आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 35 (काहे का रोना / हिंदू बनो )
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काहे का रोना (कविता)
कविता: विपुल लखनवी
हमको जाना तुमको जाना फिर काहे का रोना है।
यह जीवन मिट्टी का ठेला जैसे एक खिलौना है।।
कभी-कभी यह बन जाता है कभी-कभी ये टूटे।
सपने नही किसी के पूरे जीवन से ही रुठे।।
जीवन को मथ कर तू जाने दूध से माखन बिलोना है।
यह जीवन मिट्टी का ठेला जैसे एक खिलौना है।।
कभी तो रुक कर के यह सोचे धरती पर क्यों आया।
क्यों मन को भटकाया करता तेरे मन जो भाया।
राम नाम को धारण कर ले आत्म रूप का सिलौना है।
यह जीवन मिट्टी का ठेला जैसे एक खिलौना है।।
दास विपुल ने मरम है समझा राम नाम रस पाया।
गुरु मिले जो शिव स्वरूप है उनके द्वारे जाया।।
अब जीवन उन्मुक्त हुआ है द्वारे प्रभु के सोना है।
यह जीवन मिट्टी का ठेला जैसे एक खिलौना है।।
हिंदू एकता कविता
कवि : अज्ञात
हिंदू होकर हिंदू का
आप सभी सम्मान करो
सभी हिंदू एक हमारे
मत उसका नुकसान करो
चाहे हिंदू कोई भी हो
मत उसका अपमान करो
जो ग़रीब हो अपना हिंदू भाई
धन देकर धनवान करो
हो गरीब हिंदू की बेटी
मिलकर कन्या दान करो
अगर हिंदू लड़े चुनाव
शत प्रतिशत मतदान करो
हो बीमार कोई भी हिंदू
उसे रक्त का दान करो
बिन घर के कोई मिले हिंदू
उसका खड़ा मकान करो
मामला अदालत में गर उसका
बिना फीस के काम करो
अगर हिंदू दिखता भूखा
भोजन का इंतजाम करो
अगर हिंदू की हो फाईल
शीघ्र काम श्री मान करो
यदि हिंदू की लटकी हो राशि
शीघ्र आप भुगतान करो
हिंदू को गर कोई सताये
उसकी आप पहचान करो
अगर जरूरत हो हिंदू को
घर जाकर श्रमदान करो
अगर मुसीबत में हो हिंदू तो
फौरन मदद का काम करो
अगर हिंदू दिखे वस्त्र बिन
उसे अंग वस्त्र का दान करो
अगर हिंदू दिखे उदासा
खुश करने का काम करो
अगर हिंदू घर पर आये
जय महादेव बोल सम्मान करो
अगर फोन पर बाते करते
पहले जय श्री राम कहा करो
अपने से हो बड़ा हिंदू
उसका पैर छूकर प्रणाम करो
हो गरीब हिंदू का बेटा
उसकी मदद तमाम करो
बेटा हो गरीब हिंदू का पढ़ता
कापी पुस्तक दान करो
ईश्वर ने तुम्हें दिया हिंदू कुल
आप खुद पर अभिमान करो।
Printer Raman Mishra: *_#हमारी महान धार्मिक विरासत:हमारे महान शिक्षक_*
*यदि हमें धर्म के माध्यम से जीवन और जगत के अस्तित्व को समझना हो तो हमें आदि शंकर से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। लेकिन हम हिंदू हिंदू का रट लगाना सीख तो गए हैं लेकिन उपनिषदों के सत्य को आत्मसात नहीं कर पाए हैं। इसलिए अनपढ़, अशिक्षित और निरक्षर कथित राजनीतिज्ञ हमारी भावनाओं का दोहन कर रहे हैं। हमारे समक्ष इस पराधीनता की बेड़ी को ज्ञान और विवेक से तोड़ने की कड़ी और बड़ी चुनौती है।*
📖✒📖✒📖✒📖.
*जगद्गुरु शंकराचार्य विरचितं निर्वाण-षटकम के निम्न दो स्तोत्र को यदि हृदय से आत्मसात करें तो किसी भी प्रकार के सांप्रदायिक एवं जातीय भेदभाव के विचारों को लोप हो जाएगा। भारत के महान परम्परा को समझने का यही प्रस्थान बिंदु है। यदि इन दो स्रोत्रों का चिंतन/मनन नियमित करें तो जाति और धर्म के नाम पर वोटों की राजनीति करने वाले एवं पारम्परिक सामाजिक संरचना को विखंडित करने वाले कभी हमें बरगला नहीं सकेंगे।* 🙏
न मे द्वेषरागौ न मे लोभ मोहौ
मदों नैव मे नैव मात्सर्यभावः |
न धर्मो नचार्थो न कामो न मोक्षः
चिदानंदरूप: शिवोहम शिवोहम ||3||
न मुझमें राग और द्वेष हैं, न ही लोभ और मोह, न ही मुझमें मद है न ही ईर्ष्या की भावना, न मुझमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ही हैं, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ…
I have no hatred or dislike, nor affiliation or liking, nor greed, nor delusion, nor pride or
haughtiness, nor feelings of envy or jealousy.
I have no duty (dharma), nor any money, nor any desire (kama), nor even liberation
(moksha).
I am indeed, That eternal knowing and bliss, the auspicious (Shivam), love and
pure consciousness.
न मे मृत्युशंका न मे जातिभेद:
पिता नैव मे नैव माता न जन्म |
न बंधू: न मित्रं गुरु: नैव शिष्यं
चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम ||5||
न मुझे मृत्यु का भय है, न मुझमें जाति का कोई भेद है, न मेरा कोई पिता ही है, न कोई माता ही है, न मेरा जन्म हुआ है, न मेरा कोई भाई है, न कोई मित्र, न कोई गुरु ही है और न ही कोई शिष्य, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ…]
I do not have fear of death, as I do not have death.
I have no separation from my true self, no doubt about my existence, nor have I
discrimination on the basis of birth.
I have no father or mother, nor did I have a birth.
I am not the relative, nor the friend, nor the guru, nor the disciple.
I am indeed, That eternal
knowing and bliss, the auspicious (Shivam), love and pure consciousness.
श्रीमद जगद्गुरु शंकराचार्य विरचितं निर्वाण-षटकम से साभार
Printer Raman Mishra: *हमारी महान धार्मिक विरासत और उसके पवित्र संदेश*
सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।
अर्थ - "सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।"
अथर्ववेद में उल्लिखित शांति पाठ का हिंदी पद्यानुवाद:-
शांति हो पृथ्वी गगन में और जल में स्वर्ग में शांति हो सारी वनस्पति और औषधि वर्ग में शांति हो संसार में सब देव में हो ब्रह्म में शांति का अनुभव करें हम तुष्ट हों अपवर्ग में
May All become Happy,
May All be Healthy (Free from Illness)
May All See what is Auspicious,
May no one Suffer in any way.
Jb Ashutosh C: Half of the Problem in Life are because we ACT without Thinking......And rest half is because we keep on Thinking without Acting.......!
*अक्रोधेन जयेत् क्रोधमसाधुं साधुना जयेत् |*
*जयेत् कदर्यं दानेन जयेत् सत्येन चानृतम् ||*
क्रोध पर विजय (प्रतिकार स्वरूप )क्रोध न कर के ही ही प्राप्त हो सकती है ,तथा दुष्टता पर विजय सौम्य स्वाभाव तथा सद्व्यवहार द्वारा ही होती है | कंजूसी की प्रवृत्ति पर विजय दान देने से हे सम्भव होती है और झूठ बोलने की प्रवृत्ति पर सत्यवादिता से ही विजय प्राप्त होती हैं |
Anger is won over with calmness (without anger); the immoral are won with morale; a miser is won by giving; lies are won over with truth.
*शुभोदयम् !लोकेश कुमार वर्मा (L K Verma)*
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*हिन्दू धर्म की महानता समझानेवाले और भक्तिभाव बढानेवाले ऑनलाइन सत्संग*
भावसत्संग : *भक्त श्री लाखाजी की अद्भुत निष्काम भक्ति*
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Printer Raman Mishra: *वेदांत सीखने की प्रक्रिया में प्राप्त कुछ सीखें*
विद्या दो प्रकार की होती है: 1.अपरा विद्या(Physics) 2. परा विद्या(Meta Physics)
बुद्धि(प्रज्ञा) भी दो प्रकार की होती है: 1. व्यवसायात्मिका बुद्धि 2. निश्चयात्मिका बुद्धि(स्थितप्रज्ञ, ऋतम्भरा प्रज्ञा)
अपरा विद्या(Physics): अपरा विद्या के द्वारा अपरा प्रकृति(Nature) का पूर्ण रहस्यमय ज्ञान प्राप्त होता है। अपरा प्रकृति को ही भौतिक प्रकृति(Material Nature) कहा जाता है। अपरा विद्या के लिये ज्ञान के अनेक ग्रंथ हैं, जैसे चारों वेद, छ: वेदांग, पुराण, दर्शन आदि ॥अपरा विद्या(Physics) के द्वारा भौतिकवाद(Materialism) का पूरा ज्ञान मिलता है। भौतिकवाद का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त किये बिना अध्यात्म(Spirituality) को जानना असम्भव है। अपरा विद्या(Physics) का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त किये बिना परा विद्या(अध्यात्म विद्या) (Meta Physics) को जानना असम्भव है॥ प्रकृति(Nature) का सम्पूर्ण रहस्य जाने बिना परा प्रकृति(Superior Nature) और परब्रह्म को जानना असम्भव है। अपरा विद्या(Physics) में अपरा प्रकृति(Nature) का वर्णन, बिन्दु विस्फोट सिद्धांत(Big Bang Theory), कृष्ण विवर सिद्धान्त(Black Hole Theory), गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त(Theory of gravity), सृष्टि तथा प्रलय(Creation and Destruction), प्रकृति के द्वारा सृष्टि वर्णन(Creation from Nature), प्रकृति के तीन गुण सत्त्व-रज-तम की सृष्टि, काल(समय)-कर्म-स्वभाव की सृष्टि महत्तत्व(cosmic intellect), अहंकार(cosmic ego), मन(cosmic mind), इन्द्रियाँ(senses), पंच तन्मात्रा(five subtle elements), पाँच महाभूत (five gross elements) पृथ्वी-जल-अग्नि-वायु- आकाश की सृष्टि, प्रकृति के सभी तत्त्वों द्वारा विराट ब्रह्माण्ड(Universe) की सृष्टि का विस्तार से वर्णन है॥ अंतरिक्ष, चौदह लोक, ध्रुव तारा(Pole Star), सप्तर्षि मण्डल, शिशुमार चक्र(Spiral galaxy), परमेष्ठी मण्डल आकाश गंगा(Milky Way), सभी नक्षत्र(constelletions), सूर्यलोक, चन्द्रलोक, सभी ग्रहों(Planets), सौर मण्डल(solar system), खगोल एवं भूगोल, पृथ्वीलोक का विस्तार से वर्णन किया हुआ है॥
परा विद्या(अध्यात्म विद्या) (Meta Physics):
अध्यात्म विद्या विद्यानां वाद: प्रवदतामहम्॥ (गीता)
सा विद्या परमा मुक्तेर्हेतुभूता सनातनी।
संसारबन्धहेतुश्च सैव सर्वेश्वरेश्वरी॥ (दुर्गा सप्तशती)
भगवान् श्रीकृष्ण ने श्रीमद भगवद् गीता के दशम अध्याय विभूतियोग में श्लोक न .32 में परा विद्या का वर्णन करते हुए कहते हैं ''अध्यात्म विद्या विद्यानाम्'' अर्थात् मै समस्त विद्याओं में अध्यात्म विद्या(परा विद्या) (Meta Physics) हूँ॥ परा विद्या को ही ''अध्यात्म विद्या, ब्रह्मविद्या तथा परा विज्ञान'' कहा गया है॥ परा विद्या के द्वारा मूल प्रकृति एवं परब्रह्म का पूर्ण ज्ञान होता है इसीलिए इसे ''ब्रह्मविद्या'' भी कहा जाता है॥
दुर्गा सप्तशती के प्रथम अध्याय में परा विद्या(Meta Physics) का वर्णन किया गया है। मूल प्रकृति भगवती राजराजेश्वरी महात्रिपुरसुन्दरी ही सनातनी परा विद्या हैं॥ परा विद्या सनातनी ब्रह्मविद्या है। परा विद्या संसार के बन्धन से मुक्ति देने वाली सनातनी अध्यात्म विद्या है॥ परा विद्या संसार-बन्धन और मोक्ष की हेतुभूता सनातनी देवी तथा सम्पूर्ण ईश्वरों की भी अधीश्वरी हैं॥
अध्यात्म विद्या सम्बन्धी ग्रंथ विशेष रूप से ब्रह्मसूत्र(वेदान्त दर्शन) परा विद्या का स्वरूप है॥ ब्रह्ममीमांसा(वेदान्त सूत्र) के द्वारा ही परब्रह्म एवं परा प्रकृति का पूर्ण ज्ञान प्राप्त होता है॥ वेदान्त में ब्रह्म के बारे में विस्तार से मीमांसा की गयी है इसीलिए वेदान्त को ''ब्रह्मसूत्र या ब्रह्ममीमांसा'' कहा गया है। ब्रह्मसूत्र और श्रीमद भगवद् गीता में सनातन परब्रह्म और परा प्रकृति का विस्तार से वर्णन है, सनातन ब्रह्म को प्राप्त करने तथा मोक्ष (ब्रह्मनिर्वाण) प्राप्त करने के सनातन मार्ग का वर्णन है॥ वेदान्त साधना करते हुए निर्विकल्प समाधि के द्वारा परब्रह्म एवम् परा प्रकृति का एकत्व का अनुभव एवं साक्षात्कार होता है तभी परा विद्या में पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती है॥ वेदान्त दर्शन के प्रस्थानत्रयी के अन्तर्गत ब्रह्मसूत्र एवं श्रीमद भगवद् गीता का विशेष महत्व है इसीलिए श्रीमद भगवद् गीता को ''ब्रह्मविद्या योगशास्त्र'' कहा गया है॥ परा विद्या के द्वारा साधक को जीव और ब्रह्म की एकता का अनुभव होता है, सर्वत्र ब्रह्मदृष्टि प्राप्त होती है, परम पुरुष(पुरुषोत्तम) (Supreme Person) और परा प्रकृति(Superior Nature)में कोई भेद नहीं है दोनों एक ही है, अभेद हैं ऐसा सत्य ज्ञान प्राप्त होता है॥ साधक गुणातीत हो जाता है, स्थितप्रज्ञ हो जाता है॥
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*शरद उपाध्याय*
हिंसा और घृणा का प्रसार न करें। यह हमारी महान परंपरा के विरुद्ध है। ज्ञान प्राप्ति के लिए सतत क्रियाशील रहें। जिस क्षेत्र में आप का अध्ययन मनन न हों तो उस क्षेत्र में मौन रहें। यदि धार्मिक होना चाहते हैं तो उपनिषदों के अध्ययन में विशेष रुचि लें। मध्य युग के संत कवियों(कबीर, तुलसी, सूर, मीरा, रसखान, नामदेव, तुकाराम, स ह जो बा ई, रैदास, रहीम, रसखान, नानक आदि ) स्वामी विवेकानंद और अरविंदो घोष जैसे महान विभूतियों के साहित्य की नियमित संगत करें। कूप - मंडूपों, पोंगा पंडितों और रूढ़िवादी कट्टरपंथियों से दूर रहें।🙏
Printer Raman Mishra: भारतीय विद्वान शब्द को ब्रह्म अर्थात् ईश्वर का रूप कहते हैं। शब्दाद्वैतवाद के अनुसार शब्द ही ब्रह्म है। उसकी ही सत्ता है। ... अर्थात् शब्द रूपी ब्रह्म अनादि, विनाश रहित और अक्षर (नष्ट न होने वाला) है तथा उसकी विवर्त प्रक्रिया से ही यह जगत भासित होता है।
अब महत्वपूर्ण यह है कि इन पवित्र शब्दों का प्रयोग आप किस प्रयोजन से करते हैं और किसकी प्रेरणा से करते हैं। यदि करते हैं तो सत्य के प्रति कितने सजग हैं। यूं बैठे ठा ले इस शब्द ब्रम्ह से बिना किसी उचित या प्रामाणिक स्रोत के किसी महापुरुष के चरित्र का हनन अनैतिक कार्य है। हमारे इस सामंती समाज में ऐसे बहुत से लंपट और कायर मिलेंगे जो किसी की मां, बहन या परिवार के प्रति अपशब्दों का प्रयोग कर अपनी भड़ास को शांत करते हैं। क्या यह उचित और नैतिक है? यदि हम सचमुच किसी धर्म, दर्शन या अध्यात्म की महान परंपरा से सम्बद्ध हैं तो शब्दों का प्रयोग पवित्र मनोभाव से सजग हो कर करना चाहिए। आलोचना और चरित्र हनन के अंतर को समझना आवश्यक है। जब आलोचना के लिए हमारे पास तर्क समाप्त हो जाते हैं, तब हम मां, बहन, पिता, आदि सम्बन्धों के माध्यम से अपनी घृणा को अभिव्यक्ति देने लगते है। भारतीय धर्म और अध्यात्म परंपरा में इसी कुत्सित घृणा को वर्जित माना गया है। अत: मित्रों, शब्द ब्रम्ह का प्रयोग करते हुए हमें भारतीय धर्म और अध्यात्म परंपरा को नजरंदाज नहीं करना चाहिए।🙏
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Jb Ashutosh C: 'Easily achieved things do not stay Longer.......Things which stay Longer are not Easily Achieved....!
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🌸 नामजप सत्संग : *अविधवा नवमी का शास्त्राधार*
🌸 भावसत्संग : *भक्त खड्गसेनजी की अविचल संतनिष्ठा*
🔸 श्रीकृष्ण जी को क्यों प्रिय है बांसुरी
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Vs P Mishra: *🌷🌷🌷ओउम्🌷🌷🌷🌺समुद्र के किनारे एक लहर आई। वो एक बच्चे की चप्पल अपने साथ बहा ले गई। बच्चा ने रेत पर अंगुली से लिखा-🌴समुद्र चोर है।🌴
🌞उसी समुद्र के दूसरे किनारे पर कुछ मछुआरों ने बहुत सारी मछली पकड़ी। एक मछुआरे ने रेत पर लिखा-🌴समुद्र मेरा पालनहार है।🌴
🌸 एक युवक समुद्र में डूब कर मर गया। उसकी मां ने रेत पर लिखा-🌴समुद्र हत्यारा है।🌴
💥दूसरे किनारे पर एक ग़रीब बूढ़ा, टेढ़ी कमर लिए रेत पर टहल रहा था। उसे एक बड़ी सीप में अनमोल मोती मिला। उसने रेत पर लिखा-🌴समुद्र दानी है।🌴
🍄अचानक एक बड़ी लहर आई और सारे लिखे को मिटा कर चली गई।
🔥लोग समुद्र के बारे में जो भी कहें, लेकिन विशाल समुद्र अपनी लहरों में मस्त रहता है। अपना उफान और शांति वह अपने हिसाब से तय करता है।
💧अगर विशाल समुद्र बनना है तो किसी के निर्णय पर अपना ध्यान ना दें। जो करना है अपने हिसाब से करें। जो गुज़र गया उसकी चिंता में ना रहें। हार-जीत, खोना-पाना, सुख-दुख इन सबके चलते मन विचलित ना करें। अगर जिंदगी सुख शांति से ही भरी होती तो आदमी जन्म लेते समय रोता नहीं। जन्म के समय रोना और मरकर रुलाना इसी के बीच के संघर्ष भरे समय को ज़िंदगी कहते हैं ।
🌹‘कुछ ज़रूरतें पूरी, तो कुछ ख़्वाहिशें अधूरी।
🌹इन्ही सवालों का संतुलित जवाब है।
🔥ज़िंदगी🔥
http://freedhyan.blogspot.com/2018/09/blog-post_16.html?m=1
Fb Yashodhara Sharma: धन्यवाद सर🙏
सभी विद्व जनो को प्रणाम मेरा प्रश्न है कि मैं जब ध्यान करती हूँ तो माथे के बीच में एक सफ़ेद रौशनी दिखती है फिर वो ठहरती नहीं ज्यादा देर विलुप्त हो जाती है कभी नीली हो जाती है।मुझे ध्यान में क्या करना चाहिए जिससे ये रौशनी विलुप्त न हो।
मैं बार बार आँख बंद करती हूँ कोशिश करना चाहती हूँ की वो रौशनी फिर दिखे मगर एक बार विलुप्त हो जाने पे उस दिन तो दोबारा नहीं ही दिखती। ऐसा सुबह की सामान्य पूजा के समय होता है।
मेरा मार्गदर्शन करें सर।🙏
आपको इसमें घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है यह आपका ध्यान परिपक्वता की ओर बढ़ता जा रहा है।
आप क्या कोई मंत्र जप करती हैं हैं।
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*तय आपको करना है कि आपको हिन्दूवादी चैनल को सपोर्ट करना है या नही*
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*हर हर महादेव*
*यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति |*
*काकोऽपि किं न कुरूते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् ||*
जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता ?
अर्थात- व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसके जीवन से अन्य लोगों को भी अपने जीवन का आधार मिल सके। अन्यथा तो कौवा भी भी अपना उदर पोषण करके जीवन पूर्ण कर ही लेता है।
If the 'living' of a person results in 'living' of many other persons, only then consider that person to have really 'lived'. Even the crow fill it's own stomach by it's beak. There is nothing great in working for our own survival.
*शुभोदयम्! लोकेश कुमार वर्मा (L K Verma)*
Swami Toofangiri Bhairav Akhada: *"जैसे सूर्य के उदय से अंधकार मिट जाता है, ठीक उसी प्रकार सही ज्ञान की प्राप्ति से अज्ञान का नाश हो जाता है और सभी वस्तुएं अपने वास्तविक स्वरूप में दिखने लगती हैं।"* "श्रीमद्भागवत गीता"
। सुप्रभात जी ।
Jb Ashutosh C: Confidence comes naturally with Success.But,Success comes only to those who are Confident...!!
😀😀: http://freedhyan.blogspot.com/2020/09/1-kya-mmstm-vidhi-ham-raat-ke-badle.html?m=1
जी सर ॐ नमः शिवाय का जप करती हूँ
Vs P Mishra: मिलन से विरह सर्वश्रेष्ठ है ।
मिलन में प्रियतम के खोने का डर लगा रहता है , उससे बिछुड़ने का भय रहता है , परंतु विरह में नित प्रति पाने की आशा लगी रहती है , अपने प्रियतम से मिलने की आशा बनी रहती है ।
इसलिए विरह का आनंद सर्वश्रेष्ठ है ।
मुझे भगवान को पाने की इच्छा है परंतु मैं नहीं चाहता मैं उनसे मिलूँ बल्कि यह चाहता हूँ कि उनसे मिलने की इच्छा दिन प्रति दिन क्षण दर क्षण बलवती हो जाये और विरह की पीड़ा का आनंद मिलता रहे ।
उनसे मिलने को तड़पता भी रहूँ पर वह मिले भी नहीं ।
रोता रहूँ तव दर्शन हित राधे ।
बस यही जो आनंद है न वही आनंद सभी आनंद पर भारी है ।
रोने में जो रस वह नहीं मोक्ष धामा ।
उनके प्रेम में जो तड़प है , एकमात्र वही आनंद है ।
जग को लगता है यह पीड़ा वाले अश्रु हैं , पर वह तो परमानंद के अश्रु , तड़प और पीड़ा है ।
आम लोग क्या जानें की पीड़ा का आनंद क्या होता है ।
यह विरह का आनंद मिलन के आनंद से कई गुना आनंददायक होता है ।
इसी विरह में मीरा , तुलसीदास , सूरदास इत्यादि आनंदमग्न रहा करते थे ।
इसी विरह की पीड़ा के आनंद की अधिष्ठात्री बृज की गोपियाँ एवं मदनाख़्य प्रेम की अधिष्ठात्री राधा रानी भगवान कृष्ण की पत्नी रुक्मणि लक्ष्मी आदि से भी अनंत गुना ऊपर हो गईं ।
बस विरह , प्रेम को पाने की व्याकुलता , तड़प , पीड़ा के आनंद को बढ़ाते जाना है और उस आनंद को भी आनंद प्रदान करने वाला विरहानंद का आनंद लेना है ।
न गरज किसी से वास्ता , मुझे काम अपने ही काम से !
तेरे दीद से, तेरे फिक्र से, तेरे शौक से , तेरे नाम से !!
तेरी बेरुखी के सदके , तेरी सादगी को सिजदा !
तेरा गम है मौज ए दरिया , हर रजा में तेरी राजी !!
तड़पाते हैं खुद जिसे उस लुत्फ़ ए तड़प को क्या कहिये!
अजी शुक्रिया कहिये, चुप रहि
सुप्रभातये या अंदाज ए वफ़ा कहिये !
आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 36 (निशुल्क प्रशासनिक कोचिंग)