

 👉👉वेद, उपनिषद और गीता की जन्म कथा👈👈

👉👉मानव योनि सर्वश्रेष्ठ क्यों??  👈👈

👉👉धर्म क्या??  👈👈

👉👉सत्य की विवेचना 👈👈

 

यहां देखें। गाय  त्री । यानि तीन गायन मतलब लेखन। नाम पडा गायत्री। ऋग्वेद छंद के रूप में पद्य है। बाकी गद्य। इन वेदों से वेद महावाक्य व मानव रूप का उद्देश्य मिलता है। अर्थ, काम, धर्म व मोक्ष। 

 


इन वेदों को सत्य मानकर जिन शोधकर्ताओं ने शोध किया एक तरह से पीएचडी की उनके ग्रंथ उपनिषद कहलाए।  जिन मनीषियों ने वेदों को सीधे-सीधे न मानकर प्रयोग किये फिर वेदों को समझाया। इति सिद्धम्। आपने रेखा गणित में निर्मेय प्रमेय पढी होगी। सिद्ध होने के बाद जो लिखा वह दर्शन कहलाए।  जो कि षट् दर्शन कहलाते हैं उसी में प्रयोग के द्वारा पतंजलि महाराज ने “ योग सूत्र”  की रचना की। जिसमें अष्टांग योग है। 

👉👉क्या है षट्दर्शन और भारत का ज्ञान  👈👈


यदि हम वेदों को गोशाला मानें तो उसके अंदर रहनेवाली गाय हैं उपनिषद। गायों के दूध के रूप में श्रीमद भगवत गीता और दूध के अंदर से निकला हुआ मक्खन रामचरितमानस है।  रामचरितमानस से अच्छी गीता की कोई व्याख्या नहीं हो सकती गीता ने संकेतों में बात किया है लेकिन रामचरितमानस में उदाहरण के साथ चरित्र के रूप में समझाया गया है।  वही षड्दर्शन को नंदी मान सकते हैं और पुराने को हम बछड़े।

 

प्रश्न 26: योगी की पहचान क्या है???

आपको योग हो गया यह कैसे मालूम पड़ेगा आपको और दूसरों को???

अगले अंक की प्रतीक्षा !!

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 5👈👈

👉👉संक्षेप में ब्रह्मज्ञान क्या है?? भाग 1  👈👈

👉👉संक्षिप्त ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 2 ! 👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 3 👈👈

 


आप चाहें तो ब्लाग को सबक्राइब / फालो कर दें। जिससे आपको जब कभी लेख डालूं तो सूचना मिलती रहे।


जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥

 
मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य की पूरी जानकारी हेतु नीचें दिये लिंक पर जाकर सब कुछ एक बार पढ ले।
 
मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या) 
जय गुरुदेव जय महाकाली।

संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 3 / brahm gyan kaya khand 3

संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 3

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 

👉👉लेख में सुधार और लिंक जुडते रहेगें👈👈

प्रश्न 21. जब योग का एक वाक्य अर्थ तो इतने योग क्यों???

कहीं नाद तो कहीं सहज तो कहीं शब्द कहीं भक्ति कहीं ज्ञान कहीं कर्म??? 

👉👉लेख लिंक: अंतर्मुखी बनाम योग 👈👈

👉👉लेख लिंक: अंतर्मुखी होने की विधियां 👈👈

👉👉लेख लिंक: योग की वास्तविकता और विभिन्न गलत धारणायें 👈👈

 

 
योग का एक ही अर्थ है।

यूं समझें आपको दिल्ली जाना है। मार्ग अलग, कहीं वायु यान कहीं रेलगाडी कहीं सडक कही अपना वाहन

अब सबकी गति और समय अलग। लेकिन आप किस शहर में उसकी दिल्ली से दूरी भी समय के हिसाब से महत्वपूर्ण है।

बस यही समझें।

योग की अनुभूति हेतु आपका साधन

फिर आपकी लगन

फिर आपका मार्ग

आपकी खुद की अवस्था

आप किस परम्परा के हैं। नहीं तो आप नवधा भक्ति के मार्ग या हठयोग मार्गी हैं।

आपके मार्ग का नाम जिसके द्वारा आप अंतर्मुखी होते हैं। उस पद्दति के नाम के आगे योग लगा कर मार्ग का नाम लिख दिया जाता है। 

 

👉👉लेख लिंक  अंतर्मुखी होने की विधियां👈👈


जैसे त्राटक नेत्र मार्ग इस पर ब्रम्हाकुमारी वाले पर यह बात मूर्खतापूर्ण कि हम ही सही बाकी गलत और बहुत सी बातों का श्रुति यानि वेद उपनिषद से न मिलना। यह सिद्ध करता है कि यह अपरिपूर्ण और पूर्वाग्रहित मार्ग। जैसे यह जीवित गुरू नहीं मानते। काम को गलत मानकर पति पत्नि को भाई बहन बना देते हैं। जिस कारण मनुष्य काम के संस्कार न भोग कर उस ऊर्जा को नहीं सम्भाल पाता है और पागल हो जाता है। इस मत ने दुनिया में सबसे अधिक मस्तिष्क रोगी बना दिये।

कुण्डलनी मार्ग को चक्र को नहीं मानते जो सीधे सीधे गीताज्ञान पर प्रहार है। 

 


कान मार्ग जैसे शब्द योग राधास्वामी मत। यह शब्द देकर बाकी को गलत बताकर शिष्य को रोक देते हैं मात्र गुरूभक्ति सिखाते हैं जो बेहद आपत्तिपूर्ण है। फिर भी यह ब्रह्माकुमारी से बेहतर। 

 


नासिका मार्ग़ जैसे विपश्यना अथवा प्रेक्षाध्यान। निराकार कुछ सीमा तक चार्वाक पर यह गीतानुसार है। किंतु यह पूर्वाग्रही नहीं। 

 


मुख मार्ग जैसे मंत्र जप। यह सबसे प्रचलित मार्ग और मेरे अनुसार सबसे सरल सुगम और टिकाऊ मार्ग। पर कौन सा मन्त्र जो विभिन्न समय लेता है। समर्थ गुरू मंत्र, बीज मंत्र सिद्ध मंत्र प्रचलित मंत्र किसी विशेष प्रयोजन हेतु निर्मित मंत्र। 


 

इसमें भी रामपाल मार्गी। यह बात मूर्खतापूर्ण कि हम ही सही बाकी गलत और बहुत सी बातों का श्रुति यानि वेद उपनिषद से न मिलना। यह सिद्ध करता है कि यह अपरिपूर्ण और पूर्वाग्रहित मार्ग। यह विभिन्न मार्ग के मंत्र देकर बाकी को गलत बताकर शिष्य को रोक देते हैं मात्र अपनी भक्ति सिखाते हैं जो बेहद आपत्तिपूर्ण है। बिल्कुल ब्रह्माकुमारी की तरह शिष्य स्वतंत्र नहीं। 

 👉👉कबीर से साक्षात्कार👈👈

 

यह सारे मार्ग अंतर्मुखी करने हेतु शिष्य से प्रयास करवाते हैं। 

 

मेरे अनुसार सर्वश्रेष्ठ मार्ग शक्तिपात और क्रिया योग मार्ग। यह दोनो लुप्त मार्ग सप्तऋषियों द्वारा पुन: प्रकाश में लाये गये। 

 

 

शक्तिपात मार्ग सीधे मोक्ष यानि निर्वाण हेतु। क्रियायोग सिद्धि हेतु श्रम और प्रयास।

शक्तिपात कुण्डलनी जागरण कर अपने संस्कारों को क्षीण कर स्वचलित मार्ग वहीं क्रिया योग सत्वगुणी कर्म कर सत्वगुणी संस्कार संचित कर सिद्धियों हेतु प्रेरण मार्ग। शक्तिपात में सिद्धि मिले न मिले कोई लालसा नहीं।
वैसे सिद्धियां मारग की बडी रूकावट होती हैं।

 👉👉आखिर क्या होती है शक्तिपात योग दीक्षा👈👈

 👉👉क्या होता है शक्तिपात👈👈   

👉👉क्या है क्रिया योग 👈👈

 👉👉क्रिया योग बनाम शक्तिपात👈👈

👉👉 शक्तिपात या दैवीय शक्ति संक्रमण👈👈

👉👉क्रिया व योग या क्रिया योग  👈👈

👉👉शक्तिपात में क्रिया क्या होती है  👈👈

 

सत्गुण में सबसे अच्छी बात यह तमो और रजो को मारकर समय आने पर खुद को विलीन कर मार्ग प्रशस्त कर देता है।

इन दोनों मार्ग में कोई बंधन नहीं साकार निराकार सगुण निर्गुण का विवाद और बात नहीं। यह सभी मार्गों का ज्ञान दे देता है। इसलिये मैं इन दोनों को आज के युग के सर्वश्रेष्ठ मार्ग मानता हूं। 

 

 

बिना गुरूवालों हेतु अपने इष्ट का सतत निरन्तर और निर्बाध मंत्र जप। जो गुरू से लेकर ज्ञान तक। सिद्धियों से लेकर निरवाण तक। साकार से लेकर निराकार तक श्रुति अनुसार चलकर अपने आप पहुंचाने की क्षमता रखता है। बस अनुष्ठानिक मंत्र जप में बडे नाटक और सीमायें होती हैं। 

 

👉👉 मन्त्र जप की अवस्थायें👈👈

👉👉शाबर मंत्र और महत्व  👈👈

 

प्रश्न 22: ओशो पर क्या विचार ???  

 

ओशो एक ज्ञानी योगी थे। किंतु उनका व्यवहारिक जगत में ज्ञान देना त्रुटिपूर्ण हो गया। जिस कारण सनातन की क्षति के साथ समाज में बदचलनी को सहमति मिल गई। इस कारण मैं ओशो को ज्ञानी पापी मानता हूं रावण की तरह। 

 

👉👉 क्यों मानता हूं ओशो को पापी👈👈 

 


प्रश्न 22: क्या हर मनुष्य का एक ही मार्ग या मन्त्र नहीं हो सकता??? 

 

कदापि नहीं। क्योंकि किसी जन्म में कुछ प्राप्त करना हमारे पूर्व जन्मों की अराधनाओं साधनाओं और गुरू की शक्ति पर निर्भर करता है। अत: जैसे हर रोग की अलग दवा वैसे ही हर मानव के लिये अलग मार्ग। 

 


प्रश्न 23: फिर गीता में सिर्फ भक्ति कर्म ज्ञान और राजयोग के साथ सांख्य योग की बात की है। 

 

योग यानि वेद महावाक्य की अनुभूति। जो अलग अलग स्वाद की दिखती है पर है वहीं! जो सार वाक्य समझाता है। सार वाक्य की अनुभूति नहीं होती है यह अभ्यास के द्वारा और वेद महावाक्य की अनूभुतियों के कारण स्वप्रकाशित होता है। 

 

भक्तियोग का मार्ग नवधा है। जो द्वैत से आरम्भ होती है यह मार्ग बेहद आनन्दायक और रस पूर्ण है। प्रेमाश्रु के द्वारा हम वास्तविक रूप में विरह और प्रेम को समझ पातें हैं वहीं राम रस के कारण नशे के बारे में जान पाते हैं। फिर जब द्वैत से अद्वैत का अनुभव होता है तो ज्ञान हो जाता है। और फिर अपने आप कर्म निष्कामता को प्राप्तकर कर्मयोग समझा देते हैं। 

 

वास्तव में भक्तियोग और गृहस्थ जीवन का अनुभव की जगत और ब्रह्म का पूर्ण ज्ञान समझा सकता है।

गृहस्थ तो सन्यासी या ब्रह्मचारी क्या??? 

 

हमारे सनातन के लगभग हर ऋषि की गृहस्थी थी। वह तो बाद में सनातन के प्रचार और रक्षा हेतु सन्यास और ब्रह्मचारी धर्म ध्वजा वाहक बने। 

 

आप देखें आदि शंकर को मंडन मिश्रा की पत्नि से शास्त्रार्थ जीतने के लिये परकाया प्रवेश सिद्धि द्वारा एक राजा के शरीर में चार माह तक रहकर काम शास्त्र को सीखना पडा। जो आजीवन ब्रह्मचारी नहीं जान पाता मतलब अपूर्ण ज्ञान। वहीं सन्यासी को बेहद कठिन बंधनों में रहकर जीवन व्यवतीत करना पडता है। साथ ही यदि कभी काम संस्कार उदित हुये तो फिसलने का डर। 

 

कुछ इसी प्रकार मात्र निराकार के द्वारा योग अनुभव अधूरा क्योकिं उसको साकार मार्ग का ज्ञान नहीं। 

 

मात्र  द्वैत से अद्वैत या साकार से निराकार का मार्ग ही अनुभव पूर्ण ज्ञान दे सकता है। जो शक्तिपात और क्रियायोग में मिलते हैं और भक्ति मार्ग से सहज प्राप्त हो सकते हैं। 

 

 

प्रश्न 24: फिर अष्टांग योग क्या है???

अगले अंक की प्रतीक्षा !!

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 2👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 3👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!! खंड 4👈👈

 

आप चाहें तो ब्लाग को सबक्राइब / फालो कर दें। जिससे आपको जब कभी लेख डालूं तो सूचना मिलती रहे।


जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥

 
मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य की पूरी जानकारी हेतु नीचें दिये लिंक पर जाकर सब कुछ एक बार पढ ले।
 
मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या) 
जय गुरुदेव जय महाकाली।

 

 

 


जय गुरूदेव। जय मां काली॥



Monday, October 26, 2020

संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! ! खंड 2 / brahm gyan kaya khand 2

 

संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 2 

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"


👉👉संक्षेप में ब्रह्मज्ञान क्या है?? भाग 1  👈👈

 👉👉लेख में सुधार और लिंक जुडते रहेगें👈👈

 

20. कोटि देवता के बारे में और बतायें??

मतलब प्रकार ?? 

जी यह विभिन्न रूप में शक्तियां के प्रकार है जो सृष्टि को चलाते हैं!

 

इनके नामों का क्रम विभिन्न पुराणों में अलग भी हो सकता है और कहीं कहीं नाम भी। 

 

12 आदित्य यानि वह जो निर्माण करतीं हैं।  आदित्य यानि इस नक्षत्र मंडल का सूर्य जो जीवन दाता है अत: आदित्य कहते हैं पर यह वाला सूर्य मात्र एक उदाहरण है और जो मात्र इस नक्षत्र नंडल से ही सम्बंधित है। मनुष्य को समझाने के लिये मात्र शब्द जो यह बताये कि वह शक्तियां जो इस सृष्टि का निर्माण करें। 

 

इन्द्र: यह प्रथम रूप आदित्य है।  यह देवाधिपति इन्द्र को दर्शाता है। देवों के राज के रूप में आदित्य स्वरूप हैं। इनकी शक्ति असीम हैं इन्द्रियों पर इनका अधिकार है।  विकार रूपी शत्रुओं का दमन और सत्वगुणों की रक्षा का भार इन्हीं पर है। वहीं रजो और तमोगुण द्वारा मनुष्य की बुद्धि हर लेना। 

 

धाता : दूसरे आदित्य हैं जिन्हें श्री विग्रह के रूप में जाना जाता है। यह प्रजापति के रूप में जाने जाते हैं जन समुदाय की सृष्टि में इन्हीं का योगदान है, सामाजिक नियमों का पालन ध्यान इनका कर्तव्य रहता है।  इन्हें सृष्टि कर्ता भी कहा जाता है। इनका काम सृष्टि का शासन और निर्माण है। 

 

पर्जन्य:  तीसरे आदित्य का नाम पर्जन्य है।  यह मेघ शक्ति जो ह्मारे बाहर और भीतर होती है। वर्षा के होने तथा किरणों के प्रभाव से मेघों का जल बाहर बरसता है। उसी भांति हमारे भीतर अश्रु। 

 

त्वष्टा: आदित्यों में चौथा नाम श्री त्वष्टा का आता है।  इनका निवास स्थान वनस्पति में हैं पेड़ पोधों में यही व्याप्त हैं औषधियों में निवास करने वाले हैं। अपने तेज से प्रकृति की वनस्पति में तेज व्याप्त है जिसके द्वारा जीवन को आधार प्राप्त होता है। मतलब सृष्टि की वनस्पतियों का निर्माण। 

 

पूषा: पांचवें आदित्य पूषा हैं जिनका निवास अन्न में होता है। समस्त प्रकार के धान्यों में यह विराजमान हैं। इन्हीं के द्वारा अन्न में पौष्टिकता एवं उर्जा आती है।  अनाज में जो भी स्वाद और रस मौजूद होता है वह इन्हीं के तेज से आता है। यानि हमारे अन्नमय होष में भोजन पचकर जो रस निकलता है जो हमें ऊर्जा देता है और संग्रहित करता है। वह रस की शक्ति। 

 

अर्यमा: आदित्य का छठा रूप अर्यमा नाम से जाना जाता है।  यह वायु रूप में प्राणशक्ति का संचार करती हैं। चराचर जगत की जीवन शक्ति हैं।  यानि प्रकृति की आत्मा रूप में निवास करते हैं। 

 

भग: सातवें आदित्य हैं भग, प्राणियों की देह में अंग रूप में विध्यमान हैं।  यह शरीर में चेतना, उर्जा शक्ति, काम शक्ति तथा जीवंतता की अभिव्यक्ति करनेवाली शक्ति है। 

 

विवस्वान: आठवें आदित्य हैं विवस्वान हैं। यह अग्नि देव हैं यानि सृष्टि को चलाने हेतु ऊर्जा। कृषि और फलों का पाचन, प्राणियों द्वारा खाए गए भोजन का पाचन इसी के द्वारा होता है। 

 

विष्णु: नवें आदित्य हैं विष्णु, दुर्गुणों का संहार करते हैं मानव शरीर में वहीं पृकति में बुरी शक्तियों का विनाश कर बचाते हैं। देवताओं के शत्रुओं का संहार करने वाले देव विष्णु हैं।  संसार के समस्त कष्टों से मुक्ति कराने वाले हैं। 

 

अंशुमान: वायु रूप में जो प्राण तत्व बनकर देह में विराजमान है वहीं दसवें आदित्य अंशुमान हैं।  इन्हीं से जीवन सजग और तेज पूर्ण रहता है। जल का महत्व तो आप जानते हैं हमारे अंदर और बाहर।  

 

वरूण: जल तत्व का प्रतीक हैं वरूण देव।  जल का महत्व तो आप जानते हैं। 

 

मित्र: बारहवें आदित्य हैं मित्र. विश्व के कल्याण हेतु तत्पर। 

 

11 रुद्र यानि रौद्र यानि विनाश हेतु शक्तियां। बिना विनाश सृष्टि नहीं चल सकती पर यह निर्माण से एक कम हैं। क्योकिं विनाश का काम निर्माण से कुछ कम  होगा तब ही सृष्टि चल पायेगी। 

 

यद्यपि वेदों में रुद्र को मात्र एक ही बताया है और शिव रूप बताया है पर यहां वैज्ञानिक रूप में समझाने हेतु विनाशक शक्तियों का पुंज जो कल्याणकारी ही होता है। इसको आप इको साइकिल से समझ सकते हैं। यहां आप यह समझे एक चक्र को इंद्र शक्ति निर्मित कर रही है। और रुद्र नष्ट। 

 

एकादश रुद्र का विवरण सर्वप्रथम महाभारत में मिलता है। तत्पश्चात् अनेक पुराणों में एकादश रुद्र के नाम मिलते हैं, परन्तु सर्वत्र एकरूपता नहीं है। अनेक नामों में भिन्नता मिलती है। बहुस्वीकृत नाम इस प्रकार हैं।

 

1.    हर-रुद्र : वह जो किसी सृष्टि को विनाश कर सकता है।

2.    बहुरूप: वह कोई भी रूप धरकर प्रकट होकर विनाश करता है।

3.    महामृत्युंजय मंत्र जो यजुर्वेद में है वहां यह शब्द है जिसका अर्थ तीन नेत्रवाले यानि साकार से चला जाता है। निराकार अर्थ तीनो काल मतलब जन्म पोषण और मृत्यु के आयामों का दृष्टा जो देखता है और विनाश करता है।

4.    अपराजित-रुद्र् : विनाश को कोई नहीं रोक सकता यह शाश्वत है।

5.    वृषाकपि : जो वृष के समान कल्याणकारी कपि के समान बलशाली। ब्रह्म पुराण के अनुसार भगवान शिव और श्री हरि विष्णु दोनों ने एक ही शरीर में अंशावतार लिया था, जिसका नाम वृषाकपि था और उस दिव्यपुरुष ने पाताललोक मे जाकर दैत्यराज महाशनि का वध किया जो वृषाकपि के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मतलब यह शक्ति निर्माण और विनाश दोनों करती है।

6.    शम्भु : ‘शम्भू’, यह शब्द अपभ्रंश है। इसका मूल शब्द है ‘स्वयंभू’। स्वयंभू शब्द का अर्थ है ‘जो स्वयं उत्पन्न हुआ हो’। अर्थात् जो स्वयं उत्पन्न हुआ या प्रकट हुआ हो। तं संप्रश्नं भुवना यन्त्यन्या । ऋग्वेद १०/८२/३। नम: शम्भवाय च मयोभवाय च नम: शंकराय च मयस्कराय च नम: शिवाय च शिवतराय च । यजुर्वेद १६/४१ । सभी संज्ञा-विशेषणों का अर्थ कल्याणकर है । यही शिव शम्भु का स्वरूप है । ‘शम्भु’ शम्भव का ही तद्भव रूप मानना योग्य प्रतीत होता है । आमतौर पर यह शब्द भगवान् शिव के लिए प्रयुक्त होता है।

7.    कपर्दी: सामान्य भाषा में कपर्दी उसे कहा जाता है जिसके सिर पर बालों की जटाएं हों। कपर्दी का अर्थ इस प्रकार किया जा सकता है कि जो कपः, कम्पन दे। जब हम कोई स्वादिष्ट भोजन करते हैं तो हमारी देह के कोशों में कहीं कम्पन उत्पन्न होता है । आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार इससे हमारे शरीर में बहुत से हारमोन स्रवित होते हैं। भोजन से प्राप्त स्वाद से उत्पन्न होने वाला कम्पन क्षणिक होता है। ऋग्वेद की ६ ऋचाओं में कपर्दी अथवा कपर्द शब्द प्रकट हुआ है।  

8.    रैवत: पृथ्वी पर के जल से निकली हुई वह भाप जो घनी होकर आकाश में फैल जाती है और जिससे पानी बरसता है। यह भी विनाश करता है यदा कदा। यानि बाढ।

9.    मृगव्याध : वेशभूषा का नाम और अर्जुन के साथ युद्ध में यह रूप धारण किया।

10.    शर्व: शर्व नाम का मतलब देवी दुर्गा, देवी पार्वती होता है। मतलब वह शक्ति जो मनुष्य / सृष्टि को स्वयं का विनाश करने को प्रेरित करती है। कहीं कहीं शर्भ लिखा है। यह वह अवतार विनाश शक्ति जो नृसिंह अवतार  को शांत करने हेतु प्रकट हुई थी। इसने नृसिंह को हराकर उनका क्रोध शांत किया था।

11.    कपाली: शमशान विहारिणी शक्ति


मतलब आप आज के समय में यह समझे विनाशक शक्ति कोरोना का अवतार या रूप बनाकर आपको मारने का प्रयास कर रही है। ऐसे तमाम नाम से विभिन्न रोगाणु आपका विनाश करने को तैयार रहते हैं। विज्ञान के अनुसार इस समय सृष्टि संतुलन हेतु आवश्यक 24 चक्रों में मात्र 10 ही शुद्ध है 14 प्रदूषित होकर खंडित हो चुके हैं। 

 

आठ वासुदेव: अष्टांग का शाब्दिक अर्थ है - अष्ट अंग या आठ अंग। भारतीय संस्कृति में यह कई सन्दर्भों में आता है-

 

योग की क्रिया के आठ भेद — यम, नियम, आसन प्राणायम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि।

आयुर्वेद के आठ विभाग - शल्य, शालाक्य, कायचिकित्सा, भूतविद्या, कौमारभृत्य, अगदतंत्र, रसायनतंत्र और वाजीकरण।शरीर के आठ अंग — जानु, पद, हाथ, उर, शिर, वचन, दृष्टि, बुद्धि, जिनसे प्रणाम करने का विधान है। आठ अंगों का उपयोग करते हुए प्रणाम करने को साष्टांग दण्डवत कहते हैं।

अर्घविशेष जो सूर्य को दिया जाता है। इसमें जल, क्षीर, कुशाग्र, घी, मधु, दही, रक्त चंदन और करवीर होते हैं।

 

आत्म उद्धार अथवा आत्मसमर्पण की रीतियों के अन्दर "अष्टांग प्रणिपात" भी एक है; जिसका अर्थ है - (१) आठों अंगों से पेट के बल गुरु या देवता के प्रसन्नार्थ सामने लेट जाना (अष्टंग दण्डवत), (२) इसी रूप में पुन: लेटते हुये एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना। इसके अनुसार किसी पवित्र वस्तु की परिक्रमा करना या दण्डवत प्रणाम करना भी माना जाता है। अष्टांग परिक्रमा बहुत पुण्यदायिनी मानी जाती है। साधारण जन इसको दंडौती देना कहते है। इसका विवरण इस प्रकार से है:-"उरसा शिरसा दृष्टया मनसा वचसा तथा, पदभ्यां कराभ्यां जानुभ्यां प्रणामोऽष्टांग उच्च्यते" (छाती मस्तक नेत्र मन वचन पैर जंघा और हाथ इन आठ अंगो के झुकाने से अष्टांग प्रणाम कियी जाता है।

 

वहीं कृष्ण के पिता वासुदेव: मतलब देखें। कृष्ण के जीवन में आठ अंक का अजब संयोग है। उनका जन्म आठवें मनु के काल में अष्टमी के दिन वासुदेव के आठवें पुत्र के रूप में जन्म हुआ था। उनकी आठ सखियां, आठ पत्नियां, आठ मित्र और आठ शत्रु थे। इस तरह उनके जीवन में आठ अंक का बहुत संयोग है।

 

वहीं आपके आठ अंगों की शक्तियां यहां कही जा सकतीं है आठ वासुदेव। 

 

दो अश्वनी कुमार:  अश्विनी देव से उत्पन्न होने के कारण इनका नाम अश्‍विनी कुमार रखा गया। इन्हें सूर्य का औरस पुत्र भी कहा जाता है। ये मूल रूप से चिकित्सक थे। ये कुल दो हैं। एक का नाम 'नासत्य' और दूसरे का नाम 'द्स्त्र' है।

 

इनका संबंध रात्रि और दिवस के संधिकाल से ऋग्वेद ने किया है। उनकी स्तुति ऋग्वेद की अनेक ऋचाओं में की गई है। वे कुमारियों को पति, वृद्धों को तारुण्य, अंधों को नेत्र देने वाले कहे गए हैं।

 

उषा के पहले ये रथारूढ़ होकर आकाश में भ्रमण करते हैं और इसी कारण उनको सूर्य पुत्र मान लिया गया। निरुक्तकार इन्हें 'स्वर्ग और पृथ्वी' और 'दिन और रात' के प्रतीक कहते हैं। चिकित्सक होने के कारण इन्हें देवताओं का यज्ञ भाग प्राप्त न था। च्यवन ने इन्द्र से इनके लिए संस्तुति कर इन्हें यज्ञ भाग दिलाया था।

 

दोनों कुमारों ने राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या के पतिव्रत से प्रसन्न होकर महर्षि च्यवन का इन्होंने वृद्धावस्था में ही कायाकल्प कर उन्हें चिर-यौवन प्रदान किया था। इन्होंने ही दधीचि ऋषि के सिर को फिर से जोड़ दिया था। कहते हैं कि दधीचि से मधु-विद्या सीखने के लिए इन्होंने उनका सिर काटकर अलग रख दिया था और उनके धड़ पर घोड़े का सिर रख दिया था और तब उनसे मधुविद्या सीखी थी।

 

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 2👈👈


👉👉 संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 1 👈👈
👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 3👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!! खंड 4👈👈

आप चाहें तो ब्लाग को सबक्राइब / फालो कर दें। जिससे आपको जब कभी लेख डालूं तो सूचना मिलती रहे।


जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥

 
मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य की पूरी जानकारी हेतु नीचें दिये लिंक पर जाकर सब कुछ एक बार पढ ले।
 
मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या) 
जय गुरुदेव जय महाकाली।

 



जय गुरूदेव। जय मां काली॥


 गुरु की क्या पहचान है? आर्य टीवी से साभार गुरु कैसा हो ! गुरु की क्या पहचान है? यह प्रश्न हर धार्मिक मनुष्य के दिमाग में घूमता रहता है। क...