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Monday, November 9, 2020

सम्पूर्ण आध्यात्मिकता का मूल क्या है ??

सम्पूर्ण आध्यात्मिकता का मूल क्या है ??

क्या खोज रहा है इंसान ??

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी


मनुष्य का मूल रूप आनंद है जाने अनजाने में मनुष्य इसी आनंद के लिए सारे क्रियाकलाप करता है और जब वह आत्म तत्व में स्थित हो जाता है तब उसको स्थाई आनंद की प्राप्ति हो जाती है और वह आत्माराम बन जाता है।

आध्यात्मिकता का मूल यदि हम ध्यान से देखें तो वेदों के अनुसार वेद महावाक्यों के अनुभव के बाद हमें अपना मूल रूप मूल स्वरूप मालूम पड़ता है और हमें यह मालूम पड़ जाता है कि हमारा मूल रूप ब्रह्म है।


लेकिन भौतिक जगत में जाने अनजाने में आदमी अपनी मृत्यु की तैयारी कर रहा है क्योंकि हर सांस के साथ मृत्यु हमारे नजदीक आती जा रही है और मृत्यु के समय हमारे भाव हमारे अगले जन्म की तैयारी करेंगे।


यह हम अच्छी तरीके से जानते हैं की मानव शरीर सबसे अधिक शक्तिशाली होता है क्योंकि यह पांच तत्वों से निर्मित होता है और जब उसमें से जल और भूमि तत्व निकल जाते हैं तो मनुष्य की मृत्यु हो जाती है लेकिन वह 3 तत्व दो जोकि अग्नि वायु और आकाश यह सूक्ष्म शरीर में विद्यमान रहते हैं और हमारे भौतिक जगत के कर्मों के फल भोंगते हैं। उसी के अनुसार स्वर्ग नरक पाताल इत्यादि लोगों में भ्रमण करते हैं। जो मनुष्य शांति के साथ शरीर त्यागते हैं उनके अंदर तो अग्नि तत्व भी नष्ट हो जाता है मात्र वायु और आकाश तत्व रहते हैं। और आकाश तत्व में जिसे हम भाव शरीर कारण शरीर कहते हैं उसके कारण हमारा सूक्ष्मख शरीर बनता है और फिर यह भौतिक शरीर।


जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥



मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य की पूरी जानकारी हेतु नीचें दिये लिंक पर जाकर सब कुछ एक बार पढ ले।
 
मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या) 
जय गुरुदेव जय महाकाली।

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अपने आध्यात्मिक अनुभव क्यों न बताएं।

 अपने आध्यात्मिक अनुभव क्यों न बताएं।

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी


अक्सर गुरु लोग मना करते रहते कि आप अपने अनुभव दुनिया को मत बताइए मैं इस बात से सहमत नहीं हूं क्योंकि यह बात सबके लिए लागू नहीं होती।
उनका यह कहना होता है कि अनुभव बताने से अपनी अनुभव बंद हो जाते हैं और शक्ति का ह्वास होता है।



यहां पर मैं करना चाहता हूं जो अनुभव मेरे है ही नहीं यह सब ईश्वर की कृपा से होते हैं गुरु कृपा से होते हैं यह उन्हीं की देन है तो इस पर मेरा क्या अधिकार क्योंकि जब मैं कुछ हूं ही नहीं तो किस पर अपना अधिकार दिखाया जाए।
उसने अनुभव दिए उसकी मर्जी अनुभव नहीं दिए उसकी मर्जी अपना है क्या जो हम समेट के रखे।



उसकी मर्जी रहेगी वह और देगा नहीं होगी नहीं देगा अपने क्या बिगड़ा।
लेकिन एक बात यह समझने की है कि यदि आपके अंदर अपरिपक्वता है।  आप को गुरु चेले के चक्कर मैं आकर दुकान खोलनी है। इसके बदले में जगत से कुछ लेना चाहते हैं तो मत बताइए।



यदि केवल और केवल जगत का कल्याण चाहते हैं मेश बताना चाहिए क्योंकि यदि आप किसी मूर्ख को अनुभव बताएंगे तो वह समझेगा नहीं नास्तिक या शठ आपकी मजाक बनाएगा और जो आस्तिक है वह आपका और अधिक सम्मान करने लगेगा या अन्य लोग जगत के आपसे कुछ हाथ में आने की आस लगाए बैठे रहेगे।



यदि आप इन सब से निपट सकते हैं तो आपको बताना चाहिए।
लेकिन यदि बताते समय आपके अंदर अहंकार का प्रवेश होता है तो नहीं बताना चाहिए।
शायद इसीलिए गुरु लोग मना करते यदि आपको लग रहा है कि मेरे अनुभव है मैं कर रहा हूं तो आप महामूर्ख है आपको अनुभव बिल्कुल नहीं बतानी चाहिए। क्योंकि उससे आपका पतन निश्चित है क्योंकि आपके अंदर कर्ताभिमान आ जाता है।



लेकिन यदि आपके अंदर यह फीलिंग है कि मैं जगत के कल्याण के लिए बताना चाहता हूं जिसको मानना हो माने न मानना ज्ञो न माने अपना क्या क्योंकि अपना कुछ है ही नहीं सब उसकी मर्जी। तब आप सनातन की सेवा में आकर अपने अनुभव जगत को बताइए जिससे कि लोग सनातन की ओर प्रेरित हूं और आप हिंदुत्व की सही व्याख्या कर सकें।


जय गुरुदेव जय महाकाली



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Sunday, November 8, 2020

संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 7 " जब सब भगवान करता है तो पापी इंसान क्यों ???

अनुत्तरित प्रश्न का उत्तर: इसका उत्तर कही नहीं मिलेगा 

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी



33. जब सब भगवान करता है तो पापी इंसान क्यों ??? 


यह बात तर्कों के हिसाब से बिल्कुल सही है कि जब सब काम ईश्वर करता है तो मनुष्य पाप क्यों करता है वह सच्चाई के रास्ते पर क्यों नहीं चलता है।



इस प्रश्न का उत्तर आपको शायद ही कोई संत या गुरु दे पाए नेट पर तो यह कहीं नहीं दिया है और ना ही किसी शास्त्र में कहा गया है।


इस प्रश्न के उत्तर मेरे गुरुदेव और मां काली की कृपा से ही प्राप्त हुआ है जोकि मुझे एक तरीके से आभासी चित्र दिखाकर आत्म गुरु ने समझाया।


यह तो हम सभी जानते हैं वह ब्रह्म न किसी का मित्र है न किसी का शत्रु है हर मनुष्य अपने कर्म के हिसाब से कर्मफल पैदा करके उसको भोगता है और उसी के हिसाब से जन्म लेता है। जिसमें उसके कर्मफल संस्कार के रूप में या प्रारब्ध के रूप में भोगने के लिए बाध्य करते हैं।


यह हम सभी जानते हैं कि मनुष्य जब पैदा होता है तब अपने प्रारब्ध  लेकर पैदा होता है। 
हमको अपने कर्म फल तो भोगना ही पड़ेगा  लेकिन भक्ति के द्वारा हमको उनको सहने की क्षमता प्राप्त हो जाती है और कभी कभी उनका प्रभाव फैल जाता है। हम अपनी साधना के द्वारा कर्म फल को आगे तो बढ़ा सकते हैं लेकिन हम उसको नष्ट नहीं कर सकते।
आपने पितामह भीष्म की कथा तो सुनी ही होगी।



जब मनुष्य की योनि का निर्माण हुआ तब विष्णु पुराण के अनुसार नर और नारायण का अवतार हुआ यानी उस ब्रह्म ने जो निराकार था उसने एक रूप नर का बनाया और एक नारायण का बनाया। दोनों बराबर शक्तिशाली थे और दोनों के बीच में युद्ध तक हुआ| 


नारायण को काम दिया गया सृष्टि को चलाने का नर को काम दिया गया सृष्टि को बढ़ाने का एक माध्यम बनेगा।



इसके लिए नारायण ने नर की एक हड्डी से स्त्री का निर्माण किया यह विज्ञान के हिसाब से भी सही है क्योंकि एक्स और वाई क्रोमोसोम पुरुष में ही होते हैं स्त्री में खाली एक्स ही होता है।



जब नर ने नारायण से बात की ब्रह्म से पूछा तो ब्रह्म ने कहा कि तुम अब इस खाली पड़ी हुई सृष्टि में मानव का निर्माण करो इसके लिए यह स्त्री दी गई है और इसी के साथ नारायण ने रजोगुण में क्षणिक आनंद भी भर दिया। 


नर ने जब सृष्टि के निर्माण हेतु स्त्री से संपर्क किया तो उसको वह क्षणिक आनंद अत्यंत सुखदाई लगा अगली बार वह सृष्टि के निर्माण हेतु नहीं बल्कि उस आनंद की पुनरावृत्ति हेतु स्त्री के पास गया इस प्रकार वह अपने संस्कार संचित करता गया साथ ही उसके अंदर करतापन की भावना आई कि मैं आनन्द लेना चाहता हूं। इसलिए इस तरीके से वह अपना नारायण स्वरूप खो चुका था।



तो नारायण ने कहा भाई तुमको एक जन्म और दे देता हूं तुम अपने को शुद्ध कर लो अपने को संस्कार विहीन कर लो। नारायण ने नर को एक जन्म और दे दिया लेकिन नर उस जन्म में भी रजोगुण हेतु अपने आप जीवन नष्ट कर दिया।



धीरे धीरे आनंद देने की प्रवृत्ति के कारण तमोगुण भी पैदा हो गए। मतलब लड़ाई झगड़े दंगे फसाद इस प्रकार मनुष्य अपने नारायण स्वरूप से हर जन्म में धीरे-धीरे अलग होता गया।



आप देखेंगे इस धरती पर जितने भी युद्ध हुए हैं नरसंहार हुए हैं वह सब रजोगुण के कारण ही हुए हैं। जर और जोरू के कारण। आज भी काफिर की औरत के साथ कुछ भी करो। एक वर्ग ईश्वर के नाम यह कहता है। पुस्तक में लिखा है। रजोगुण एक बड़ा कारण है अपराध होने का।


👉👉 संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 1 👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 2👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 3👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!! खंड 4👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 5👈👈

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Friday, November 6, 2020

संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 6 / brahm gyan kaya khand 6

संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 6

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"



28. प्रश्न है जब हर एक चीज़ पहले से ही नियत है कि वही होना है जो लिखा है तब हमारी मुक्ति किस तरह सुनिश्चित हो सकती है यदि पहले से ही मुक्ति लिखी है तो अपने आप ही उक्त कर्म भी होंगे ही यदि मुक्ति नही लिखी है तो हम चाहते हुए भी कर्म नही कर सकते है अतः इसमे प्रकाश डालने की कृपा करें?? 



कर्म मानव से बंधे हुए हैं ! और उन्ही कर्मो का शुभ अशुभ फल इंसान को भुगतने होते है ! यदि आप सद्कर्मो को अपनाते है तो मुक्ति होनी ही है ! दुर्गुण अपनाते हैं तो मुक्ति तो होती है लेकिन कठिनाई से ! क्योंकि जीवन चक्र कभी रुकता नही है , मरकर पुनर्जन्म लेना यही प्रकृति का नियम है ! लेकिन मन चंचल होता है वह किसी के भी वशीभूत नही है ! इसलिए व्यक्ति चाहकर भी सद्गुणों से दूर हो जाता है !


मनुष्य जब जन्म लेता है तो अपने साथ दो चीजें लेकर आता है पहला प्रारब्ध दूसरा भाग्य। प्रारंभ लभ्यते स:  प्रारब्ध।
मनुष्य अधिक से अधिक 8 वर्ष की आयु तक जो कुछ भी करता है वह अपने प्रारब्ध के अनुसार भोगता है।
उसमें कोई कर्म फल नहीं पैदा होता क्योंकि उसकी अपनी बुद्धि नहीं होती है वह प्रेरित बुद्धि होती है।
दूसरा होता है भाग्य जो मनुष्य स्वयं बना सकता है आप जिस तरीके का बीज बोयेंगे उसी तरीके का पेड़ पैदा होगा।


सृष्टि में ब्रह्म ने एक कंप्यूटर प्रोग्रामिंग कर रखी है जैसा आप कर्म करेंगे वैसे ही फल आपको उपस्थित होकर भोगने पड़ेंगे और यदि आप इस जन्म में उसको नहीं हो पाए तो अगले जन्म में वह प्रारब्ध बनकर उपस्थित होंगे।
इसी कारण कहते हैं कि सब विधना के हाथ। क्योंकि यदि आप गलत काम करके आए हैं तो दंड तो आपको निश्चित है उसी बात यदि आप पुण्य कर्म साधनाएं करके आए हैं उसका फल भी निश्चित है।


इसका कारण यह है मानव का शरीर एक भोग योनि के साथ कर्म करता है और कर्म फल भोगता है कर्म करने की शक्ति सिर्फ और सिर्फ मानव योनि में है।
इसी कारण मुक्ति भी केवल मानव के जन्म से ही संभव है।


29.क्या ये सही है कि हमारी मौत का कारण विधाता पहले ही लिख देता है ??
यह बहुत ही सामान्य किंतु गहन प्रश्न है क्योंकि इसके विषय में कहीं पर भी स्पष्ट नहीं लिखा है।



मेरे अनुसार यदि मनुष्य पूर्व जन्म के प्रारब्ध के अनुसार ही कर्म करता रहता है तो वह एक निश्चित अवधि में अपने सारे कर्म फल भोग कर देह को त्याग कर सकता है और एक गणितीय गणना के अनुसार वह कितने दिनों में संस्कार विहीन होगा और उसके पश्चात निर्वाण प्राप्त करेगा।



लेकिन होता क्या है मनुष्य अपने कर्म जब 8 वर्ष के बाद आरंभ करता है तो वह फिर कर्मफल पैदा कर देते हैं और वह कर्म फल अच्छे भी हो सकते हैं बुरे भी हो सकते हैं जिस कारण उसकी आयु में बढ़ोतरी या घटोतरी हो सकती है।
कभी-कभी दुर्घटनावश यदि किसी की मृत्यु हो जाती है तो भी उसको इतने वर्षों तक किसी विशेष योनि में भटकना पड़ता है।
मतलब यह हुआ आपके कर्म आप के फल को परिवर्तित करते हैं और फिर वह परिवर्तन आपकी मृत्यु को भी परिवर्तित कर सकता है।
अधिकतर देखा गया है कि जो ज्ञानी पुरुष पैदा होते हैं वह 5 साल 7 साल की आयु पर ही अपनी प्रतिभा को दिखाने लगते हैं और बहुत ही कम आयु में देह को त्याग देते हैं जैसे संत  ज्ञानेश्वर 21 वर्ष शंकराचार्य 21 वर्ष विवेकानंद 40 वर्ष कुछ ऐसे ही समझिए।
जितनी लंबी आयु मतलब उतना अधिक आपके ऊपर कर्मफल के संस्कारों का बोझ जिसको काटने के लिए आपको इस मानव देह में लंबे समय तक रहना है।




30. क्या तुरंत मुक्ति सम्भव है यदि मुक्ति सम्भव है तो हम मुक्त हुए या नही इसको किस भांति बताया जा सकता है?? 



अध्यात्म में मनुष्य की पहली पहचान है कि वह कितना अधिक धैर्य धारण कर सकता है।
क्षेत्र में कोई भी कार्य तुरंत नहीं होता है।


हां यदि पुण्य कर्म बहुत अधिक है तो कोई अवतारी पुरुष आशीर्वाद से आपका काम बना दिया लेकिन इसमें भी उसका तप  और उसका सत्य नष्ट होता है।


मेरा तो मानना है कि आप भटके बिल्कुल नहीं यदि आपके गुरु नहीं है तो आप किसी गुरु घंटाल के चक्कर में ना पड़े आप अपने इष्ट का सतत निरंतर निर्बाध मंत्र जप करते रहे श्रद्धा के साथ करते रहे एक ना एक दिन यह मंत्र जब आपको गुरु से लेकर ज्ञान तक भौतिक सुखों से लेकर मोक्ष तक स्वयं ले जाने की क्षमता रखता है।


31. मैं चाहता हु तुरंत वाला आप बताइए कैसे होगा कि बस मैं मान लू की मैं मुक्त हु ओर हो गया अब क्या क्या परिवर्तन होने चाहिए मेरे में या क्या स्थिति होनी चाहिए?? 



देखिए पतंजलि महाराज ने जो वाहिक अंग बताए हैं वे सभी आध्यात्मिक मार्ग हेतु एक से जैसे यम दूसरा नियम।
नियम में आप अपने प्रति क्या व्यवहार करते हैं उसमें एक शब्द आता है स्वाध्याय।
स्वाध्याय के द्वारा आप अपने अंदर आने वाले परिवर्तनों को देख सकते हैं निरीक्षण कर सकते है और उसके अनुसार क्या सुधार करना है यह आप जान सकते इसके अलावा क्या आपके अंदर यम और नियम के जो पांच उप अंग हैं वह धीरे-धीरे प्रविष्ट हो गए कि नहीं यदि यह सब बदलाव आ रहे हैं तो आप सही मार्ग पर जा रहे हैं।
यदि आपके अंदर धीरे-धीरे समत्व का भाव आ रहा है यदि आपके अंदर स्थिरबुद्धि आ रही है आप स्थितप्रज्ञ हो रहे हैं तो निश्चित रूप से आप उन्नति कर रहे हैं।
यदि आपके अंदर निष्काम कर्म की भावना आ रही है और आप अपने कार्य को कुशलतापूर्वक निभा रहे हैं तो निश्चित रूप से आप सही मार्ग पर हैं।


32. आप वैज्ञानिक हैं कृपया मुझे बताइये की आजादी के समय हमारे देश की औसत आयु मात्र 32 वर्ष थी जो आज बढ़ कर 69 वर्ष हो गई है। तो क्या पहले के लोग खराब थे और अब अच्छे हो गए हैं। अमेरिका वगैरा में 87-88 वरष है। तो क्या उनके कर्म बेहतर हैं?? 


यह बिल्कुल सही बात है कारण पहले अकाल मौत बहुत होती थी अभी विज्ञान के द्वारा हमने अपनी भौतिक आयु को बढ़ा लिया है लेकिन मानसिक रूप से हम बहुत अधिक बीमार हो चुके हैं।

हमारे वहां यजुर्वेद भी आयुर्वेद की उत्पत्ति करता है मतलब मनुष्य अपनी आयु को भी बढ़ा सकता है भौतिक रूप से भी और आध्यात्मिक रूप से भी।


।। येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः । ते मृत्युलोके भुवि भारभूता, मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति।।

अर्थ : जिसके पास विद्या, तप, ज्ञान, शील, गुण और धर्म में से कुछ नहीं वह मनुष्य ऐसा जीवन व्यतीत करते हैं जैसे एक मृग।



यहां पर दो चीजें आती है सार्थक और निरर्थक।


33. यदि मान लेते है कि 40 की आयु में मृत्यु होने का तय है व इस बात को नही जानते है तो क्या इंतज़ार करना चाहिए भैया 55 की उम्र तक का बताइए

अगले अंक की प्रतीक्षा !!


👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 2👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!! खंड 4👈👈

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Saturday, October 31, 2020

अब तक प्रकाशित प्रश्न। संक्षिप्त ब्रह्म ज्ञान।खंड 1 से खंड 5 / ab tak prakashit brahm gyan ke prashan

संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 1 से  खंड 5 

(यह प्रश्नोत्तरी शायद कहीं मिले )  


सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 

 

 अब तक प्रकाशित प्रश्न। संक्षिप्त ब्रह्म ज्ञान।खंड 1 

 

👉👉👉 कैसे हुई मेरी मां काली से दीक्षा । कैसे पहुंचा स्वप्नन और ध्यान के माध्यय से अपनी पूर्व जन्म की गुुुरू परम्परा में 👈👈👈



लेख लिंक 👉👉गुरु की क्या पहचान है?👈👈

मित्रों आप नेट पर वीडियो ढूंढकर देखो अथवा किसी प्रसिद्ध गुरू की दुकान में पूछो! सब इधर उधर घुमायेंगें! पर सीधा उत्तर न देंगें ??

वैसे आप चाहें तो और प्रश्न पूछ्कर इस प्रश्नावली को और अधिक सार्थक बनानें में योगदान कर सकते हैं।



लेख लिंक 👉👉गुरू का महत्व और पहिचान👈👈 

 👉👉ब्रह्मांड की उत्पत्ति👈👈

👉👉लेख में सुधार और लिंक जुडते रहेगें👈👈


1. संक्षेप में ब्रह्मज्ञान क्या है??     लेख लिंक 👉👉आत्म ज्ञान👈👈


 👉👉योग व योगी के स्तर और अनुभव👈👈

2. मतलब


3. क्या मिलेगा ??


 

👉👉 ईश्वर चर्चा से नहीं साधना से मिलता है👈👈

4. परिपक्वता क्या ??


5. मतलब ??

 

 

6. वेद महावाक्य क्या??


7. चार महावाक्य क्या।

   

👉👉क्या होता है अह्म ब्रह्मास्मि और आत्म ज्ञान तत्व👈👈

   

8. सार वाक्य ??


 

9. योग है क्या??


 

10. क्या यह घटित होता है??


 

11. इसका फायदा क्या??


 

12. पर यह हो कैसे??


 

 

13. मतलब क्या ??


 

 

14. कृपया स्पष्ट करें??

 

👉👉बीज मंत्र: क्या, जाप और उपचार👈👈  

 👉👉मंत्र विज्ञान परिचय और बजरंग मंत्र 👈👈

👉👉मातृ शक्ति इच्छापूर्ती बीज मंत्र  👈👈


 

15. फिर साधना क्या??  

लेख लिंक 👉👉क्या अंतर है ध्यान और समाधि में👈👈  

लेख लिंक 👉👉   निद्रा, योग निद्रा, ध्यान निद्रा और समाधि 👈👈

👉👉साधन साधना में अंतर: योग और कुछ उत्तर  👈👈


 

 

16. मार्ग मतलब ??


👉👉नवधा भक्ति : नौ तरीके, मार्ग या द्वार👈👈

👉👉सत्संग और हम👈👈  

👉👉श्रेष्ठ भक्ति कौन सी??👈👈  

👉👉गीता में स्थित प्रज्ञ और स्थिर बुद्धि  👈👈

👉👉प्रकृति, प्रवृति स्थितप्रज्ञ या स्थितअज्ञ? 👈👈

👉👉गीता सार और कुछ उत्तर 👈👈

👉👉समाधि का सम्पूर्ण विवरण  👈👈

👉👉सहस्त्रसार चक्र क्या है 👈👈


 

 

 

17. ब्रह्म क्या है?     लेख लिंक  👉👉ब्रह्म क्या है???👈👈

 

 

18. फिर भगवान परमात्मा ईश इत्यादि क्या है??

 

 

19. फिर यह तेतिस करोड देवता का क्या मामला है??


 

20. और बतायें?? 




संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 2 


👉👉संक्षेप में ब्रह्मज्ञान क्या है?? भाग 1  👈👈

 👉👉लेख में सुधार और लिंक जुडते रहेगें👈👈

 

20. कोटि देवता के बारे में और बतायें??


संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 3

 

प्रश्न 21. जब योग का एक वाक्य अर्थ तो इतने योग क्यों???

कहीं नाद तो कहीं सहज तो कहीं शब्द कहीं भक्ति कहीं ज्ञान कहीं कर्म??? 

👉👉लेख लिंकअंतर्मुखी बनाम योग 👈👈

👉👉लेख लिंक: अंतर्मुखी होने की विधियां 👈👈

👉👉लेख लिंक: योग की वास्तविकता और विभिन्न गलत धारणायें 👈

 

👉👉लेख लिंक  अंतर्मुखी होने की विधियां👈👈


 👉👉कबीर से साक्षात्कार👈👈

 

 👉👉आखिर क्या होती है शक्तिपात योग दीक्षा👈👈

 👉👉क्या होता है शक्तिपात👈👈   

👉👉क्या है क्रिया योग 👈👈

 👉👉क्रिया योग बनाम शक्तिपात👈👈

👉👉 शक्तिपात या दैवीय शक्ति संक्रमण👈👈

👉👉क्रिया व योग या क्रिया योग  👈👈

👉👉शक्तिपात में क्रिया क्या होती है  👈👈

 

👉👉 मन्त्र जप की अवस्थायें👈👈

👉👉शाबर मंत्र और महत्व  👈👈

 

प्रश्न 22: ओशो पर क्या विचार ???  

 


👉👉 क्यों मानता हूं ओशो को पापी👈👈 

 


प्रश्न 22: क्या हर मनुष्य का एक ही मार्ग या मन्त्र नहीं हो सकता??? 

 

प्रश्न 23: फिर गीता में सिर्फ भक्ति कर्म ज्ञान और राजयोग के साथ सांख्य योग की बात की है। 

 

प्रश्न 24: फिर अष्टांग योग क्या है???

अगले अंक की प्रतीक्षा !!


संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 4

  

24. फिर अष्टांग योग क्या है???



 👉👉अष्टांग (अष्ट + अंग) योग क्या है ?👈👈

 👉👉बिना स्वार्थी बने योग नही हो सकता👈👈

मेरी व्याख्या शायद आप कहीं और न पायें। 

 


 

👉👉क्या है षट-अंग, सप्तांग और अष्टांग योग  👈👈


 👉👉पातांजलि के पंच यम क्या हैं?👈👈

 👉👉पातांजलि के पंच नियम क्या हैं?👈👈


 👉👉क्या अंतर है ज्ञान और बुद्धि में👈👈

👉👉विवेक की व्याख्या  👈👈


👉👉क्या है ईश्वर- प्रणिधान अष्टांग योग में  👈👈

👉👉मन, बुद्धि और आत्मा  👈👈



 👉👉क्या हैं “त्याग” के अर्थ यानि प्रत्याहार का रूप👈👈

 


25. तो फिर सनातन में वेद क्या है???


👉👉ब्रह्मचर्य के वास्तविक अर्थ👈👈 

 👉👉वेद, उपनिषद और गीता की जन्म कथा👈👈

👉👉मानव योनि सर्वश्रेष्ठ क्यों??  👈👈

👉👉धर्म क्या??  👈👈

👉👉सत्य की विवेचना 👈👈

 

👉👉क्या है षट्दर्शन और भारत का ज्ञान  👈👈



 

प्रश्न 26: योगी की पहचान क्या है???

आपको योग हो गया यह कैसे मालूम पड़ेगा आपको और दूसरों को???

अगले अंक की प्रतीक्षा !!




संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 5


26. योगी की पहचान क्या है???



27. आपको योग हो गया यह कैसे मालूम पड़ेगा आपको और दूसरों को???


संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 6

 

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 2👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 3👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!! खंड 4👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 5👈👈



 




 

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👉👉 संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!!  खंड 1 👈👈
👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी! खंड 3👈👈

👉👉संक्षिप्त अष्टखंडी ब्रह्मज्ञान प्रश्नोत्तरी!! खंड 4👈👈






 गुरु की क्या पहचान है? आर्य टीवी से साभार गुरु कैसा हो ! गुरु की क्या पहचान है? यह प्रश्न हर धार्मिक मनुष्य के दिमाग में घूमता रहता है। क...